कवयित्री अनामिका अनु को मिला 2020 भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार

अनामिका अनु को मिला 2020 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार|
 तस्वीर कविता कोश से साभार

रज़ा फाउंडेशन ने कवयित्री अनामिका अनु को वर्ष 2020 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार देने का निश्चय किया है। 

1 जनवरी 1982 को जन्मी अनामिका अनु ने बिहार विश्वविद्यालय से एम ए और पीएचडी की डिग्री ली है। फिलहाल वह केरल में रह रही हैं।

यह पुरस्कार अनामिका अनु को उनकी कविता ‘माँ अकेली रह गयी’ के लिए दिया जा रहा है।  उनकी यह कविता वर्ष 2019 में कथादेश पत्रिका के जुलाई अंक में प्रकाशित की गयी थी। इस वर्ष पुरस्कार के निर्णायक प्रख्यात कवि और संस्कृति कर्मी अशोक वाजपेजी थे।

पुरस्कार के तौर पर अनामिका अनु को 21 हजार रूपये की राशी और प्रशस्ति पत्र दिया जायेगा। 

अपनी अनुशंसा में अशोक वाजपेयी ने कहा है: ‘माँ अकेली रह गयी’ कविता संभवतः विधवा हो जाने पर एक स्त्री की मनोव्यथा और अकेलेपन का मर्मचित्र है। उसमें अनुपस्थिति क्षति और अभाव व्यंजित हैं और काव्यकौशल इससे प्रगट होता है कि बटन जैसी साधारण चीज़ इन सबका और स्मृति का धीरे-धीरे, बिना किसी नाटकीयता के, रूपक बनती जाती है। रोज़मर्रापन में ट्रैजिक आभा आ जाती है। तरह-तरह की क्रियाएँ और याद आती चीज़ें मर्मचित्र को गहरा करती है।’

माँ अकेली रह गयी है

माँ अकेली रह गयी
खाली समय में बटन से खेलती है
वे बटन जो वह पुराने कपड़ों से
निकाल लेती थी
कि शायद काम आ जाए बाद में
हर बटन को छूती
उसकी बनावट को महसूस करती
उससे जुड़े कपड़े और कपड़े से जुड़े लोग
उनसे लगाव और बिछड़ने को याद करती
हर रंग, हर आकार और बनावट के वे बटन
ये पुतली के छट्ठे जन्मदिन के गाउन वाला
लाल फ्राक के ऊपर कितना फबता था न
मोतियों वाला ये सजावटी बटन
ये उनके रेशमी कुर्ते का बटन
ये बिट्टू के फुल पैंट का बटन
कभी अखबार पर सजाती
कभी हथेली पर रख खेलती
कौड़ी, झुटका खेलना याद आ जाता
नीम पेड़ के नीचे काली माँ के मंदिर के पास
फिर याद आ गया उसे अपनी माँ के ब्लाउज का बटन
वो हुक नहीं लगाती थी
कहती थी बूढ़ी आँखें बटन को टोह के लगा भी ले
पर हुक को फँदे में टोह कर फँसाना नहीं होता
बाबूजी के खादी के कुर्ते का बटन
होगी यहीं कहीं
ढूँढ़ती रही दिन भर
अपनों को याद करना भूल कर
दिन कटवा रहा है बटन
अकेलापन बाँट रहा है बटन


हर वर्ष भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार 35 वर्ष के किसी कवि को उनकी कविता के लिए दिया जाता रहा है परन्तु रजा फाउंडेशन ने इस वर्ष से पुरस्कार के नियमों में कुछ बदलाव किये हैं। अब इस पुरस्कार के लिए अधिकतम आयु सीमा 40 वर्ष होगी। अगले वर्ष से यह पुरस्कार किसी युवा कवि की एक कविता के लिए न दिया जाकर किसी युवा कवि के पहले कविता संग्रह पर दिया जायेगा। आयु सीमा 2020 से लागू कर दी गयी है।
पहले की ही तरह अगले पाँच वर्षों के लिए निर्णायकों का चयन हो चुका है जिसके सदस्य अगले पाँच वर्षों तक बारी बारी से पुरस्कार के लिए कविता संग्रह चुनेगे।  अगले पाँच वर्षों के लिए निर्धारित ज्यूरी में अरुण देव, मदन सोनी, अष्टभुजा शुक्ल, आनन्द हर्षुल और उदयन वाजपेयी शामिल होंगे।
विकास नैनवाल ‘अंजान’

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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