संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 88 | प्रकाशन: आधार प्रकाशन
कहानी
धरती की जनसंख्या बढ़ते बढ़ते इतनी अधिक हो गई थी कि उधर रहना अभी मुहाल हो गया था। लोग जैसे जैसे अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे।
ऐसे में जब 18 वर्ष पहले डॉक्टर विमल खेतान ने अंतरिक्ष में एक नगर स्थापित करने की योजना का विचार रखा तो सब लोगों की रुचि इसमें जागृत होना तो लाजमी था। अब सबकी उम्मीद विमल के इस प्रोजेक्ट थी जो कि धरती पर त्रस्त हो रही मानवता को राहत की सांस देता।
और फिर ठीक अट्ठारह वर्ष बाद 2196 को एक रॉकेट धरती से अंतरिक्ष की ओर उड़ गया। इसमें बैठी टीम जिसमें विमल खेतान, डॉक्टर डिसूजा, पंकज, शेफाली, अमित,राजीव और अनु ने अब इस नगर की स्थापना अंतरिक्ष में करनी थी।
पर कहते हैं न सोचने और करने में काफी फर्क होता है।
यह टीम बड़ी उम्मीदें लेकर अंतरिक्ष गई तो थी लेकिन वो क्या जानते थे कि वहां कई मुसीबतें उनका इंतजार कर रही हैं।
क्या धरती से आई यह टीम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाई?
आखिर अंतरिक्ष में उन्हें लिए कौन सी मुसीबतों का सामना करना पड़ा?
क्या स्थापित हो पाया अंतरिक्ष नगर??
मुख्य किरदार
विमल खेतान – नोबल प्राइज़ विजेता जिन्होंने अंतरिक्ष नगर की कल्पना की थी
डिसूजा – अंतरिक्ष नगर टीम के इलेक्ट्रॉनिक विशेषज्ञ
अमित – यांत्रिकी एवं वातानुकूलन विशेषज्ञ
नेहा – डॉक्टर
पंकज और शेफाली – एक युगल जिन्हें पृथ्वी और सौर मण्डल का खूब ज्ञान था
राजीव – अंतरिक्ष स्टेशन में मौजूद व्यक्ति जिसने टीम का स्वागत किया था
रुबीना – अंतरिक्ष स्टेशन में मौजूद एक वैज्ञानिक
समानूगो – अंतिरक्ष नगर ल्यूको का राजा
चिलगोंजा – अंतरिक्ष का आतंकवादी
फिंगोनियम – एक राजा जो कि अंतरिक्ष नगर समिति का सदस्य था
मेरे विचार
हिन्दी में विज्ञान-गल्प काफी कम लिखा गया है और जो लिखा गया है उसका प्रचार न के बराबर होता है। यही कारण है कि उसके विषय में कुछ देखने सुनने में नहीं आता है। मुझे विज्ञान-गल्प भी पढ़ना पसंद है इसलिए कई बार जब मुझे विज्ञान-गल्प की कोई पुस्तक दिख जाती है तो मैं उसे खरीद लेता हूँ। हाँ, ये बात अलग है कि उसे पढ़ कब पाता हूँ इसका कोई आइडिया मुझे नहीं होता है। प्रस्तुत उपन्यास अंतरिक्ष नगर को ही ले लीजिए। इस उपन्यास को मैंने 2018 में हुए नई दिल्ली पुस्तक मेले (इस यात्रा के विषय में इधर क्लिक करके पढ़ सकते हैं) में खरीदा था लेकिन पढ़ने का मौका अब इतने साल बाद लगा है।
‘अंतरिक्ष नगर’ की बात करें तो उपन्यास की शुरुआत एक घोषणा से होती है। यह वर्ष 2196 है और धरती पर जनसंख्या विकराल रूप धारण कर चुकी है और इससे निपटने के धरती के वैज्ञानिक डॉ विमल खेतान एक कृत्रिम अंतरिक्ष नगर स्थापित करने जा रहे हैं। इसके लिए एक रॉकेट जल्द ही लॉन्च किया जाता है। इस रॉकेट में बैठी है छः सदस्यीय टीम जिसका काम अंतरिक्ष में जाकर एक ऐसे नगर की स्थापना करना है जिसमें मनुष्य रह सके और धरती पर बढ़ती जनसंख्या का बोझ कुछ कम हो सके। लेकिन सोचना और करना दो अलग बातें है। यह टीम अंतरिक्ष नगर स्थापित करने के अपने लक्ष्य के लिए काम करना शुरू करती तो है लेकिन फिर उनके साथ ऐसा कुछ घटित हो जाता है कि उनकी जान के लाले पड़ जाते है। ये कुछ क्या होता है और इससे बचकर वह अपने मकसद में कैसे कामयाब होते हैं ये ही उपन्यास की कहानी बनती है।
उपन्यास का अधिकतर घटनाक्रम अंतरिक्ष में होता है और तेजी से घटित होता है। अंतरिक्ष यान आपस में लड़ते दिखते हैं। चालें भी चली जाती हैं जिससे किरदार खुद को बचाते भी दिखते हैं। उपन्यास का मुख्य खलनायक एक पृथ्वीवासी है जिसका एक गहरा राज है जो कि बाद में उजागर होता है। व्यक्ति की आकांक्षाएँ अगर बेलगाम हो तो वह सही और गलत में फर्क महसूस नहीं कर पाता है। यही चीज उपन्यास में भी जाहिर होती है।
उपन्यास की कहानी सीधी सरल है और पढ़ते हुए यह प्रतीत होता है कि यह बाल पाठकों या किशोर पाठकों के लिए लिखी गई है।
विज्ञान गल्प उपन्यासों की एक जरूरी बात उनका वैज्ञानिक पक्ष होता है। मेरी नजर में एक अच्छा विज्ञानगल्प वही है जिसमें वैज्ञानिक पक्ष इतना कमजोर न हो कि वो अविश्वसनीय लगे और वैज्ञानिक तत्व इतने गूढ न हो कि रचना अपठनीय हो जाए। इस कसौटी पर यह पुस्तक काफी हद तक खरी उतरती है। पुस्तक पठनीय है और इसके वैज्ञानिक तत्व, फिर चाहे वो अंतरिक्ष नगर के निर्माण की प्रक्रिया हो या बरमूडा त्रिकोण का लेखक द्वारा कहानी में प्रयोग या सम्मोहन की शक्ति का लेखक द्वारा उपयोग, लेखक द्वारा ऐसे लिखे गए हैं कि यह विश्वसनीय लगते हैं। पंकज सम्मोहन की शक्ति से भविष्य की शक्ति को परास्त करते दिखता है जिसके माध्यम से लेखक ने यह शिक्षा दी इतिहास की हर चीज बेकार नहीं होती है। बस जरूरत होती है उसे समझकर बेहतर तरीके से उसको प्रयोग में लाने की। कई बार हमारे इतिहास में ऐसी ऐसी चीजें रहती हैं जो कि भविष्य की तकनीक से बेहतर रहती हैं। यह चीज हमारी जीवन शैली पर भी लागू होती है।
उपन्यास की कमियों की बात करें तो कुछ कुछ जगह ऐसा लगता है कथानक को तेजी से भगाया गया है और कई जगह कथानक को अत्यधिक सरल भी बनाया गया है। मसलन अंतरिक्ष नगर में टीम के साथ जो जो होता है वो काफी तेजी से घटित होता है। यहाँ कई परग्रही भी दिखते हैं लेकिन उनके विषय और उनके समाज के विषय में अधिक विवरण नहीं मिलता है। मुझे लगता है इस जगह पर उस दुनिया का थोड़ा अधिक विवरण होता तो अच्छा होता।
मुख्य खलनायक खतरनाक जरूर है लेकिन जितनी आसानी से उस पर काबू पाया दर्शाया जाता है वो जमता नहीं है। फिर जितना खतरनाक वो था उतना खतरनाक मैं होता तो अगर मुझे किसी चीज को तबाह करना होता तो अपने आदमियों के माध्यम से उसे करता लेकिन वो ऐसा नहीं करता है और इस कारण उसे हार का सामना करना पड़ता है।
उपन्यास में कुछ जगह और चीजें भी थीं जो मुझे अटपटी लगीं:
पृष्ठ 11 में बताया गया है कि सुरक्षा गोले से टकराकर कई उड़न तश्तरियां खराब हुई हैं और पृष्ठ 28 में नेहा ऐसे बोलती है कि जीवन का अहसास उसे पहली बार हो रहा हो…ऐसे में प्रश्न ये कि वो उड़न तश्तरियां किसकी थी जो टकराकर नष्ट हुई थी
इस पूर्णतया सुरक्षित टापू की चपेट में आकार कई उड़न तश्तरियाँ भी नष्ट हो चुकी हैं। (पृष्ठ 11)
“… देखो एक बात तो निश्चित है कि जैसा हमारे वैज्ञानिकों का मत था कि पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर भी जीवन है। यह बात शत प्रतिशत सही निकीली और यह भी तय है कि यहाँ की तकनीक पृथ्वी से वर्षों आगे है।” नेहा ने अमित के सोच का रुख बदल दिया। (पृष्ठ 28)
पृष्ठ 24 में अपने साथियों के अपहरण होने के बाद विमल और डिसूजा वापिस जाने की सोचते हैं लेकिन वह धरती पर संपर्क स्थापित कर मदद के लिए नहीं बोलते हैं। जबकि पहला काम उन्हें धरती को अपनी स्थति से वाकिफ करवाना था ताकि उधर से मदद मिल सके। इसके बजाय वह खुद धरती पर जाने की सोचते हैं जो कि सुरक्षा की दृष्टि से कहीं भी ठीक नहीं था क्योंकि हाल ही में उनकी टीम पर हमला होकर हटा था। यह चीज तर्कसंगत नहीं लगती है।
स्टेशन में पहुँचकर सबने चैन की साँस ली। जहाँ सबके चेहरे पर सफलता का तेज चमक रहा था वहीं अपने दो महत्वपूर्ण साथियों के बिछड़ने का गम भी झलक रहा था। एक बैठक हुई जिसमें इस पूरी प्रक्रिया का विश्लेषण हुआ और अंततः तय हुआ कि अब डॉक्टर विमल और डिसूजा वापस धरती पर जाएँगे और वहाँ से कुछ और विशेषज्ञों को लाएँगे। (पृष्ठ 24)
पृष्ठ 29 में राजीव और रुबीना को जो व्यक्ति मिलता है वह खुद को अंतरिक्ष नगर ल्युको का राजा समानूगो कहता है वहीं पृष्ठ 41 में राजा का नाम लोकोपोण्डा हो जाता है।
राजीव और रुबीना को एक साठ होश आया।…कुछ क्षणों बाद कमरे में एक आवाज गूँजी “पृथ्वी के वैज्ञानिकों! अंतरिक्ष नगर ल्युको का राजा समानूगो आपका स्वागत करता है।…” (पृष्ठ 29)
मेज के एक तरफ राजीव तथा रुबीना बैठे हैं। उनके सामने उस अंतरिक्ष नअगर का राजा सेप्स मैन लोकोपोण्डा बैठा है। (पृष्ठ 41)
इसके अलावा पुस्तक में इक्का दुक्का जगह वर्तनी की छोटी-छोटी गलतियाँ हैं जैसे मेज को मेंज लिखा गया है।
अंत में यही कहूँगा कि अंतरिक्ष नगर के पीछे का कान्सेप्ट मुझे पसंद आया। कहानी को थोड़ा विस्तार दिया होता तो यह और अच्छी बन सकती थी। फिर भी एक बार पढ़ सकते हैं। हाँ, जटिल कथानक या विज्ञान गल्प में ज्यादा विज्ञान पढ़ने की अपेक्षा रखते हों तो इससे दूर रहे हैं। हो सकता है तब आप इसे निराश हो जाएँ।
आज का प्रश्न:
क्या आपको विज्ञान-गल्प पढ़ना पसंद है? अगर हाँ तो आपकी मनपसंद पाँच विज्ञान गल्प रचनाओं के नाम क्या हैं? हमें बताना न भूलिएगा।
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The plot seems very interesting. It reminds me of those novellas written by Prof. Diwakar. But yes, so many glitches can disrupt the flow of reading. Writing science fiction is difficult, I think.
yeah, it must be similar to prof divakar novels. The important thing in sci-fi is to maintain the balance. The science part should be very flimsy that it's hardly believable but it shouldn't be that much complex that it makes the book unreadable. Readablity should be there. This book succeeds in it.