हिंदी निबंध: गालियाँ - प्रेमचंद

गालियाँ – प्रेमचंद

समाज में किस तरह गालियाँ व्याप्त हैं इस पर प्रेमचंद ने उर्दू में यह निबंध लिखा था। यह निबंध मूल रूप से उर्दू में प्रकाशित हुआ था और उर्दू मासिक पत्रिका ‘ज़माना’ के दिसंबर 1909 के अंक में प्रकाशित हुआ था। आप भी पढ़ें:

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साहित्य और भाषा - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

साहित्य और भाषा – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

साहित्य की भाषा कैसी होनी चाहिए? सरल या क्लिष्ट। यह एक ऐसा विषय है जिस पर बहस निरंतर चलती रहती है। इस विषय पर सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा भी लिखा गया था। आप भी पढ़ें:

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लेख: सम्पादकों के लिए स्कूल - महावीर प्रसाद द्विवेदी

लेख: सम्पादकों के लिए स्कूल – महावीर प्रसाद द्विवेदी

‘सम्पादकों के लिए स्कूल’ महावीर प्रसाद द्विवेदी का लेख है जो 1904 में तब प्रकाशित हुआ था जब अमेरिका में सम्पादकों के लिए पहला स्कूल खुलने की खबर आयी थी। इसमें वह बता रहे हैं इस स्कूल में क्या क्या होने वाला था और एक कुशल सम्पादक को क्या क्या पता होना चाहिए। आप भी पढ़ें:

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निबंध: सरस्वती का प्रकाशन - राहुल सांकृत्यायन

निबंध: सरस्वती का प्रकाशन – राहुल सांकृत्यायन

‘सरस्वती’ महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका थी। यह हिंदी की पहली मासिक पत्रिका थी। हिंदी के प्रचार प्रसार में इस पत्रिका और महावीर प्रसाद द्विवेदी का क्या योगदान था और कैसे इस पत्रिका ने राहुल सांकृत्यायन को प्रभावित किया यह वह इस निबंध में बताते हैं। आप भी पढ़िए:

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निबंध: उपन्यास के विषय - प्रेमचंद

निबंध: उपन्यास के विषय – प्रेमचंद

उपन्यास साहित्य की सबसे प्रसिद्ध विधाओं में से एक है। उपन्यास, उसकी विषय वस्तु, और उसमें गढ़े गए चरित्र, कैसे होने चाहिए? किस तरह के उपन्यास अच्छे कहे जाएँगे और वह कौन सी चीजें हैं जो उपन्यास को कमजोर बना सकती हैं? इन्हीं सब बातों के ऊपर लेखक प्रेमचंद ने लिखा है। यह लेख 1930 के मार्च माह में प्रकाशित ‘हंस’ पत्रिका के अंक में सर्वप्रथम प्रकाशित हुआ था। आप भी पढ़ें:

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निबंध: उत्साह - आचार्य रामचंद्र शुक्ल

निबंध: उत्साह – आचार्य रामचंद्र शुक्ल

दुःख के वर्ग में जो स्थान भय का है, आनंद वर्ग में वही स्थान उत्साह का है। भय में हम प्रस्तुत कठिन स्थिति के निश्चय से विशेष रूप में दुखी और कभी-कभी स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए प्रयत्नवान् भी होते हैं। उत्साह में हम आनेवाली कठिन स्थिति के भीतर साहस के अवसर के निश्चय-द्वारा प्रस्तुत कर्म-सुख की उमंग में अवश्य प्रयत्नवान् भी होते हैं।

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निबंध: साहित्य की महत्ता - महावीर प्रसाद द्विवेदी

निबंध: साहित्य की महत्ता – महावीर प्रसाद द्विवेदी

साहित्य का जीवन और समाज के लिए क्या महत्व है? क्यों साहित्य पढ़ना जरूरी है और किस तरह का साहित्य पढ़ा जाना चाहिए? यह महावीर प्रसाद द्विवेदी ‘साहित्य की महत्ता’ में बताते हैं। आप भी पढ़ें।

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निबंध: जीवन में साहित्य का स्थान - प्रेमचंद

निबंध: जीवन में साहित्य का स्थान – प्रेमचंद

जीवन में साहित्य का स्थान प्रेमचंद का लिखा निबंध है। यह 1932 के हंस के अप्रैल अंक में प्रकाशित हुआ था। आप भी पढ़ें:

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