हिंदी आलोचना की जीवंत बहसों के केंद्र थे रामविलास शर्मा

रामविलास शर्मा रचनावली के दूसरे भाग ‘भाषा और भाषाविज्ञान’ का हुआ लोकार्पण
  • रामविलास शर्मा रचनावली के दूसरे भाग ‘भाषा और भाषाविज्ञान’ का हुआ लोकार्पण
  • रामविलास शर्मा की जयंती पर राजकमल प्रकाशन ने आयोजित किया कार्यक्रम

11 अक्टूबर, 2024 (शुक्रवार)

नई दिल्ली: रामविलास शर्मा ने जातीयता के प्रश्न पर किसी राजनीतिज्ञ से भी अधिक गहराई से चिंतन और लेखन किया। हिंदी आलोचना के मौजूदा ढाँचे को बनाने में उनकी भूमिका रामचंद्र शुक्ल जैसी ही है। उनका सादगीपूर्ण और अनुशासित जीवन आज के लेखकों और आलोचकों के लिए एक मिसाल है। ये बातें रामविलास शर्मा की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने कही।

प्रतिष्ठित आलोचक रामविलास शर्मा की 112वीं जयन्ती पर उनकी स्मृति में राजकमल प्रकाशन की ओर से गुरुवार शाम कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर पाँच खंडों में प्रकाशित उनकी रचनावली के दूसरे भाग ‘भाषा और भाषाविज्ञान’ का लोकार्पण हुआ। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर-एनेक्सी में आयोजित इस कार्यक्रम में लेखक-आलोचक वीर भारत तलवार, नारीवादी चिंतक-आलोचक गरिमा श्रीवास्तव और आलोचक कवितेंद्र इंदु बतौर वक्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन कवि-आलोचक मृत्युंजय ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए मृत्युंजय ने कहा, रामविलास शर्मा हिंदी आलोचना की जीवंत बहसों के केंद्र थे। उनका मकसद हिंदी समाज, हिंदी कौम और हिंदी नवजागरण जैसे मुद्दों पर सही समझ बनाना था।

जातीय समस्या पर सर्वाधिक लिखा

वीर भारत तलवार ने रामविलास शर्मा के साथ अपने निजी संबंधों को याद किया। उन्होंने कहा, आलोचना में जैसी नैतिक दृढ़ता और उच्चता रामविलास जी में थी वैसी किसी और में नहीं मिलती। जातीयता के प्रश्न पर विचार करना मैंने भी उन्हीं से सीखा। उन्होंने जातीयता और जातीय समस्या पर जितना चिंतन और लेखन किया उतना किसी और ने नहीं किया। जातीय समस्या राजनीति से जुड़ा विषय होने के बावजूद इस पर किसी राजनीतिक व्यक्ति से अधिक विचार रामविलास जी ने किया।

सादगी और अनुशासन की मिसाल

गरिमा श्रीवास्तव ने अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान जेएनयू में रामविलास शर्मा के अध्यापन को याद करते हुए कहा, वे बहुत सादगी से रहते थे और बेहद अनुशासित जीवन जीते थे। उन्हें देखकर लगता था कि हमें भी इसी तरह का अनुशासित जीवन जीना चाहिए। इतना सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए उन्होंने जो विपुल लेखन किया, वह आज के लेखकों और आलोचकों के लिए एक मिसाल है। इसके बाद उन्होंने ‘रामविलास शर्मा का भाषा चिंतन’ विषय पर प्रपत्र प्रस्तुत किया।

स्पष्ट सरोकारों वाले आलोचक

कवितेंद्र इंदु ने रामविलास शर्मा के लेखन और चिंतन पर आलोचनात्मक वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा, हिंदी आलोचना के मौजूदा ढाँचे को निर्मित करने में जैसी भूमिका रामचंद्र शुक्ल की है, वैसी ही रामविलास शर्मा की है। उन्होंने रचना और रचनाकार के बीच अंतराल को मिटा दिया। रामविलास जी ने एक लंबा लेखकीय जीवन जिया और उम्रभर उसमें बदलाव भी लाते रहे। वे बदलाव कई बार पूरी तरह से विपरीत भी होते थे। उन्होंने कहा कि रामविलास शर्मा के सरोकार स्पष्ट थे और वे लगन के एकदम पक्के थे। वे जिस विषय पर काम करना शुरु करते तो फिर उसकी पूरी गहराई तक जाते थे। उसे वे बीच में छोड़ते नहीं थे।

रामविलास शर्मा की जयंती पर राजकमल प्रकाशन ने आयोजित किया कार्यक्रम
कवितेंद्र इंदु, गरिमा श्रीवास्तव, वीर भारत सरकार, मृत्युंजय (बाएँ से दायें )

साहित्य-जगत में विराट उपस्थिति

राजकमल प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अशोक महेश्वरी ने रामविलास शर्मा को याद करते हुए कहा, अस्सी के दशक में रामविलास शर्मा जी की ऐसी विराट उपस्थिति थी कि उनसे मिलने जाने की बात सोचना भी आसान नहीं था। लेकिन मैं जब उनसे मिलने गया तो वे बहुत सहजता से मिले। उनसे प्रकाशन के लिए किताब माँगी तो उस समय तो नहीं पर कुछ समय बाद उनका एक पत्र आया और उन्होंने किताब दी। फिर उनकी किताबें आती रहीं। मैं आज प्रकाशन जगत में जो कुछ भी हूँ, वह रामविलास जी जैसे महापुरुषों की ही देन है।

इसके बाद उन्होंने ‘रामविलास शर्मा रचनावली’ के प्रकाशन की योजना साझा की। उन्होंने कहा, हिंदी साहित्यालोचना में रामविलास शर्मा का योगदान अद्वितीय है। उनकी संपूर्ण रचनाओं को ‘रामविलास शर्मा रचनावली’ के रूप में 50 खंडों में प्रकाशित करने की योजना पर राजकमल प्रकाशन काम कर रहा है। रचनावली का पहला भाग ‘आलोचना समग्र’ 18 खंडों में पहले प्रकाशित हो चुका है। दूसरा भाग ‘भाषा और भाषाविज्ञान’ पाँच खंडों में आज लोकार्पित किया जा रहा है। तीसरे भाग में ‘इतिहास और राजनीति’ संबंधी उनके लेखन को संकलित कर शीघ्र ही प्रकाशित किया जाएगा।


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

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