संस्करण विवरण :
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: १९८ | प्रकाशक: राधाकृष्ण पेपरबैक्स | अनुवादक : डॉ महेश्वर
पहला वाक्य :
रात में कमल के वहाँ पार्टी थी।
इससे पहले में महाश्वेता जी कि 1084वें की माँ पढ़ चुका हूँ जो कि ७० के दशक के कलकत्ते के ऊपर आधारित था। नीलछवि भी कलकत्ते की कहानी है। अभ्र का कभी एक छोटा सा परिवार हुआ करता था। लेकिन उसकी बीवी जलि को अभ्र की ये कम चीज़ों में रहने की आदत पसंद न थी। जलि को खुश करने के लिए उसने अंग्रेजी में लिखना शुरू किया लेकिन अफ़सोस ये भी उनके विवाह को न बचा सका। हाँ, इससे ये ज़रूर हुआ अभ्र एक जाना माना संवादाता ज़रूर बन गया। अब अभ्र के पास एक लेख लिखने का मौका आया है वो लेख है कलकत्ते में फैले ब्लू फिल्मस के जाल के ऊपर। इसी दौरान उसे ये खबर मिलती है कि उसकी बेटी सेंउती घर से भाग चुकी है।
नीलछवि उपन्यास का कथानक तेज गति से चलता है और पाठक को पन्ने पलटने को मजबूर करता है।
उपन्यास कई सवालों को भी पाठकों के समक्ष उठाता है जैसे कि रिश्तों में व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं को कितना महत्व देना चाहिए। जैसे अभ्र के अन्दर महत्वकांक्षा नहीं के समान थी लेकिन वहीं वो जलि को इससे अपने ख्वाबों को पाने के लिए नहीं रोकता था। वहीँ दूसरी और जलि थी जिसके लिए अपनी मह्त्वान्क्षाओं से बड़ा कुछ भी नहीं था और वो अपने रिश्ते की आहुति भी उस पर चढाने से नहीं हिचकिचाती है। और ये वो केवल अभ्र के साथ नहीं करती बल्कि अपने दुसरे पति के साथ भी करती है जिसके लिए उसने अभ्र को छोड़ा था। इन दोनों के माध्यम से वो आजकल के रिश्तों को दर्शाती हैं। आजकल रिश्ते अक्सर सहूलियत के हिसाब से बनते या बिगड़ते हैं। दोनों पक्षों में कहीं भी किसी को भी थोडा सा परेशानी या सहूलियत में कमी का अनुभव महसूस होता है और वो रिश्तों के ऊपर काम करने के बजाय उसे तिलांजलि देने में विश्वास रखते हैं।
दूसरा सवाल यह उपन्यास उन अभिवावकों के सामने उठाता है जो अपने बच्चों को समय तो नहीं दे पाते हैं लेकिन बेइन्तिहा दौलत और आज़ादी उनको सौंप देते हैं। ये एक तरह की घूस ही होती है जो वो बच्चो को देते हैं ताकि वो अभिभावकों के जीवन में कोई दखल न दें। फिर कैसे ये बच्चे नशे के आदि हो जाते हैं और लोगो द्वारा शोषित किये जाते हैं यही इस कहानी में दर्शाया गया है।
उपन्यास की पृष्ठभूमि कलकत्ता है तो इसमें वहां के उच्च वर्ग में फैला हुआ ड्रग कल्चर दिखाया गया है। वैसे ये कलकत्ता की ही नहीं भारत के किसी भी मेट्रोपोलिटन शहर की कहानी हो सकती है।
कहानी के पात्र काफी जीवंत हैं और कही भी लेखक ने अपनी सोच किरदारों के ऊपर नहीं थोपी है। उपन्यास की कहानी एक फिल्म की तरह पाठकों को बाँध कर रखती है। उपन्यास मुझे काफी पसंद आया। मैं तो कहूँगा सभी को इस उपन्यास को पढ़ना चाहिए। आप उपन्यास को निम्न लिंक्स के माध्यम से मँगवा सकते हैं :
अमेज़न
फ्लिपकार्ट
अभ्र कुछ भी नहीं चाहता था। पत्नी, बेटी, छोटा-सा फ्लैट. छोटी सी आमदनी, यही उसका स्वर्ग था, इसी में उसे शांति थी।
अभ्र को पता नहीं था कि इतना कम चाहना एक अपराध है, भयानक अपराध। कलकत्ता बड़ा निर्मम न्यायाधीश है। जो लोग थोड़े-से में खुश रहते हैं, जो मन ही मन निम्न्मध्यावित्त बने रहकर संतुष्ट रहते हैं, उन्हें कलकत्ता भयंकर दंड देता है। कलकत्ता उन्हें डँसता है और उनके भीतर ‘जो तुम नहीं हो वही तुम्हे बनना होगा’ की महत्वकांक्षा का ज़हर भर देता है।
मेरी दूसरी टिप्पणी
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रचनाएँ पढना और फिर उनकी संक्षिप्त समीक्षा काफी अच्छा प्रयास है आपका।
धन्यवाद.
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http://www.yuvaam.blogspot.com
प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया,गुरप्रीत जी।