संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पेज काउंट: 96 | प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन
पुस्तक लिंक: अमेज़न

पहला वाक्य:
इस बिन्दु पर पहुँच कर यह कहना मुश्किल था कि हालात ने यह शौक बनाया था या शौक ने हालात।
कहानी
रुचि शर्मा एक जानी मानी पाक कला विशेषज्ञ थीं। उनके अपने दो दो टीवी शो चलते थे। अखबारों में पाककला के ऊपर लेख आते थे और उनकी किताबों की शृंखलाएँ भी काफी मशहूर थी। लेकिन फिर भी ऐसा कुछ था जिसकी कमी उन्हें खलती थी।
सर्वेश नारंग एक खोजी पत्रकार था। अपने काम में तल्लीन था लेकिन अपने जीवन में मौजूद कमी का अहसास उसे भी था।
और फिर सर्वेश और रुचि की मुलाकात हुई तो दोनों को नजदीक आने में वक्त नहीं लगा। दोनों उम्र के इस दौर में थे कि दोनों में से किसी ने नहीं सोचा था कि वे कभी प्यार में पड़ेंगे। दोनों ही असफल शादी से निकले थे और दूध के जले की तरह छाछ को फूँक फूँक कर पीने में विश्वास रखते थे।
इस सबके बावजूद रुचि और सर्वेश नज़दीक आये और उन्होंने शादी की। दोनों ही खुश थे।
लेकिन फिर शादी के कुछ वक्त बाद ही दोनों की एक तस्वीर सभी समाचारों का हिस्सा बन गयी। तस्वीर में सर्वेश रुचि का गला दबाता सा लग रहा था और इससे मीडिया में बवाल होना ही था।
आखिर ऐसा क्या हुआ था दोनों के बीच?
कैसे दोनों इस स्थिति में पहुँचे थे?
इस घटना से उनके रिश्तों में क्या असर पड़ा?
मुख्य किरदार
रुचि शर्मा – एक महशूर पाक कला विशेषज्ञ
सर्वेश नारंग – एक पत्रकार
वीरेंद्र सिंह – रुचि के टीवी प्रोग्राम में सहायक
कुर्बान अली – रुचि के दूसरे प्रोग्राम में सहायक
शमशेर सिंह – रुचि का मकान मालिक
जिज्ञासा सिंह- रुचि की सहेली
दामिनी पिल्लई – रुचि की सहेली
प्रभाकर – रुचि का पहला पति
गगन – रुचि का बेटा
मंजीत – सर्वेश की पहली पत्नी
अंश – सर्वेश का बेटा
मंदा – सर्वेश के घर में काम करने वाली बाई
टिप्पणी
‘सपनो की होम डिलीवरी’ लेखिका ममता कालिया का लिखा लघु उपन्यास है जो कि लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। 96 पृष्ठों में फैला यह लघु-उपन्यास एक सच्ची घटना से प्रेरित है। ममता जी उपन्यास के शुरुआत में ही बताती हैं कि नाइजैला लॉसन और उसके पति साची की तस्वीर समाचार पत्रों और टीवी में देखने के बाद ही इस उपन्यास को लिखने की प्रेरणा उन्हें आयी। अगर आपको याद नहीं है तो कुछ सालों पहले यह तस्वीर काफी वायरल हुई थी। तस्वीर में नाइजैला लॉसन का पति उसका गला दबाता सा लग रहा रहा था। यह सब एक रेस्टोरेंट में हो रहा था और फिर इनके बीच के रिश्ते के ऊपर टीका-टिपण्णी होने लगी थी। यही गला दबाने वाली घटना ही इस उपन्यास का मुख्य बिंदु है।
उपन्यास की नायिका भी एक पाककला विशेषज्ञ है। उसका पति सर्वेश नारंग है। और दोनों की ऐसी ही तस्वीर वायरल हो जाती है। आखिर ये स्थिति क्यों आयी और इस तस्वीर के वायरल होने के बाद उनके रिश्तों में क्या फर्क आया यह सब इस उपन्यास के माध्यम से समझने की कोशिश की गयी है।
प्रस्तुत उपन्यास में किरदारों की ज़िन्दगी के माध्यम से आज के समाज के कई पहलुओं पर बात की गयी है।
रुचि एक सफल महिला हैं लेकिन फिर इनसान भी हैं। उन्हें एक साथी की तलाश है जो सर्वेश के रूप में उन्हें मिलता है। दोनों का रिश्ता भी प्यारा है। वो दोनों एक दूसरे को एक तारीक से बुलाते हैं जो कि मुझे पसंद आया। उसमें निहित अर्थ गहरे हैं।
ऐसा नहीं है कि दोनों में टकराव नहीं है। वो तो है लेकिन फिर भी दोनों एक दूसरे को आजादी देते हैं। यह सर्वेश की परिपक्वता दर्शाता है जो कि भारतीय पुरुष में बहुत कम देखने को मिलती है। पर फिर भी यह स्थिति उनके बीच आती है तो यह जाहिर हो जाता है कि हर रिश्ते में संवाद होना बेहद जरूरी है। बातचीत न होने पर गलतफहमियाँ बढ़ सकती हैं। और यह बातचीत तब ज्यादा जरूरी हो जाती है जब सामने वाला समझदार है और रिश्ते में आपको खुली छूट मिली है। अगर ऐसा नहीं होगा तो रिश्ते में अविश्वास उत्पन्न होता है और वो रिश्ते को मार भी सकता है।
ऐसी ही परिस्थिति इन किरदारों के बीच में घटित होती है। सर्वेश का गुस्सा तो जायज जरूर लगता है लेकिन उसका गुस्से में संतुलन खोना जायज नहीं था।
वैसे तो उपन्यास के मुख्य किरदार बड़ी उम्र के हैं लेकिन उनके बच्चों के माध्यम से उपन्यास में आज की पीढ़ी को भी दर्शाया गया है। परिवार टूटता है तो उसका असर बच्चे पर भी पड़ता है। यह इधर दिखता है। ऐसे में कई बार अकेलेपन के चलते वो गलत राह में निकल जाते हैं यह भी इधर देखने को मिलता है। ऐसा नही है कि जो बच्चे टूटे हुए परिवार से आते हैं वो ही नशे की गिरफ्त में आते हैं लेकिन उनकी सम्भावना ज्यादा होती है। शुरुआत में मौज मस्ती के लिए किया जाने वाला नशा कैसे बाद में उनकी ज़िंदगी और परिवार को बर्बाद कर देता है इसकी झलक इधर दिखती है।
इसके आलावा उपन्यास आधुनिक शहरी जीवन में मौजूद एकाकीपन, सामाज का दबाव, काम का दबाव, असुरक्षा इत्यादि सभी पहलुओं को उपन्यास छूता है।
आजकल मीडिया कैसे आमजन जीवन में हावी है यह भी उपन्यास दिखलाता है। किसी का भी व्यक्तिगत क्षण व्यकितगत नहीं रहा है। आप हमेशा कैमरे की नज़र में हैं और आपके व्यक्तिगत पलों को कभी भी कोई भी संसार के सामने ला सकता है। यह स्थिति सोचकर डर तो लगता है लेकिन यह आज का यथार्थ बन चुका है। फिर उन तस्वीरों और विडियो के आधार पर हर कोई आपके चरित्र और आपके जीवन का छिद्रान्वेषण कर सकता है। ऐसे में हमें किस तरह सावधानी से चलने की जरूरत है यह भी उपन्यास आपको सोचने पर मजबूर करता है।
आज के जीवन के कई पहलुओं को छूता यह उपन्यास अंत तक अपनी रोचकता बरकार रखता है। उपन्यास खत्म होने पर आपको सोचने के लिए भी कई मुद्दे दे देता है।
अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो आपको पढ़ना चाहिए।
उपन्यास की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आयीं:
पृष्ठ 33
अकेली रहने वाली लड़कियाँ भयंकर असुरक्षा बोध से घिरी रहती हैं।..
सवाल ये था कि अकेली जीने वाली लड़कियाँ आखिर क्या करें? वे कहाँ, किससे, किस हद तक सामजिक सम्पर्क बनाएँ।
पहली बार जीवन में तब उसे एकाकीपन का मर्म समझ आया। तुम घर से निकलो और घर पर ताला लगाना पड़े या घर लौटो तो ताले का काला मुँह देखना पड़े, कितनी बड़ी सजा है ये।
पृष्ठ 33
एक चालीस साल की लड़की अपने जीवन के पिछले सालों पर नज़र डालती है तो पाती है उसने उन वर्षों में खूब काम किया, नाम किया, धन और यश कमाया, बस मुहब्बत के खाते में बड़ा-सा अंडा पाया उसने। वह आगामी दस वर्षो के समय पर नज़र डालती है तो थर्रा उठती है। ऐसे में ‘जो उपलब्ध है वही श्रेष्ठ’ का सिद्धांत मजबूरन सामने रखन पड़ता है। यह पता होता है कि प्रस्तुत व्यक्ति आदर्श नहीं किन्तु दिल-दिमाग सब गलत सिग्नल देते हैं।
पृष्ठ 35
रिश्तों में इतनी जान होती है कि वे प्लेट-प्यालों की तरह नहीं टूटते। हम बार-बार उनमें पट्टी बाँध कर काम चलाते हैं।
पृष्ठ 50
पुस्तक लिंक: अमेज़न
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