संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : ई-बुक
पृष्ठ संख्या: 74
एएसआईएन: B07NJ9CMD1
रुक जा ओ जाने वाली – आनंद कुमार सिंह |
पहला वाक्य:
आप कभी अदालत गये हैं?
राघव मिश्रा के पास सब कुछ था। एक अच्छा करियर जिसमे आगे बढ़ने की सम्भावनाएं थीं। एक लड़की जिसे उसने चाहा था और जो अब उसकी बीवी बन चुकी थी। यानी की वो सब कुछ था जो अक्सर एक आदमी की चाहतों में आता है। ये सब आदमी के पास हों तो यह समझ लिया जाता है कि आदमी खुश है। सुखी भी है और सम्पन्न भी है।
पर राघव के साथ ऐसा नहीं था। उसकी हँसती खेलती दुनिया उस वक्त बिखर गई जब इशानी से उससे तलाक की माँग की।
इशानी के अनुसार उन्होंने शादी करके गलती करी थी। और इसलिए शादी के आठ महीने बाद राघव और इशानी अदालत में खड़े थे।
आखिर उनके बीच ऐसा क्या हुआ था? वो क्यों तलाक लेना चाहते थे? क्या उनके बीच का प्रेम मर चुका था?
मुख्य किरदार:
राघव कुमार मिश्रा – एक आई आई टी ग्रेजुएट और कहानी का नायक
इशानी अय्यर – राघव की प्रेमिका
सलोनी – राघव की सह कर्मचारी
रश्मि – राघव की छोटी बहन
जस्सी -राघव की दोस्त
गुरतेज और कोमल – राघव के सहकर्मचारी जो आपस में शादी कर रहे थे
श्रीनिवास अय्यर – एक लड़का
‘रुक जा ओ जाने वाली’ आनंद कुमार सिंह की दूसरी रचना है। इससे पहले एक उपन्यास हीरोइन की हत्या लिखा है। जहाँ हीरोइन की हत्या एक मर्डर मिस्ट्री था वहीं रुक जा ओ जाने वाली मूलतः आधुनिक समाज के नव युगल की कहानी है।
राघव और इशानी शादी के आठ महीनो बाद ही तलाक की अर्जी दायर कर देते हैं। यह आजकल आम बात हो चुकी है। कभी सुना था कि जब हम शादी करते हैं तो मैं और तुम से हम बन जाते हैं। जब तक हम नहीं बन जायेंगे तब तक तकरार होती रहेगी और वो शादी शायद ही कभी कामयाब हो। यही काम इधर भी देखने को मिलता है। इधर इशानी और राघव शादी तो कर लेते हैं लेकिन मैं से हम नहीं बन पाते हैं। यह इसलिए भी होता है क्योंकि दोनों की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं और शादी उनके बीच में रुकावट बनकर आती है।
कहानी में फ्लेश बेक के माध्यम से हमे पता चलता है कि तलाक लेने की सोचने से पहले उनकी ज़िन्दगी कैसी थी। उनका प्रेम, शादी सब फ्लेश बेक में दिखाई देता है। इसके बाद कहानी आगे बढ़ती है और फिर दोनों किरदार अपनी आखिरी मंजिल तक पहुँचते हैं।
उपन्यासिका का कथानक तेज रफ्तार है। कहानी बंधी हुई है और कहीं भी ऐसा नहीं लगता है कि इसे खींचा गया है। सारी घटनाएं तेजी से एक के बाद एक होती हैं और पाठक को अंत तक बाँध कर रखती हैं।
कहानी के किरदार की बात करूँ तो मुझे इशानी का किरदार पसंद नहीं आया। जिस तरह से उसे दर्शाया गया है वो एक ऐसी मनिपुलेटिव व्यक्ति की तरह नज़र आती है। कहानी में वो जिस स्थिति में राघव के लिए शादी के लिए बोलती है उस वक्त शायद ही कोई मर्द किसी औरत को मना कर पाए। फिर शादी करने के बाद खुद ही तलाक की अर्जी भी दायर कर देती है। और फिर सहूलियत के अनुसार ही शादी के लिए दोबारा तैयार हो जाती है। और ऊपर से तुर्रा ये कि छोड़ने के तीन साल बाद ये कन्फर्म करना कि आदमी किसी और के साथ सोया है या नहीं। यह सब सुनकर कोई दिमाग वाला और आत्म सम्मान वाला आदमी होता तो शायद ही इशानी जैसी लड़की के पीछे जाता। इधर यह नहीं समझा जाये कि इशानी औरत है इसलिए मैं ऐसा कर रहा हूँ अगर कहानी में राघव इशानी वाले काम करता तो भी मेरी नजरों में उतना ही बुरा होता। इधर क्वीन फिल्म का ख्याल आता है जिसमें राज कुमार यादव का किरदार पहले कंगना के किरदार को छोड़ देता है और फिर खुद ही उसे वापस आने के लिए कहने लगता है। उधर राज कुमार यादव का किरदार सही नहीं था और इधर इशानी का किरदार मुझे तो सही नहीं लगा।
इशानी का किरदार जैसे शुरुआत में है वैसे ही कहानी के अंत तक रहता है। कुछ बदलाव उसके अन्दर हुआ हो यह मुझे तो नहीं दिखा। पहले भी वो अपनी सहूलियत के हिसाब से काम करती है और बाद में भी अपनी सहूलियत के हिसाब से ही काम करती है।
राघव का किरदार कहानी के शुरुआत में अलग है और कहानी के अंत तक आते आते काफी बदल जाता है। शुरुआत में वह एक दब्बू किस्म का इनसान है और अंत तक आते आते उसमे आत्म विश्वास आ जाता है और उसमें ज्यादा खुलापन आ जाता है। पर पाठको को यह बदलाव देखने को नही मिलता है। इस बदलाव से वो कैसे गुजरा यह देखने को नहीं मिलता है। बस राघव के दो रूप मिलते हैं।
कहानी में एक प्रसंग है जिसमें की राघव को देखने लड़की वाले आये हैं और उससे तरह तरह के प्रश्न करते है। यह मुझे पसंद आया। ऐसे प्रश्न ज्यादातर अटपटे होते हैं। मुझसे भी कई लोगों ने पूछा है और कई बार मैंने ऐसे ही उलटे पुल्टे जवाब दिये हैं।
कहानी में कमी तो कहीं नहीं है। हाँ, कई बार कहानी की तेजी मुझे थोड़ा खली थी। जैसे राघव के किरदार में जो बदलाव आये वो कैसे आये? यह चीज अगर दर्शाई होती तो बेहतर रहता। तलाक के बाद इशानी और राघव मिलते हैं और उनकी प्रेम कहानी का अंतिम अध्याय होता है। यह अध्याय भी मुझे तेजी से घटित हुआ लगा। सब कुछ उनके हिसाब से ही दिखा। कहीं कुछ रुकावट नहीं थी और जो थी वो भी इतनी खास नहीं कि उसे हटने में थोड़ा वक्त लगता। किरदारों को सब कुछ आसानी से भी मिल जाता है।
राघव के प्रतिद्वंदी के रूप में जिसे खड़ा गया उसे भी आम फिल्मों की तरह बेवकूफ ही दर्शाया गया है। और जिस तरह से उससे बात बोली वो भी मुझे शिष्ट नहीं लगी। यह मुझे कमजोर प्रसंग लगा। कहानी जल्दी निपटाने के चक्कर में किया गया लगा। इधर कनफ्लिक्ट भी हो सकता था। वो नहीं हुआ। इधर राघव का किरदार मुझे अजीब लगा। इशानी तो शुरू से स्वार्थी रही है। ऊपर से कुछ भी बोले वो करती वही आई है जो उसे पसंद हो और जिसमें उसे सहूलियत लगे लेकिन राघव शुरुआत में संवेदनशील था। तीन साल बाद शायद उसकी संवेदना का लोप भी हो गया था और इसलिए उसने कायदे से यह काम नहीं किया। और इसलिए ही शायद दोनों एक दूसरे के लिए ठीक थे।
कहानी में जस्सी का भी प्रसंग है। जस्सी और राघव के बीच में मित्रता से अधिक ही कुछ था। जस्सी के लिए मुझे दुःख हुआ। मुझे बाद तक यही लगा कि जस्सी ही राघव के लिए ठीक थी क्योंकि उसने राघव को अपनी सहूलियत के लिए पसंद नही किया था। राघव जैसा था वैसे ही पसंद किया था।
अंत में यही कहूँगा कि रुक जा ओ जाने वाली तेज रफ्तार कथानक लिए यह एक पठनीय उपन्यासिका है। यह अंत तक पाठक को बांध कर रखती है। अगर आपको प्रेम कहानियाँ पसंद आती हैं तो एक बार पढ़ सकते हैं। मुझे प्रेम कहानियाँ इतनी पसंद नहीं आती है फिर भी एक दो सिटींग में मैंने किताब पढ़ ही ली थी।
मेरी रेटिंग: 3/5
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मुझे तो ये नॉवेल्ला बेहद पसंद आया
जो सवाल आप ने खड़े किये वो तब मायने रखते अगर ये नॉवेल होता तब लेखक किरदारों का कैरेक्टर ऐलोबेरेट कर सकता था
कीपिंग इन व्यू लिमिटिड स्पेस अवेलेबल
ये एक बेहतरीन कहानी है
जी, पसंद तो मुझे भी आया। किरदारों के विषय में कुछ बातें खटकी थी तो वो दर्ज करनी जरूरी थी। बाकी जैसे मैंने कहा है थोड़ी बहुत तफ्सील से चीजें लिखी तो कहानी के लिए बेहतर होता क्योंकि इधर ऐसी कोई रोक टोक नहीं थी कि इतने में ही लिखना है।
अच्छी लगी आपकी समीक्षा । आपने कथानक और पात्रों पर अपना तर्कसंगत दृष्टिकोण रखा ।
आभार मैम।
अच्छी समीक्षा
जी आभार। ब्लॉग पर आने का शुक्रिया। आते रहिएगा।