अँधेरे की चीख – सुरेंदर मोहन पाठक

उपन्यास मई 2 2020 के बीच को पढ़ा गया है

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई बुक
प्रकाशक: डेलीहंट
श्रृंखला: सुनील #74
प्रथम प्रकाशन: 1979

अँधेरे की चीख - सुरेंदर मोहन पाठक
अँधेरे की चीख – सुरेंदर मोहन पाठक

पहला वाक्य:
“साहब, आपको मिसेज ठक्कर बुला रही हैं।”- वेटर सुनील के पास आकर बोला।

कहानी:
मंगलवार का दिन था। सुनील और रमाकांत उस वक्त यूथ क्लब में बैठे दोपहर का लुत्फ़ उठा रहे थे जब सुनील को नीरजा ठक्कर नाम की औरत ने बुलाया। वह और उसका पति एक मामले को लेकर झगड़ रहे थे और नीरजा चाहती थी कि सुनील उनके बीच मध्यस्ता करे। उसका कहना था कि अब सुनील ही दूध का दूध और पानी का पानी कर सकता था।

वहीं सोमवार की रात को एम पी सक्सेना नामक एक डॉक्टर पर किसी अज्ञात व्यक्ति ने उसके घर में जाकर  हमला कर दिया था। डॉक्टर सक्सेना की हालत गम्भीर थी और उसे विक्टोरिया अस्पताल में भर्ती कराया गया  था। चश्मीद गवाहों के मुताबिक़ उन्होंने डॉक्टर सक्सेना के घर से पहले एक जनाना चीख सुनी थी और फिर एक खूबसूरत लड़की को उधर से भागते हुए देखा था।

जब सुनील नीरज और नीरजा ठक्कर के बीच मध्यस्ता करने पहुँचा तो उसे यह लगने लगा कि उनकी आपसी लड़ाई और डॉक्टर पर हुए हमले के बीच में कोई न कोई सम्बन्ध जरूर था।

आखिर नीरज और नीरजा क्यों लड़ रहे थे?
आखिर किसने डॉक्टर एम पी सक्सेना को मारा था?
आखिर डॉक्टर सक्सेना को क्यों मारा गया था?
डॉक्टर सक्सेना के घर से उभरने वाली जनाना चीख किस महिला की थी?
सुनील को ठक्कर दम्पति और इस हमले के बीच में क्या सम्बन्ध नजर आ रहा था?

ऐसे कई सवालों के जवाब आपको इस उपन्यास पढ़ने को मिलेंगे।


मुख्य किरदार:
सुनील कुमार चक्रवर्ती – ब्लास्ट नामक अख़बार का चीफ रिपोर्टर
रमाकांत – सुनील का दोस्त और यूथ क्लब का मालिक
नीरज ठक्कर – एक छत्तीस साल का सेल्स एग्जीक्यूटिव जो कि काफी अमीर था
नीरजा ठक्कर – नीरज की तीस साल की बीवी
बंटी – नीरज और नीरजा का बेटा
उमा शर्मा – एक लड़की जो नीरज के अनुसार उसे सोमवार रात को मिली थी
डॉक्टर एम पी सक्सेना – रामपुर रोड में रहने वाला डॉक्टर जिस पर जानलेवा हमला किया गया था
कृष्णा सोबती – एक युवती
अग्रवाल दम्पति – डॉक्टर सक्सेना के पड़ोसी
धीरज ठाकुर – डॉक्टर सक्सेना के यहाँ काम करने वाला मुलाजिम
अर्जुन – सुनील का जूनियर
जौहरी – रमाकांत का मुलाजिम
रेणु – ब्लास्ट की रिसेप्शनिस्ट
सब इंस्पेक्टर बंसल – वह व्यक्ति जो एम पी सक्सेना का केस देख रहा था
इंस्पेक्टर प्रभु दयाल – पूरे केस का इंचार्ज
नागरवाला – एक काइयाँ वकील
ललित – क्रोनिकल का रिपोर्टर
द्वारका प्रसाद – डॉ सक्सेना का पड़ोसी
प्रभात सोबती – एक गाड़ी की सर्विस सेंटर का मालिक

मेरे विचार:
अँधेरे की चीख सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखी सुनील सीरीज का चौहत्तरवाँ उपन्यास है। यह उपन्यास 1979 में पहली बार प्रकाशित हुआ था। अगर इस उपन्यास के कथानक की बात  करूँ तो यह उपन्यास एर्ल स्टैनली गार्डनर के पैरी मेसन श्रृंखला के उपन्यास द केस ऑफ़ सक्रीमिंग वुमन (प्रथम प्रकाशन 1957) पर आधारित है। दोनों उपन्यासों की कथावस्तु एक जैसी ही प्रतीत होती है। मैंने मूल अंग्रेजी उपन्यास  नहीं पढ़ा है लेकिन उसके विवरण से यह अंदाजा लग गया है कि दोनों की कहानी एक ही है।

आप उसका विवरण इधर जाकर पढ़ सकते हैं।
द केस ऑफ़ स्क्रीमिंग वुमन

चूँकि मैंने दूसरा उपन्यास नहीं पढ़ा है तो मैं यह नहीं बता सकता कि कथानक कितना लिया गया है। कहानी एक जैसी लग रही है तो इतना कह सकता हूँ कि कथानक की जो भी खूबी होगी वह एर्ल स्टैनली गार्डनर की ही मानी जाएगी और जो भी खामी होगी वह पाठक साहब की ही मानी जाएगी। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि गार्डनर ने यह कथानक और प्लाट सोचा था वहीं पाठक साहब को प्लाट  प्लेट पर सजा हुआ मिल गया था। वो कमियाँ  सुधार सकते थे। फिर ये भी हो सकता है कि मूल में वह कमियाँ न हो जबकि इस उपन्यास में वो कमियाँ इसलिए हों क्योंकि पाठक साहब को भारतीय परिवेश में उस कहानी को फिट करना था।

यह चीज बताकर कहानी पर आऊँ तो कहानी बेहद रोचक है। एक पति पत्नी की बहस को सुलझाने से मामला शुरू होता है और वह एक कत्ल की तफ्तीश में तब्दील हो जाता है। इस तफ्तीश के दौरान सुनील को कई संदिग्ध मिलते हैं और आप यह सोचने पर मजबूर हो जाते हो कि इन संदिग्धों में से असल कातिल कौन है। जैसे जैसे तहकीकात आगे बढ़ती जाती है मामला और पेचीदा होता जाता है और आप कातिल कौन हैं यह जानने के लिए कथानक अंत तक पढ़ते चले जाते हो। कथानक शुरुआत से आपको बाँध कर रखता है और अंत तक किताब पढ़ते चले जाने पर मजबूर कर देता है। यही कारण है कि यह उपन्यास एक ही दिन में ही पढ़कर खत्म कर दिया।

हाँ, कहानी जब पैंसठ प्रतिशत खत्म हो चुकी थी तो कहानी में एक खुलासा होता है और उससे मुझे कातिल का अंदाजा हो गया था। इसके बाद जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ी मुझे इसका अंदाजा भी हो गया था कि कत्ल क्यों हुआ है? लेकिन यह सब हुआ कैसे? चीजें सेट कैसी हुई? चूँकि इस बात का अंदाजा मुझे कहानी खत्म करने के बाद ही लगा तो इस मामले में कहानी आपको संतुष्ट करती है। कहानी खत्म होने पर आप जरूर सोचोगे की जो बात मैंने नजरअंदाज कर दी थी उसी पर ध्यान देता तो शायद सब कुछ पानी की तरह मेरे सामने साफ़ हो जाता। यह मेरे लिए एक अच्छी रहस्यकथा की पहचान जिसमें लेखक सब  कुछ आँखों के सामने रखता है लेकिन फिर भी पाठक वह बात नहीं पकड़ पाता है।

कहानी में एक प्रसंग ऐसा है जिसे बार बार अंडरलाइन किया गया है। उसे पढ़ते हुए आप सोचते हो कि ऐसा क्यों हुआ है। मुझे इससे यह तो पता लग गया था कि इसका कोई न कोई महत्व है लेकिन वह महत्व क्या है यह मुझे अंत में ही समझ आ पाया। यहाँ इतना कहूँगा कि इस प्रसंग को अगर अंडरलाइन करने के लिए दो तीन बार इसका जिक्र न किया होता तो मुझे यह  ज्यादा आश्चर्यचकित करता जो कि कथानक के लिए बेहतर होता।

कहानी एक मर्डर मिस्ट्री है और इस तौर पर मुझे तो यह संतुष्ट करती है।

कहानी सुनील सीरीज की है सुनील श्रृंखला की बाकी खूबियाँ भी इस उपन्यास में मिलती हैं।

सुनील और रमाकांत के बीच की चुहलबाजी भी इसमें मौजूद है जिसे पढ़ते हए मुझे मजा आया। कई बार इनकी  यह चुहलबाजी जरूरत से ज्यादा हो जाती है लेकिन इधर ऐसा नहीं है। इधर मात्रा मुझे ठीक लगी। यह आपको बोर करने की जगह आपका मनोरंजन करती है। उपन्यास में अर्जुन और प्रभुदयाल भी हैं। उनके साथ भी सुनील के संवाद मनोरंजक हैं।

सुनील एक संवेदशील युवक है जो कि हमेशा सही के साथ खड़ा रहता है। कई बार इसके लिए उसे क़ानून से थोड़ा अलग भी चलना पड़ता है। यहाँ भी वह ऐसा करते दिखा है।

चूँकि कथानक एर्ल स्टेनली गार्डनर का है तो उनकी तारीफ बनती है कि उन्होंने इतना अच्छा कथानक बुना है। इस कथानक को जब मैं रेट करूँगा तो उन्ही के उपन्यास पर करूँगा।

पाठक साहब अनुवाद अच्छा करते हैं तो उन्होने इसका भारतीयकरण भी बाखूबी किया है। हाँ, उन्होंने अपना प्रेरणा स्रोत जाहिर किया होता तो बेहतर रहता।

कथानक में कमी तो ऐसी नहीं है लेकिन कुछ बातें हैं जो अटपटी लगी।

कहानी के खत्म होने पर एक छत्तीस साल का व्यक्ति और उसकी तीस साल की पत्नी एक 21-22 साल की लड़की को गोद लेते हैं। यह थोड़ा अटपटा लगता है। यह उपन्यास 1979 में छपा था और उस वक्त तो शायद 36 साल के व्यक्ति की 22 साल की लड़की से शादी भी आम ही बात रही होगी इसलिए यहाँ यह अटपटा लग रहा है।

फिर जिस राज को बचाने के लिए वह यह काम कर रहे थे उसका इस कृत्य से उजागर होने का खतरा और ज्यादा हो जाना था। इधर मैं इससे ज्यादा नहीं कहूँगा लेकिन अगर आपने यह उपन्यास पढ़ा होगा तो आप समझ गये होंगे कि मैं क्या कहना चाह रहा हूँ।

यहाँ यह बात यह सोचने पर मजबूर करती है कि एर्ल स्टैनली गार्डनर ने इस बिंदु को मूल उपन्यास में कैसे दर्शाया होगा? मैं यह चीज जरूर पढ़ना चाहूँगा। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मूल उपन्यास को पढ़ने की मेरी इच्छा जागृत हो गयी है। मौका मिलते ही मैं इस उपन्यास को जरूर पढूँगा।

रेटिंग: 2/5 (अच्छा भारतीयकरण करने के लिए)

अगर आप ओरिजिनल कथानक पढ़ सकते हैं तो एक बार उसे जरूर पढ़िए। अगर आप एक अच्छा भारतीयकरण पढ़ना चाहते हैं तो इसे देख सकते हैं।

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है या ओरिजिनल कथानक को पढ़ा है तो दोनों के बीच क्या फर्क है यह मुझे जरूर बताइयेगा।

अगर आपने इस किताब को पढ़ा है तो आपको यह कैसी लगी? अपने विचार से मुझे जरूर बताइयेगा।

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एर्ल स्टैनली गार्डनर

© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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8 Comments on “अँधेरे की चीख – सुरेंदर मोहन पाठक”

  1. उपन्यास की समीक्षा अच्छी की है। हां हिन्दी में बहुत से कथानक अन्य भाषाओं से लिये गये हैं।
    जहाँ तक मेरी जानकारी है एक अविवाहित आदमी किसी लड़की की गोद नहीं ले सकता।
    धन्यवाद।

    1. जी आभार। व्यक्ति तो शादीशुदा था। उसकी पत्नी तीस साल की थी। लेकिन इसमें ही गोद लेना अटपटा लगता है।

  2. शानदार समीक्षा 👌👌 ये उपन्यास बहुत पहले पढ़ा था।

    1. शुक्रिया नीलेश भाई…

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