किताब परिचय: अभिशप्त रूपकुंड – देवेन्द्र प्रसाद

 अभिशप्त रूपकुण्ड लेखक देवेन्द्र प्रसाद का नवीनतम उपन्यास है। उपन्यास फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। 


किताब परिचय: अभिशप्त रूपकुण्ड - देवेन्द्र प्रसाद

किताब के विषय में

क्या मौत जिंदगी का अंत है? 

क्या वास्तव में मृत्यु के बाद सब कुछ समाप्त हो जाता है? यदि नहीं तो फिर इस रुपकुण्ड में अटल क्या करने आया था? 

रुपकुण्ड का अर्थ यहाँ किसी रूपवती या बेहद ही मनोरमा सी दिखने वाली स्त्री से नहीं हैं बल्कि हड्डियों से लबरेज झील से हैं, जहां मुर्दे वास करते हैं और कंकालों से पटी पड़ी इस झील को बनाती हैं, रूपकुण्ड झील। 

आखिर यह सारे मुर्दे हर अमावस की रात कैसे फिर से जागृत हो जाते थे? रूपकुण्ड झील में तैरते नरकंकालों का क्या रहस्य है? 

आखिर किस उद्देश्य के लिए पिशाचिनी ने इन नरकंकालों को 200 वर्षों से बंधक बनाया हुआ था? 

आखिर ऐसा कौन सा राज था जिसे जानने अटल इस मुर्दों के झील तक आने को विवश होना पड़ा था?

पुस्तक लिंक: अमेज़न 

पुस्तक अंश 

चारों दिशाओं में तमस का एकछत्र साम्राज्य व्याप्त था। दिगंत तक सन्नाटा और शून्यता। चारों ओर फैली एक अबूझ सी खिन्नता। साँय-साँय करते वातावरण में यमुना नदी की धारा का गम्भीर गर्जन भर सुनाई दे रहा था। मेघों का झुण्ड एकत्रित होने से आकाश का रंग पूर्णतया श्यामल हो गया था। प्रचण्ड वायु के वेग से नदी के किनारे खड़े पीपल और बरगद के पेड़ किसी शैतान की तरह नृत्य कर रहे थे। वायु के अति उग्र होने की वजह से शमशान भूमि से घर्षण होने के पश्चात हाड़ कँपा देने वाली भयावह ध्वनि उत्पन्न हो रही थी। 

उस घने अँधियारे के बीच सहसा ‘राम नाम सत्य है… राम नाम सत्य है..!’ की ध्वनि ने दहशत भरने का कार्य किया।

‘राम नाम सत्य है… राम नाम सत्य है..!’

आवाज धीरे-धीरे नजदीक आती जा रही थी। तभी आकाश के वक्ष चीरती हुई विद्युत दमकी और हृदयविदारक दृश्य दृष्टिगोचर हुआ। पगडण्डी पर सहसा आठ-दस व्यक्तियों का एक समूह आगे बढ़ते हुए जा रहा था। वे बाँस से बनी अर्थी पर किसी मृत व्यक्ति का शव लिए हुए थे। उनमें से एक व्यक्ति हाथ में लालटेन लिए हुए आगे-आगे चल रहा था। वह पीली रोशनी रह-रह कर उस व्यक्ति के गोरे चेहरे पर कांप उठती। वातावरण में रात का गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। चारों ओर साँय-साँय कर रहा था। कभी-कभी उस नीरवता को भंग करती हुई जंगली झींगरों की झीं-झीं की आवाज से रौंगटे खड़े हो रहे थे। 

यमुना नदी के किनारे मौजूद शमशान भूमि में अर्थी उतार कर नीचे रख दी गयी। शव के समीप लालटेन रखने के पश्चात उस व्यक्ति ने आवाज दी, “राधेश्याम… ओ राधेश्याम!”

“जी दीनू काका।”, राधेश्याम ने प्रति उत्तर में कहा।

“जल्दी चिता की तैयारी करो। लगता है बहुत भयंकर तूफान आने वाला है। एक बार बारिश आ गई तो फिर नहीं थमने वाली।”

तभी पीपल की किसी शाख पर बैठा उल्लू रोने लगा। 

“अरे इस मनहूस को भी अभी ही रोना था क्या?” राधेश्याम ने पीपल के वृक्ष की तरफ दृष्टि डालते हुए कहा। 

“उल्लू का रोना अपशगुन होता है। मुझे संदेह है कि हम पर कोई संकट ना आन पड़े।” दीनू काका ने अपने संशय को उजागर करते हुए बोले।

यह सुन सभी जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगे। कुछ देर बाद नदी के किनारे चिता तैयार हो चुकी थी और उस पर शव को रख दिया गया था। उसके बाद आग लगी हुई लकड़ी को लिए हुए राधेश्याम आगे बढ़ा और उसने उसे चिता के भीतर रख दिया। फिर काले सफेद धुएँ का एक गुबार उठा और देखते-ही-देखते चिता धधक उठी। 

शव-यात्रा में आये लोग इत्मीनान से जाकर पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गये। उनमें से कुछ तो बीड़ी सुलगा कर पीने लगे और बाकी लोग आपस में गप-शप करने लगे। 

सहसा सुनसान शमशान के निवासी सियारों का स्वर गूँजा। आवाज यूँ हुई थी कि सभी की जबान पर ताले से पड़ गए। हवा का वेग अब तीव्र हो उठा था। 

तभी ना जाने कहाँ से चमगादड़ों का एक झुण्ड वहाँ आ पहुँचा और चिता के इर्द गिर्द गोल-गोल चक्कर काटने लगा। फिर एक और आश्चर्य सबकी आँखों ने देखा। अचानक से ही चमगादड़ों के उस झुण्ड में से चमगादड़ एक एक करके कर्कश चीत्कार करते हुए अग्नि में गिरकर भस्म होने लगे। जलते मांस की अजीब सी दुर्गन्ध वहाँ बैठे लोगों के नथुनों में समाने लगी। यह दृश्य देखकर वहाँ मौजूद सभी लोगों के रोंगटे भरभराकर खड़े हो गए। 

तभी मेघ गड़गड़ाए, आकाश के वक्ष को जलाती हुई विद्युत एक बार फिर से चमकी और उसी के साथ भयंकर रूप से बारिश होने लगी। 

जब बरसात बन्द हुई और राधेश्याम चिता के पास आया तो उसने पाया कि चिता तब तक बुझ चुकी थी। उसकी नजरें चिता पर पड़ी तो उसकी आँखें हैरत से बड़ी होती चली गई। उसे अपनी रीढ़ की हड्डी में झुरझरी सी होती महसूस हुई। 

उसने अगले पल अपनी समस्त ऊर्जा को अपने अंदर समेटा और दौड़ता हुआ दीनू काका के पास  आकर उनसे बोला, “क… काका वहाँ तो कोई शव नहीं है।”

“क्या बकवास कर रहा है? तूने फिर कहीं भाँग तो नहीं चढ़ा ली।” दीनू काका ने उसे डाँटते हुए कहा और चिता की तरफ बढ़ चले। 

दीनू काका भी उस स्थान पर पहुँचकर जड़वत हो गए और उनके कण्ठ से स्वर निकला, “आखिर शव गया कहाँ? इतनी जल्दी भला एक मुर्दा कहाँ जा सकता है?”

उस समूह के सभी लोग अब उस बुझी चिता को घेरे खड़े थे। सभी लोगों का मन दहशत से भर उठा था। वे भयमिश्रित दृष्टि से एक-दूसरे की ओर देखने लगे। वह अजीब सी डरावनी घटना थी। 

अचानक सियारों का रुदन फिर से शुरू हो गया। राधेश्याम के लिए तो यह अति हो चुकी थी। वह भय से काँपने लगा था। उसका रोम-रोम कांप उठा था। 

उसके हाथ से छूट कर लालटेन धप से जमीन पर गिर पड़ी और बुझ गयी। अब वहाँ घुप अँधेरा था। हाथी को हाथ नहीं सुझाई देता था। सियारों का रुदन, नदी की आवाज और अँधेरा सब कुछ किसी के भी होश उड़ाने के लिए काफी थे। पहले से डरे हुए राधेश्याम के लिए अब चीजें बर्दाश्त से बाहर थीं। 

“भागो… भागो वह दिव्या अब किसी को नहीं छोड़ेगी। वह हम सबको मार डालेगी।” भर्राये स्वर में यह कहते राधेश्याम उस शमशान से दौड़ पड़ा। उसके पीछे उसकी टोली भी सिर पर पैर रख भाग खड़ी हुई। 

इस घटना को सभी ने प्रेत-लीला समझ लिया था और जो जिस हाल में था उसी हाल में भागने को विवश था। 

“दिव्या जिंदा हो गई है… वो अब किसी को नहीं छोड़ने वाली।” राधेश्याम पागलों की तरह चीखता-चिल्लाता हुआ अपने गाँव की दिशा में भागे जा रहा था तो वहीं उसके अन्य साथी भी भूत-भूत चिल्लाते हुए उसके पीछे भाग निकले।

इधर उस शमशान में कुछ ही क्षणों में एक अद्भुत आश्चर्य सामने आया। शमशान के कोने में स्थित एक मंदिर के समीप से एक साये का आगमन हुआ। उस साये के कंधे पर किसी महिला का शव था। 

शनै: शनै: अब वह साया उस चिता के समीप जा पहुँचा। बारिश और तूफान का अब कोई नामों निशान नहीं था। चाँद ने अब बादल के ओट से झाँकने का उपक्रम शुरू कर दिया था। 

वह साया जैसे ही प्रकाश के संपर्क में आया तो यह ज्ञात हुआ की वह कोई तांत्रिक था। उस तांत्रिक के सिर पर उलझी हुई मोटी जटाएँ थीं और उसके नेत्र अंगारों के समान दहक रहे थे। उस तांत्रिक का नाम तृषाला था। 

तांत्रिक ने चिता के ऊपर उस महिला को लिटाया। यह महिला कोई ओर नहीं बल्कि वही दिव्या सेमवाल थी जो कुछ समय पूर्व अदृश्य हो गई थी। जिसका सीधा अर्थ यह था की इस महिला को तांत्रिक ने किसी विशेष प्रयोजन हेतु वहाँ से अदृश्य किया था। यह चमत्कार उसने कैसे किया यह उसके अतिरिक्त कोई और नहीं जानता था। 

इस शमशान भूमि में मृतक को दाह के लिए लाया जाता था और उसके राख में परिवर्तित होते ही वह राख इस यमुना नदी में प्रवाहित कर दी जाती थी।

तांत्रिक दिव्या के शव के समीप रुका, उसने मंदिर की तरफ देखते हुए अपने दोनों हथेली को जोड़ने का कार्य किया। उसके पश्चात सम्मानपूर्वक साष्टांग प्रणाम किया, फिर उसके मुख से अस्पष्ट-सी एक ध्वनि निकलने लगी। सम्भवतः वह किसी मन्त्र का जाप कर रहा था। 

तांत्रिक ने लपक कर चादर को अपने काँपते हाथों से हटा दिया। वह मौन कुछ क्षणों तक शव के मुख को निहारता रहा। उसके जिस्म में एक हल्की-सी सिहरन दौड़ गयी। उस महिला का शव बिल्कुल नग्न था। उसके चेहरे पर शान्ति जरूर थी, मगर वह मरी हुई थी। उसके चेहरे पर सफेदी थी जो अक्सर मुर्दे के चेहरे पर दिखलायी पड़ती है। 

तांत्रिक उस महिला शव के ऊपर आसन लगा कर बैठ गया। अब उसने एकाग्रचित मंत्र का जाप करना आरम्भ कर दिया था। उस शव की आँखें फैली हुयी थीं, मुँह भी थोड़ा सा खुला हुआ था। शरीर एकदम नग्न था, जैसा कि कोई साधक या तांत्रिक किसी तंत्र क्रिया करते वक्त अंजाम देता है। 

शमशान में तांत्रिक के मंत्रों की आवाज के अतिरिक्त एक और आवाज आ रही थी। शमशान में मौजूद पीपल के पेड़ से यह आवाज निकल रही थी। ऐसे जैसे पेड़ की डाल पर कोई कुछ रगड़ रहा हो। तांत्रिक को इस आवाज से कोई फर्क पड़ा हो ऐसा लगता नहीं था। जैसे जैसे तांत्रिक का मंत्रोंचार तीव्र गति से आगे बढ़ रहा था वैसे ही वह घिसने की आवाज भी तेज होती जा रही थी। ऐसा लग रहा था कि कोई था जो कि जुनून के हवाले होकर यह घिसने का कार्य कर रहो। 

सहसा घिसने की आवाज पर विराम लगा और उल्लू के एक कर्कश स्वर ने शमशान को गुंजायमान कर दिया। यह वह उल्लू ही था जो कि अपनी चोंच को पीपल की डाल पर रगड़ता जा रहा था। शायद यह एक संकेत था जिसे वह तांत्रिक भी समझ चुका था। तांत्रिक ने उसका संकेत पाकर तुरन्त घी का दीप जलाया और उसे शव के सिरहाने रख दिया। फिर मुर्गे का मांस, शराब की भरी बोतल और खोपड़ी भी सामने रख दी। 

तांत्रिक ने थोड़ा-सा मांस खाया। फिर खोपड़ी में उड़ेल कर थोड़ी-सी शराब पी। इसके बाद शेष मांस और शराब शव के खुले मुँह में डाल दिया। दूसरे ही क्षण अपने स्थान पर शव जोर-जोर से हिलने लगा।

ऐसा लगा मानों शव अब किसी भी क्षण उठ कर बैठ जायेगा। तभी शायद उस तांत्रिक संन्यासी की छाती पर एक प्रहार हुआ और वह छाती थामे धप्प ने नीचे गिर पड़ा। तांत्रिक अब अपने हाथ से अपनी छाती पकड़े जमीन पर मौजूद था।

शव का हिलना अब बंद हो चुका था। अब शमशान में यमुना के जल के प्रवाह के सिवा कोई और आवाज नहीं आ रही थी। तांत्रिक उठने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसकी छाती पर लगा वह प्रहार इतना जोर का था कि उसकी उठने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी। 

सहसा वह शव चिता से उठा और चिता से नीचे कूद पड़ा मानों जैसे वह भी जीवित प्राणी हो। इस अंधेरे में तांत्रिक के निकट उस शव की आकृति बहुत भयक लग रही थी। अनुपात से कहीं बड़ा सिर, बड़ी-बड़ी गोल आँखे, बाहर की ओर निकले विशाल दाँत, काला भुजंग शरीर साक्षात यमदूत सी लग रही थी। तभी अंधेरे और सन्नाटे को चीरती हुई एक आवाज उठी।

“हा… हा… हा…!”

उस शव के अंदर से कर्कश हँसी निकल पड़ी। वह स्वर इतनी कर्कश थी की तांत्रिक के कानों में चुभने लगी। सुप्त पड़े सियारों का पुनः रुदन शुरू हो गया था और शाख पर बैठे उल्लू ने भी उनके साथ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मानों जैसे किसी बड़ी अनहोनी के होने की दस्तक हो।

*****

पुस्तक लिंक: अमेज़न 

लेखक परिचय:

किताब परिचय: लौट आया नरपिशाच | देवेन्द्र प्रसाद
देवेन्द्र प्रसाद


देवेन्द्र प्रसाद एक बहुमुखी प्रतिभा वाले इंसान हैं।
इनकी अब तक आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  प्रतिलिपि और कहानियाँ नामक प्लेटफार्म में ये असंख्य कहानियाँ प्रकाशित कर चुके हैं। वहीं कुकू और पॉकेट एफ एम जैसे एप्लीकेशन में इनकी कहानियों के ऑडियो संस्करण आ चुके हैं।
सम्पर्क:

नोट: ‘किताब परिचय’ एक बुक जर्नल की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। 

अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:

contactekbookjournal@gmail.com


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About एक बुक जर्नल

एक बुक जर्नल साहित्य को समर्पित एक वेब पत्रिका है जिसका मकसद साहित्य की सभी विधाओं की रचनाओं का बिना किसी भेद भाव के प्रोत्साहन करना है। यह प्रोत्साहन उनके ऊपर पाठकीय टिप्पणी, उनकी जानकारी इत्यादि साझा कर किया जाता है। आप भी अपने लेख हमें भेज कर इसमें सहयोग दे सकते हैं।

View all posts by एक बुक जर्नल →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *