गजानन रैना साहित्यानुरागी है और साहित्य के अलग अलग पहलुओं और साहित्यिक कृतियों पर बात करने का उनका अपना अलग अंदाज है। रैना उवाच के नाम से वह यह टिप्पणियाँ अपने सोशल मीडिया पर साझा करते रहते हैं। आज एक बुक जर्नल पर पढ़िए काजुओ इशिगुरो की रचना ‘द अनकन्सोल्ड’ पर लिखी उनकी टिप्पणी।
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काजुओ इशिगुरो का उपन्यास, ‘द अनकन्सोल्ड’ 1995 में जब छपा तो बड़े आलोचकों ने इसके पुर्जे उड़ा दिये थे। एक सुपर क्रिटिक ने लिखा था कि, ‘दिस नावेल हैज इनवेन्टेड इट्स ओन केटेगरी ऑफ बैडनेस। (इस उपन्यास ने बुरे होने में अपनी एक अलग श्रेणी का ही आविष्कार किया है।)’
फिर एक युवा आलोचिका अनीता ने नक्कारखाने में तूती की तरह अपनी आवाज़ उठाई और कहा कि यह न केवल एक बहुत ही पठनीय कृति है, बल्कि इसे पिछली अर्धशती के दस सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाना चाहिए ।
फिर कुछ समय बाद एक बड़ा सर्वेक्षण हुआ और इस उपन्यास को 1980 से 2005 तक की अवधि में लिखा तीसरा सर्वश्रेष्ठ ब्रिटिश/आयरिश उपन्यास माना गया।
सवा पाँच सौ पृष्ठों का यह उपन्यास तीन दिनों के एक वक्फे पर फैला हुआ है ।
यहाँ पाठक का सामना स्मृति के सरोकारों से होता है । कभी स्मृतियाँ यहाँ एक अंजाने शख्स की तरह आती हैं, कभी एक करीबी दोस्त की तरह कंधे पर हाथ रख देती हैं , तो कभी एक सोज भरी धुन की तरह बजती हैं ।
राइडर नाम का एक विख्यात पियानोवादक एक सूने दिन एक मध्य यूरोपियन शहर में आता है। यहाँ ‘मैला आँचल’ के पूर्णिया की तरह शहर भी एक पात्र है।
राइडर आ पहुँचा है इस ऊँघते से शहर में। उसे अपने आने की वजह तक याद नहीं आ रही है। स्मृतियाँ उससे लुका छिपी खेल रही हैं । झिलमिल यादों के ये अँधेरे उजाले किसी नदी के भँवरों की तरह बन बिगड़ रहे हैं ।
स्मृतियों की आवाजाही के दौरान राइडर, सारे वक्त , समझने की कोशिश कर रहा है, क्या वह पहले भी यहाँ आया है, क्या कभी वह यहाँ रहा था, क्या कभी यहाँ उसके हाथ से कोई हाथ छूटा था ?
यह नोबल पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास रचना है, स्मृति की, विस्मृति की और है कथ्य की पृष्ठभूमि में बजते विषाद के एक सुर की।
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किताब: द अनकंसोल्ड | लेखक: काजुओ इशिगुरो | पुस्तक लिंक: अमेज़न
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विकास जी…. इस उपन्यास का हिंदी अनुवाद उपलब्ध हो तो दीजिये……… एक अलग तरह का उपन्यास प्रतीत होता है…….. 🤔🤔🤔🤔
जी अभी तक तो यह हिंदी में उपलब्ध नहीं है…