संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पैपरबैक | पृष्ठ संख्या: 40 | प्रकाशन: राज कॉमिक्स | कहानी: कमलेश्वर | कॉमिक रूपांतर: हनीफ़ अजहर | चित्रांकन: कदम स्टूडियो | शृंखला: विराट
कहानी
विराट को पता चल गया था कि अगर उसे अपने आप को बेगुनाह साबित करना है तो उसे प्रचण्डदेव का खात्मा करना होगा।
और प्रचण्ड देव का खात्मा वह तभी कर सकता था जब वह सात तिलस्मों के पार जाकर उस जीव तक पहुँच जाता जिसमें प्रचण्डदेव की जान बसती थी।
पर इन तिलस्मों को पार करना हँसी खेल नहीं था। हर तिलस्म में जान का खतरा मौजूद था जिसे पार करने का दृढ़ संकल्प विराट कर चुका था। वहीं प्रचण्डदेव को पूरा यकीन था कि विराट इन तिलस्मों से ज़िंदा लौटकर नहीं आने वाला था।
आखिर क्या था इन तिलस्मों के पीछे?
क्या विराट अपने लक्ष्य तक पहुँच पाया?
अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे किन किन मुसीबतों से दो चार होना पड़ा?
मेरे विचार
विराट 9
विराट शृंखला का आखिरी कॉमिक बुक है। इस कॉमिक के बाद वैसे तो कहानी में काफी कुछ होना शेष था लेकिन प्रकाशन द्वारा इस शृंखला को आगे नहीं बढ़ाया गया था। यहाँ यह बात साफ करना जरूरी है कि जब मैं कहता हूँ कि शृंखला में काफी कुछ होना शेष था उससे यह मतलब नहीं है कि यह शृंखला अधूरी है। अपनी बात को मैं आपको एक उदाहरण देकर समझाता हूँ।
-अगर आपने बचपन में विडिओ गेम खेला है तो जानते होंगे कि ज्यादातर गेम छोटी-छोटी स्टेज में विभाजित होते थे। हर स्टेज से गुजरते हुये आपको कई छोटे छोटे खलनायकों से लड़ना होता था और स्टेज की समाप्ति तब होती थी जब आप एक बड़े खलनायक से लोहा लेते थे। विराट की कहानी भी कुछ ऐसी ही समझी जा सकती है। विराट एक से विराट नौ तक की कहानी विराट के जीवन की एक मुकम्मल स्टेज है जिसमें जो बड़ा खलनायक है वह प्रचण्ड देव है। ऐसे में अगर देखा जाए तो चूँकि इस कॉमिक में विराट प्रचण्डदेव से भिड़ता दिखता है तो यह एक तरह की स्टेज की समाप्ति के तौर पर देखा जा सकता है। क्या विराट की ज़िंदगी की दूसरी स्टेजें बाकी रही होंगी? बिल्कुल रही होंगी, लेकिन अभी यह माना जा सकता है कि इस शृंखला ने उसकी ज़िंदगी की एक स्टेज को दर्शाया है। वैसे कहानी का जहाँ पर अंत हुआ है उसे देखकर लगता है कि विराट का दसवाँ भाग प्लान किया रहा होगा क्योंकि कुछ छोटी छोटी बातें साफ करनी रह जाती हैं।
खैर, मैं मुद्दे से भटक रहा हूँ। विराट नौ की कहानी की बात करे तो यह वहीं से शुरू होती है जहाँ पर विराट 8 खत्म हुई थी। विराटआठ में हमने देखा था कि विराट अपनी सूझ बूझ से पहले तिलस्म के दरवाजे को खोलने में कामयाब हो जाता है और विराट नौ में हम उसे बाकी के छः दरवाजों से जूझते हुए देखते हैं।
जब विराट 8 खत्म हुई थी तो मुझे पहले दरवाजे को देखकर लगा था कि आगे आने वाले छः दरवाजों में भी एक्शन होगा लेकिन ऐसा इधर नहीं है। तिलस्म के छः दरवाजे इस तरह से बने हैं जिसमें विराट को ताकत लगाकर नहीं बल्कि दिमाग लगाकर विजय प्राप्त करनी है। हाँ, ऐसे में तीसरा, पाँचवा और छठा दरवाजा मुझे व्यक्तिगत रूप से इतना खतरनाक नहीं लगा। इन्हे देखरकर ऐसा लग रहा था जैसे प्रचण्डदेव ने जानबूझ कर इन्हें अत्यधिक सरल बनाया हो। वरना तो दूसरे दरवाजे के जीवों की संख्या ही आगे के दरवाजों में बढ़ा दी जाती तो विराट को उनसे पार पाने में मुश्किल आन पड़ती। मुझे लगता है चूँकि यह प्रचण्डदेव सरीखे बड़े खलनायक का मामला था तो लेखक को इन दरवाजों को और मुश्किल और रोमांचक बनाना चाहिए था। इससे कहानी का रोमांच जितना अभी है उससे कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। हाँ, इससे कुछ पृष्ठों में वृद्धि जरूर होती लेकिन सीरीज फिनाले के तौर पर इतना तो किया ही जा सकता था।
कहानी के अंत में विराट और प्रचण्डदेव की टक्कर दिखाई गयी है जो कि रोमांचक है। प्रचण्डदेव बड़ा खलनायक है और यह इस टकराव में नुमाया होता है। वहीं इस टकराव का अंत इस तरह से किया गया है कि लेखक आगे जाकर प्रचण्डदेव को कहानी में लाना चाहे तो ला सकता है। अगर कुछ सरल तिलस्मी दरवाजों को छोड़ दिया जाए तो कहानी पढ़ते हुए मुझे मज़ा आया।
कहानी की कमियों की बात करूँ तो इसमें एक दो कमी थी मुझे लगी। पहली कमी तो यह थी कि विराट 8 में दुर्जन और नटवर भी विराट के साथ तिलस्म थे। वो लोग यशोधरा और राजनर्तकी की तलाश में विराट से अलग हो गए थे। कहानी में उनके विषय में कुछ बताया नहीं गया है। जब विराट इन तिलस्मों से जूझ रहा था वो क्या कर रहे थे इसका हल्का सा जिक्र होता तो अच्छा रहता। यह महत्वपूर्ण किरदार था और उनको इस तरह से साइड लाइन करना अच्छा नहीं था। नटवर और दुर्जन कहानी के अंत में ही आते हैं। और तब भी विराट उनसे उनके अनुभव के विषय में नहीं पूछता है और न ही वो उससे पूछते हैं। यह काफी अप्राकृतिक लगता है। वहीं कहानी के अंत में वे लोग राजधानी की तरफ जाते हुए दिखते हैं। हम ये तो अंदाजा लगा सकते हैं कि यशोधरा और राजनर्तकी के माध्यम से महाराज विजय सिंह को कालभैरव की करतूत पता चल जायेगी और वो विराट को सम्मान देते हुए उसे आरोप मुक्त कर देंगे लेकिन यह सब एक पृष्ठ में होता हुआ दर्शाया जा सकता था। इससे एक तरह इस शृंखला एक स्टेज पर एक पूर्ण विराम तो लग ही जाता।
कॉमिक बुक के आर्टवर्क की बात करूँ तो इसका आर्टवर्क कदम स्टूडियो ने किया है। ज्यादातर आर्टवर्क तो अच्छा है लेकिन मुझे ये समझ नहीं आता है कि विराट जब सामने से दिखता है तो उसका चेहरा बहुत ही पतला दिखाई देता है लेकिन जब उसकी साइड पोज बनाई जाती है तो उसका चेहरा मोटा सा क्यों बना दिया जाता है। यह बात खटकती है क्योंकि कई बार ये चेहरा भद्दा भी दिखता है। इस एक बात के अलावा आर्टवर्क अच्छा है।
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विराट का चेहरा सामने से और साइड पोज |
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विराट के कुछ और साइड पोज |
अंत में यही कहूँगा कि विराट नौ के साथ एक अच्छी शृंखला का अंत हुआ है। विराट नौ अभी जैसा बना है उससे कई गुना बेहतर जरूर बन सकता था लेकिन अभी भी वह अच्छा ही कहा जाएगा। बुरा नहीं है और कहानी के साथ न्याय करता है। इस कॉमिक के अंत में यही कह सकता हूँ कि यह
राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कुछ अच्छी शृंखलाओं में से एक है और अगर आपने इन्हे नहीं पढ़ा है तो आपको इस शृंखला को जरूर पढ़ना चाहिए। मेरा तो इसने भरपूर मनोरंजन किया। उम्मीद है आपको भी यह भरपूर मनोरंजन करेगी।
अगर आपने इस शृंखला को पढ़ा है तो आप शृंखला के प्रति अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करवाइएगा।
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जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८-०८-२०२१) को
'तुम दुर्वा की मुलायम सी उम्मीद लिख देना'(चर्चा अंक-४१७०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी चर्चा अंक में मेरी रचना शामिल करने के लिए हार्दिक आभार..
विस्तृत एवं सारयुक्त समीक्षा।
लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा मैम।
विराट 9 श्रृंखला में कहानी की अच्छाइयों एवं कमियों पर प्रकाश डालते हुए बहुत ही विस्तृत एवं रोचक समीक्षा।
विराट पर लिखा यह लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा, मैम..
बहुत सुंदर विश्लेषण ,सटीक समालोचना पुस्तक के प्रति जिज्ञासा बढ़ा रही है ।
जी आभार, मैम..