संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ईबुक | पृष्ठ संख्या: 48 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: परमात्मा #4 | लेखक: तरुण कुमार वाही | चित्रांकन: हेमंत कुमार | परिकल्पना: विवेक मोहन | इफ़ेक्ट्स: अब्दुल राशीद | कैलीग्राफी: अमित कठेरिया
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
इंस्पेक्टर विनय को त्रिकाली के कत्ल के जुर्म में जेल डाल दिया गया था। वहीं परमात्मा ने विनय को दर्शन देकर उसे त्रिकाली के कातिलों का पता दे दिया था।
परमात्मा से विनय की इस मुलाकात ने विनय के मन में परमात्मा को लेकर कुछ प्रश्न खड़े कर दिए थे।
परमाणु के ऊपर मृत्युयोग की भविष्यवाणी के विषय में लोग अभी भी चिंतित थे।
वहीं सटेलाइट किलर का अब तक कुछ पता नहीं लग पाया था और किसी ने दूसरे उपग्रहों के संवेदनशील जानकारियाँ चुरा ली गई थी। अंतरिक्ष अनुसंधानशाला के वैज्ञानिक परेशान थे क्योंकि एक और खतरा उनके सामने मुँह बाये खड़ा था और वह उसके खिलाफ कुछ भी करने के लिए बेबस थे।
आखिर दिल्ली में हो रही इन घटनाओं के पीछे किसका हाथ था?
अंतरिक्ष अनुसंधानशाला के वैज्ञानिक क्यों परेशान थे?
आखिर परमात्मा कौन था? वह क्यों धरती पर आया था?
क्या परमाणु के ऊपर मृत्युयोग था? आखिर परमाणु अपने को इससे कैसे बचा पाया?
मेरे विचार
‘परमात्मा’ परमाणु की परमात्मा शृंखला का चौथा कॉमिक बुक है। राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित यह कॉमिक बुक इस शृंखला की आखिरी कड़ी है।
कॉमिक की शुरुआत परमाणु के त्रिकाली के कातिलों को पकड़ने से होती है। उसके बाद परमात्मा उसे दर्शन देते हैं और कुछ ऐसा उसे बता देते है कि परमाणु के पास विश्वास करने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं रह जाता है। एक के बाद एक चीजें ऐसी होती हैं कि आप ये जानने को कॉमिक्स पढ़ते चले जाते हो कि इन मामलों के पीछे कौन था। साथ-साथ सेटेलाइट किलर कौन है और परमाणु फर्ज और अपने जान को लेकर भविष्यवाणी में से किसे वरीयता देता है यह देखना रोचक रहता है। कॉमिक इस तरह आगे बढ़ती है कि इसमें शृंखला के पहले कॉमिक के साक्ष्य के आधार पर ही विनय असल चीजों तक पहुँच पाता है। वहीं दिल्ली के आकाश में जो चीजें हो रही थी वो क्यों हो रही थी उसका कारण भी वह पता लगा देता है। कहानी में विनय के मामा की एंट्री भी होती है जो कि मुझे रोचक लगी। उसके और उसके मामा के बीच के समीकरण इसमें पता चलते हैं जो कि उनके रिश्ते के बीच में काफी कुछ उजागर कर देते हैं। इस रिश्ते को जानने की इच्छा मेरे मन में बलवती हो गई है। अगर आप बता सकें कि कौन से कॉमिक बुक्स पढ़कर परमाणु और कमलकांत के बीच के रिश्ते के विषय में ज्यादा जान सकूँगा तो अच्छा रहेगा। कमेन्ट में नाम जरूर बताइएगा।
हमारे अंधविश्वास किस तरह से हमारी तार्किक शक्ति को कुंद कर देते हैं यह चीज इस शृंखला में बहुत अच्छी तरह से दृष्टिगोचर होती है। इस भाग में भी हम यही देखते हैं कि कैसे अंधविस्वास के चलते हम ऐसे कदम उठा लेते हैं जिन्हें तार्किक नहीं कहा जा सकता। वहीं कई लोग समाज में ऐसे हैं जो उसका दोहन करने के लिए बैठे हुए हैं और जाने अनजाने में हम उन लोगों के हाथों की कठपुतलियाँ बनकर रह जाते है। इसलिए यह शृंखला हमें शिक्षा भी देती है कि अंधविश्वास पर विजय प्राप्त कर हमें कर्म को वरीयता देनी चाहिए। ऐसे करके ही हम कुछ अच्छा कर पाएंगे।
कॉमिक बुक की कमी की बात करूँ तो इसकी सबसे बड़ी कमी इसका अंत है। इस शृंखला को पूरी तरह से देखें तो पाएंगे कि यह एक रोमांचकथा के बजाए रहस्यकथा अधिक है। एक्शन इसमें कम है लेकिन रहस्य आपको शृंखला के कॉमिक पढ़ने के लिए मजबूर कर देता है। इस कॉमिक में भी एक्शन नहीं है लेकिन वह कोई बड़ी बात नहीं है। अगर रहस्य ढंग से बनाकर रखा जाए और उसको सही तरह से उजागर किया जाए तो एक्शन की कमी को वो पूरा कर लेता है। लेकिन इसी बिन्दु पर आकर कॉमिक कमजोर पड़ जाता है।
48 पृष्ठों की इस कॉमिक में समापन के लिए चीजें इतनी रहती है हर किसी को वक्त दे पाना मुमकिन नहीं रह पाता। कुछ चीज़ें तो तहकीकात के जरिये पता लगती हैं लेकिन मुख्य चीज लेखक स्वीकारोक्ति (कॉन्फेशन) के तौर पर पाठक के सामने रखते हैं। यह चीज कथानक के अंत को कमजोर बना देती है। अगर परमाणु अपनी तहकीकात से ये चीजें उजागर करता तो भले ही कुछ पेज एक्सट्रा खर्च होते लेकिन कॉमिक रोमांचक बनता। खलनायक और नायक के बीच जिस आखिरी भिड़ंत का हम इंतजार करते रहते हैं वह मिलता ही नहीं है। नायक को प्लेट में सजाकर खलनायक मिल जाता है जो कि खटकता है। वहीं कुछ सीन में विनय का लॉजिक देखकर भी हैरानी होती है कि वह इंस्पेक्टर कैसे बन गया। यहाँ इतना ही कहूँगा भारत जैसे देश मे जहाँ 70-80 प्रतिशत( मैं कम ही कह रहा हूँ) ,’मेड इन चायना’ इस्तेमाल होती है। वहाँ चीजों पर ‘मेड इन चायना’ का निशान देखकर ये नतीजा निकालना कि इसके पीछे चीन का हाथ है थोड़ा बचकाना है। अगर चीन जैसा देश कुछ करेगा भी तो कम से कम चीजें ऐसी नहीं लगाएगा जिससे उसका ऐसे विज्ञापन हो। यह बात समझनी चाहिए।
कहानी के आर्टवर्क की बात करूँ तो इसका आर्ट हेमन्त का किया हुआ है। आर्टवर्क वैसे तो सही है लेकिन पहले दो कॉमिक्स की तुलना में कमतर ही लगता हैं। अगर पहले दो कॉमिक्स भी उन्होंने ही बनाये होते तो यह तुलना न करता।
आखिर में यही कहूँगा कि परमात्मा शृंखला का यह आखिरी भाग अपने कमजोर अंत के कारण अपेकक्षाओं पर खरा नहीं उतरता है। ऐसा नहीं है कि यह कॉमिक बुरा है लेकिन जितना अच्छा ये हो सकता था उतना नहीं बन पड़ा है। इस आखिरी भाग में समेटने के लिए काफी कुछ था और पृष्ठ संख्या 48 ही थे तो इससे भी नुकसान हुआ है। मुझे लगता है जब इतना था इसमें तो कम से कम 64 पृष्ठ तो होने ही चाहिए थी न्याय करने के लिए। फिर भी शृंखला के अंत के रूप में इसे एक बार पढ़ सकते हैं।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
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आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-02-2022) को चर्चा मंच "हर रंग हमारा है" (चर्चा अंक-4349) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चाअंक में मेरी प्रविष्टि शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।
विस्तृत पुस्तक विवरण।
जी आभार…