कच्छामैन | बेसरा कॉमिक्स | सुरजीत बेसरा | अंशुदीप धुसिया | शंभुनाथ महतो

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: बेसरा कॉमिक्स 

टीम

परिकल्पना/रचनाकार: सुरजीत बेसरा | लेखक/स्क्रिप्ट लेखन: सुरजीत बेसरा, अंशुदीप धुसिया | चित्रकार/रंग-सज्जा/सुलेख/संपादक: शंभु नाथ महतो

 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

कहानी 

शहर के छात्र नशे की गिरफ्त में घिर चुके थे। प्रशासन और पुलिस भी नशे के इस बढ़ते प्रभाव के कारण चिंतित थी।

ऐसे में जब शहर के जाने माने कॉलेज के एस कॉलेज की एक शिक्षिका माया नशे की ओवरडोज की हालत में पुलिस को एक नशे  पार्टी में मिली तो पुलिस को लगा कि उसका भी इस नशे के रैकेट से कुछ संबंध था।

वहीं मयंक, जो कभी माया का पति था, जानता था कि माया निर्दोष है और उसे फँसाया जा रहा है।

आखिर कौन था नशे के इस रैकेट के पीछे?

विचार

बेसरा कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित पहला कॉमिक बुक कच्छामैन कॉमिक बुक ड्रग्स की उस बिमारी की बात करता है जिससे आजकल का युवा जूझ रहा है।

कॉमिक बुक की शुरुआत एक गोदाम से होती है जहाँ पर ड्रग्स को छुपाया जा रहा है। यहाँ पर नायक कच्छामैन पहुँच जाता है और फिर कहानी फ्लैश बैक में चली जाती है।

इस फ्लैश बैक में 1997 का कालखंड भी दर्शाया गया है और वर्तमान समय भी। 1997 में जो बस लूटने का प्रसंग बताया जाता है उसने व्यक्तिगत तौर पर मुझे छुआ। उन दिनों जब हम दिल्ली से कोटद्वार जाते थे तो कई जगह ऐसे ही बसें लूट ली जाती थी। हालत इतने बुरे हो गए थे कि बीच बीच पुलिस वाले गाड़ियों को एस्कॉर्ट करते थे और कई बार अकेली बसें आगे नहीं भेजी जाती थी बल्कि जत्थे भेजे जाते थे। कभी मुझे व्यक्तिगत तौर पर लूटपाट का सामना तो नहीं करना पड़ा लेकिन उन दिनों अखबारों में ऐसी खबरे आम थी। पढ़ते हुए वही खबरे दिमाग में कौंध गई थीं। 

दूसरे पृष्ठ से शुरू हुआ ये फ्लैश बैक 22 वें पृष्ठ तक चलता है। इस फ्लैश बैक के माध्यम से कथानक के मुख्य किरदारों से पाठक का परिचय होता है।  इस दौरान मुख्य किरदारों के जीवन से जुड़े की पहलू भी पाठक को दर्शाये जाते हैं। वो पहलू जिनके विषय में जानने के बाद पाठक के मन में यह उत्सुकता जाग जाती है कि इनके साथ ऐसा हुआ तो क्यों हुआ? या फिर इनके बीच ऐसा क्या हुआ कि इनके बीच का रिश्ता मौजूदा समीकरणों तक पहुँच गया। 

कॉमिक बुक का अंत इस तरह से होता है कि आप न केवल फ़्लैश से उत्पन्न हुए प्रश्नों के विषय में जानना चाहोगे लेकिन उसके साथ साथ ये भी जानना चाहोगे कि आगे जाकर कॉमिक बुक की कहानी क्या मोड़ लेती है। 

कथानक वैसे तो सीरीअस टॉपिक पर है लेकिन कॉमेडी का तड़का कहानी में मौजूद रहता है जो कि कथानक को मनोरंजक बनाता है। कई संजीदा परिस्थियों के बीच हास्य पिरोया गया है और कुछ जगह ये ह्यूमर डार्क हो जाता है।  हास्य क्योंकि व्यक्तिपरक होता है तो ये पाठक पर निर्भर करेगा कि उनके लिए यह हास्य कैसा रहता है? व्यक्तिगत तौर पर मुझे यह पसंद आया। 

चूँकि यह कॉमिक बुक कथानक की भूमिका है और केवल 32 पृष्ठ हैं तो किरदारों को उस तरह से विकसित कर पाठकों के सामने नहीं लाया गया है। फिर चूँकि उनके जीवन के अलग अलग पहलुओं को दर्शाया तो हर चीज को बस इतना छू कर लेखक निकले हैं कि वह आगे के भाग के प्रति उत्सुकता जगाता है। अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी। उम्मीद है उसमें यहाँ छूटे गए सभी प्रश्नों के उत्तर दिए जाएँगे।

कॉमिक बुक का आर्टवर्क अच्छा है पर कुछ पैनल्स में अतिरितक कार्य करने की जरूरत थी। विशेषकर कन्याओं का चित्रण पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। कई महिला किरदारों के चेहरे मोहरे और होंठ एक समान बने से लगते हैं।  कॉमिक बुक की कलरिंग मुझे पसंद आई। वह हल्की पेस्टल टाइप रखी गई है जो कि ज्यादा चटक न होंने के कारण आँखों को सुकून सा देती है।

अंत में यही कहूँगा कि नशे को केंद्र में रखकर लिखी गई इस कॉमिक का यह पहला भाग अगले भाग के प्रति उत्सुकता जगाने में कामयाब होता है। 32 पेज में काफी कुछ दिया गया है।  किरदारों को लेकर की सवाल ये मन में छोड़ जाता है। मुख्य नायक कच्छामैन में एक नोवेल्टी फैक्टर है जिसे इस भाग में न्यायोचित ठहराने में लेखक कामयाब हुए हैं। अगले भाग में नायक के कपड़ों का क्या होगा और अगर इस शृंखला को लेखक बढ़ाते हैं तो कच्छेमैन को केवल कच्छे में कब तक और कैसे वो न्यायोचित रूप से रख पाएँगे ये देखना बनता है।

कॉमिक बुक के अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी। उम्मीद है प्रकाशक ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करवाएँगे।

पुस्तक लिंक: अमेज़न


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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