संस्करण विवरण
कहानी
किरदार
मेरे विचार
कुँअर अस्तभान और मुफतलाल दोनों बचपन के साथी थे। दोनों साथ स्कूल जाते और एक ही बेंच पर बैठते। दोनों कक्षा में बैठे-बैठे साथ मूँगफली खाते, पर पिटता मुफतलाल था। अस्तभान बच जाता, क्योंकि वह राजा का लड़का था। (पृष्ठ 9)
मुफतलाल का हँसने का मन हुआ। पर राजकुमार की बेवकूफी पर् हँसना कानूनन जुर्म है, यह सोचकर गंभीरता से कहा पृष्ठ (11)
मुफ़तलाल उसके तेज को देखकर सहम गया। वह चाहता था कि अस्तभान कुछ दिन और ज़िन्दा रहे। उसने डिप्टी कलेक्टरी के लिए दरख्वास्त दी थी और कहता था कि अस्तभान सिफारिश कर दे। (पृष्ठ 11)
मुफतलाल उठ बैठा। प्रणाम करके चला। सोचता जाता था कि ऐसी शांति संतों के लिए भी ईर्ष्या की वस्तु है। कल आत्महत्या करनी है और आज किस शांति की नींद ले रहे हैं! धन्य हो, राजकुमार! महापुरुष ऐसे ही होते हैं। (पृष्ठ 18)
नागफनी ने सिसकते हुए कहा, “कैसे धीरज रखूँ? तू ही बता सखि! आज पाँचवी बार मेरा प्रेम टूट है। कितने आघात मेरे हृदय ने सही हैं! अब तो मैं प्रेम करते करते थक गई हूँ।”करेलामुखी ने कहा, “राजकुमारी, प्रेम का पथ काँटों से भरा ही है। इससे क्या घबड़ाना? हर घाव का मरहम होता है। एक प्रेम का घाव भी दूसरे प्रेम के मरहम से भर आता है!” (पृष्ठ 19)
जब विद्यार्थी कहता है कि ‘पंद्रह दिए’,उसका अर्थ है कि उसे ‘पंद्रह नंबर’ मिले नहीं हैं, परीक्षक द्वारा किए गए हैं। मिलने के लिए तो उसे पूरे नंबर मिलने थे। पर पंद्रह नंबर जो उसके नाम पर चढ़े हैं, सो सब परीक्षक का अपराध है। (पृष्ठ 30)
जितने पेपर विश्वविद्यालय की विवरण पुस्तिका में लिखे हैं, उनके बाद भी एक पेपर होता है जो सबसे महत्वपूर्ण है, पर् जिसका कहीं उल्लेख नहीं है। इस पेपर का विषय होता है- यह पता लगाना कि किस विषय की उत्तर-कॉपिया किसके पास जँचने गई हैं और फिर उनसे नंबर बढ़वाना। जो इस पेपर में पास हो जाता है, वह सबमें पास हो जाता है। (पृष्ठ 30-31)
पत्रकार के लिये मौत केवल समाचार होती है। अगर हम हर मौत पर रोनेलगें तो सारी ज़िंदगी रोते ही कट जाय। महत्वपूर्ण मौत का हमारे लिए बड़ा उपयोग है – उससे रोचक समाचार बनता है। किसी बड़े आदमी की मौत हो जाती है, तो सारा संपादकीय और संवाद-विभाग हर्षित हो जाता है। अगर मौत असाधारण परिस्थिति में हो, तब तो हमारे लिए वरदान होती है। (पृष्ठ 35)
नागफनी ने कहा, “‘सखि, तन का ताप तो ‘कूलर’ से कुछ कम हो जाता है, पर मन के ताप का क्या करूँ?”करेलामुखी ने समझाया, “कुमारी, नगर-सेठ का लड़का उड़ाऊमल कई बार तुमसे मिलने का प्रयत्न कर चुका है। तुम उससे मिलों। उससे मिलने से तुम्हारा जी बहल जाएगा।”नागफनी बोली, “नहीं सखि, मैं उससे नहीं मिलूँगी। मैं राजकुमार को धोखा नहीं दूँगी।”करेलामुखी ने समझाया, “देवी, यह धोखा नहीं है। तुम्हें उनके लिए जीवित रहना है। यदि तुम्हारे जीवित रहने में उड़ाऊमल से सहायता मिलती है तो उसमें कोई अनीति नहीं है। तुम अपने सुख के लिए नहीं, बल्कि राजकुमार के सुख के लिए, उड़ाऊमल से मन बहलाओ।”नागफनी कभी-कभी उड़ाऊमल से मिलने लगी जिससे दुख कम होने लगता। पर जब उड़ाऊमल उससे दूर हो जाता, तब उसका दुख पूर्ववत् बढ़ जाता। (पृष्ठ 39)
अस्तभान ने पूछा, “सब पर आप क्रोधित क्यों हैं, कविवर?”कवि ने कहा, “सब बुरे हैं। इस समाज पर, इस सरकार पर, प्रजातंत्र पर, प्रजातांत्रिक संस्थाओं पर, किसी पर हमारी आस्था नहीं है। ये सब व्यक्ति का नाश करते हैं। हम बी ए फेल होने के बाद प्रोफेसर बनना चाहते थे। हमें प्रोफेसर नहीं बनाया गया तो हमें मानवी संस्थाओं से घृणा हो गई। हमें मनुष्य में विश्वास नहीं रहा। हमें किसी आदमी से कोई मतलब नहीं।”मुफतलाल ने पूछा, “पर कविराज, अगर आपके पिता भी आपकी तरह सोचते तो आप बचपन में ही मर जाते।”कवि ने क्रोध से कहा, “बाप का नाम क्यों लेते हो? बाप बेटे का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। हम परंपरा पर विश्वास नहीं करते।” (पृष्ठ 41)
मुफतलाल की दिलचस्पी बढ़ी। पूछा, “डॉक्टर साहब, रोग के अनुसार दवाएँ बनती हैं या दवाओं के अनुसार रोग होते हैं?”डॉक्टर ने कहा, “दवाओं के अनुसार रोग होते हैं। उत्पादन के अन्य क्षेत्रों में जो नियम लागू होते हैं, वहीं यहाँ भी होते हैं। वस्तु का उत्पादन अधिक करके फिर उसकी आवश्यकता पैदा की जाती है और उसे बेचा जाता है। हमारे पास दवा बनाने वाले कारखाने के एजेंट आते रहते हैं। वे बता जाते हैं कि इस समय क्लोरोमाइसन का उत्पादन बहुत हुआ है इसलिए लोगों को टाइफाइड होना चाहिए। इसके बाद उसे उसकी बीमारी की दवा दी जाएगी। फिर कुछ ऐसी दवाएँ भी दी जाएँगी जिनसे न लाभ होगा, न हानि।”मुफतलाल बोला, “याने एक सर्वसामान्य यानी ‘जनरल’ बीमारी होती है और eक व्यक्तिगत बीमारी।”डॉक्टर ने कहा, “हाँ, अब तुम समझ गए। ‘जनरल’ बीमारी वह है जिसकी दवा का स्टॉक निकालना है। यह हर एक को लेनी होगी। इसके बाद उस मरीज की जो अपनी बीमारी होगी, उसकी दवा दी जाएगी।” (पृष्ठ 52)
डॉक्टर से एक ही लाभ है – अभी तक मरने वाला ईश्वरेच्छा समझकर मरता था, अब डॉक्टर उसे बता देते हैं कि वह किस बीमारी से मार रहा है। इस तरह ईश्वर का उत्तरदायित्व काफी कम हो गया है। (पृष्ठ 53)
ये प्रेमिकाएँ बड़ी विचित्र होती हैं। ये पहले नहीं बतातीं कि आगे बाहुबल का काम पड़ेगा। जब प्रेमी इनके विरह में टिटहरी हो जाता है तब खबर भेजती हैं कि भुजाओं में बल हो तो मुझे ले जाओ। सारा बल छीनकर बल की दुहाई देती हैं। (पृष्ठ 73)
युद्ध सफलता से तभी लड़ा जा सकता है जब उसका सही कारण जनता को मालूम न हो। (पृष्ठ 75)
आखिर मैंने लड़का इसीलिए तो पैदा किया है और पाला है कि उनकी लड़की को पति मिल सके। मैंने क्या उसे अपने लिए पाला है? अगर मैं उसे नहीं पालता तो लड़की को पति कैसे मिलता? तू समझता नहीं है कि लड़का पैदा करना व्यवसाय है, यह गृह उद्योग है। अभी तक मैंने इसमें पूँजी लगाई है। अब माल जब बाजार में आ गया है, तब क्या मैं उसकी अच्छी कीमत नहीं लूँगा? (पृष्ठ 89)
इन राजनैतिक पुरषों की शारीरिक बनावट ही अलग होती है। इन लोगों में कुछ तो अपनी आत्मा को शरीर में या शरीर के बाहर कहीं भी रख सकते हैं। कुछ नेताओं का हृदय पेट में होता है, किसी-किसी का टाँग में। एक नेता को मैं जानता हूँ जो अपना हृदय नाबदान में रखता है। एक और नेता है जिसकी आत्मा तलुए में रहती है। जब चलता है, आत्मा को कुचलता जाता है। (पृष्ठ 96)
हर पीढ़ी को यह मानना चाहिए कि बाप-दादे बेवकूफ हैं और उनकी कम-से-कम आधी बातें गलत हैं। उनकी आधी सही बातें लेकर उनमें अपनी आधी आधी मिलानी चाहिए। इस तरह के मिश्रण से जो मान्यताएँ बनेंगी, वही प्रगतिशील मान्यताएँ कहलाएँगी। अगर बेटा बाप को आधा खब्ती न समझे तो समाज जहाँ का तहाँ खड़ा रह जाय। (पृष्ठ 109)
पद की कुर्सियों में गीली गोंद लगी रहती है। जो बैठता है चिपक जाता है। (पृष्ठ 118)
राजनीतिज्ञ की हर बात में कोई दाँव पेंच होता है। उसे एकदम स्वीकार नहीं करना चाहिए। वह जो कहता है, प्रयोजन ठीक उससे उल्टा होता है। यदि वह आपको भला आदमी कहे समझना चाहिए कि वह बुरा आदमी समझता है। यदि वह आपकी भलाई करने को उत्सुक हो तो निश्चय ही वह आपकी भलाई नहीं करना चाहता है। (पृष्ठ 119)