फिर सुबह होगी – संजीव जायसवाल ‘संजय’

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पैपरबैक | प्रकाशक: पफ़िन बुक्स | आईएसबीएन: 9780143103882

पुस्तक लिंक: अमेज़न

समीक्षा: फिर सुबह होगी - संजीव जायसवाल 'संजय'

कहानी 

वर्ष 2061 तक दुनिया की हालत ऐसी हो गयी थी कि धरती से वनस्पतियों का नामों निशान मिट चुका था और धरती का तापमान काफी बढ़ गया था। सब जगह त्राहि त्राहि मच गयी थी। भारत की जनसंख्य 120 करोड़ से घट कर अब केवल दस करोड़ ही रह गयी थी। 

अब मनुष्य कृत्रिम रूप से जीने के लिए विवश हो गया था। मनुष्यता एक गहरी अँधेरी रात से गुजर रही थी जहाँ खुशहाली की सुबह होना नामुमकिन सा लगने लगा था। 

ऐसे में विशाल और प्रियंका ने जब सुशांत राय को अपने नए प्रोजेक्ट के विषय में बताया तो वह आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सके। इन दोनों किशोरों ने ऐसा काम किया था जिसके चलते मानवता पर आई यह विपदा टल सकती थी। अब उन्होंने इन बच्चों की खोज को दुनिया के सामने लाने का फैसला कर लिया था। 

अब प्रोफेसर सुशांत राय उस खोज को बच्चों के साथ मिलकर दुनिया के सामने रखने वाले थे। उन्होंने जब इसकी घोषणा की तो वह दुनिया के लिए एक आशा की किरण की तरह ही थी। सभी को लगने लगा था कि खुशहाली की नई सुबह होने को है। 

लेकिन फिर ऐसा कुछ हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। किसी ने सुशांत राय का अपहरण कर दिया  था और पूरे विश्व में तहलका मच गया। 

बच्चों और सुशांत राय की वह नई खोज आखिर क्या था?

आखिर सुशांत राय का अपहरण किसने किया था? 

मानवता जिस परेशानी से गुजर रही थी क्या उसका निदान हो पाया?

किरदार

प्रोफेसर सुशांत राय – भारत के वैज्ञानिक प्रमुख 
दिवाकर – भारत के प्रधानमंत्री 
विशाल राय – प्रोफेसर सुशांत राय का बेटा 
प्रियंका – दिवाकर की बेटी 
रोहित नंदा – स्क्वाड्रन लीडर 
डॉक्टर जिब्राल्टर – एक सनकी वैज्ञानिक 
डॉक्टर डेविड – जिब्राल्टर का साथी 

मेरे विचार

पढ़ने की बात आती है तो जितना मुझे वयस्कों के लिए लिखे गये उपन्यास पढ़ना पसन्द है उतना ही किशोर साहित्य या बाल साहित्य पढ़ना पसंद है। गाहे बगाहे में बाल साहित्य और किशोर साहित्य पढ़ने की कोशिश करता रहता हूँ। वहीं इन उपन्यासों के विषय में लिखते रहने की भी मेरी कोशिश होती है। फिर सुबह होगी भी संजीव जायसवाल ‘संजय’ द्वारा लिखा गया एक बाल विज्ञान गल्प उपन्यास है। यह उपन्यास जब मैंने अमेज़न में देखा था तो इसे लेना बनता ही था। यह इसलिए भी था क्योंकि एक तो हिंदी में विज्ञान कथाओं की कमी है और फिर किशोरो या बाल पाठकों के लिए लिखे गए विज्ञान उपन्यास तो और भी कम हैं। ऐसे में इस उपन्यास को पढ़ना बनता ही था।

प्रस्तुत उपन्यास की बात करूँ तो यह मूलतः एक डिस्टोपियन फिक्शन है। उपन्यास का कथानक वर्ष 2061 में घटित होता है। भविष्य की इस दुनिया में आज के इंसानी क्रियाकलापों का असर पड़ चुका है। प्रदूषण और आपसी लड़ाई का नतीजा यह हुआ है धरती से सभी वनस्पतियाँ गायब हो चुकी हैं और धरती का तापमान बढ़कर इतना ज्यादा हो चुका है कि बिना एयर कंडीशनर के रहना अब मुमकिन नहीं है। वहीं हवा इतनी खराब हो चुकी है कि लोगों को साँस लेने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत है और भूख प्यास मिटाने के लिए वह कैप्सूलों पर निर्भर हैं। यही नहीं इस दौरान इंसानों की जनसँख्या में भारी गिरावट हुई है और विषाद और अवसाद का माहौल चारो तरफ हैं।

उपन्यास की कहानी इसी दुनिया में मौजूद भारत मे घटित होती है। सुशांत राय भारत के वैज्ञानिक प्रमुख हैं। वह दुनिया की हालत को लेकर परेशान और निराश हैं। उन्हीं की लैब में इन दिनों उनका बेटा विशाल और उनके दोस्त और भारत के प्रधानमंत्री की बेट प्रियंका अपनी छुट्टियों में एक गुप्त प्रोजेकट पर कार्य लर रहे हैं। जब छुट्टियों की समाप्ति पर ये बच्चे अपने प्रोजेक्ट के बारे में सुशांत को बताते हैं तो उनकी बांछे खिल जाती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन बच्चों ने ऐसा विचार सोचा है जिसका किर्यान्वन अगर हो जाये तो दुनिया की हालत बदल सकती है। और सुशांत जानते हैं कि उनका यह विचार वह किर्यान्वित कर सकते हैं। लेकिन जब वह दुनिया के सामने इस बात को लेकर सेमिनार करते हैं तो उनका अपहरण हो जाता है और फिर उनको ढूंढने का कार्य इन दो किशोरो पर आ जाता है। उनका अपहरण किसने लिया और किशोर उन्हे कैसे बचाते हैं यही आगे का कथानक बनता है।

यूँ तो यह उपन्यास एक रोमांचकथा है जिसे अगर खाली रोमांचकथा के तौर पर देखें तो हो सकता वयस्कों को इसमें कोई विशेष बात नहीं लगे लेकिन इस रोमांचकथा के घटने के दौरान जो जो प्रसंग लेखक ने दर्शाए हैं वह पाठकों को काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं। हम पर्यावरण के साथ जो लापरवाही अभी दिखा रहे हैं उसके भविष्य में कैसे परिणाम होंगे इसका खाका लेखक ने बाखूबी खींचा है। कई जगह मुश्किलों का यह विवरण डर भी पैदा करता है। 

उपन्यास की कथा सरल है। चूँकि यह बाल/किशोर उपन्यास है तो उसी हिसाब से इसे रखा गया है। कथानक में लेखक ने कुछ ट्विस्ट भी रखे हैं जो कि पाठक की रुचि कथानक में बनाये रखते हैं। छोटे छोटे अध्यायों में विभाजित यह उपन्यास पठनीय है और अंत तक पढ़ते चले जाने के लिए विवश कर देता है। 

किरदारों की बात की जाए तो किरदार कथानक के अनुरूप है। भले ही मुख्य एक्शन विशाल करता है लेकिन प्रियंका भी अपनी सूझ बूझ और अपने साहसी रवैये से पाठक के मन में जगह बनाने में सफल होती है। उपन्यास का खलनायक जिब्राल्टर एक वैज्ञानिक है और बॉलीवुड फिल्मों के विलन जैसा ही लगता है। उन्हीं की तरह वह बेवकूफियाँ भी करता है जिसके चलते वह आखिर में मुँह की खाता है। 

कथानक की कमी मुझे इसकी सरलता ही लगी। बाल पाठकों के लिए यह जहाँ अच्छी बात है वहीं वयस्कों यह चीज असन्तुष्ट कर सकती है। 

कथानक में कुछ चीज़ें ऐसी लिखी गयी है जिसके ऊपर काम किया जाना चाहिए था। 

उदाहरण के लिये उपन्यास में एक प्रसंग है जिसमें लेखक यह दर्शाना चाह रहा था कि भविष्य में वह ऑक्सीजन जिसकी अभी कुछ वर्षों तक  परवाह नहीं कर रहे थे इतनी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाएगी कि लोगों के बीच इसे लेकर झगड़े होंगे। और इसकी एक झलक हम लोग कोविड के इस दौर में देख चुके हैं। लेकिन जिस तरह से लेखक ने यह दर्शाया है वह बेहतर हो सकता था। अभी पाठक इस झगड़े को केवल इसलिए देख पाते हैं क्योंकि नायक और नायिका ई बुक लेने मॉल में जाते हैं। यह सीन पढ़ते हुए मैं यही सोच रहा था कि जिस दुनिया मे तकनीक इतनी उच्च हो कि लोग बातचीत 3d होलोग्राम में करते हों उधर ई-किताबों का सीधे घर में ट्रांसफर न होना अटपटा ही लगता है। मुझे लगता है नायक नायिका का मॉल जाने का कुछ मजबूत कारण दिखाया जा सकता था।

वहीं उपन्यास के अंत में जिस तरह से नायक अपहरित वैज्ञानिक से सम्पर्क साधता है वह भी मुझे थोड़ा कमजोर लगा। अगर मैं कोई शैतान वैज्ञानिक होऊँगा तो यह सुनिचित करूँगा कि मेरे यहाँ से कोई मेरी जानकारी के बिना सम्पर्क न स्थापित कर पाए। ऐसा करने के लिए मैं जिसका अपहरण करूँगा उसका सारा सामान ही ले लूँगा। लेकिन इधर ऐसा नहीं होता है। अगर खलनायक इधर ऐसा करता तो वैज्ञानिक को सम्पर्क स्थापित करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती जिससे उपन्यास में रोमांच अधिक हो जाता।

अंत में यही कहूँगा कि उपन्यास एक बार जरूर पढ़ा जाना चाहिए। मुझे तो यह पसंद आया।  रोमांच कथा के तौर पर हो सकता है वयस्क पाठकों को  यह औसत लगे लेकिन जो बात यह सोचने के लिए दे जाता है वह इतनी महत्वपूर्ण है कि इसके सरल होने को नजरंदाज किया जा सकता है। वहीं अपनी सरलता के चलते बाल पाठकों को यह उपन्यास पसंद भी आएगा और उन्हे काफी चीजें सिखा देगा। उन्हे यह उपन्यास पढ़ने को दिया जाना चाहिए। 

अगर आपने इस पढ़ा है तो मुझे अपनी राय से जरूर अवगत करवाइएगा।  अगर आपके घर में बच्चे हैं तो इस उपन्यास को उन्हें पढ़ने के लिए दे सकते हैं। उन्हे इसे पढ़ने में आनंद आएगा। 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “फिर सुबह होगी – संजीव जायसवाल ‘संजय’”

    1. लेख आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

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