पक्या और उसका गैंग – गंगाधर गाडगील | अनुवाद: माधवी देशपांडे | साहित्य अकादेमी

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 40 | प्रकाशन: साहित्य अकादेमी | अनुवाद: माधवी देशपांडे 

पक्या और उसका गैंग - गंगाधर गाडगील | अनुवाद: माधवी देशपांडे | साहित्य अकादेमी

कहानी 

पक्या और उसके दोस्त काउबॉय सुरेश, विजय उर्फ फैटी  और बिट्टू  उसके मामाजी के घर आए हुए थे। वहाँ वो लोग बोर हो रहे थे तो उन्होंने समंदर के नजदीक जाकर घूमने की योजना बना डाली। 

समंदर की तरफ जाते हुए उनका सामना एक तेज रफ्तार गाड़ी से हुए जिसने फैटी को लगभग कुचल ही डाला था 

इस तेज भागती गाड़ी ने पक्या और उसकी गैंग का ध्यान आकर्षित कर दिया था। 

आखिर ये गाड़ी किसकी थी और क्यों इतनी तेजी से ये इसे चला रहे थे?

इस सवाल का उत्तर जानने की जब उन्होंने कोशिश की तो कई परिस्थितियों से उनका सामना हुआ।

वो परिस्थितियाँ क्या थीं?

पक्या और उसकी गैंग इन परिस्थितियों से कैसे निकले?

मुख्य किरदार 

पक्या – गैंग का लीडर
खंड्या  – पक्या का कुत्ता
विजय उर्फ फैटी – पक्या की गैंग का सदस्य
गट्टू – विजय का कबूतर
काउबॉय सुरेश – गैंग का मेंबर
भागी – नौकरानी
बिट्टू – गैंग का मैकेनिक
हिन्या – पकया का दोस्त और बुधया मछुआरे का लड़का
बुध्या पागल – एक मोटा तगड़ा आदमी जो पागल था

मेरे विचार 

‘पक्या और उसका गैंग’ साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित गंगाधर गाडगील के मराठी बाल उपन्यास ‘पक्याची गैंग’ का हिंदी अनुवाद है। पक्याची गैंग 1985 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। इसके हिंदी अनुवाद का पहला संस्करण 2007 में प्रकाशित हुआ था। 

उपन्यास का अनुवाद माधवी देशपांडे द्वारा किया गया है। अनुवाद ठीक हुआ है। 

स्कूल से मिली छुट्टी के दौरान कई बार बच्चों के पास करने के लिए नहीं होता है। चूँकि खाली समय काफी होता है तो कई लेखकों ने इस दौरान अपने बाल किरदारों से कई रोमांचक कारनामें करवाएँ हैं।  इस उपन्यास में भी मुख्य किरदार ऐसे ही एक कारनामें को करते दिखते हैं। 

उपन्यास के केंद्र में पक्या और उसके दोस्त हैं जो कि छुट्टी बिताने मुंबई से पक्या के मामा के घर आए हुए हैं। इन्हीं को पक्या का गैंग कहा गया है। इस गैंग में पक्या के दोस्त विजय उर्फ फैटी, उसका कबूतर गट्टू , काउबॉय सुरेश, बिट्टू और पक्या का कुत्ता खंड्या शामिल हैं। यह बच्चा पार्टी घर में जब बोर हो रही होती है तो पक्या इन्हें समंदर किनारे जाकर घूमने का आइडिया देता है। पक्या का एक दोस्त हिन्या है जो कि एक मछुआरे का पुत्र है और उस जगह का स्थानीय निवासी है। पक्या उसकी नाव में बैठकर मछली पकड़ने की योजना बना रहा होता है कि इनका सामना एक तेज रफ्तार गाड़ी से होता है। कुछ ऐसा हो जाता है कि ये गाड़ी इस बच्चा पार्टी की उत्सुकता का केंद्र बन जाती है और इस गाड़ी की ढूँढ में निकली बच्चा पार्टी रोमांचकारी अनुभवों से दो चार होती है। 

उपन्यास तीन अध्यायों में विभाजित है और कई फुल पेज चित्रों के माध्यम से उपन्यास के मुख्य दृश्यों को दर्शाया गया है। पक्या और उसके साथ एक दूसरे की टाँग खीचने में माहिर हैं और कई बार इनके बीच के संवाद हास्य पैदा करते हैं। खंड्या पक्या का कुत्ता है जिसके बारे में उसका विचार है कि वह तेज तर्रार नहीं है। खंड्या की हरकतें भी कई बार हास्य पैदा करती हैं और कई जरूरी मोड़ों पर वह बच्चों की मदद भी करता है। खंड्या का किरदार मुझे विशेष तौर पर पसंद आया। 

देहाती इलाकों में किस तरह से वहाँ के निवासियों के अंधविश्वास का फायदा उठाया जाता है यह भी इधर दिखता है। 

कथानक की बात की जाए तो चूँकि यह मूलतः 1985 में प्रकाशित हुआ था तो इसमें जो चीज है वह व्यक्ति इतनी बार पढ़ या देख  चुका है कि अगर उसे किसी नए पन की तलाश है तो शायद उसे निराशा मिले। उपन्यास के किरदार रोचक हैं लेकिन कथानक में और घुमाव होते तो बेहतर रहता। ऐसा नहीं है कि उपन्यास बुरा है लेकिन बच्चों की छुट्टियाँ और उन छुट्टियों में होते रोमांचक कारनामों पर इतना लिखा जा चुका है कि यह उससे अलग कुछ पाठकों को नहीं देता है। फिर कथानक में अगर विस्तार होता और कुछ घुमाव अधिक होते तो कथानक और रोमांचक बन सकता था। अभी इसमें घुमाव इतने नहीं हैं। इसके साथ ही कहानी में दो जीव थे। एक पक्या का कुत्ता खंड्या और एक फैटी का कबूतर गट्टू। जहाँ खंड्या के करने के लिए काफी कुछ था उधर गट्टु के लिए उतना नहीं था। अगर होता तो मज़ा आता। गट्टू के लिए भी लेखक कुछ सोचते तो बेहतर होता। 

घुमाव के अतिरिक्त एक और चीज थी जो मुझे खली। कथानक की शुरुआत में एक गाड़ी तेज रफ्तार से जा रही होती है। इसी गाड़ी का पीछा करके हमारे नायक इस रोमांचक अनुभव से गुजरते हैं। यह गाड़ी इतनी तेजी से क्यों जा रही थी? इसका कारण उपन्यास में आखिर तक नहीं मिलता है। अगर किसी विशेष कारण से कार की स्पीड बढ़ाई गई होती तो बेहतर रहता। क्योंकि अभी कार वाले जो करते हैं वो करने के लिए तेज गाड़ी भगाने की जरूरत नहीं थी। 

इसके अतिरिक्त इक्का दुक्का वर्तनी की गलतियाँ उपन्यास में दिखी लेकिन वो इतनी अधिक नहीं थीं कि परेशानी करें। 

अंत में यही कहूँगा कि रोचक किरदारों को लेकर लिखा गया यह एक साधारण उपन्यास है। किरदारों के लिए उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है। उनके बीच की बातचीत आपका मनोरंजन करने में सफल होती है।  खंड्या मुझे विशेष तौर पर पसंद आया। 

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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