रॉयल बंगाल रहस्य – सत्यजित राय | मुक्ति गोस्वामी | रेमाधव प्रकाशन

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 119 | प्रकाशन: रेमाधव प्रकाशन | शृंखला: फेलूदा

पुस्तक लिंक: अमेज़न 

कहानी 

तोपशे की गर्मियों की छुट्टियाँ चल रहीं थी। फेलूदा भी हाल में एक मामला निपटा कर इन दिनों खाली बैठा हुआ था। ऐसे में जब लालमोहन गांगुली उर्फ जटायु ने उन्हें अपने साथ जंगल की एक यात्रा आने के लिए कहा तो हामी भर दी। उन लोगों को भूटान सीमा के निकट रहने वाले महीतोष सिंहराय ने बुलाया था। 

वो क्या जानते थे एक और रोमांचक अनुभव वहाँ उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। 

आखिर कौन थे ये महितोष सिंघराय? उन्होंने क्यों लालमोहन गांगुली और फेलूदा को अपने पास बुलाया था?

वहाँ उनके साथ ऐसा क्या हुआ?

मुख्य किरदार 

प्रदोष मित्र उर्फ फेलूदा – एक प्राइवेट डिटेक्टिव 
तपेश रंजन मित्र उर्फ  तोपशे – फेलूदा का छोटा भाई
लालमोहन गांगुली उर्फ जटायु – एक रहस्यकथा लेखक जो फेलूदा और तोपशे का दोस्त था
महीतोष सिंघराय – एक शिकारी और लेखक
देवतोष सिंह राय – महीतोष के भाई
शशांक सन्याल – महीतोष के दोस्त
तड़ित सेनगुप्ता – महीतोष के सचिव
मिस्टर विश्वास – पुलिस अफसर
माधवलाल – एक शिकारी

विचार 

‘रॉयल बंगाल रहस्य’ सत्यजित राय के बांग्ला उपन्यास का हिंदी अनुवाद है। यह उपन्यास बांग्ला में प्रथम बार 1974 में प्रकाशित हुआ था। उपन्यास का अनुवाद मुक्ति गोसवामी द्वारा किया गया है और रेमाधव प्रकाशन द्वारा यह प्रकाशित किया गया है। 

यह मूलतः एक रहस्य कथा है जिसके केंद्र में एक पहेली और उसका हल होता है। 

उपन्यास की शुरुआत इसी पहेली से होती है जहाँ तोपशे बताता है कि उसे पहेली से शुरुआत करने का  सुझाव फेलूदा ने ही दिया है । इसके पश्चात कहानी की शुरुआत होती है जिसमें पाठक जानता है कि कैसे लाल मोहन गांगुली उन्हें महीतोष सिंहराय के आमंत्रण के विषय में बताता है और यह तिकड़ी वहाँ के लिए निकल लेती है। 

महीतोष सिंह राय एक जमींदार परिवार से आता है और एक नामी शिकारी और शिकार लेखक है। इन दिनों वह अपने परिवार के इतिहास को लिखना चाहता है और उसी दौरान इस पहेली से उसका वास्ता पड़ता है। उसका मानना है कि इस पहेली में उनके पारिवारिक खजाने का राज है जिसे उसके पूर्वज ने छुपा दिया है। अब फेलूदा को इस पहेली का हल ढूँढना है।

फेलूदा इस पहेली का हल कैसे ढूँढता है? इस दौरान महीतोष राय के घर में क्या-क्या घटित होता है? इस पहेली का अर्थ ढूँढने के साथ साथ और जो राज उजागर होते हैं वह कहानी बनते हैं। 

पहेली घुमावदार है और उसका अर्थ का पता लगाना आसान नहीं है। कहानी में पहेली का रहस्य तो महत्वपूर्ण ही है लेकिन चूँकि घटनाक्रम जंगल के निकट घटित होता है और नरभक्षी का होना भी यहाँ रोमांच पैदा करता है। साथ ही महीतोष के घर में  भी षड्यन्त्र चल रहा होता है जो कि उपन्यास में रोमांच बढ़ा देता है।

फेलूदा के उपन्यासों में लाल मोहन गांगुली का विशेष महत्व रहता है। उनकी हरकतें हास्य पैदा करती हैं और इस उपन्यास में भी ऐसी कई परिस्थितियाँ आती है जहाँ लालमोहन गांगुली की हरकतें चेहरे पर हास्य पैदा कर देती हैं।  

उपन्यास में कई किरदार और हैं जो कि कथानक के अनुरूप हैं। यह किरदार संदिग्ध भी रहते हैं और इनकी हरकतें इतना संशय तो पैदा करती ही है।  जब व्यक्ति अमीर रहता है तो उसके कई चेहरे होते हैं और ऐसे अमीर परिवार के कई राज भी होते हैं। यह इधर भी दिखता है। शशांक सानयाल, तड़ित सेन गुप्ता, महीतोष सिंहराय और देवतोष सिंह राय ऐसे किरदार हैं जो जैसे हैं वैसे दिखते नहीं हैं। 

अक्सर पुलिस वाले प्राइवेट डिटेक्टिव को अपने प्रतिद्वंदी के तौर पर देखते हैं और उन्हें अपने से कमतर मानते है। यह बात कई रचनाओं में दर्शाई गई है। विश्वास और प्रदोष के बीच का समीकरण भी ऐसा ही है। 

 उपन्यास के आठवें अध्याय में ऐसा प्रतीत हुआ कि कथानक का कुछ हिस्सा प्रकाशित नहीं हुआ है। उपन्यास में काला पहाड़ का एक प्रसंग है जिसके विषय में लालमोहन बाबू बात कर रहे होते हैं लेकिन उसका जिक्र उससे पहले उपन्यास में नहीं आया था। ऐसे में लगा कि उपन्यास में कुछ अधूरा रह गया है। इसके साथ साथ उपन्यास का रहस्य का एक हिस्सा संयोग से हमारे नायकों को मिलता है। वो किसी को अँधेरी रात में बात करते देख लेते है। यहाँ संयोग की जगह थोड़ा तहकीकात दर्शाई होती तो बेहतर होता। 

अंत में यही कहूँगा कि यह एक उपन्यास एक बार पढ़ा सकता है। अनुवाद का हिस्सा गायब न रहता तो पढ़ने में अधिक मज़ा आता। उसके चलते अभी काला पहाड़ के बारे में केवल कयास ही लगाया जा सकता है।   

पुस्तक लिंक: अमेज़न 

यह भी पढ़ें


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *