संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 134 | प्रकाशन: नीलम जासूस कार्यालय
किताब लिंक: अमेज़न
कहानी
अंतर्राष्ट्रीय ठग जगत का पीछा करते हुए राजेश अदन तक पहुँच चुके थे। उन्होंने ठान लिया था कि कुछ भी करके जगत को हिरासत में लेना ही था।
जगत ने जब राजेश को अदन में देखा तो उसे एक खुराफात सूझी।
जगत की खुराफात से परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बदली की राजेश और जगत ने खुद को विक्टर द्वीप में मुसीबतों से घिरा पाया।
जगत ने राजेश के साथ क्या खुराफात की?
क्या राजेश जगत को पकड़ पाया?
मुख्य किरदार
हसन मिर्जा – अदन के सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस
सुल्तान बिन बेग – अदन का एक रईस
डिसूजा एलिसन – पुर्तगाली जहाज के कप्तान
नीना – एक पुर्तगाली जासूस
फरीदी मसीही – विक्टर द्वीप का नेता
गोमेश – पुर्तगाली जासूस
मेरे विचार
अगर कोई मुझसे पूछे की एक उपन्यास में कथानक के अलावा क्या महत्वपूर्ण होता है तो मेरा कहना होगा कि कथानक के अलावा एक उपन्यास में उसका शीर्षक और उसका आवरण चित्र भी काफी मायने रखते हैं। यह दोनों चीजें ऐसी हैं जिनसे पाठक का सबसे पहले पाला पड़ता है।वहीं यही वह चीजें होती हैं जिनको लेकर पाठक उपन्यास के प्रति अपनी धारणा बनाता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि उपन्यास का शीर्षक और उपन्यास का आवरण चित्र आकर्षक हो। प्रकाशक जानते हैं कि अगर उपन्यास का शीर्षक और आवरण आकर्षक होगा तो पाठक उपन्यास पर ठहरेगा। वह उपन्यास को उठाकर पलटेगा और आवरण के पृष्ठ भाग में लिखे उपन्यास के विवरण से वह प्रभावित हुआ तो उसे खरीदने का मन बनाएगा। यह प्रक्रिया उपन्यास की खरीद में तब भी लागू थी जब पाठक उपन्यासों को दुकानों में जाकर खरीदते थे और अब भी लागू है जब उपन्यास को ऑनलाइन विक्रेताओं के माध्यम से लिया जाता है। मैं कई बार अमेज़न में किताबें आवरण और उनके बारे में लिखे विवरण को देखकर ले चुका हूँ।
लेकिन कई बार इस आकर्षक नाम और आवरण चित्र की चाह के चलते जब प्रकाशक उपन्यास का ऐसा नाम रख देते हैं जिसका उसके कथानक से कोई लेना नहीं होता है या होता भी है तो वह केवल शीर्षक ठीक साबित करने के लिए की गयी खानापूर्ति सरीखा होता है तो पाठकों को उपन्यास पढ़कर एक तरह की निराशा होना स्वाभाविक है। यही चीज आवरण पर भी लागू होती है। ऐसे में उपन्यास अगर अच्छा भी हो लेकिन चूँकि वह पाठक की अपेक्षानुरूप नहीं निकलता है तो वह पाठक पर वह प्रभाव नहीं छोड़ पाता है जो कि वह तब छोड़ सकता था जबकि शीर्षक या आवरण कथानक के अनुरूप होता।
यहाँ यह सब मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि प्रस्तुत उपन्यास शैतान की घाटी एक ऐसा ही उपन्यास है जिसका शीर्षक आकर्षक जरूर है लेकिन वह कथानक से न्याय नहीं करता है। शैतान की घाटी नाम जब मैंने सुना था तो मैंने सोचा था कि जगत राजेश शृंखला का यह उपन्यास शैतान की घाटी पर केंद्रित होगा। या फिर शैतान की घाटी में उपन्यास का काफी घटनाक्रम घटित होगा। मुझे लगा था कि वह लोग वहाँ जाएंगे और उधर उन्हें जिन जिन मुसीबतों से दो चार होते हैं उपन्यास में उसका ब्योरा दिया होगा। लेकिन अफसोस ऐसा कुछ नहीं था। शैतान की घाटी के 134 पृष्ठों में फैले कथानक में से केवल पंद्रह सत्रह पृष्ठ का ही कथानक ही इस शैतान की घाटी में घटित होता है। वो विवरण भी ऐसा है कि अगर उधर शैतान की घाटी की बजाय कुछ और नाम भी होता तो वह चल जाता। उपन्यास पढ़कर साफ लगता है कि केवल आकर्षक नाम रखने के लिए ही उस जगह को शैतान की घाटी कहा था। ऐसे में अगर शीर्षक पढ़कर आप किसी तरह के कथानक के अपेक्षा लेकर इसे पढ़ेंगे तो निराश हो सकते हैं। मेरी राय होगी कि उपन्यास का कथानक आप पढ़ें तो शीर्षक भूल कर इसे पढ़ें।
उपन्यास की बात करूँ यह उपन्यास राजेश जगत शृंखला का उपन्यास है और उपन्यास पढ़ते हुए लगता है कि यह इन दोनों किरदारों के शुरुआती कारनामों में से एक है। उपन्यास के कथानक की बात करूँ तो इसका एक हिस्सा अदन में घटित होता है, एक हिस्सा जहाज पर और बाकी का आधा हिस्सा विक्टोरिया द्वीप में घटित होता है।
उपन्यास के केंद्र में राजेश और जगत हैं। राजेश जहाँ केन्द्रीय खुफिया विभाग का सीनियर जासूस है वहीं जगत एक अंतर्राष्ट्रीय ठग है। यह दोनों प्रतिद्वंदी जरूर है लेकिन ये दोनों एक दूसरे का सम्मान करते हैं। राजेश जगत के पीछे काफी समय से हैं और अब उसके पीछे पीछे अदन पहुँच चुके हैं। उनके बीच की यह भाग दौड़ ही कथानक को आगे बढ़ाती है। जहाँ उपन्यास में जगत की ठगी के कारनामें रोमांच पैदा करते हैं वहीं राजेश की सूझ बूझ और मानवीय प्रवृत्ति पाठक को प्रभावित करती है। राजेश और जगत के बीच का समीकरण भी रोचक है जो कि कथानक में रोचकता प्रदान करता है। कथानक में एक प्रसंग है जिसमें जगत राजेश की पत्नी तारा से पहली बार मिलने की घटना को याद करता है। यह प्रसंग भी रुचिकर बना है।
उपन्यास एक रोमांचकथा जरूर है लेकिन उपन्यास के माध्यम से लेखक जनप्रिय ओम प्रकाश शर्मा ने समाज के कई पहलुओं पर टिप्पणी पर की है। जगत के माध्यम से वह धार्मिक आडंबर और अंधविश्वास पर टिप्पणी करते दिखते हैं। वह यह दिखाते हैं कि कैसे धर्म की आड़ लेकर लोगों ने दूसरे लोगों का शोषण किया है वहीं यह भी दर्शाते हैं कि कैसे अंधविश्वास के कारण लोग अक्सर ठगे जाते हैं। राजेश के अदन पुलिस के साथ हुए अनुभव के माध्यम से वह पुलिस विभाग की कार्यशैली पर भी टिप्पणी करते हैं। कथानक का काफी हिस्सा विक्टोरिया द्वीप में घटित होता है। विक्टोरिया द्वीप पुर्तगाल का उपनिवेश रहा है। विक्टोरिया द्वीप में घटित घटनाक्रम के माध्यम से लेखक राजनीति और उपनिवेशवाद के ऊपर भी टिप्पणी करते हैं। यह सभी प्रसंग ऐसे हैं जो कि पाठक को सोचने के लिए काफी कुछ दे जाते हैं।
उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो शीर्षक के विषय में मैं ऊपर लिख ही चुका हूँ। शीर्षक कथानक के साथ न्याय नहीं करता है। अगर शैतान की घाटी को महत्व दिया जाता तो मेरे हिसाब से बेहतर होता। वहीं उपन्यास में जिस तरह राजेश राजनीतिक साजिश को रोकता है वह प्रसंग थोड़ा और रोमांचक होता तो अच्छा रहता। अभी वह बस निपटाया हुआ सा लगता है।
संस्करण की बात करूँ उपन्यास की साज सज्जा और प्रिन्ट क्वालिटी तो बेहतरीन हैं लेकिन उपन्यास में प्रूफ रीडिंग की काफी गलतियाँ हैं जो कि पढ़ते हुए खटकती हैं। साथ ही एक दो जगह वाक्य भी आधे अधूरे हैं जो कि पढ़ते हुए मज़ा को किरकिरा करते हैं क्योंकि समझ नहीं आता है कि लेखक कहना क्या चाहते हैं।
अंत में यही कहूँगा कि शैतान की घाटी पठनीय उपन्यास है। अगर जगत को उपन्यास की हाईलाइट कहूँ तो गलत नहीं होगा। वह जब जब उपन्यास में आता है तब तब उपन्यास में रोमांच बढ़ता चला जाता है। उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है।
उपन्यास के कुछ अंश जो मुझे पसंद आए
हे ईसा महान तूने कभी सोचा भी न होगा कि तेरे उपदेशों और तेरी कहानियों का आसरा लेकर तेरे सिद्धांतों का प्रचार करने वाले सेठों से टंखा प्राप्त पादरी गरम देशों में आकर गिरजों की बुनियाद डालेंगे। जीवन का महत्वपूर्ण भाग रसहीन केवल आस्था के सहारे बिताएँगे। परन्तु उन मूर्खों के साथ आएंगे सेठ, लूट-लूट कर कानूनों और न्याय सम्मत लूट लेकर कुछ दान के ठीकरे तेरे नाम पर भी देते रहेंगे।
राजनीति और मानवता दो परस्पर विरोधी संज्ञाएँ हैं। सुन रहे हो न! पशुता की चरम सीमा का नाम है राजनीति और धूर्तता के अवतार को कहा जाता है राजनीतिज्ञ!
किताब लिंक: अमेज़न
जगत सीरीज के शानदार उपन्यासों में से एक। ये धीमा नशा है। 2-4 उपन्यास साधारण ही लगेंगें। फिर जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के 'खून का रिश्ता', बेनकाब कातिल, मौत का बिजनेस, महाकाल वन की डकैत, ऑपरेशन कालभैरव जैसे 15-20 उपन्यास पढ़ लेने के बाद फिर उनके आकर्षण से निकलना मुश्किल है।
इन उपन्यासों को पढ़ने की कोशिश रहेगी…