किताब 12 दिसम्बर 2020 से 13 दिसम्बर 2020 के बीच पढ़ी गयी
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 64 | प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स | श्रृंखला: राजन इकबाल रिबोर्न #7
किताब लिंक: किंडल | पेपरबैक
पहला वाक्य:
उसने पलटकर देखा-
उसका जिस्म जमीन पर पड़ा हुआ था, आँखे और मुँह खुले हुए थे।
उसने पलटकर देखा-
उसका जिस्म जमीन पर पड़ा हुआ था, आँखे और मुँह खुले हुए थे।
कहानी:
सेन्ट्रल जेल में मौजूद एक मृत कैदी किशनलाल अचानक दोबारा ज़िंदा हो गया था। वह न केवल जिंदा हो गया था बल्कि वह जेल में कार्य करने वाले डॉक्टर चेतन का अपहरण करके अपने साथ ले गया था।
वहीं सेन्ट्रल जेल में अभी भी हालात ठीक नहीं थे। जेल में तांत्रिक मृत्युंजय की मृत्यु भी हो चुकी थीं। वहीं उसके भाई मेघदूत का कहना था कि वह मेघधूत नहीं बल्कि डॉक्टर चेतन था।
जेल प्रशासन में इन अजीब घटनाओं से हड़कंप मच गया था। किसी को मालूम नहीं था कि क्या सच है और क्या झूठ।
मरा हुआ किशनलाल कैसे जिंदा हो गया था? तांत्रिक मृत्युंजय की मृत्यु कैसे हुई?
क्या मेघदूत का कहना सच था? अगर वह चेतन था तो क्या डॉक्टर चेतन के शरीर में मेघदूत था? यह सब कैसे मुमकिन हो पाया?
इन लोगों का जेल से भागने के पीछे क्या मकसद था?
मुख्य किरदार:
राजन, इकबाल, शोभा,सलमा – सीक्रेट एजेंट्स
नफीस – इकबाल का दोस्त
नजमा – सलमा की चचेरी बहन
कीर्ति कुमार – सेन्ट्रल जेल का जेलर
चेतन अवस्थी – सेन्ट्रल जेल में मौजूद डॉक्टर
मृत्युंजय ,मेघदूत – दो तांत्रिक
लियाकत – नफीस का चाचा
निरंजन – मेघदूत, मृत्युंजय का मौसेरा भाई
ड्रेकुला – लियाकत का वफादार नौकर
बलबीर सिंह – चन्दननगर का एस पी
डॉक्टर कौशल – चेतन का सबसे अच्छा दोस्त
शैफाली – कौशल की पत्नी
विनीता – कौशल, चेतन और शैफाली की दोस्त
बेनिलाल – एक बुजुर्ग जिसने इक़बाल से लिफ्ट माँगी थी
मेरे विचार:
जिस्म बदलने वाले राजन इकबाल रिबोर्न श्रृंखला का सातवाँ और आखिरी भाग है। इस लघु-उपन्यास के पश्चात शुभानन्द ने राजन-इक़बाल के किरदारों को लेकर उपन्यास लिखना छोड़कर जावेद अमर जॉन श्रृंखला के उपन्यासों को लिखने पर ध्यान केन्द्रित करना शुरू कर दिया था। उन्होंने इसका कारण यह बताया कि क्योंकि इस दौरान एस सी बेदी दोबारा राजन इकबाल के उपन्यास लिखने लगे तो बेहतर यही था कि वह ही अपने किरदारों को लेकर लिखा करें।
प्रस्तुत किताब की बात करें तो इस लघु-उपन्यास की कहानी राजन इकबाल रिबोर्न श्रृंखला के दूसरे लघु-उपन्यास मौत का जादू से जुड़ी हुई है। इस उपन्यास के जो मुख्य खलनायक हैं, यानी मृत्युंजय और मेघदूत, वह मौत का जादू में सबसे पहले दिखाई दिए थे और उसी उपन्यास में उन्हें इकबाल द्वारा जेल में भेजा गया था। इस लघु-उपन्यास की कहानी इनके जेल से बाहर निकलने की ही कहानी है। अगर आपने मौत का जादू लघु-उपन्यास नहीं पढ़ा है तो मेरी सलाह तो यही होगी कि आप पहले मौत के जादू लघु-उपन्यास को पढ़ें और फिर इसे पढ़े। अगर आप ऐसा करते हैं तो जिस्म बदलने वाले का लुत्फ़ आप अच्छे तरह से ले पाएंगे।
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वैसे तो यह लघु-उपन्यास मौत का जादू से जुड़ा हुआ है लेकिन एक मामले में यह उससे अलग भी है। जहाँ मौत का जादू में केवल इकबाल और नफीस ही इन तांत्रिकों से उलझे थे वहीं इस लघु-उपन्यास में राजन इकबाल सलमा और शोभा चारों से इन खलनायकों से दो दो हाथ करते हैं। लघु-उपन्यास में ड्रेकुला, नफीस और लियाकत खान की मौजूदगी भी है जो कि लघु-उपन्यास को और रोचक बना देती है।
इस लघु-उपन्यास की कहानी दो दिशाओं में चलती है। एक तरफ तो राजन और शोभा सेंट्रल जेल से डॉक्टर और कैदी किशनलाल के भागने की तहकीकात करते दिखते हैं। वहीं इकबाल, नफीस और सलमा जो कि द्योहर नाम की जगह में शादी में सम्मिलित होने जा रहे थे कई तरह के परालौकिक तत्वों से दो दो हाथ करते दिखाई देते हैं। कहानी में यह दोनों ट्रैक साथ साथ चलते हैं जो कि पाठक की रूचि कथानक में बनाकर रखते हैं।
एक तरफ तो पाठक को राजन की तहकीकात दिखती है जो कि यथार्थ से जुड़ी हुई है वहीं दूसरी तरफ इक़बाल और टीम के साथ होने वाले दृश्य जिसमें की हॉरर और परालौकिक तत्व मौजूद है। यह दोनों बातें सुनिश्चित करती हैं कि पाठक की रूचि कथानक में बनी रहे। किताब में मौजूद कुछ हॉरर एलिमेंट्स अच्छे हैं और रोमांच पैदा करते हैं।
जैसे जैसे कथानक आगे बढ़ता है पाठकों को पता लगता है कि जो हो रहा है क्यों हो रहा है। दोनों ट्रैक अंत के करीब आकर मिल जाते हैं। अंत तक पहुँचने से पहले कुछ घुमाव भी कहानी में आते हैं जो कि पाठकों के लिए अच्छे सरप्राइज हैं।
चूँकि यह राजन इकबाल श्रृंखला के उपन्यास हैं तो इस श्रृंखला के सभी तत्व इसमें मौजूद हैं। कथानक तेज भागता है। यहाँ हास्य उत्पन्न करने के लिए नफीस और इकबाल है जो कि हास्य का डबल डोज पाठकों को देते हैं। वहीं इधर राजन की ट्रेडमार्क भी है। अगर आप राजन-इकबाल श्रृंखला के उपन्यास पढ़ते हैं तो यह जानते होंगे कि कहानी में कुछ बातें ऐसी होती है जो कि केवल राजन को पता होती हैं। ऐसा ही इधर भी है। वह इन बातों को आखिर में बताकर सभी के प्रश्नों का उत्तर दे देता है।
किताब में कोई कमी तो मुझे नहीं लगी। हाँ एक जगह बस छोटी सी प्रूफ रीडिंग की गलती है। आखिर में गुफा से मृत्युंजय नफीस को लेकर गायब होता है लेकिन जब उधर राजन पहुँचता है तो यह बताया जाता है कि उधर उसे नफीस भी दिखता है। इस छोटी सी प्रूफ रीडिंग की गलती तो छोड़ दें तो उपन्यास मुझे पसंद आया। यह राजन इकबाल रिबोर्न श्रृंखला का यह अच्छा अंत है।
अंत मैं तो यही कहूँगा कि अगर आप राजन इकबाल श्रृंखला के शौक़ीन हैं तो आपको एक बार राजन इकबाल रिबोर्न श्रृंखला को भी एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। अब तो यह कॉम्बो के रूप में एक ही जिल्द में मौजूद भी है।
रेटिंग: 3/5
© विकास नैनवाल ‘अंजान’