डॉ मंजरी शुक्ला की पठनीय और शिक्षाप्रद बाल-कहानियों का संग्रह है ‘जादुई चश्में’

 संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 96 | प्रकाशन: सूरज पॉकेट बुक्स 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

‘जादुई चश्में’ लेखिका मंजरी शुक्ला का बाल कथा संग्रह है। सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुए इस संग्रह में उनकी चौदह कहानियों को संकलित किया गया है। यह कहानियाँ निम्न हैं:

संग्रह की पहली कहानी जादुई चश्मे प्रतापगढ़ नाम के राज्य की कहानी है। जादुई चश्मे के आने से प्रताप गढ़ का क्या होता है यह कहानी बनती है। 

कहानी रोचक है। अक्सर ऊँची जगहों पर मौजूद लोगो को चीजों का ऐसा रूप दिखाया जाता है कि वह वस्तुस्थिति से वाकिफ ही नहीं हो पाते हैं और इस कारण चाहते हुए भी भलाई का काम नहीं कर पाते हैं। बिना सोचे समझे किसी भी विश्वास करने का नतीजा क्या निकलता है यह भी कहानी पढ़कर जाना जाता है। 

कहानी का अंत मुझे जरा जल्दी में खत्म हुआ लगा।जो कॉन्फ्लिक्ट था वो सरलता से सुलझ गया। अगर उसे सुलझाने को थोड़ा नाटकीयता दी जाती तो बेहतर होता। 

अजब-गजब अजूबे एक पीरियड की कहानी है जिसमें बच्चो के शर्मा सर उन्हें कुछ अनोखी जानकारी लाने को कहते हैं। बच्चे क्या जानकारी साझा करते हैं यह कहानी बनती है। यह एक रोचक कहानी है जिसमें लेखिका ने एक कहानी के माध्यम से कई रोचक बातें पाठकों के समक्ष रखी हैं।

क्रिसमस संग्रह की तीसरी कहानी है। यह जॉर्ज और उसकी दादी और उनकी जिन्दगी में आये एक क्रिसमस की कहानी है। 

जॉर्ज और उसकी दादी अपने बाग के फूल बेचकर बड़ी मुश्किल से ही अपना पालन पोषण कर पाते थे। ऐसे में जॉर्ज के लिए इस सर्दी में जरूरत होते भी नया कोट लेना एक नामुमकिन सी ही बात थी। पर इच्छाएँ कब किसके काबू आई हैं और जॉर्ज भी जब दुकान से बाहर झाँकते उस नीले कोट को देखता तो उसे पाने की इच्छा उसके मन में जाग ही जाती। क्या जॉर्ज की इच्छा क्रिसमस को पूरी हुई?

क्रिसमस के माध्यम से लेखिका एक ऐसे लड़के की कहानी कहती हैं जिसके पास भले ही धन दौलत न हो लेकिन एक बड़ा दिल जरूर है। यह बच्चा न केवल दूसरों का दुख समझता है बल्कि अपने पास जो है उसे भी साझा करने से हिचकता नहीं है। कहानी रोचक है और कर भला तो हो भला की सूक्ति को चरितार्थ होते हुए दर्शाती है।

संग्रह की अगली कहानी चांदी और जादूगर एक ऐसे अक्खड़ राजा चांदी सिंह की कहानी है जो कि अपने राजा होने के घमण्ड में सही और गलत का फर्क ही भूल गया था। चंद्रपुर के इस राजा को कैसे एक जादूगर सबक सिखाता है यही कहानी बनती है। कहानी अपने ओहदे का सही इस्तेमाल करना तो  हमें सिखाती ही है साथ में यह भी सिखाती है कि अगर अपराधी अपने किए पर पछताए तो उसे माफी भी दे देनी चाहिए।

चीची का पनीर संग्रह की अगली कहानी है। यह चीची चूहे की कहानी जिसका बहुत दिनो से पनीर खाने का मन था लेकिन जब उसे पनीर मिलता है तो उसके साथ क्या होता है यही कहानी बनती है। कई बार हम लोग यह समझते हैं कि हमारी खुशी किसी चीज को पाने में हैं लेकिन असल खुशी तो चीजों को साझा करने में होती है। यही चीज इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने समझाने की कोशिश की है। 

जन्मदिन मुबारक हो संग्रह की अगली कहानी है। चिंकी चींटी ने घर में जब बेसन के लड्डू बनते देखे तो उसका उन्हें खाने का मन करने लगा। वह कुछ भी करके लड्डू खाना चाहती थी। क्या वह खा पाई? यह सुंदर कहानी है जो कि मिल बाँटकर चीजों को खाने की शिक्षा देती है।

जीवन यापन के लिए जो चीजें चाहिए होती हैं उनमें से पानी भी बहुत ही जरूरी वस्तु होती है। पानी जीवन प्रदान करता है लेकिन पानी ही ऐसी चीज भी है जिसकी बर्बादी करते हुए लोग सोचते नहीं है। प्रस्तुत कहानी जादुई बर्तन पानी की बर्बादी को केंद्र में रखकर लिखी हुई है। बारह साल का राहुल स्कूल में होती पानी की बर्बादी को देखकर हमेशा दुखी होता था। कोई उसकी बात नहीं मानता था। यह कहानी राहुल के उस काम के विषय में है जो उसने स्कूल के बच्चों को पानी की बर्बादी रोकने के लिए किया? वह काम क्या था, उससे स्कूल को क्या फायदा हुआ और जादुई बर्तन का क्या मसला है यह तो आप कहानी पढ़कर ही जानिएगा। रोचक कहानी है।

अक्सर हम लोग किसी के पहनावे और उसकी शक्ल सूरत और उसके पहनावे को देखकर उसके प्रति एक धारणा बना लेते हैं।  धारणा बनाने का यह मापदण्ड कितना गलत हो सकता है यह संग्रह की अगली कहानी टिंकू की बाँसुरी में टिंकू को पता चलता है। जो जैसा दिखता हो वैसा वो हो भी ये जरूरी नहीं होता और आज के समय में बचाव ही इलाज से बेहतर होता है। यही शिक्षा यह कहानी दे जाती है। यह कहानी इसलिए भी जरूरी हो जाती है क्योंकि आजकल बच्चा चोरी की घटनाएँ बढ़ने लगी हैं और ऐसे में बच्चों का और सतर्क रहना और जरूरी हो गया है।

टॉफी संग्रह की अगली कहानी है। कहानी के केंद्र में बिंदिया है जिसका टॉफी खाने का मन तो करता था लेकिन पैसे होते हुए भी किराने वाला उसे टॉफी नहीं देता था। क्या उसकी इच्छी अधूरी ही रह गई या बिंदिया को टॉफी मिली? अगर टॉफी मिली तो कैसे? ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर कहानी देती है और बाल मन की मासूमियत को बाखूबी दर्शाती है।

संग्रह की अगली कहानी पीलू पीलू नाम की तितली की है जो अपने रंग से दुखी रहती है। अक्सर हम जैसे दिखते हैं उसे लेकर एक तरह की असंतोष की भावना हममें रहती है। कई बार हम भूल जाते हैं कि हम कैसे दिखते हैं इससे महत्वपूर्ण हमारा आचरण होता है। इसी बात को यह कहानी पीलू के माध्यम से दर्शाती है। सुंदर कहानी है। 

हर माँ बाप यही चाहता है कि उसके बेटा अच्छे से अच्छे विद्यालय में पढ़े और उसका नाम रोशन करे। लेकिन कई बार जब आर्थिक रूप से कमजोर घर से आने वाले बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं तो वह अपने घर, अपने इलाके और अपने अभिभावकों को लेकर एक तरह के कमतरी के एहसास से ग्रसित हो जाते हैं। अपने माता-पिता के साथ चलने फिरने में और उन्हें अपने ज्यादा पढ़े-लिखे और अमीर दोस्तों के माँ बाप के साथ मेल जोल करवाने में उन्हें शर्म का अहसास होता है। इस चीज को लेकर कई कहानियाँ लिखी हुई हैं और इस संग्रह की अगली कहानी माँ भी एक ऐसे ही बच्चे चिंटू की है जो कक्षा में तो प्रथम आया होता है लेकिन उसे अपनी माँ को अपने विद्यालय ले जाने में शर्म आ रही होती है। जब चिंटू की माँ उसके विद्यालय पहुँचती है तो उनके साथ क्या होता है और चिंटू की सोच कैसे बदलती है यही कहानी बनती है। ‘माँ’ शिक्षाप्रद कहानी है जो एक अच्छा संदेश बच्चों को प्रदान करती है। 

शरारती बंदर संग्रह की अगली कहानी है। यह मूलतः एक बाग के माली की कहानी है जो कि उन बंदरों से परेशान था जो उसके बाग के आम चुरा लेते थे। माली ने बंदरों को काबू करने की जो कोशिशें की थी और आखिर वह जिस तरह इन पर काबू पाता है वही इस कहानी का कथानक बनता है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि लेखिका ने इसे जरूरत से ज्यादा जल्दी खत्म किया है। अगर कहानी को और विस्तार देते और तहकीकात के तत्व में इसमें जोड़ते तो कहानी और रोचक और रोमांचक बन सकती थी। 

कहानी में एक प्रसंग है जिसमें एक किरदार बताता है कि उसने बंदरों का पीछा किया और उनका राज जाना लेकिन कहानी में ये करते हुए दिखता नहीं है। कहानी में तो बस यही दर्शाया जाता है कि उसे उन बंदरों को देखकर एक ख्याल आया था जिसके विषय में उसने अपने पिता माली को बताया था। तो यह एक प्लॉट होल भी कहानी में मौजूद है। 

कहानी एक बार पढ़ी जा सकती है। मेरी लेखिका से यही गुजारिश रहेगी कि वह इसे विस्तार दें क्योंकि इस प्लॉट को एक अच्छी रहस्यकथा बनाया जा सकता है।

सुरीला वृक्ष संग्रह की तेरहवीं कहानी है। अक्सर हमारे पास कोई हुनर होता है तो हम उसे दिखाने के लिए लालायित रहते हैं। हम भूल जाते हैं कि उस हुनर की कीमत वही जानेगा जिसे उसकी जरूरत होगी। यह कहानी भी ऐसे ही एक हुनरमंद पेड़ की है जो कि सुंदर गीत गाता था। वह अपने इस हुनर को दिखाने के लिए इतना लालायित था कि उसने वनदेवी से चलने-फिरने की शक्ति माँग ली। शक्ति प्राप्त करके पेड़ को जो पता चला वही कहानी बनती है। कहानी यह सीख दे जाती है कि हमें अपनी अहमियत समझनी चाहिए और बिन बुलाए कहीं जाने से बचना चाहिए। मैं तो यह कहूँगा कि इस कहानी को बच्चों के साथ साथ उन लेखकों को पढ़ना चाहिए जो कि अपने लेखन को दर्शाने के लिए इतने लालायित रहते हैं कि बात कोई भी हो वो अपने लेखन की ही बात करने लगते हैं। मुझे लगता है इससे उन्हें कुछ सीख मिलेगी।

सुरीली मैना और मोती इस संग्रह की आखिरी कहानी है। यह एक ऐसी सुरीली मैना की कहानी जो कि चाँदीपुर देश के नजदीक मौजूद एक जंगल में रहती थी। वह जब भी गाती थी तो उसके मुख से एक मोती निकलता था। जब चाँदीपुर देश के राजा चंद्रसेन जंगल पहुँचे तो उन्हें यह छोटी सी मैना दिखी और इसे महल ले जाने की इच्छा उनके मन में जाग गई। इस इच्छा के कारण उन्होंने जो किया और फिर जंगल में जो हुआ वही कहानी बनता है।

अक्सर मनुष्य की यह फितरत होती है कि उसे जो चीज अच्छी लगती है वह उसे अपने पास रखना चाहता है। कई बार वह यह देखना भी भूल जाता है कि जिसे वह अपने पास रखना चाहता है उसकी इच्छा क्या है। यह चीज कितनी गलत होती है यही यह कहानी शिक्षा देती है।

*****

तो यह थी संग्रह में मौजूद कहानियाँ। अंत में यही कहूँगा कि जादूई चश्में में संकलित कहानियाँ सात से दस साल के बच्चों को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं। लेखिका अनावश्यक रूप से इन्हे जटिल बनाने से बची हैं। इनके कथानक सरल हैं और हर कहानी कोई न कोई सीख बच्चों को देती है। सही गलत का भान तो यह करवाती ही हैं साथ ही क्षमा की महत्ता भी दर्शाती हैं। अगर आपके घर में इस उम्र के बच्चे हैं तो आप उन्हें इन कहानियों को पढ़ने के लिए दे सकते हैं या हर रोज एक कहानी पढ़कर उन्हें सुना सकते हैं। 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

यह भी पढ़ें


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

7 Comments on “डॉ मंजरी शुक्ला की पठनीय और शिक्षाप्रद बाल-कहानियों का संग्रह है ‘जादुई चश्में’”

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-10-2022) को "भोली कलियों का कोमल मन मुस्काए" (चर्चा-अंक-4569) पर भी होगी।

    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-10-2022) को "भोली कलियों का कोमल मन मुस्काए" (चर्चा-अंक-4569) पर भी होगी।

    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    1. चर्चाअंक में पोस्ट को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।

  3. हमने भी पढ़ी है, अच्छी किताब है

    1. वाह!! जानकर अच्छा लगा नृपेन्द्र भाई…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *