शृंखला के आगे आने वाले कॉमिकों के प्रति उत्सुकता जगाने में कामयाब होता है ‘अमावस अलाइव’ | फिक्शन कॉमिक्स | आशुतोष सिंह राजपूत

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 24 | प्रकाशन: फिक्शन कॉमिक्स | शृंखला: अमावस #3

टीम:

लेखक: आशुतोष सिंह राजपूत | चित्रांकन: बिकास सतपती | कलर्स: बसंत पंडा | कैलीग्राफी: हरीश दास मानिकपुरी | सह-संपादक: अनुराग कुमार सिंह | संपादक: सुशांत पंडा

कॉमिक बुक लिंक: फिक्शन कॉमिक्स

अमावस अलाइव | फिक्शन कॉमिक्स | आशुतोष सिंह राजपूत

कहानी 

वह शोधार्थियों का एक समूह था जो कि भैरोंगढ़ रात के उस वक्त मौजूद था।  

इस समूह में थे प्रोफेसर अमृतराज के असिस्टेंट अमोल खांडेकर और बिलासा सिटी के अंकुश,  दिव्या शर्मा, समीर और अमृता। वह एक खास मकसद के चलते भैरोंगढ़ आए थे।

उन्हें क्या मालूम था कि उनका यह आना उस सोई हुई शक्ति अमावस को वापस जगा देगा।

ये शोधार्थी क्यों भैरोंगढ़ आए थे?
आखिर अमावस कैसे दोबारा जाग उठा?
अमावस के जागने के कारण इन शोधार्थियों की जिंदगी में क्या बदलाव आया?

मेरे विचार

अमावस अलाइव फिक्शन कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित अमावस शृंखला का तीसरा कॉमिक बुक है। यह 24 पृष्ठों का कॉमिक है जिसकी शुरुआत किरदारों के परिचय से होती है और पाठको को नेक्टर, ब्लू आई, ब्लैक मास्क, ब्रेन और इन्स्पेक्टर शालिनी  शेखावत इत्यादि के विषय में बताया जाता है। यह सभी लोग बिलासा सिटी के रक्षक हैं और चूँकि शृंखला की आगे आने वाली कॉमिक में ये आएंगे तो इनका ऐसे जिक्र करना अच्छा भी है। इसके साथ ही एक पृष्ठ में अमावस शृंखला की अब तक की कहानी को संक्षिप्त रूप में बताया जाता है। साथ ही नेक्टर शृंखला के कॉमिक कुलावा का जिक्र भी आता है जिसके बदौलत इस कहानी की भूमिका बनती है। मैंने क्योंकि कुलावा नहीं पढ़ी थी तो मैं अब उसे जरूर पढ़ना चाहूँगा। 

अमावस अलाइव की बात करें तो कहानी की शुरुआत यह बताने से की जाती है कि ब्रेन को कुछ विशेष प्रकार की ऊर्जाओं का संकेत मिला है जिसकी तलाश में वह शोधार्थियों की टीम को भैरोगढ़ भेजते हैं। यह टीम गाँव वालों के अंधिविश्वास को धता बताते हुए उस गुफा के नजदीक रात गुजारने का फैसला करती है जहाँ कभी अमावस ने अपनी तंत्र साधना की थी और जहाँ  साध्वी नामक 200 वर्षीय तांत्रिक का होना बताया जाता है।  इस टीम के सदस्यों के साथ यहाँ जो होता है और उस घटना का बिलासा सिटी पर जो असर पड़ता है वही इस कॉमिक बुक की कहानी बनती है। 

कहानी सीधी सादी है। स्लेशर मूवीज का एक कॉन्सेप्ट होता है जिसमें कुछ जवान लोग एक ऐसी जगह जाते हैं जिसे भूतहा कहा जाता है। यहाँ इन जवान लोगों में से कोई एक जोड़ा बेवकूफी करता है और फिर शैतान जाग उठता है और कत्लों का सिलसिला शुरू हो जाता है। प्रस्तुत कॉमिक की कहानी भी यही है। कहानी में कुछ ऐसा होता है कि अमावस जागृत हो जाता है और टीम को जान के लाले पड़ जाते हैं। लेखक ने कहानी में पाठकों को एक ट्विस्ट भी देने की कोशिश की है परंतु अगर आप हॉरर पढ़ते आए हैं तो ऐसे ट्विस्ट की आपको अपेक्षा रहती ही है तो व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए इतना शॉकिंग नहीं था। 

हाँ, यह तीसरी कॉमिक इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें उस गाँव का नाम दिया हुआ है जहाँ अमावस अपने क्रियाकलाप करता था। इससे पहले उस गाँव का नाम ही नहीं दिया रहता था। वहीं अब इस कॉमिक से अमावस भैरोगढ गाँव से निकलकर बिलासा सिटी आ गया है और यहाँ वो अपने गुल खिलाने भी लगा हैं। अब यह देखना है कि बिलासा के रक्षक इस नयी मुसीबत से कैसे पीछा छुड़ाते हैं। कॉमिक के अंत में अमावस एक सुपर हीरो को अपने कब्जे में लेने में कामयाब होता भी दिखता है जो कि यह जानने की इच्छा जगाता है कि अगली कॉमिक में क्या होने वाला है। ऐसे में यह भाग अगले भागों के प्रति उत्सुकता जगाने का कार्य करती है। 

कहानी की कमी की बात करूँ तो जिस तरह से अमावस जागृत हुआ वो मुझे थोड़ा चलती चाल में किया हुआ लगा। अभी किरदार एक मंत्र पढ़ते हैं जिससे वो जागृत हो जाता है लेकिन तुक्के से उनका ऐसा मंत्र पढ़ना खलता है। वैसे भी वह आमवस की शक्ति पाने वाला मंत्र रहता है तो उससे अमावस कैसे जागृत हुआ यह साफ नहीं होता है।  इसमें साजिश वाला एंगल लेखक जोड़ते यानी कोई सजिशन उनसे एक विशेष मंत्र कहलवाता तो बेहतर होता।  

कॉमिक में जब अमावस जागृत होता है तो कुछ कंकाल धरती फाड़कर बाहर निकलते हैं। हॉरर में यह सीक्वेंस रोचक लगता है। इधर भी सीक्वेंस अच्छा बना है। लेकिन यहाँ यह बात क्लियर करनी थी कि ये कंकाल किसके थे? हिंदुओं में तो मृतकों को जलाने का रिवाज है। ऐसे में उनके कंकाल तो आने से रहे। क्या यह लोग कबीलेवासी थे जिन्हें दफनाया जाता था? ऐसा भी नहीं लगता क्योंकि जो कंकाल निकलते हैं उन्होंने पैंट बनियान इत्यादि पहने रहते हैं।  

 पश्चिम की बात की जाए तो उधर चूँकि मृतकों को दफनाए जाने का रिवाज होता है तो उधर अक्सर कंकाल जमीन फाड़ कर निकल जाते हैं क्योंकि माना जाता है कि हो सकता है वो जमीन कब्रगाह रही हो। ऐसे में ये सीक्वेंस अटपटा नहीं लगता है। पर इधर ये सीक्वेंस मुझे थोड़ा अटपटा लगा। 

इन लाशों के उधर गड़े होने का कोई कारण लेखक देते तो बेहतर होता। फिर वह कारण ब्रिजवान या जयराम दे सकते थे। है तो यह छोटी सी बात लेकिन चूँकि खटकी तो इधर लिख दी। 

इसके साथ ही कॉमिक की शुरुआत में कुछ परग्रही लोगों के बीच का युद्ध दिखलाया गया है। एक कन्या है जिसका ताबीज एक दानव काटता है। इस ताबीज के कटने का क्या महत्व है यह पता नहीं लगता है।  यह किरदार अमावस की इस शृंखला में फिट नहीं बैठते हैं। हो सकता है नेक्टर ब्लू आई सीरीज के कॉमिक में ये हो। कहा भी गया है कि कुलावा में इनका जिक्र है लेकिन यहाँ पर ये पैनल कन्फ्यूजन ही पैदा करते हैं। यह एक पृष्ठ ऐसा है जो इधर न भी होता तो कहानी में कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि संक्षिप्त कहानी दी ही है। अब चूँकि पृष्ठ दिया है तो इस कन्या और दानव की पहचान खटकती है। हो सकता है आगे आने वाले कॉमिक में इनके विषय में विस्तार से बताया गया हो लेकिन अभी तो यह पाठक के मन में संशय पैदा करने का काम ही करते हैं। 

आर्टवर्क की बात करूँ तो आर्ट वर्क अच्छा है और कहानी को कॉम्प्लीमेंट करता है। हाँ, किरदारों के परिचय में सभी मुख्य किरदारों (ब्रेन को छोड़कर जो कि गेहुएँ रंग के थे जब जीवित थे) का रंग गोरा ही दिया है। एक आध साँवले भी होते तो बेहतर होता। ऐसी उम्मीद मेरी इसलिए भी रहती है क्योंकि जहाँ से फिक्शन कॉमिक्स के क्रिएटिव्स आते हैं यानी छत्तीसगढ़ से और जहाँ हमारे किरदार रहते हैं बिलासा सिटी (जो कि बिलासपुर पर ही आधारित लगती है) उधर किरदारों के गेहुएँ या साँवले होने की सम्भावना ज्यादा है। उम्मीद है प्रकाशन जल्द ही कुछ साँवले या गेहुएँ रंग के सुपरहीरोज और किरदार लाएगा। 

अंत में यही कहूँगा कि अमावस अलाइव कॉमिक शृंखला के आगे वाली कॉमिकों के प्रति उत्सुकता जगाने का कार्य बाखूबी करती है। अगला भाग मैं जल्द ही पढ़ना चाहूँगा। 

कॉमिक बुक लिंक: फिक्शन कॉमिक्स

यह भी पढ़ें


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *