संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 382 | प्रकाशक: रवि पॉकेट बुक्स
कहानी
13 वर्षीय अमित ने जब से होश संभाला था तब से अँधेरे से उसे डर लगता था।
अँधेरा होते ही वह जहाँ कहीं भी होता वह बदसूरत चुड़ैल उसके पास आ जाती जिससे अमित के कस बल ढीले पड़ जाते। तवे जैसा काला जिस्म, उधड़ी खाल, लंबे लंबे दाँत और नाखूनों वाली उस चुड़ैल ने अमित का जीना दुश्वार कर दिया था।
आखिर कौन थी ये चुड़ैल?
ये अँधेरा होते ही अमित के पास क्यों आ जाती थी?
क्या अमित इससे निजाद पा पाया?
मुख्य किरदार
अमित – एक तेरह वर्षीय बालक
रजनी – अमित के साथ पढ़ने वाली लड़की जो उसे पसंद थी
टीना – अमित की छोटी बहन
केदारनाथ – अमित के पिता
सावित्री देवी – अमित की मां
सुमित – अमित का बड़ा भाई
शावरा – वह चुड़ैल जो अमित के पीछे पड़ी थी
जगन की अम्मा – एक वृद्धा जो अमित के पड़ोस में रहती थी
विमल खन्ना – पुलिस इंस्पेकटर
प्रिया – टीना की दोस्त और पड़ोसी
सुशील भार्गव – प्रिया के पिताजी
मेरे विचार
राजभारती का उपन्यास पढ़े काफी समय बीत गया था। राजभारती उन गिने चुने हिंदी लेखकों में से हैं जिन्होंने हॉरर या यूँ कहें तंत्र मंत्र और पारलौकिक साहित्य भी काफी लिखा है। अब चूँकि मुझे साहित्य की यह विधा पसंद आती है तो मैं इनके उपन्यास लेता रहता हूँ और कुछ उपन्यास इकट्ठा हो चुके हैं। लेकिन पढ़ना इतना नियमित नहीं हो पता है। इससे पूर्व राज भारती का उपन्यास 2022 की फरवरी में
पराई आग पढ़ा था जो कि इंद्रजीत शृंखला का उपन्यास था। वहीं अगर उनके पारलौकिक साहित्य की बात की जाए तो वह दिसंबर 2019 में
लाल घाट का प्रेत पढ़ा था। यानी लगभग चार साल से उनका पारलौकिक साहित्य नहीं पढ़ा था। खैर, चूँकि उपन्यास ‘चुड़ैल’ मेरे पास पहले से मौजूद था तो सोचा इस बार इसे ही पढ़ लेते हैं। ‘चुड़ैल’ की बात करूँ तो यह राज भारती द्वारा लिखित और रवि पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित उपन्यास है।
उपन्यास के केंद्र में अमित है। अमित उपन्यास की शुरुआत में 13 साल का बालक रहता है और उसके जीवन के चार से पाँच साल का ब्यौरा इस उपन्यास में मिलता है। 382 पृष्ठ के इस उपन्यास की शुरुआत यह बताने से होती है कि कैसे उसे अँधेरे से डर लगता है और अँधेरा होते ही एक बदसूरत गंजी चुड़ैल उसके सामने आ जाती है। फिर इसके पश्चात जो कुछ उसके साथ होता है और पाँच साल में उसके जीवन में जो जो बदलाव आते हैं वही उपन्यास का कथानक बनता है।
उपन्यास में एक शावरा नामक चुड़ैल भी है। यही वह शक्ति है जो कि अमित को परेशान कर रही है। यह पारलौकिक शक्तियों की स्वामिनी है। इसके विषय में उपन्यास में इतना ही पता लगता है कि हजारों वर्षों से यह रह रही है। समय समय पर यह अलग अलग शरीरों में प्रवेश करती है और लोगों द्वारा पूजी भी जाती है। पर ज्यादा कुछ जानकारी उपन्यास में नहीं मिलती है। हाँ, उपन्यास के अंत में यह जरूर बताया गया है कि शावरा नामक उपन्यास में इसकी अधिक जानकारी मिलेगी।
राज भारती के उपन्यासों की बात करूँ तो मेरे लिए यह हमेशा हिट या मिस वाले होते हैं। कोई उपन्यास अच्छा निकल आता है और कोई कमजोर। ‘चुड़ैल’ को मैं कमजोर की श्रेणी में ही रखूँगा। चुड़ैल का कान्सेप्ट तो मुझे काफी पसंद आया। जब आपको पता लगता है कि कोई है जिसने जब से होश संभाला है तब से उसे एक चुड़ैल दिखती है तो आप उसकी कहानी को जानने को उत्सुक हो ही जाते हो। कई सवाल आपके मन में उठते हैं। जैसे कि इस किशोर को ही यह चुड़ैल क्यों दिखती है? वह अँधेरे में ही क्यों दिखती है? इस चुड़ैल का मकसद क्या है? वह इस किशोर से क्या चाहती है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिसके उत्तर आप जानने को आतुर हो जाते हो और एक अच्छे रोमांचक कथानक की उम्मीद लगा लेते हो पर अफसोस की इस उपन्यास में यह उम्मीद पूरी नहीं होती है।
उपन्यास की कमजोरी की बात करूँ तो इसकी सबसे बड़ी कमजोरी वही है जिससे राज भारती या उनके समय के लेखक पीड़ित थे। यह कमजोरी कहानी के बजाए पृष्ठ संख्या पर ध्यान देने की कमजोरी थी। प्रस्तुत उपन्यास 382 पृष्ठ का है लेकिन मुझे लगता है कि इसे आसानी से 200-250 पृष्ठ में समेटा जा सकता था। लेखक पृष्ठ बढ़ाने के चक्कर में कहानी की दिशा इधर उधर ले जाते हैं और कहानी से सारा रोमांच उस तरह चूस लेते हैं जैसे शावरा, जो कि उपन्यास की चुड़ैल का नाम है, ने अमित की ज़िंदगी से सुख और चैन चूसा था।
कहानी की शुरुआत अच्छी होती है लेकिन फिर चीजें भटकने लगती है। इस कारण कहानी पाठक पर अपनी पकड़ बनाकर नहीं रख पाती है। कई अनुत्तरित प्रश्न भी कहानी में छूट जाते हैं। ऐसे में यह उपन्यास आपका वैसा मनोरंजन नहीं कर पाता है जिसकी उम्मीद आप उपन्यास के शुरुआत को पढ़कर लगा लेते हैं।
मसलन, सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि चुड़ैल ने अमित को कहा था कि वह उससे शरीर चाहती है। इतने वर्षों से वह इसका ही इंतजार कर रही होती है। पर फिर कहानी में जगन की अम्मा वाला प्रसंग आता है। चुड़ैल उसके शरीर में समा जाती है। इसके बाद वह किसी और से कहकर एक नया शरीर भी हासिल कर देती है। अब सोचने वाली बात ये है कि जब वो ये सब काम कर सकती थी तो पहले ही उसने ये काम क्यों नहीं कर दिया? अमित के पीछे क्यों पड़ी रही? वह नया शरीर हासिल करके अमित को रिझा सकती थी और जो कहानी के हिसाब से उसका मकसद था अमित को पाना उसे पूरा कर सकती थी।
उपन्यास में शावरा और उसकी जैसी शक्तियों द्वारा मनुष्यों के हाथ खाने का प्रसंग है। उपन्यास में ये भी बताया जाता है कि शावरा अमित से प्रेम करती थी और उसे पाना चाहती थी। ऐसे में सवाल उठता है कि वह उसके रिश्तेदारों को क्यों मारती है? इससे तो अमित उसे चाहने की जगह उससे नफ़रत करने लगेगा और यह काम वो करता भी है। इससे बेहतर तो ये होता है कि वो दूसरों के माध्यम से नया शरीर पाती और अमित को पाने के मकसद को प्राप्त करती। क्योंकि आखिर में भी उसने किया तो यही ही था।
इसके बाद कहानी में आगे जाकर ये बात कही जाती है कि शावरा के नाम से ये सब करने वाली कोई और थी क्योंकि शावरा तो मिट्टी में दफन थी। पर अब सवाल ये उठता है कि ये नयी शक्ति कहाँ से आयी। इसके विषय में पहले और बाद में कुछ बताया नहीं जाता है।
उपन्यास में एक प्रसंग आता है जब शावरा के शरीर को जमीन से आजाद किया जाता है। यह काम जिस तरह से होता है उसे सोचते हुए लगता है कि इसे ऐसा करना क्यों जरूरी थी? क्या जो शक्ति बाहर थी वो उसके शरीर को आजाद नहीं करवा सकती थी? अगर नहीं तो क्यों नहीं क्योंकि वो जगह अभिमंत्रित तो नहीं थी। ऐसे में अमित को लालच देकर ये काम करवाने का फायदा क्या? अपनी शक्तियों या साथियों की शक्तियों द्वारा यह काम करवाया जा सकता था। इस बिंदु पर कोई रोशनी डाली नहीं गई है।
उपन्यास में एक बार जिक्र आता है कि अमित प्रिया से अकेले मिलता है और फिर जब बाहर निकलता है तो उसे बड़ी प्यास लगती है। वह दही के कटोरे के कटोरे खा जाता है। उस पर यह असर क्यों होता है इस विषय पर भी कोई रोशनी नहीं डाली गयी है।
उपन्यास की लंबाई बढ़ाने हेतु कई प्रसंग इसमें जोड़े गए हैं। गुरुकुल वाला प्रसंग, पागल बाबा वाला प्रसंग, नोट वाला प्रसंग, सुमित की अपनी प्रेमिका से बेवफाई वाला प्रसंग इत्यादि। चीजें इतनी घूमती रहती हैं कि आप पढ़ते हुए सोचने लगते हो कि आप पढ़ ही क्यों रहे हो। यह भी समझ नहीं आता कि जब अमित को पाना मकसद था तो उसे इतने कष्ट देकर पाने का औचित्य क्या था? ये अमित को बार बार मुसीबतों में डाल कर वो आखिर क्या पाना चाहती है क्योंकि जो उसे चाहिए वो आखिरकार वो इस तरह से पाती है जिसमें ये सब करने की जरूरत ही उसे नहीं थी। उपन्यास में ये बताया गया है कि शावरा की उम्र हजारों साल है और ऐसी अनुभवी शक्ति को ऐसी हरकतें करते देख थोड़ा अचरज ही होता है।
अमित के घर में नई परेशानी लाना बस उपन्यास के पृष्ठ बढ़ाने की प्रक्रिया लगती है। साफ पता लगता है कि जब कहानी आगे नहीं बढ़ रही होती है तो या तो अमित को धोखा दे दिया जाता है। यानी जिसे वो जो समझ रहा है वो वो नहीं निकलता। या फिर उसके परिवार पर कुछ मुसीबत डाल दी जाती है। या फिर उसके जीवन में एक नया कोण डाल दिया जाता है। अमित को एक रोशनी की किरण दर्शाई जाती है और फिर उसे बुझा दिया जाता है। अंत तक भी यही चलता है।
उपन्यास के अंत में लेखक ने ट्विस्ट रखे हैं। उस अंत को पढ़ने के बाद आप सोचते हो कि अब तक जो हुआ वो क्या था? कौन क्या है ये समझना मुश्किल हो जाता है। साथ ही उपन्यास के अंत में इस बात का संकेत भी दिया है कि अनसुलझे प्रश्नों के जवाब शावरा नामक उपन्यास में मिलेंगे लेकिन सच बताऊँ तो इसे पढ़ने के बाद ‘शावरा’ पढ़ने की इच्छा समाप्त हो जाती है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि लेखक इस उपन्यास में इतना कुछ न डालते तो बढ़िया रहता।
उपन्यास की अच्छी चीजों की बात करूँ तो उपन्यास का कान्सेप्ट मुझे पसंद आया। साथ ही उपन्यास में एक प्रसंग है जब अमित के साथ ऐसी घटना घटती है कि वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है। यह दृश्य बड़े मार्मिक बन पड़े हैं। उस वक्त अमित के लिए आपको बहुत बुरा लगता है और आपका मन व्यथित हो जाता है। उपन्यास में कई रोमांचक दृश्य भी आते हैं। मसलन अमित का विमल खन्ना के फ्लैट वाला दृश्य, कब्रिस्तान में अमित द्वारा तांत्रिक से मिलने और कब्र में जाने का दृश्य, चारपाई के नीचे का खड्डा खोदने वाला दृश्य और आखिर में अमित और साधु के साथ आखिर में होने वाला वार्तालाप। पर यह सब कुछ इतनी देरी या इतने गैप के बाद में आते हैं कि वह उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं जो कि एक छोटे कथानक में छोड़ सकते थे।
उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो यह कहानी के अनुरूप हैं। विमल खन्ना का किरदार रोचक है पर इसका प्रयोग कम किया है। चम्पा का भी किरदार भी रोचक है। मुझे लगता है कि अगर लेखक अभी जीवित होते तो मैं उसने अवश्य कहता कि वो एक लघु उपन्यास लिखें जिसमें शावरा के चम्पा के शरीर को हासिल करने से लेकर उस शरीर को छोड़ने तक की दास्तान हो। चम्पा ने इस दौरान कई मर्दों को फाँसा था। कई कत्ल किए थे। कई जगह से भागी थी। ऐसे में यह कथानक अपने आप में एक लघु उपन्यास बन सकता था। उपन्यास में प्रिया का किरदार भी बड़ा प्यारा बन पड़ा है। वह अपने भोलेपन से आपका मन छू लेता है। वहीं रजनी का किरदार शुरुआत में अच्छा था लेकिन उसके किरदार में जो अचानक से बदलाव लाया गया उसे पचाने में थोड़ी दिक्कत होती है। अगर उसका कोई मुजबूत कारण लेखक देते तो बेहतर होता। उपन्यास में कैरल और पादरी का भी किरदार है। कैरल का किरदार रोचक है। आखिर में आकर इनमें एक ट्विस्ट लेखक दे देते हैं जो कि अगले भाग के लिए भूमिका बाँधने का कार्य करता है और कैरल और पादरी की असली पहचान के पीछे का रहस्य छोड़ जाता है। उपन्यास के आखिर में आया रावणानन्द का किरदार भी ऐसा ही लगता है।
उपन्यास की पृष्ठभूमि मुंबई है। पर एक रिक्शेवाले की थोड़े देर के लिए आए आयी भाषा को छोड़कर और आखिर में आए बीच के दृश्य को छोड़कर पढ़ते हुए लगता नहीं है कि यह घटनाक्रम मुंबई में घटित हो रहा है। अगर लेखक मुंबई को थोड़ा और जीवंत बना सकते तो शायद अच्छा होता।
लेखक की लेखन शैली अच्छी है। कई दृश्यों में वह आपके मन को छूने में वह सफल हो पाते हैं। वहीं कुछ पारलौकिक शक्तियों को दृश्य भी अच्छे बन पड़े हैं।
अंत में यही कहूँगा कि प्रस्तुत ‘चुड़ैल’ अपने अनावश्यक विस्तार के कारण वो प्रभाव डालने में असफल होती है जो कि वह तब डाल सकती थी जब उसका कथानक थोड़ा चुस्त होता। वो रोमांच लाने की कोशिश जरूर करते हैं और कुछ हिस्सों में सफल होते हैं लेकिन चूँकि कथानक इतना फैला हुआ है कि वह अभी उतना प्रभावित नहीं कर पाता है।
क्या आपने इस उपन्यास को पढ़ा है? अगर हाँ, तो उपन्यास के प्रति अपनी राय कमेंट्स के माध्यम से जरूर दीजिएगा।
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