संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 57 | एएसआईएन: B07NBJG44Z
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
विचार
हर शहर में ऐसी एक न एक जगह होती हैं जिसके विषय में मशहूर होता है कि वह भूतिया है और उधर पारलौकिक गतिविधियाँ होती महसूस की जाती हैं। इन जगहों को लेकर अलग-अलग तरह की कहानियाँ भी प्रचलित होती हैं। लेकिन अक्सर लोगों के लिए यह तब तक कहानियाँ ही रहती हैं जब तक कि यह उनके साथ घटित न हो जाए। ऐसी ही एक जगह विकास भान्ती की प्रस्तुत उपन्यासिका ‘चुड़ैल वाले मोड़’ के केन्द्रीय किरदार संकेत के शहर में भी थी। जैसे कि शीर्षक से जाहिर है यह ‘चुड़ैल वाला मोड़’ ही वह जगह थी जहाँ पर उपन्यासिका के मुख्य किरदार के साथ ऐसी घटना घटती है जिसके चलते उसका जीवन बदल जाता है।
कहानी की शुरुआत एक लड़की से होती है जो कि चुड़ैल वाले मोड़ में अस्त-व्यस्त हालत में होती है। उस लड़की को उपन्यासिका का मुख्य किरदार लिफ्ट देता है और फिर गतिविधियों का ऐसा सिलसिला चल जाता है कि न पाठक और न संकेत ही कुछ समझ पाता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है संकेत और उससे जुड़े लोगों के जीवन से जुड़ी ऐसी बातें उजागर होती हैं जो कि आपको इस उपन्यासिका के पृष्ठ पलटने पर मजबूर कर देती हैं। क्या यहाँ पर कोई पारलौकिक घटना हो रही है या कोई चाल चल रहा है? यह एक ऐसा प्रश्न है जो कि आखिर तक आपको रचना से चिपकने के लिए मजबूर कर देता है। वहीं कथानक में हो रही घटनाएँ कथानक में रोमांच भी पैदा करती हैं और नये नये सवाल पैदा करती है जिनका जवाब लेखक आखिर में देने में सफल हो ही जाते हैं।
उपन्यासिका के किरदार कथानक के अनुरूप हैं और आस-पास के लोगों जैसे यानि यथार्थ से जुड़े ही प्रतीत होते हैं। संकेत और उसके पिता के बीच का समीकरण बहुत खूबसूरती से दर्शाया गया है। कई बार हम किसी के ऊपर इतने आसक्त हो जाते हैं कि उनका हमें ठेस पहुँचाना हमें कुछ ऐसा करने पर मजबूर कर देता है जो कि बाद में पछतावे का कारण ही बनता है। उपन्यासिका के किरदार रेनू को देखकर यह बात दृष्टिगोचर होती है। वहीं कई बार हम कुछ पाने के लिए एक गलत रास्ता अपनाते हैं। हमें लगता है इससे किसी का नुकसान नहीं होगा लेकिन असल में कितना नुकसान हो जाए हम नहीं जानते हैं। यह चीज भी इस उपन्यासिका को पढ़कर जानी जा सकती है।
उपन्यासिका की भाषा तो वैसे तो लेखक ने आम-बोल चाल की रखी है लेकिन बीच बीच में इक्के-दुक्के ऐसे वाक्य मिल जाते हैं जो कि सँजोने के काबिल हैं। वह आपको थाम लेते हैं।
रचना की कमी की बात करूँ तो इसमें कई जगह पूर्ण विराम की जगह ‘1’ लिखा हुआ है जो कि खटकता है। ई-बुक तो आपको चीजें ठीक करने की सहूलियत देती है। ऐसे में लेखक को इसे जल्दी ही अपडेट करना चाहिए।
कहानी जैसे जैसे आगे बढ़ती है वैसे वैसे आपको पता लगता है कि इन किरदारों की गुजरी जिंदगी में काफी कुछ ऐसा हो गया है जिससे आप वाकिफ नहीं है। यह एक तरह से लेखक को सहूलियत भी देता है कि वह नई-नई चीजें लाकर पाठक को आश्चर्यचकित कर सकता है। वहीं पाठक यहाँ पर लेखक पर पूरी निर्भर रहता है। उदाहरण के लिए कहानी में एक किरदार है संकेत के दोस्त सुशांत की बहन का भी है। जब जरूरत होती है तो लेखक बड़ी सहूलियत से दर्शा देता है कि इस किरदार को तंत्र-मंत्र का काम चलाऊ ज्ञान तो है। यह सब पाठक के सामने अचानक ही आता है जो ऐसा लगता है जैसे अभी जरूरत थी तो लेखक ने खड़े पैर इसका ईजाद कर दिया है। वहीं लेखक अगर इस चीज को पहले ही स्थापित करके चलते तो ठीक रहता। ऐसा ही लेखक पहले रश्मि और फिर रेनू के मामले में भी करते हैं। यही चीज लेखक यह दर्शाकर भी करते हैं कि संकेत के पिता के दोस्त का लड़का कमीश्नर है क्योंकि उस वक्त पुलिस में सोर्स की जरूरत पड़ती है। यह बातें उन लोगों को जो कि रहस्यकथाएँ पढ़ते आए हैं खटक सकती हैं।
कहानी में एक किरदार रश्मि महाजन का भी है जो कि गायब रहती है। कहानी में इस किरदार की बहन हमें एक जगह मिलती है और हमें पहले बताया गया होता है वह किरदार दूसरे जगह किराये के घर पर रहती थी। यह बात अजीब लगती है। उसकी बहन थी तो उसे उस किरदार के घर पर ही रहना चाहिए था। शायद इसके लिए लेखक ने कोई विशेष कारण दिया हो लेकिन वो मेरी नजर में नहीं पड़ा।
ऊपर लिखी छोटी छोटी बातें ही हैं जो कि मुझे नजर आई जिस पर काम किया जा सकता था। अंत में यही कहूँगा कि अगर आपको पारलौकिक रोमांचकथाएँ या रहस्यकथाएँ पसंद आती हैं तो उपन्यासिका ‘चुड़ैल वाला मोड़’ आपका मनोरंजन करने की काबिलियत रखती है। अगर नहीं पढ़ी है तो पढ़कर देख सकते हैं।
पुस्तक के कुछ अंश जो मुझे पसंद आये
पापा से हर आम बच्चे की तरह एक दूरी सी थी संकेत की, घर में उनकी पदवी किसी पूजनीय देवता सरीखी थी जिनकी पूजा तो की जा सकती है, जिनसे आशीर्वाद तो लिया जा सकता है पर दोस्ती नहीं की जा सकती।
दोस्त की परेशानी से खुद का दुख भूल जाना ही शायद दोस्ती है।
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