संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 246
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
वह छह लोग थे जो कि उस घर में रुकने वाले थे। वह घर जो कि उस इलाके में मौत का घर के नाम से प्रसिद्ध था। वह घर जो कि दुनिया की सबसे ज्यादा दस भूतहा जगहों की सूची में शुमार था।
पैरानॉर्मल होल्ड नामक एक संस्था ने यह प्रतियोगिता करवाई थी कि जो भी व्यक्ति उस घर में तीन दिन तक रहेगा वो एक लाख पाउंड जीत जायेगा। इस प्रतियोगिता में तीन जोड़ों को शामिल किया जाना था।
इसी एक लाख पाउंड और पारलौकिक घटनाओं को अनुभव करने के चक्कर में अरुण, निक्की, विकास, अंजना, अनुराग और मोहिनी अब मौत के घर में मौजूद थे।
उन्हें वहाँ तीन दिन बिताने थे।
क्या वो लोग वहाँ तीन दिन बिता पाए?
इन तीन दिनों में उनके साथ क्या हुआ?
क्या सचमुच वो घर भूतहा था या फिर फिर उसके भूतहा होने की सारी कहानियाँ,म्,।,कलक्षक/। कक/x 1 कोरी गप्पे थीं?
किरदार
विकास, अंजना – अरुण के कॉलेज के दोस्त
अनुराग मोहिनी – विकास और अंजना के दोस्त
सुरेश काबरा – पैरानॉर्मल होल्ड की तरफ से अप्वाइंट किया हुआ केयर टेकर
पारुल – काबरा की मंगेतर
विचार
‘अनचाही मौत’ लेखक अजिंक्य शर्मा का उपन्यास है। अक्सर अजिंक्य शर्मा अपराध साहित्य लिखते हैं लेकिन हॉरर में उन्होंने दो प्रयोग किए हैं। एक प्रयोग स्लेशर उपन्यास लिखने का पार्टी स्टार्टेड नाऊ था और एक अनचाही मौत में उन्होंने हांटेड हाउस शैली में रचना की है।
उपन्यास की शुरुआत अरुण और निकी के पेट्रोल के लिए एक खस्ताहाल पंप में रुकने से होती है। वो लोग एक जगह जाने के लिए निकले हैं और इस पंप में तेल भराने रुकते हैं। यहाँ उनके साथ एक अजीब सा अनुभव होता है जो कि आगे आने वाली कहानी की नीव रखता है। साथ साथ यहीं ही पाठकों को पता लगता है कि अरुण और निकी कौन है और वो लोग कहाँ जा रहे हैं और किसके साथ साथ जा रहे हैं। पाठकों को न केवल उनके यहाँ आने का मकसद पता लगता है बल्कि उपन्यास के बाकी किरदारों का परिचय और उनके साथ इनके समीकरण का भी पता लगता है।
उपन्यास की कहानी पाँच दिन की है। पहले दिन उपन्यास के किरदार मौत के घर में इकट्ठा होते हैं। अगले तीन दिन वो इधर बिताते हैं और चौथे दिन जो बचता है वो वापस जाता है। आने और जाने के बीच के इन तीन दिनों में जो कुछ उनके साथ होता है वही कथानक बनता है।
उपन्यास की खूबी की बात करूँ तो इसकी विषय वस्तु रोचक है। अरुण और निकी के रूप में लेखक एक पैरानॉर्मल इंवेस्टिगेटर लेकर आए हैं। इनके बीच समीकरण रोचक है। उम्मीद है इनके इंवेस्टिगेशन को लेकर लेखक और लिखेंगे। कहानी में एक प्रसंग है जब अरुण भूतों के ऊपर चर्चा करता है। वह बातचीत रोचक लिखी गई है। कहानी में आखिर में एक ट्विस्ट भी आता है जो कि आपको हैरान जरूर कर देता है।
उपन्यास की कमियों की बात करूँ तो उपन्यास की विषय वस्तु रोचक जरूर है लेकिन लेखक इसका किर्यांवन करने में सफल नहीं हो पाते हैं। पहले दो दिन जो जो घटनाएँ किरदारों के साथ घटित होती हैं वह इतनी भयावह नहीं होती हैं जिससे कि आपके मन में कोई भय उत्पन्न हो या आगे पढ़ने की इच्छा हो। तीसरे दिन के अंत तक आते आते सब कुछ घटित होने लगता है। मौत के घर के बारे में जो कुछ सुना गया था वो सब होने लगता है तो किरदारों का अपने जीवन के लिए युद्ध शुरू हो जाता है। पर यह काम इतनी देर में शुरू होता है कि आप बस जैसे तैसे इसे खत्म करना चाहते हैं।
लेखक ने आखिर में कई चीजों को जोड़ने की कोशिश की है और कई कड़ियाँ जोड़ी भी हैं लेकिन काफी चीजें रह भी जाती हैं।
मसलन, अरुण और निकी की गाड़ी का एक्सीडेंट करने वाला क्या था?? क्या उसका घर से कोई लेना देना था?? अगर हाँ, तो घर का प्रभाव सड़क के नजदीक कैसे हुआ? अगर वो प्रभाव सड़क के नजदीक तक आ जाता है तो फिर आखिर के दिन में जो निकले वो निकलने में कामयाब कैसे हो पाते हैं?
कब्रिस्तान में ताज़ी कब्र किसने खोदी थी? क्या ये काम आत्माओं का था?
घर में पहले दो दिन इतना कुछ नहीं होता है। ऐसे में तीसरे दिन वो क्या होता है जिससे अचानक से घटित होने वाली घटनाओं की तीव्रता बढ़ जाती है। अगर चीजें पहले दिन से शुरू होना शुरू होती और तीसरे दिन चीजों के घटित होने के पीछे कोई पुख्ता कारण दिया होता तो बेहतर होता। मसलन उपन्यास में एक प्रसंग है जब एक किरदार बेहोश हो जाता है और बाद में वो एक ऐसी जगह मिलता है जहाँ उन्हें जाने के लिए मना किया गया था। उस किरदार को क्यों चुना और उसे वहाँ क्यों निषेध जगह पर लाया गया? अगर इसका कोई पुख्ता कारण देते तो बेहतर होता।
उपन्यास के आखिर में पैरानॉर्मल होल्ड का व्यक्ति मौत के घर में आता है और अपने आने का कारण देता है। उससे पहले वो जो चीज बताता है और उसके बाद आने का कारण देता है वह जमता नहीं है। किसी सुनसान जगह में जहाँ नेटवर्क भी नहीं है उधर कोई रह रहा है इसका पता कैसे चलेगा? यह एक ऐसी बात है जिसे थोड़ा और विस्तृत रूप से बताया जाता तो बेहतर होता।
व्यक्तिगत तौर पर कहूँ तो मेरे लिए यह अजिंक्य शर्मा के अब तक का सबसे कमजोर उपन्यास रहा है। मुझे लगता है कि तीन दिन की जगह एक दिन या ज्यादा से ज्यादा दो दिन की कहानी होती और शुरुआत से ही कथानक में हॉरर अधिक होता तो बेहतर होता।
कथानक के अतिरिक्त कुछ छोटी मोटी सम्पादन की दिक्कतें भी हैं। कई जगह अरुण का नाम बदलकर अतुल या अनुज हो गया है। पृष्ठ 203 में अनुराग द्वारा एक सपने देखे जाने की बात होती है लेकिन कहानी में सपना या तो अरुण ने देखा था या फिर विकास ने देखा था। ऐसे में अनुराग के सम्बन्ध में सपने का जिक्र करना पाठक को संशय में डालता है। पृष्ठ 85 में कब्र पर लिखी इबारत अंग्रेजी में हैं जिसमें कब्र रॉबर्ट कीन की बताई गई है लेकिन उसके हिंदी अनुवाद में वो नाम जेम्स कीन कर दिया गया है।
किरदारों की बात करूँ तो अरुण, निकी, विकास और अंजना के किरदार को अच्छे से गढ़ा गया है। अरुण, विकास और अंजना का समीकरण अच्छा बन पड़ा है। इसके साथ साथ पारुल के किरदार को भी सही से गढ़ा गया है। पर मोहिनी और अनुराग के किरदार को उतनी जगह नहीं दी गई है। जैसे कि ऊपर लिखा है अरुण और निकी को लेकर कई संभावनाएँ हैं। अगर लेखक उसे एक्सप्लोर करेंगे तो मैं उन रचनाओं को पढ़ना चाहूँगा।
अंत में यही कहूँगा कि अजिंक्य शर्मा का यह उपन्यास मुझे औसत से कम ही लगा। ऐसा लगा कि जरूरत से ज्यादा इसे खींचा गया है। अगर पहले दो दिनों में भी कुछ बड़ा, खौफनाक होता तो शायद चल जाता लेकिन उसके न होने के चलते यह वो असर आपके ऊपर नहीं डाल पाता है।
अगर आपने अजिंक्य शर्मा के उपन्यास नहीं पढ़े हैं उनके अन्य उपन्यासों से शुरुआत करें। इसे आखिर में पढ़ें। हो सकता है आपको यह भी पसंद आ जाए।
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And I believe storytelling is more important than the story. Forced or stretched writing never helps. I tried to increase the word count of one of my stories I like, but realized that it was taking away the essence and crispness of the story so I stopped.
Sorry if I sound too critical but I feel the cover of this book could have been better. Also, the title: maut to aksar anchahi hi hoti hai,. Na ho, tab wo striking hoga, nahin?
yeah, streching something doesn't helps. I agree with the cover thing. The book is self published on kindle so the writer didn't put much thought on it. His later books have better cover. Ajinkya Sharma writes good book normally. People have liked this one too but it was a miss for me. Regarding the title, i guess here anchahi meant it was not natural. Something that came out of nowhere.