पुस्तक अंश: सहारनपुर के खोजी दल – कुमार विक्रांत

सहारनपुर के खोजीदल - कुमार विक्रांत

‘सहारनपुर के खोजी दल’ लेखक कुमार विक्रांत की किशोर हास्यकथा है। एक बुक जर्नल पर पढ़ें दिप्पे, चित्तू, पल्लू, डब्बू और टीनू की इस कहानी का एक अंश।


किंग बुक डिपो

सहारनपुर के बाहरी इलाकों को मुख्य शहर से जोड़ने वाली रिंग रोड जून की भयानक गर्मी में आग की तरह तप रही थी लेकिन इस रिंग रोड से लगी तीन गलियों की विकसित होती कालोनी सूर्य विहार के पाँच किशोर आपस में लड़ते-झगड़ते, हो-हल्ला करते उस तपती सड़क पर बढ़े चले चले जा रहे थे। मंजिल उनकी थी घंटाघर पर स्थित किंग बुक डिपो।

14 से 15 आयु वर्ग के उन किशोरों के नाम दीपांकर, चेतन, पल्लव, दिवाकर और तनुज थे। ये नाम उनके माता-पिता ने बड़े शौक से रखे थे लेकिन कालोनी के दूसरे लड़कों की तरह उनके नाम भी बिगड़कर, दिप्पा, चित्तू, पल्लू, डब्बू और टीनू हो चुके थे।

दिप्पा ज्यादातर चुप रहने वाला लेकिन कभी-कभी ज्वालामुखी की तरह फट पड़ने वाला लड़का था।

चित्तू एक बेपेंदे का लोटा था जो एक पल में इधर और दूसरे पल उधर टाइप लड़का था। वह दिप्पे की कद काठी का था। दोनों में अकसर ताकत की आजमाइश के लिए फ्री स्टाइल कुश्ती होती रहती थी जिसमें दोनों बराबरी पर छूटते थे।

डब्बू एक झगड़ालू लड़का था जिसे कोई भी पसंद नहीं करता था, वो अपने से कमजोर या ताकतवर सभी से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहता था।

पल्लू एक हंसमुख लड़का था। उसका स्वभाव ‘ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर’ टाइप था।

टीनू एक बिना मतलब हँसने वाला लड़का था और वो अनजाने में शब्दों के अर्थ को अनर्थ में बदल देता था। अपनी इन आदतों की वजह से वो अकसर मुसीबत में फँसता रहता था।

उन पाँचों में केवल दिप्पा ही गर्मी के अनुरूप सूती शर्ट और डेनिम की जींस पहने हुए था बाकी चारों ने टेरीकॉट के बने कुर्ते और सिंथेटिक कपड़ों के बने अजीब से निक्कर पहन रखे थे और पसीने में लथपथ थे।

उन पाँचों का दसवीं क्लास का रिजल्ट एक हफ्ते पहले आया था, केवल दिप्पा ही अच्छे ग्रेड लेकर पास हुआ था बाकी चारों तो स्थानीय भाषा में बोला जाए तो किसी तरह गिर पड़कर बस पास हो गए थे।

दिप्पे की अगुआई में किंग बुक डिपो जा रहा पाँच किशोरों का यह दल कोई सामान्य मित्रता दल नहीं था बल्कि वास्तविकता में यह पाँचों एक दूसरे के स्वाभाविक दुश्मन थे और अकसर लड़ते-झगड़ते रहते थे।

नब्बे के दशक के अन्य किशोरों की तरह कॉमिक्स पढ़ने और संग्रह करने के दीवाने उन पाँचों का आज का टारगेट था पीलू चित्रकथा में छपे महादूत नाम के पात्र के पाँच कॉमिक्स का सेट खरीदना, जिनके नाम थे- महादूत और चुनौती, महादूत और देवता का श्राप, महादूत और विद्रोह, महादूत और जंग, महादूत और प्रतिशोध। इन कॉमिक्स में प्रत्येक कॉमिक्स के पहले चार पेज ऑफसेट प्रिंट में थे और उन पाँचों के कोतुहल का विषय भी।

एक कॉमिक्स स्टोर ‘पप्पी बुक स्टोर’, जहाँ से दिप्पा कॉमिक्स किराए पर लेता था, के मालिक सुक्की ने एक दिन दिप्पे के हाथ में महादूत का एक कॉमिक्स, ‘विजेता महादूत’ देते हुए कहा था –
“भाई तू हमेशा विदेशी पात्रो के कॉमिक्स में ही उलझा रहता है कभी देसी कॉमिक्स पात्रों को भी तो पढ़।”

कॉमिक्स का नायक ‘महादूत’ एक लंबा लगड़ा बलिष्ठ नकाबपोश था जो दो-तीन विदेशी कॉमिक्स पात्रों की नकल करके गढ़ा गया था।

“इसका कवर देख रहा है?” – सुक्की बोला था – “कैसा है?”

“अच्छा लग रहा है।” दिप्पे ने जवाब दिया था।
“भाई ये कवर आधुनिक ऑफसेट तकनीक से छपा है।” – सुक्की बोला – “और महादूत के पाँच कॉमिक्स का सैट बहुत जल्दी आने वाला है जिसके हर कॉमिक्स के पहले चार पेज इसी तकनीकी से छपे होंगे।”

वो कॉमिक्स दिप्पे ने और उसके चारों अस्थाई दोस्तों ने पढ़ा। कॉमिक्स की कहानी और चित्र सामान्य थे लेकिन कॉमिक्स का कवर सबको अच्छा लगा था और उसी तकनीकी से छपने वाले महादूत के कॉमिक्स के आने वाले सैट को देखने और पढ़ने की उत्सुकता उन पाँचों को ही थी।

लेकिन उन सब के सामने सबसे बड़ी समस्या थी उस कॉमिक्स सैट के प्रत्येक कॉमिक्स का दाम- पाँच रुपया। इस दाम उस समय बिकने वाले सामान्य कॉमिक्स के दाम से पाँच गुना था।
पहले बोर्ड के एग्जाम में उलझे और बाद में उस कॉमिक्स सैट को खरीदने के लिए पैसा इकट्ठा करने के जुगाड़ में उलझे इस दल उस कॉमिक्स सैट के छपने के पूरे छह महीने बाद उस कॉमिक्स सैट की तलाश में जाने का मौका मिला था।

सूर्य विहार से घंटाघर, जहाँ किंग बुक डिपो था, का रास्ता कम से कम सात किलोमीटर का था जिसे उन पाँचों को पैदल ही पार करना था, क्योंकि उन दिनों कक्षा दस के छात्रों को साइकिल जैसी शाही सवारी माता-पिता आसानी से नहीं दिलाते थे।

सूर्य विहार से किंग बुक डिपो तक जाने के रास्ते में उनके रास्ते में तीन बड़ी बाधाएँ थी, जिन्हें उन पाँचों को पार करना था।

पहली बाधा

पहली बाधा थी उनकी कालोनी के पास की शुगर मिल कॉलोनी में स्थित जीवे (जीवन) की गली, जिससे होते हुए उन सभी को घंटाघर के लिए निकलना था। जीवा उन सभी का जानी दुश्मन था, जो उन सभी से लड़कर उनसे कई बार पिट चुका था और मौका मिलने पर उन्हें पीटने की फिराक में था। वो अपनी गली में ना मिला और वो पाँचों जीवे को लड़ने के लिए ललकारते हुए, तेजी से दौड़ते हुए जीवे की गली से निकल गए।

दूसरी बड़ी बाधा

दूसरी बड़ी बाधा थी रेलवे स्टेशन के पास बने छोटे से बाजार में दिप्पे के पिता का कैटल फीड स्टोर। दोपहर का समय था और कैटल फीड स्टोर में दिप्पे के पिताजी लंच इसी दौरान करते थे। ऐसे में दिप्पे के पिता कैटल फीड स्टोर से बाहर मिल सकते थे। यही सोचकर दिप्पे की हालत खराब थी। उसे अच्छी तरह पता था यदि उसके पिता ने उसे रेलवे स्टेशन के पास भटकते देख लिया तो घर जाने के बाद उसकी पूरी देह की तसल्ली बख्श पिटाई गारंटीड थी।

दिप्पे की खराब हालत का वो चारों पूरा मजा ले रहे थे। जब दिप्पे के पिता उनके कैटल फीड स्टोर से बाहर न मिले तो उन चारों को थोड़ी सी निराशा हुई।

तभी डब्बू चिल्ला कर बोला, “अंकल जी देखो दिप्पा आवारागर्दी करते घूम रहा है…”

“क्यों चिल्ला रहा है, मरवाएगा क्या?” दिप्पे ने डब्बू के मुँह को अपने हाथों से बंद करते हुए कहा।

दिप्पे के पिता के कैटल फीड स्टोर के सामने चल रहे ट्रैफिक में डब्बू की आवाज दब गयी थी लेकिन फिर भी डरते हुए अपने पिता के कैटल फीड स्टोर की तरफ देखता रहा था। वो चारों दिप्पे के हाल पर हँसते हुए दिप्पे के पिता जी के कैटल फीड स्टोर के सामने से दौड़ते हुए निकल गए। उनके पीछे-पीछे दिप्पा भी उन्हें मन ही मन गालियाँ देता हुआ दौड़ रहा था।

यह दौड़ रोडवेज के बस स्टैंड पर जाकर खत्म हुई जो रेलवे स्टेशन के बिलकुल सामने था। रोडवेज के बस स्टैंड से कुछ दूरी पर ही किंग बुक डिपो था।

वो पाँचों आखिरकार किंग बुक डिपो पहुँचे और जा घुसे कॉमिक्स वाले कोने में। पर वहाँ महादूत का तो एक भी कॉमिक्स न था। उन्होंने पास खड़े सेल्समैन से उन पाँचों कॉमिक्स के बारे में पूछा। वो सेल्स मैन बुक डिपो के कैश काउंटर के पीछे रखी एक मेज पर गया और उस सीरीज का तीसरा पार्ट ‘महादूत और विद्रोह’ निकाल कर लाया, जिसे तेजी से चित्तू ने झपट लिया और कॉमिक्स के दाम पाँच रूपये सेल्स मैन के हाथ पर रख दिए। बाकी चारों उसकी इस हरकत को देखते रह गए।

“इस सीरीज के दूसरे पार्ट कहाँ है?” डब्बू ने सेल्स मैन से पूछा।

“कौन से पार्ट? यही एक कॉमिक्स बची हमारे पास…” सेल्समैन ने बुक डिपो में खरीददारी करते दूसरे कस्टमरों की तरफ देखते हुए जवाब दिया।

“अरे पार्ट नहीं, ये पूरे पाँच कॉमिक्स का सैट छपा है। इस सैट के बाकी चार कॉमिक्स कहाँ है?” दिप्पे ने उस सेल्समैन को समझाते हुए कहा, “ये देखो उन कॉमिक्स के फ्रंट पेज के फोटो भी है इस कॉमिक्स के कवर पेज पर।”

सेल्समैन ने चित्तू से कॉमिक्स लिया और गौर से बाकी कॉमिक्स के फोटो को देखते हुए बोला, “ये तो छह महीने पहले के कॉमिक्स है। अब सब बिक गए है, ये नहीं मिलेंगे अब।”

“अंकल जरा मुझे अपना पेन तो दो…” कहते हुए चित्तू ने सेल्समैन का पेन लिया और अपने खरीदे कॉमिक्स ‘महादूत और विद्रोह’ के मुख्य पृष्ठ पर बहुत ही खराब लिखाई में अपना नाम ‘चेतन’ लिखकर बोला, “अब कोई माई का लाल इस कॉमिक्स को मुझसे चुरा कर दिखाए।”

उसकी इस हरकत से दल का कोई सदस्य आश्चर्य चकित न हुआ बल्कि जब उसने कॉमिक्स के मुख्य स्वर पर अपना नाम लिख लिया तो सब ने उसकी तरफ प्रशंसा भरी नजर से देखा।

“अंकल ये कॉमिक्स कहाँ मिल सकती है ये तो बता दो।” टीनू जो हमेशा हँसता ही रहता था उसने अपने दाँत दिखाते हुए उस सेल्समैन से पूछा।

“यहाँ तो मिलेगी नहीं। बाकी यहाँ तो किताबों की दुकानों की भरमार है, जाकर पता कर लो।” वो सेल्समैन उन पाँचों के पास से बुक डिपो के दूसरे कस्टमर की तरफ बढ़ते हुए बोला।

वो पाँचों निराश होकर किंग बुक डिपो से बाहर आ गए।

“भाई अब क्या करें?” पल्लू ने अपने अघोषित दलपति दीपांकर की तरफ देखते हुए कहा।

“आओ दूसरे बुक स्टोर पर चलते हैं, हो सकता है वहाँ इस कॉमिक्स के साथ के बचे चार कॉमिक्स मिल जाए।” दिप्पे ने चित्तू की तरफ देखते हुए कहा जो उस सैट के तीसरे कॉमिक्स पर कब्जा करके बहुत इतरा रहा था।

“कहाँ हैं दूसरे बुक स्टोर?” डब्बू ने अपना सिर खुजाते हुए पूछा।

दीपांकर कुछ बोलने ही वाला था कि एक आवाज ने उन पाँचों के होश उड़ा दिए।

“क्यों आवारा लड़कों, क्या आवारागर्दी मचा रखी है, क्या कर रहे हो यहाँ घंटाघर पर?”

आवाज सोमेश नाम के उनकी ही गली के एक कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के की थी जो उन पाँचों से उम्र में १० साल बड़ा था और कद में कम से कम आधा फुट ऊँचा था।

तीसरी बाधा

सूर्य विहार के सोमेश की आवाज सुनकर उन पाँचों की सिटी-पिट्टी गुम हो गयी और उन पाँचों ने साइकिल पर बैठे लंबे कद के लड़के सोमेश की तरफ डरते हुए देखा।

“बेटे तुम लोग दिन रात आवारागर्दी में लगे रहते हो। सच-सच बताओ यहाँ घंटाघर पर क्या आवारागर्दी करने आए हो?” सोमेश उन पाँचों के चेहरे पर आते-जाते रंगो को देख कर बोला।

घंटाघर पर सूर्य विहार के किसी बड़े लड़के का यूँ ही मिल जाना कोई अनोखी बात नहीं थी क्योंकि घंटाघर पर शहर का एक मात्र कोचिंग सेंटर ‘टार्गेट’ था।

कोचिंग में प्रतियोगिताओं की तैयारी करने सूर्य विहार के भी बहुत सारे लड़के आते थे जो कोचिंग के विभिन्न बैचों में पढ़ते थे। उन्हीं लड़कों में से किसी लड़के का मिल जाना चित्तू, डब्बू, टीनू, पल्लू और दिप्पा के लिए बाधा नंबर तीन थी जो अन्य दो बाधाओं के मुकाबले बहुत खतरनाक थी।

“क्यों मुझे देख कर तुम्हें साँप सूँघ गया क्या? ऐसे पागलों की तरह क्यों खड़े हो?” सोमेश अपनी साइकिल से नीचे उतरते हुए बोला।

वो पाँचों सोमेश को साइकिल से उतरते हुए देख घबरा गए। चित्तू तो वहाँ से भाग ही निकला था लेकिन सोमेश ने अपनी लम्बी टाँगों की सिर्फ दो ही उछाल में चित्तू को पकड़ लिया और उसके हाथ से कॉमिक्स छीनते हुए बोला, “अच्छा ये बात है! यहाँ इस कॉमिक्स के चक्कर में धक्के खा रहे हो। बेटे तुम लोग सुधरोगे नहीं! पूरी आवारागर्दी पर उतर आये हो। शाम को तुम्हारे घर आकर तुम सब के पिताओं को तुम लोगों की करतूत बतानी पड़ेगी।”

उन पाँचों के मुँह से एक शब्द न निकला।

“ये कॉमिक्स अब तुम्हारे पिताओं के हवाले की जाएगी।” कहते हुए सोमेश ने कॉमिक्स अपनी साइकिल के कैरियर में ठूँसी और वहाँ से उड़न-छू हो गया।

तीसरी बाधा के बारे में उन पाँचों के मन में जो आशंका थी वो सच्ची साबित हुई थी। अब उनके हाथ लगा एक मात्र कॉमिक्स भी उनके हाथों से निकल चुका था और शाम के समय अपने-अपने पिताओं से पिटने की चिंता उन पाँचों को सताने लगी थी।

“तेरे चक्कर में आज हम मारे गए! अब तैयार हो जाओ सब पिटने के लिए। ये सोम्मे का बच्चा बहुत बदमाश है। मेरी कॉमिक्स भी छीन ले गया और पिटवाने की धमकी भी दे गया।” चित्तू ने दिप्पे की तरफ देखते हुए कहा।

“कोई किसी के चक्कर में नहीं मारा गया। यहाँ सब के सब अपनी मर्जी से आए थे…” दिप्पे ने चित्तू को डपटते हुए कहा।

“अब तुम दोनों झगड़ा मत करो। ये बताओ बाकी के कॉमिक्स कहाँ से मिलेंगे?” टीनू दाँत फाड़ते हुए बोला।

“तुझे अब भी कॉमिक्स की पड़ी है! मेरी तो कॉमिक्स भी गयी और पैसे भी गए।” चित्तू कलपते हुए बोला।

“तो चल दफा हो जा, हम तो जा रहे है बाकी की बची कॉमिक्स खरीदने के लिए।” डब्बू गुर्राया और दिप्पे का हाथ पकड़ कर बोला, “चल भाई कहाँ चलना है अब?”

“चलो पाहुजा बुक स्टोर में चलते है।” दिप्पे ने चित्तू की तरफ तिरस्कार भरी आँखों से देखते हुए कहा।

“हाँ सही है, चलते है।” पल्लू और टीनू बोले।

दिप्पा, डब्बू, पल्लू और टीनू पाहुजा बुक स्टोर की तरफ चल पड़े जो किंग बुक डिपो से आधा किलोमीटर दूर नेहरू मार्किट से पहले था।

चित्तू कुछ देर खड़ा रहा और फिर लपक कर वो उन चारों से जा मिला और उनके पीछे-पीछे चलने लगा।


किताब परिचय

छह माह पहले महादूत के कॉमिक्स का नया सेट आया था। पाँच कॉमिक्सों वाला यह सेट बच्चों के बीच काफी प्रसिद्ध रहा था, पर दिप्पा, चित्तू, पल्लू, डब्बू और टीनू उन्हें अब तक नहीं पढ़ पाए थे। इसका उन्हें पछतावा था।

इसलिए गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ते ही इस मित्र मंडली ने फैसला कर लिया था कि वह कॉमिक बुक्स के इस सेट को पढ़कर अपनी छुट्टियों को धन्य कर देंगे।

पर कर देना सोच लेने जितना आसान न था। वो कॉमिक बुक्स मिलने हँसी खेल थोड़े न थे। दुकानों से तो वह अन्य बच्चों द्वारा कबके लपके जा चुके थे। अब उन्हें खोज-खोज कर इस सेट के प्रत्येक कॉमिक को ढूँढना था। यह ऐसी राह थी जिसमें ढेरों मुसीबतें उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं।

लेकिन कॉमिक बुक्स को प्राप्त करने का सहारनपुर के इस खोजी दल का यह फैसला भी अटल था, फिर चाहे उन्हें कितनी ही मुसीबतों से क्यों न जूझना पड़े।

क्या सहारनपुर का ये खोजी दल अपनी पसंदीदा कॉमिक बुक्स को पाने में सफल हुआ?

पुस्तक लिंक: साहित्य विमर्श प्रकाशन

लेखक परिचय

सहारनपुर उत्तर प्रदेश के रहने वाले कुमार विक्रांत स्नातकोत्तर तक की शिक्षा चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से लेने के पश्चात् उत्तर प्रदेश अवर अधीनस्थ सेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण कर राजकीय सेवाओं में आ गए तथा वर्तमान में जनपद मेरठ में नियुक्त हैं।

यह मूलतः अंग्रेजी भाषा में अपराध/रहस्य विधा में लेखन करते है। अब तक यह आठ दर्जन से अधिक साझा पुस्तकों के लिए अपराध कथाएँ लिख चुके हैं। इनके द्वारा लिखी कहानियाँ यू. जी. सी. द्वारा अनुमोदित पत्रिका, ‘साहित्य आनंद’ में छप चुकी हैं।

इनके द्वारा अंग्रेजी भाषा में अपराध/रहस्य विधा में लिखे उपन्यास, ‘इन द नेम ऑफ़ लव’ और ‘लॉस्ट ट्रेल’ प्रकाशित हो चुके हैं। हिंदी भाषा में इनके द्वारा लिखा हास्य उपन्यास ‘लैला का थैला’ प्रकाशित हो चुका है।

इनके द्वारा ‘फ्रोजेन इमोशन’ नाम की साझा पुस्तक का सम्पादन भी किया गया है। स्टोरी मिरर द्वारा इन्हें सन् २०२० का ऑथर ऑफ़ द ईयर (एडिटर्स चॉइस) पुरस्कार दिया जा चुका है।

यह 2013 से ‘रिफ्लेक्शन’ नामक इंटरनेशनल लिटरेरी मैगज़ीन से जुड़े हुए हैं।


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