‘कुबड़ी बुढ़िया की हवेली’ (Kubadi Budhiya Ki Haveli) लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surender Mohan Pathak) का लिखा हुआ बाल उपन्यास है। यह उपन्यास प्रथम बार 1971 में प्रकाशित हुआ था और अब यह बाल उपन्यास हाल में साहित्य विमर्श प्रकाशन (Sahitya Vimarsh Prakashan) द्वारा पुनः प्रकाशित किया गया है। आज ‘एक बुक जर्नल’ पर पढ़िए इस बाल उपन्यास का एक छोटा सा अंश। उम्मीद है यह अंश उपन्यास के प्रति आपकी उत्सुकता जगाने में कामयाब होगा।
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“अब भागो यहाँ से।” – रखवाला बोला। उसकी सशंक निगाहें रह रहकर कभी सुन्दरी की ओर और कभी शेरा की ओर उठ जाती थीं।
बच्चे वहाँ से चल दिये।
वे गाँव के बाजार में पहुँचे।
वहाँ रेहड़ी वाला तरबूज बेच रहा था।
तरबूज की रेहड़ी से थोडी दूर एक ट्रक खड़ा था जो हर ओर से तिरपाल से ढँका हुआ था। ट्रक जैक पर खड़ा था और दो आदमी उसका पहिया बदल रहे थे।
सुन्दरी शेरा की पीठ पर थी। शेरा अपने शरीर को झटकता हुआ सड़क पर भागा। लेकिन सुन्दरी बहुत चालाक थी। जब वह गिरने को होती थी तो वह कूदकर उसकी पीठ से हट जाती थी और ज्यों ही शेरा भागना बन्द कर देता था वह फिर उसकी पीठ पर छलाँग लगा देती थी।
शेरा परेशान होकर जोर-जोर से भौंक्ने लगा।
उसी क्षण सुन्दरी ने उसकी पीठ से छलाँग लगाई और सीधी ट्रक पर चढ़ गई।
पहिया बदलने वालों ने नहीं देखा कि सुन्दरी तिरपाल हटाकर ट्रक में घुस गई थी।
एकाएक सुन्दरी की भयपूर्ण तेज चीख वातावरण में गूँज गई।
भोला हड़बड़ाकर ट्रक की ओर भागा
शेरा भी चुप हो गया।
भोला ने जल्दी से ट्रक के पिछले भाग से तिरपाल हटाकर भीतर झाँका।
भीतर एकदम अँधेरा था। ट्रक भीतर से खाली था। भोला को कोई सफेद सी चीज ट्रक में हिलती दिखाई दी।
उसी क्षण सुन्दरी ने ट्रक में से छलाँग लगाई और आकर भोला की गर्दन पर बैठ गई। उसकी गोल-गोल भयभीत आँखें दायें-बायें फिर रही थीं।
पहिया बदलने वालों में से एक आदमी भोला के समीप आया और क्रोधित स्वर में बोला – “ऐ लड़के, क्या कर रहा है?”
“क्या कर रहा हूँ?”, भोला बोला – “कुछ भी नहीं कर रहा।”
“हटो यहाँ से।”
“तुम्हारे ट्रक में क्या है, बाबू साहब” – भोला बोला – “जिसे देखकर मेरी सुन्दरी इतना डर गई है।”
तब तक राजू और मिनी भी वहाँ पहुँच गये थे।
भोला को ट्रक में वह सफेद सी चीज दुबारा हिलती दिखाई नहीं दी थी।
“क्या बात है भोला?” – राजू ने पूछा।
“यह आदमी मुझे मारने की धमकी दे रहा है।” – भोला बोला – “पहले इसने मेरी सुन्दरी को डरा दिया है और अब यह मुझे मारने चला है।”
“अरे, भागते हो या नहीं यहाँ से।” – ट्रक वाला बोला – “मैं एक-एक को ठीक कर दूँगा। साले बच्चे हैं या मुसीबत।”
“शेरा।” – राजू ललकारकर बोला।
शेरा को समझाने की जरूरत नहीं थी कि उससे किस बात की अपेक्षा की जा रही थी। वह एक बार जोर से गुर्राया और फिर दांत निकालकर ट्रक वाले पर लपका।
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तो यह था लेखक
सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surender Mohan Pathak) के बाल उपन्यास ‘कुबड़ी बुढ़िया की हवेली’ (Kubadi Budhiya Ki Haveli) का एक छोटा सा अंश। उम्मीद है यह अंश उपन्यास के प्रति आपकी उत्सुकता जगाने में कामयाब हुआ होगा।
पुस्तक विवरण:
नोट: एक बुक जर्नल में प्रकाशित इस छोटे से अंश का मकसद केवल पुस्तक के प्रति उत्सुकता जागृत करना है। आप भी अपनी पुस्तकों के ऐसे रोचक अंश अगर इस पटल से पाठकों के साथ साझा करना चाहें तो वह अंश contactekbookjournal@gmail.com पर उसे हमें ई-मेल कर सकते हैं।
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