पुस्तक अंश: खतरनाक आदमी – अनिल मोहन

अर्जुन भारद्वाज एक प्राइवेट डिटेक्टिव है जो कि दिल्ली में अपनी खुद की प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी चलाता है। खतरनाक आदमी अर्जुन भारद्वाज श्रृंखला का उपन्यास है जिसमें जब एक अनजानी लाश अर्जुन की गाड़ी की डिक्की से बरामद होती है तो अर्जुन असल कातिलों का पता लगाने का मन बना लेता है। लेकिन कोई है जो नहीं चाहता है कि अर्जुन इस मामले में दखल दे और वह कोई अर्जुन की जान लेने से भी नहीं हिचकने वाला है।

आगे क्या होता है यही उपन्यास का कथानक बनता है। 

आज एक बुक जर्नल आपके समक्ष अर्जुन भारद्वाज के  कारनामे खतरनाक आदमी का छोटा सा अंश लेकर आ रहा है। उम्मीद है यह आपको पसंद आएगा।

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पुस्तक अंश: खतरनाक आदमी - अनिल मोहन
र्जुन भारद्वाज की कार पुलिस स्टेशन से निकलकर सड़क पर आ गई। यह देखकर अर्जुन के होंठों पर जहरीली मुस्कान उभरी की काली फिएट पुनः उसके पीछे लग गई थी। अब वह अपना पीछा किया जाना गँवारा नहीं कर सकता था।
उसने कार को उस सड़क पर डाल दिया जो छत्तीसगढ़ की सुनसान सी सड़क पर निकलती थी। 
मन-ही-मन  अर्जुन भारद्वाज  ने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि इनसे अब निबटकर ही रहेगा। दुश्मन ने अपने आदमी उसके पीछे लगा दिए थे कि उसकी कार्यवाही पर नजर रख सके।
पन्द्रह मिनट पश्चात ही अर्जुन भारद्वाज की कार सुनसान सड़क पर दौड़ रही थी।
काली फिएट कार उसके पीछे थी। 
सड़क के एक तरफ पहाड़ी थी और दूसरी तरफ घना जंगल। अर्जुन भारद्वाज उनसे निबटने का तरीका सोचने लगा कि तभी वातावरण में फायर की आवाज गूँजी और गोली कार के पिछले बम्पर से टकराकर छिटक गई।
अर्जुन भारद्वाज ने बैक मिरर में देखा, काली फिएट काफी करीब आ चुकी थी और शायद वह लोग भी उसकी तरह सुनसान जगह पर किसी मौके की तलाश में थे। तभी तो उन्होंने पहल कर दी थी। फायर करने का मतलब था, वह उसकी जान लेना चाहते हैं। 
अर्जुन भारद्वाज के होंठ भिंच गए।
उसने जेब से रिवॉल्वर निकालकर गोद में रख ली। कार की गति एकाएक ही उसने काफी ज्यादा बढ़ा दी। चंद ही पलों में वह फिएट से काफी फासले पर आ गया।
काली फिएट की स्पीड भी बढ़ गई थी।
फिर एकाएक ही अर्जुन भारद्वाज ने कार के ब्रेक लगाए। कार तीव्र झटके के साथ रुकी। पलक झपकते ही उसने गोद से पड़ा रिवॉल्वर उठाते हुए दरवाजा खोला और जंगल की तरफ भागा। तभी फायर हुआ। गोली उसके सिर के बालों को झुलसाती हुई निकल गई।
दो पल में ही वह जंगल के पेड़ के मोटे तने की ओट में था। तभी उसे कार रुकने की आवाज आई। अर्जुन भारद्वाज ने तने की ओट में से देखा, काली फिएट उसकी कार के करीब आ रुकी थी और उसमें से दो खतरनाक से नजर आने वाले आदमी बाहर निकले, एक ठिगना-सा, साढ़े चार फुट का होगा। भारी बदन काला चेहरा जीन की पैंट के साथ, बदन पर चमड़े की जैकेट पहन रखी थी। सिर के बाल छोटे-छोटे थे। चेहरे पर पुराने जख्म का निशान था। उसकी आँखों में वहशीपन समाया हुआ था। हाथ में रिवॉल्वर थाम रखा था।
दूसरा छः फीट लम्बा था। बदन पर सादी कमीज-पैंट थी। रंग गोरा था। नाक इस प्रकार टेढा हुआ पड़ा था, जैसे किसी ने घूँसा मारकर पिचका दिया हो। एक कान का आधा हिस्सा गायब था। उसकी बाँहें सामान्य लम्बाई से कुछ ज्यादा ही लम्बी थीं। आँखों से वह खूँखार हत्यारा नज़र आ रहा था।
हाथ में रिवॉल्वर थमा था। अर्जुन भारद्वाज देखते ही समझ गया कि यह दोनों क्रूर हत्यारे हैं और इन्हें हत्या करने के लिए भेजा गया है। इस विचार के साथ अर्जुन भरद्वाज की पकड़, रिवॉल्वर पर और भी सख्त हो गई।
अर्जुन भारद्वाज समझ चुका था कि उसकी जरा-सी लापरवाही हमेशा के लिए उसका खेल समाप्त कर सकती है। आने वाले समय में यह होना था, या तो यह दोनों नहीं, या फिर वह नहीं। 
वह दोनों कई पल कार के समीप खड़े जंगल में देखते रहे। 
“वह जंगल में गया है।” ठिगना बोला।
 
“हाँ। मैंने भी उसे जंगल में भागते देखा था।”
“आओ।” ठिगना रिवॉल्वर सम्भाले जंगल की तरफ बढ़ा।
“वह कहीं पर छिपा हमारी घात में भी हो सकता है।” लम्बा कह उठा।
“उसके पास रिवॉल्वर हो सकता है?”
“मेरे ख्याल से तो होना चाहिए।” लम्बे ने विचारपूर्ण स्वर में कहा -“उसे अपना पीछा किए जाने का पूरा-पूरा अहसास था, तभी तो वह हमें इस सुनसान इलाके में ले आया ताकि यहाँ हमसे निपटेगा।”
“जो भी हो। जब हम बाहर आएँगे तो जंगल में उसकी लाश पड़ी होगी।” ठिगना सर्द लहजे में बोला।
“आओ।”
दोनों  रिवाल्वरें सम्भाले सावधानी से जंगल की तरफ बढ़े।
“लापरवाही मत करना।” ठिगना बोला – “उसे गोली मारने का हमें लाख रुपया मिलेगा।”
“चिंता मत करो। लाख रूपये के लिए तो मैं चार को मार सकता हूँ। यह तो एक ही है।”

“सुना है यह जासूस है। प्राइवेट जासूस।”
“प्राइवेट जासूस नहीं, भाड़े का टट्टू कहो।” लम्बे ने बुरा सा मुँह बनाकर कहा।
जंगल में प्रवेश करते ही दोनों अलग-अलग हो गए।
अर्जुन भरद्वाज तने के पीछे छिपा, दोनों की हरकतों पर निगाह रख रहा था। उसके देखते-ही-देखते लम्बू सावधानी से एक पेड़ की ओट में जा छिपा था और इससे पहले की ठिगना कोई जगह संभाल पाता, अर्जुन भारद्वाज ने रिवॉल्वर सीधा किया, होंठ भींचकर ट्रेगर दबा दिया।
फायर की आवाज के साथ ही ठिगने ने छलाँग लगा दी। वह जमीन पर लुढ़कता चला गया। गोली उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकी थी। इससे पहले कि ठिगना सम्भल पाता, जमीन पर गिरे ठिगने पर अर्जुन भारद्वाज ने पुनः फायर किया। ठिगना करवटें लेता चला गया और बच गया। इससे पहले कि अर्जुन पुनः उस पर निशाना बाँधता, ठिगने ने लेटे-ही-लेटे उछाल भरी और पेड़ के मोटे तने की ओट में हो गया।
ठिगना, अर्जुन भारद्वाज की आशा से कहीं ज्यादा चालाक निकला था। उसकी दोनों गोलियों को उसने धोखा दे दिया था। अर्जुन भारद्वाज समझ गया कि उसका वास्ता बेहद खतरनाक हत्यारों से पड़ा है। इन्हें पार पाने के लिए उसे बेहद सावधानी और चालाकी से काम लेना पड़ेगा।
अर्जुन भरद्वाज इस समय वास्तव में बेहद सतर्क था। उसकी एक आँख ठिगने की तरफ थी और दूसरी आँख लम्बे की तरफ थी, जहाँ वह छिपा हुआ था। अर्जुन भारद्वाज को अपने रिवॉल्वर का भी ध्यान था कि छः में से वह दो गोलियाँ चला चुका है। अब सिर्फ चार गोलियाँ ही बची थीं। फालबर राउंड भी उसके पास नहीं थे। यानी कि चार गोलियाँ और दो दुश्मन थे।
तभी उसे लम्बू का सिर दिखाई दिया। वह मुंडी बाहर निकालकर देखने का प्रयत्न कर रहा था। अर्जुन भारद्वाज ने पलक झपकते ही रिवॉल्वर सीधा किया और ट्रेगर दबा दिया। 
फायर की तीव्र आवाज गूँजी। लम्बू ने तुरन्त अपना सिर पीछे किया, परन्तु जल्दबाजी में उसका कंधा पेड़ के तने  से बाहर आ गया। अर्जुन भारद्वाज ने स्पष्ट देखा, गोली उसके कंधे में जा धँसी थी और वहाँ खून का लाल धब्बा प्रकट होता हुआ नज़र आया, फिर कंधा तने की ओट में हो गया।
कोई चीख नहीं। कोई कराह नहीं।
अर्जुन भारद्वाज को मानना पड़ा कि लम्बू वास्तव में बेहद सख्त जान है।
अब उसके रिवॉल्वर में सिर्फ तीन गोलियाँ बचीं थी। वह होंठ भींचे उसी प्रकार खड़ा रहा। 
कई पल इसी प्रकार मौत की खामोशी के बीच बीत गए।
तभी उसके कानों में दबी-दबी आहट गूँजी। अर्जुन भारद्वाज सतर्क हो गया और दबी हुई आहट का मतलब समझने की चेष्टा करने लगा। कई पल बीत गए। रुक-रुककर दबी हुई आहट बेहद करीब महसूस होने लगी। अगले ही पल अर्जुन के होंठ भिंच गए। चेहरा एकाएक बेहद कठोर हो गया।
यह मध्यम-सी आहट तने के दूसरी तरफ से आ रही थी। 
अर्जुन भारद्वाज मोर्चा सम्भालने के लिए तैयार हुआ ही था कि एकाएक पीछे से कूदकर ठिगना सामने आ गया। उसके बाद जो कुछ भी हुआ,  तूफानी अंदाज में हुआ। सामने आते ही ठिगने ने रिवॉल्वर सीधी की और फायर कर दिया। अर्जुन ने तुरंत खुद को जमीन पर गिरा लिया। गोली तने में धँसती चली गई। इससे पहले कि ठिगना फिर फायर कर पाता, अर्जुन भारद्वाज ने तुरंत फायर किया।
ठिगने ने फौरन अपनी जगह छोड़ दी। गोली उसकी पिंडली में लगी। ठिगने ने एक हाथ से पिंडली को थामा और दूसरे हाथ में थमी रिवॉल्वर से पुनः फायर किया।
अर्जुन भारद्वाज ने जमीन पर ही दो-तीन लुढ़कनियाँ ले लीं।
गोली जमीन ने जा धँसी। अर्जुन भारद्वाज ने फौरन खुद को सम्भालकर रिवॉल्वर सीधी की परन्तु ठिगना गायब था। वह पलक झपकते ही कहीं जा छिपा था। अर्जुन भारद्वाज तुरंत जमीन से उठा और अन्य पेड़ के तने की ओट ले ली।  वह बाल-बाल बचा था। अब लम्बू का कंधा घायल था और ठिगने की पिंडली में गोली लगी थी। दोनों ही घायल थे। अर्जुन भारद्वाज को अब पहले से भी ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता थी, घायल दुश्मन कुछ भी कर सकने की हिम्मत रखता था।
अर्जुन भारद्वाज ने अपने रिवॉल्वर पर निगाह मारी। सिर्फ दो गोलियाँ शेष थीं उसमें और दो दुश्मन थे। यानी कि अब हर गोली निशाने पर लगनी जरूरी थी। नहीं तो उसके लिए जान बचाना कठिन हो जाएगा। अर्जुन भारद्वाज ने उस पेड़ की तरफ झाँका, जहाँ लम्बू छिपा था। वह नजर नहीं आया।
ठिगना जाने किस दिशा में जा छिपा था। उसकी निगाहों में ठिगना ज्यादा खतरनाक था। जिस तरह उसने सामने आकर उस पर फायर किया था। वह वास्तव में हौसला बुलंदी का काम था। ऐसे लोग बहुत खतरनाक होते हैं, जो अपनी जान की परवाह न करके, दूसरे की जान लेने की चेष्टा करते हैं।
तभी फायर हुआ। गोली पेड़ के तने से जा लगी। अर्जुन भारद्वाज के होंठ भिंच गए। फायर लम्बू की तरफ से हुआ था। उसने क्षण भर के लिए झाँका। फायर करके लम्बू पुनः पेड़ की ओट में हो चुका था। उसने चारों तरफ निगाह मारी। ठिगना कहीं भी नज़र नहीं आया। अर्जुन ने मन-ही-मन खतरनाक फैसला किया और एकाएक दौड़ा। उसके दौड़ने की दिशा, वह पेड़ था, जिसके पीछे लम्बू छिपा था। जानबूझकर उसने क़दमों की आहट ज्यादा की। 
आहट सुनकर लम्बू ने पेड़ के तने से सिर बाहर निकालकर झाँका।
यही तो अर्जुन भारद्वाज चाहता था। उससे पहले ही वह सिर को वापस तने के पीछे छिपा पाता, दौड़ते-दौड़ते ही अर्जुन भारद्वाज ने रिवॉल्वर सीधा करके ट्रेगर दबा दिया।
गोली लम्बू की खोपड़ी में लगी। अगले ही पल धड़ाम से वह नीचे जा गिरा। अर्जुन दौड़ता हुआ उसी पेड़ के तने के पीछे जा छिपा। लम्बू की लाश उसके पैरों में पड़ी थी। अर्जुन होंठ भींचे दायें-बायें देखने लगा। ठिगना उसे कहीं भी नज़र नहीं आ रहा था। एक को तो उसने खत्म कर दिया था, अब सिर्फ ठिगना बचा था, जिसकी पिंडली घायल थी।
जब काफी देर तक कोई शोर कोई आहट नहीं हुई तो रिवॉल्वर सम्भाले अर्जुन पेड़ के तने की ओट से निकला और आसपास देखता हुआ सावधानी से आगे बढ़ने लगा।
कुछ ही पलों में उसने आसपास का सारा इलाका छान मारा। ठिगना कहीं नज़र नहीं आया। अर्जन भारद्वाज असमंजसता में घिर गया कि ठिगना एकाएक कहाँ चला गया। अगर वह भाग गया होता तो सड़क पर खड़ी कार स्टार्ट होने की आवाज अवश्य आती। इसका मतलब कि वह कहीं छिपा है। उसकी पिंडली घायल थी।
गोली लगी थी। ऐसी स्थिति में वह ज्यादा दूर जा भी नहीं सकता था।
एकाएक अर्जुन भारद्वाज ठिठका! उसके कानों में साँस लेने की हल्की-सी आवाज पड़ी थी। 
रिवॉल्वर पर उसकी उँगलियाँ सख्ती से जम गई । सावधानी से वह आस-पास देखने लगा। साँसों की आवाज सुनने की चेष्टा करने लगा, परन्तु फिर उसे किसी प्रकार की कोई आहट वगैरह नहीं सुनने को मिली। जबकि अर्जुन भारद्वाज को विश्वास था कि ठिगना कहीं आस-पास ही है। साँसों की आवाज उसने स्पष्ट सुनी थी। इसका मतलब वह कुछ ज्यादा ही घायल था। गोली ने कुछ ज्यादा ही असर दिखा दिया होगा।
अर्जुन भारद्वाज इस बात के प्रति भी सावधान था कि कहीं ठिगना उसे गोली का निशाना न बना दे।
तभी उसकी निगाह झाड़ियों में पड़ी। काली जैकेट की झलक उसे स्पष्ट मिली। अर्जुन भरद्वाज ने फौरन अपनी जगह छोड़ी और पेड़ों के झुरमुट की ओट में हो गया। होंठ भिंच चुके थे। रिवॉल्वर पर पकड़ मजबूत हो चुकी थी। अब इस बात में कोई शक नहीं था कि ठिगना झाड़ियों में छिपा बैठा था। अर्जुन भारद्वाज की निगाहें झाड़ियों में जा टिकीं। जहाँ कोई भी हलचल नहीं हो रही थी।
कुछ देर बाद अर्जुन भारद्वाज पेड़ों के झुरमुट की ओट से बाहर निकला और दबे पाँव झाड़ियों की तरफ बढ़ने लगा। झाड़ियों से चंद फीट दूर पहुँचते ही वह ठिठका! उसकी पैनी निगाहें झाड़ियों पर थीं।
एकाएक उसे झाड़ियों में हलचल मिली। तभी उसकी आँखों से लाल सुर्ख आँखें टकराई। ठिगने की लाल सुर्ख आँखें! धीरे-धीरे ठिगने का पूरा हाल उसके सामने स्पष्ट होने लगा। स्पष्ट नजर आ रहा था कि उसकी पिंडली नाकारा हो चुकी थी। दोनों हाथों से उसने लहूलुहान पिंडली को थाम रखा था। उसकी चलाई गोली पिंडली की हड्डी तोड़ गई थी। ठिगने का चेहरा अब निचुड़ा-निचुड़ा सा लग रहा था। उसके निचुड़े चेहरे पर दर्द-ही-दर्द था। उसकी टाँग तो फिलहाल नाकारा हो गई थी। अर्जुन भारद्वाज की निगाह झाड़ियों से कुछ दूर पड़ी जहाँ ठिगने का रिवॉल्वर गिरा पड़ा था।
अर्जुन भारद्वाज ने गहरी साँस ली। अगर ठिगने के पास उसकी रिवॉल्वर होती तो, अब तक वह उस पर कई गोलियाँ चला चुका होता। अर्जुन  भारद्वाज अब खुलकर आगे बढ़ा और झाड़ियों के समीप पहुँचकर ठिठक गया। ठिगने की लाल सुर्ख आँखों से उसकी आँखें टकराई। ठिगना गुरिल्ले की भाँति लग रहा था। घायल खतरनाक गुर्रिले के भाँति! खा जाने वाली निगाहों से उसे बेबसी से घूर रहा था। चाहकर भी वह कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं था।
अर्जुन भारद्वाज ने रिवॉल्वर सीधा किया। ट्रेगर दबाया। गोली चली। ठिगने गुरिल्ले की खोपड़ी के चिथड़े-चिथड़े उड़ गए। उसके शरीर को एक तीव्र झटका लगा और वह हमेशा-हमेशा के लिए शांत हो गया। अर्जुन ने खाली हो चुके रिवॉल्वर की गर्म नाल में फूँक मारी और रिवॉल्वर जेब में डालकर आगे बढ़ गया। 
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किताब लिंक: अमेज़न
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खतरनाक आदमी
© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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