rating : 4.5/5
finished on :November 15th 2013
धरती , सागर और सीपियाँ अमृता प्रीतम जी का एक उपन्यास है ।
चेतना और उसकी सहेलियाँ चम्पा और मिन्नी जब चेतना के भाई सुमेर के जन्मदिन पर मिलती हैं तो किसी को भी यह एहसास नहीं होता है कि उनका जीवन कैसा रुख लेगा । सभी उम्र के उस पड़ाव पे होते हैं जब इश्क उनके दिल में पहली बार दस्तक देता है।
इसी पार्टी में इक़बाल भी है, जिसे चेतना पसंद करती है ।
आगे का उपन्यास इन सभी पात्रों कि कहानी बयान करता है कि कैसे उम्र के साथ इन पात्रों कि सोचें भी बदलती है। चेतना इस उपन्यास कि नायिका है। वह एक स्वाभिमानी और स्वावलम्बी स्त्री है, जो इक़बाल को प्यार तो करती है पर उसपे वह किसी बात का दबाव नहीं डालना चाहती है। यही नहीं वह बहुत mature है और उसमें ममत्व है।
मुझे यह उपन्यास काफी पसंद आया। इसकी कहानी काफी दिलचस्प है और यह उपन्यास इस साल पढ़े हुए सबसे बेहतरीन उपन्यासों में से है। उपन्यास पढ़ते समय आप चेतना को admire करने से खुद को रोक नहीं सकते हैं। बस इस उपन्यास की केवल एक ही कमी दिखी की इसकी टोन थोडा सा depressing थी । जितने भी किरदार इस कहानी में थे सभी की ज़िन्दगी में गम और डिप्रेशन था। ये मानना थोड़ा मुश्किल था की इतने लोगों में से कोई भी अपनी ज़िन्दगी से खुश नहीं था।
उपन्यास की कुछ पंक्तियाँ जो दिल को छू गई
होनी कई बार इस तरह सालों चुप साधे बैठी रहती हैं जैसे उसने अपने मुँह में घुघनी दल रखी हो।
खुदा अगर एक हाथ से कहर कमाता है, तो दूसरे हाथ से कितनी बड़ी मेहर कर देता है।
बंगले की बात सुनकर अम्मा की आँखों में एक सपना उतर आना चाहिए था, पर अम्मा ने अपनी आँखें इस तरह झपकीं जैसे कोई सपना आँखों की तरफ आता भी हो तोह दूर चला जाए।
मुझे सपनो से बड़ा खौफ आता है…….मूझे यही झोंपड़ी अच्छी है,जहाँ मैंने अपने बेटे की छाया में उमर काटी है,बाकी दिनों में भी मुझे बस उसकी छाया की जरूरत है,और कुछ नहीं चाहिए।……
अम्मा जब बोल रही थी तोह चेतना ने पहली बार जिंदगी के इस भेद को समझा की इकबाल के लगाए हुए चाहे सारे पौधे टेढ़े थे, उनकी छाया भी सीधी नहीं थी,पर उसके दिल का पेड़ सीधा तनकर खड़ा था,और उस पेड़ के पास अपनी माँ के लिये अत्यन्त घनी छाया थी।
एक मुस्कान सुमेर के होंठों पर आकर, होठों के एक कोने में इस तरह आ ठहरी थी, जैसे थक गयी हो।
जिस टहनी को सुमेर ने हाथ में लिया,उस टहनी के होटों में एक छोटा सा फूल अटका हुआ था। फूल का बदन इस तरह मुरझाया हुआ था जैसे वह भी टहनी की मुस्कान हो और जैसे वह भी थक गयी हो।
उपन्यास का लिंक: अमेज़न
अमेज़न में मौजूद अमृता प्रीतम के अन्य उपन्यास
अमृता प्रीतम
Post Views: 17
Hi Vikas, fascinating summary indeed. I am looking to gift this book to someone but this is not available at this moment. Any help you can offer please? suggesting me the book store from where I can purchase. my mail-id is ravinalle@gmail.com
Thanks a lot!
/Ravi
I also tried searchcing for it but couldn't get anything. I think it was published by hind pocket books so one can get it from the publisher. I'll try finding it and once i get it i'll inform you.