लोकप्रिय हिन्दी लेखन की बात आती है जो मुकाम वेद प्रकाश शर्मा ने हासिल किया है वह कम ही लेखकों को हुआ है। अपने पाठकों को दिमाग नसें चटकाने वाले ऐसे ऐसे कथानक दिए हैं कि वह उनका उपन्यास शुरू करते थे और खत्म करके ही उठते थे। ऐसे में उनके पाठकों को यह इच्छा जरूर होगी कि वह जाने कि वेद प्रकाश शर्मा लेखक वेद प्रकाश शर्मा कैसे बने? अपने शुरुआती दिनों में वह कैसे थे? उन पाठकों की इसी इच्छा का फल योगेश मित्तल की आने वाली किताब ‘वेद प्रकाश शर्मा: यादें, बातें और अनकहे किस्से’ है। योगेश मित्तल हिंदी लोकप्रिय साहित्य की दुनिया में कई दशकों से सक्रिय रहे हैं। कई ट्रेड नामों से उन्होंने लेखन किया है और वह वेद प्रकाश शर्मा के मित्र भी रहे हैं। उन्होंने फेसबुक पर जब वेद प्रकाश शर्मा से जुड़े अपने संस्मरण साझा करने शुरू किए तो सभी तो लगा था कि यह एक पुस्तक के रूप में हो तो हिन्दी लोकप्रिय लेखन के मुरीदों के लिए एक संग्रहणीय पुस्तक बन सकती है। अब वह संस्मरण और बहुत कुछ अतिरिक्त ‘वेद प्रकाश शर्मा: यादें, बातें और अनकहे किस्से’ के रूप में नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित होकर आ रहें है।
इसी उपलक्ष्य में एक बुक जर्नल ने योगेश मित्तल से बातचीत की है। इस बातचीत में हमने पुस्तक और वेद प्रकाश शर्मा से जुड़े कुछ प्रश्न उनसे पूछे। उम्मीद है यह साक्षात्कार आपको पसंद आएगा।
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प्रश्न: नमस्कार सर, एक बुक जर्नल में आपका स्वागत है। सर्वप्रथम तो आपको आपकी नवीन पुस्तक के लिए हार्दिक बधाई। इस साल यह आपकी तीसरी पुस्तक (प्रेत लेखन, रिवॉल्वर का मिजाज और अब वेद प्रकाश शर्मा: यादें, बातें और अनकहे किस्से) है जो कि प्रकाशित हो रही है। कैसा लग रहा है?
उत्तर: अच्छा लग रहा है। ख़ास तौर पर इसलिए भी कि आज जब बहुत से नए लेखकों को छपने के लिए स्वयं प्रकाशक बनना पड़ रहा है – नई पीढ़ी या यूँ कहिये कि युवा पीढ़ी के प्रशंसकों और मित्रों ने घर बैठे मुझे फिर से छपने का रास्ता दिखा दिया और अनेक प्रकाशकों को मुझे छापने की सलाह भी दी और अनुरोध भी किया, जिसकी वजह से यह लिखना-छपना संभव हो पाया । इसके लिए मैं अपने युवा मित्रों का शुक्रगुज़ार और आभारी हूँ।
प्रश्न: आपकी नवीन पुस्तक वेद प्रकाश शर्मा के विषय में हैं। आपकी और उनकी दोस्ती काफी पुरानी रही है। ऐसे में उनके साथ बिताए लम्हों को पुस्तकाकार रूप देना कैसा अनुभव रहा?
उत्तर: दरअसल इसे पुस्तक के रूप में छपवाने के लिए वेद पर लिखना आरम्भ नहीं किया था। वेद प्रकाश शर्मा के फेसबुक में असंख्य प्रशंसक हैं, उन्हीं में से बहुतों ने अनुरोध किया था कि मैं वेद जी के बारे में लिखूं तो यह क्रम फेसबुक में आरम्भ किया था। नहीं पता था कि यह इतना पसंद किया जाएगा कि इसे पुस्तकाकार देने की माँग उठने लगेगी! आपने और रामपुजारी जी ने तो यह सलाह दी ही थी। अनेक मित्रों ने ‘प्रेत लेखन’ से मेरा फोन नंम्बर लेकर इस सन्दर्भ में फ़ोन भी किया और फिर सुबोध भारतीय जी ने भी वेद जी को श्रद्धांजलि के रूप में इस पुस्तक को प्रकाशित करना अपनी योजनाओं में सम्मिलित कर लिया। वेद को याद करना तो सुखद था, लेकिन आज वह हमारे बीच नहीं है, यह पीड़ा तो हर बार यह किताब देखते ही उत्पन्न होगी।
यह तस्वीर लेखक योगेश मित्तल ने मेरठ में डीेे एन कॉलेज के सामने फर्स्ट फ्लोर पर तुलसी पॉकेट बुक्स के ऑफिस में वेद प्रकाश शर्मा की यह तस्वीर योगेश मित्तल ने जर्मन लुबिटेल कैमरे से खींची थी। |
उन दिनों योगेश मित्तल |
प्रश्न: लेखक वेद प्रकाश शर्मा और व्यक्ति वेद प्रकाश शर्मा को आप कैसा पाते हैं?
उत्तर: लेखक के रूप में वेद प्रकाश शर्मा कैसे थे, यह जगज़ाहिर है। एक इंसान के रूप में वह कैसे थे, यह उनके प्रियजन पारिवारिक लोग और पड़ोसी बेहतर बता सकते हैं। हाँ, एक दोस्त के रूप में वह एक हीरा था। वेद के दोस्तों ने न केवल दोस्त खोया है, बल्कि हीरे जैसा दोस्त खोया है।
प्रश्न: वेद प्रकाश शर्मा का कद काफी ऊँचा था, यह बात तो सभी मानते हैं। आपकी नजर में वह एक ऐसी कौन सी बात है जो कि नवागंतुक लेखक वेद प्रकाश शर्मा से सीखकर अपने जीवन में उतारें तो वह बेहतर कर पाएंगे? वहीं व्यक्ति वेद प्रकाश शर्मा की एक बात जो हम अपने जीवन में उतार कर अपने जीवन को बेहतर कर सकते हैं?
उत्तर: नवागंतुक लेखकों को वेद से अपने कार्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित भावना से, एक जूनून से, कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश रखते हुए बेहतर से बेहतर और नये से नया विषय लेकर रोचक ढंग से लिखने की कला सीखनी चाहिए। उसके उपन्यासों को न केवल एक पाठक की तरह पढ़ना चाहिए, बल्कि लेखन कला के विद्यार्थी की तरह उसकी लेखन शैली का अध्ययन करना चाहिए। उपन्यास के कथानक को किस तरह फैलाया जाता है, कैसे-कैसे झटके दिए जाते हैं और किस तरह सारे चरित्रों को समेटकर एक बेहद खूबसूरत अंत किया जाता है यह सब नवागंतुक और युवा लेखकों को उससे सीखना चाहिए।
हमें व्यक्ति वेद से पत्नी, बच्चों, माता-पिता और परिवार के प्रति अपनी समस्त जिम्मेदारियों का भली-भाँति निर्वहन करना सीखना चाहिए। वेद अपने परिवार, पड़ोसियों और मित्रों में जिस तरह लोकप्रिय था, हमें भी खुद को वैसा ही लोकप्रिय बनाने की चेष्टा करनी चाहिए।
प्रश्न: कई बार जब हम चीजों को कलमबद्ध करने की कोशिश करते हैं तो कई बार कुछ ऐसा भी याद जाता है जो हमारे जहन द्वारा भुला दिया गया था। मुझे यकीन है इस पुस्तक को लिखने के दौरान भी ऐसा ही हुआ होगा। कोई ऐसी बात जो आप पाठकों के साथ साझा करना चाहते हों?
उत्तर: बहुत कुछ मैंने लिखने में जानबूझकर या अनजाने में भुला दिया है, उस में एक बात यह है कि दरीबा कलां से शक्तिनगर के लिए ऑटो पकड़ने से पहले हमने डंडी वाली कुल्फी खाई थी। पैसे वेद ने दिए थे।
(इस बात का संदर्भ तो आप पुस्तक पढ़कर ही जान पाएँगे कि वेद जी और योगेश जी दरीबा कलाँ से शक्तिनगर क्यों जा रहे थे। )
वेद प्रकाश शर्मा की यह फोटो योगेश मित्तल ने मिनोल्टा हॉटशॉट कैमरे से कीर्तिनगर नामधारी कॉलोनी में खींची थी। |
प्रश्न: हर व्यक्ति के जीवन के कुछ उजले पक्ष भी होते हैं और कुछ स्याह पक्ष भी होते हैं। वैसे तो यह वेद प्रकाश शर्मा की जीवनी नहीं है। आपके संस्मरण और आपकी नजर में वो कैसे थे यह इसमें दर्शाया गया है। क्या आपने इस पुस्तक में लेखक वेद प्रकाश शर्मा के हर पक्ष को उभारने की कोशिश की है या आपने सेल्फ सेंसरशिप भी की है?
उत्तर: वेद के मन के दुःख को शायद मैंने विस्तार से देने में कोताही की है। प्रकाशकों से बहुत ज्यादा इज़्ज़त मिलने के बावजूद अनेक बार उनके दिल को किस कदर ठेस लगी, इस बार में मैंने अधिक नहीं लिखा। दरअसल बहुत सी बातें उनकी जीवनी में लिखे जाने के लिए छोड़ दी हैं, जिनमे से एक यह भी है कि वे निराश और उदास बहुत जल्दी हो जाते थे। यह और बात है कि निराशा और उदासी के गर्त से निकलने के बाद वे दुगुने जोशोखरोश से काम में (लेखन कार्य में) लग जाते थे।
प्रश्न: वेद प्रकाश शर्मा के परिवार का इस पुस्तक के विषय में क्या सोचना था? क्या आपकी इस विषय में उनसे बातचीत हुई है? उन्होंने यह पुस्तक पढ़ी है?
उत्तर: वेद के पूरे परिवार से तो मेरी इस पुस्तक के बारे में कोई बात नहीं हुई, लेकिन उनके पुत्र शगुन शर्मा से बात हुई थी। वह चाहते थे कि वेद के बारे में, मैं जो भी लिखूँ – तुलसी पेपर बुक्स के बैनर से प्रकाशित हो, लेकिन पुस्तक व्यवसाय के ट्रेड में मेरी छवि हमेशा एक सच्चे और बेहद ईमानदार शख्स की रही है और मैं सुबोध भारतीय जी से पुस्तक कम्पलीट करके देने का वचनबद्ध था और अब उम्रदराज स्थिति में अपना नियम और वचन तोड़ने का कोई औचित्य नहीं था। इसलिए मैंने शगुन शर्मा जी को सुबोध भारतीय जी से बात करने की सलाह दी। उन्होंने बात की और अंततः सुबोध भारतीय जी ने ही पुस्तक का प्रकाशन किया।
प्रश्न: आपने वेद प्रकाश शर्मा को लेकर फेसबुक पर यादें वेद प्रकाश शर्मा की नाम से शृंखला भी पोस्ट की थी। 20 के करीब भाग आपने उस वक्त पोस्ट किए थे। क्या इस पुस्तक में उन भागों को भी शामिल किया गया है और वह इस पुस्तक का कितना प्रतिशत हिस्सा बनती हैं?
उत्तर: हाँ, फेसबुक में प्रकाशित घटनाक्रम भी है, किन्तु परिवर्तित ढंग से। आरम्भ और अंत भिन्न है। मेरे विचार से फेसबुक में प्रकाशित मैटर से संभवतः दुगुना मैटर पुस्तक में मिलेगा।
प्रश्न: आपकी पिछली किताब का फॉर्मैट और शीर्षक को लेकर कुछ पाठकों को कन्फ्यूजन हो गया था। इसके लिए आपने स्पष्टीकरण भी दिया था। क्या इस पुस्तक के शीर्षक और विषयवस्तु का चयन करते हुए पिछली प्रतिक्रियाएँ ध्यान में थीं?
उत्तर: हाँ, इसलिए आरम्भ में ही यह स्पष्ट किया है कि यह पुस्तक वेद की जीवनी नहीं है। सिर्फ हम दोनों के बीच की मुलाकातों का लेखा-जोखा है। इसमें पुस्तक लेखन और व्यवसाय से सम्बन्धित वे जानकारियाँ भी हैं, जो संभवतः पाठकों ने पहले कभी नहीं पढ़ी होंगी।
प्रश्न: मुझे यकीन है कि वेद प्रकाश शर्मा के प्रशंसक के लिए यह पुस्तक संग्रहणीय होगी। उसे इस पुस्तक के माध्यम से अपने प्रिय लेखक के विषय में जानने का मौका मिलेगा। पर एक आम पाठक इस पुस्तक से किस चीज की उम्मीद कर सकता है? आप इस पर कुछ रोशनी डालेंगे?
उत्तर: आम पाठक इसे पुस्तक व्यवसाय से जुड़ी बहुत सारी कहानियाँ एक कहानी के रूप में पढ़ सकता है, जिससे उसे पुस्तक व्यवसाय और दो मित्र लेखकों के बारे में बहुत कुछ पता चलता है।
प्रश्न: आखिर में प्रस्तुत पुस्तक से इतर एक सवाल पूछना चाहता हूँ। हाल ही में नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित तहकीकात पत्रिका में आपकी लिखी एक अपराध कथा प्रकाशित हुई है। इस कहानी के विषय में बताएँ और क्या भविष्य में पाठक आपसे किसी समसामयिक विषय पर आधारित अपराध उपन्यास की अपेक्षा कर सकते हैं?
उत्तर: दरअसल तहकीकात के पहले अंक में एक कहानी लिखो प्रतियोगिता के लिए एक चित्र और कुछ क्लू दिए गए थे। उस पर तहकीकात कार्यालय में पाठक लेखकों की कोई बेहतरीन कहानी नहीं आई थी, इसलिए सुबोध भारतीय जी ने मुझे उक्त विषय पर कहानी लिखने को कहा और मैंने कम से कम शब्दों में एक कहानी लिख दी।
भविष्य में तहकीकात में कुछ और कहानी प्रकाशित होंगी। अगले अंक में ‘कान का बुन्दा’ और उसके बाद भी दूसरी कहानियाँ आएँगी। हाँ, कुछ उपन्यास भी आयेंगे तथा सुबोध भारतीय जी ही मेरी बहुचर्चित पुस्तक “बाहुबली भगवान परशुराम” प्रकाशित करेंगे, जो कि इक्कीस बार पृथ्वी क्षत्रियविहीन करने वाले भगवान परशुराम की गौरव गाथा है।
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(एक बुक जर्नल के लिए लेखक योगेश मित्तल से विकास नैनवाल की बातचीत)
तो यह थी ‘वेद प्रकाश शर्मा: यादें, बातें और अनकहे किस्से’ के लेखक योगेश मित्तल से हमारी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। बातचीत आपको कैसी लगी यह बताना न भूलिएगा।
पुस्तक आप नीलम जासूस कार्यालय से निम्न नंबर पर संपर्क कर क्रय कर सकते हैं:
9310032466 / 9310032470
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योगेश मित्तल जी की यह वार्ता रोचक लगी।
योगेश जी की रचना का इंतजार है।।
जी सही कहा।
योगेश मित्तल जी की रोचक वार्ता है।
वेदप्रकाश शर्मा जी की रचना का इंतजार है।
जी मुझे भी इंतजार है।
योगेश मित्तल जी का प्रयास उत्तम व सराहनीय है
मेरी जानकारी के अनुसार वेद प्रकाश शर्मा जी का प्रथम उपन्यास "सीक्रेट फ़ाइल" था जो कि 1972 मे लक्ष्मी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ था
जी रोचक जानकारी है। आभार।