परिचय:
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मनमोहन भाटिया |
मनमोहन भाटिया जी दिल्ली में रहते हैं। हिन्दू कॉलेज से बी कॉम और दिल्ली विश्विद्यालय के कैंपस लॉ सेण्टर से एलएलबी करने के पश्चात वे फाइनेंस कंसलटेंट के रूप में कार्य करते रहे थे। अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
मनमोहन जी को लेखन में हमेशा से रूचि थी और अब उसी को अपना वक्त देते हैं।
मनमोहन जी को लिखने के अलावा भ्रमण करना, संगीत सुनना और सिनेमा देखने का शौक है। प्रकृति सौन्दर्य के लिए वह पहाड़ी प्रदेशों में घूमना पसंद करते हैं। ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण में भी उनकी विशेष रूचि है। हर तरह का संगीत और सिनेमा वह देखना पसंद करते हैं।
प्रकाशित रचनाएँ:
1. सरिता, गृहशोभा, प्रतिलिपि, जयविजय, सेतु, ईकल्पना, अभिव्यक्ति, स्वर्ग विभा, अनहद कृति और नवभारत टाईम्स में प्रकाशित
2. कहानी संग्रह
“भूतिया हवेली” सितंबर 2018 प्रकाशक “फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन्स”
4. लघु उपन्यास
“कुछ नही” अगस्त 2019 प्रकाशक “फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन्स”
5. कहानी संग्रह
“पुरानी डायरी” मई 2020 प्रकाशक “फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन”
6. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाईट
hindisamay.com में कहानी संकलन।
8. बोलती कहानी
“बडी दादी” स्वर “अर्चना चावजी” रेडियो प्लेबैक इंडिया पर उपलब्ध। लिंक
9. बोलती कहानी “रोमांच” स्वर “करन गुप्ता” प्रतिलिपि पर उपलब्ध।
10. कहानी “ब्लू टरबन” का तेलुगु अनुवाद। अनुवादक: सोम शंकर कोल्लूरि।
11. कहानी “अखबार वाला” का उर्दू अनुवाद। अनुवादक: सबीर रजा रहबर (पटना से प्रकाशित उर्दू समाचार पत्र इनकलाब के संपादक) बिहार उर्दू अकादमी के लिए।
13. प्रतिलिपी साहित्यिक गोष्ठी यूटयूब पर
14. हिन्दुस्तान टाईम्स, नवभारत टाईम्स, मेल टुडे और इकॉनमिक्स टाईम्स में सामयिक विषयों पर पत्र
सम्मान एवं पुरस्कार:
1. दिल्ली प्रेस की कहानी 2006 प्रतियोगिता में ‘लाईसेंस’ कहानी को द्वितीय पुरस्कार
2. अभिव्यक्ति कथा महोत्सव – 2008 में ‘शिक्षा’ कहानी पुरस्कृत
3. प्रतिलिपि सम्मान – 2016 लोकप्रिय लेखक
आप उनसे निम्न माध्यमों से सम्पर्क कर सकते हैं:
ई-मेल: manmohanbhatia@hotmail.com
फेसबुक
‘एक बुक जर्नल’ की साक्षात्कार श्रृंखला के तहत आज हम आपके समक्ष मनमोहन भाटिया जी से की गयी बातचीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस बातचीत में मनमोहन जी के जीवन, उनके लेखन, तकनीक के विकास से लेखन पर पड़ता प्रभाव और लेखन के अलग अलग माध्यमों जैसे विषयों को हमने छुआ है।
आशा है आपको यह बातचीत पसंद आएगी।
प्रश्न: मनमोहन जी कुछ अपने विषय में पाठकों को बतायें। आपका जन्म किधर हुआ? बचपन किधर बीता, पढ़ाई, शिक्षा दीक्षा किधर हुई? नौकरी के सिलसिले में किधर किधर रहना पड़ा और अब कहाँ रह रहे हैं?
उत्तर: मेरा जन्म देश की राजधानी लोगों के दिल दिल्ली में 29 मार्च 1958 को हुआ। मेरा परिवार कपड़ा व्यवसाय से जुड़ा था। 1958 से 1988 तक मैं पुरानी दिल्ली में रेलवे स्टेशन के नजदीक श्यामा प्रसाद मुखर्जी मार्ग में रहा हूँ। हमारा परिवार सयुंक्त परिवार था। मेरे पिता और दो ताऊ एक साथ रहते थे और सयुंक्त व्यवसाय था। हम चार भाई बहन में मैं तीसरे नंबर पर हूँ। मेरे से बड़े भाई, बहन और मेरे से छोटी बहन। दोनों ताऊ के बच्चे मेरे से बड़े थे।
घर से समीप स्कूल जिसका नाम राय साहब लक्ष्मी नारायण गिरधारी लाल सीनियर सेकेंडरी स्कूल था, मैंने कक्षा ग्यारह तक पढ़ाई की। मेरे स्कूल के समय 8 + 3 का सिस्टम था। हमें आठवीं और ग्यारहवीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षा देनी होती थी। कक्षा 9 में हमें कॉमर्स, आर्ट या साइंस में से एक विषय चुनना होता था। व्यापारी पिता के पुत्र होने के नाते मैंने कॉमर्स विषय चुना। आज के युवा वर्ग को एक बात बताना चाहता हूँ कि उस समय हम कक्षा 9 में किताब खरीदते थे जो कक्षा 9, 10 और 11 में पढ़ते थे। लगभग 33 प्रतिशत कोर्स एक कक्षा में पढ़ते थे और 3 साल की पढ़ाई की बोर्ड परीक्षा होती थी। स्कूल की शिक्षा के पश्चात मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम और एलएलबी की डिग्री हासिल की। 1974 में ग्यारहवीं बोर्ड परीक्षा के बाद 1977 में हिन्दू कॉलेज से बी.कॉम और कैंपस लॉ सेंटर से 1980 में एलएलबी की डिग्री हासिल की।
पढ़ाई के बाद पिता के व्यापार में कुछ वर्ष हाथ बटाने के बाद नौकरी की। निजी क्षेत्र की विभिन्न कंपनियों में कार्यरत होने के बाद 31 अगस्त 2019 में सेवानिवृत्त हुआ। नौकरी के दौरान मैं दिल्ली में ही रहा। आफिस टूर पर देश के कई शहरों को देखने का मौका मिला। मेरा कार्यक्षेत्र वित्त, एकाउंट्स और टैक्स रहा। मेरी विशेष रुचि इनकम टैक्स में रही और अधिकांश कार्य इनकम टैक्स के इर्दगिर्द रहा।
मैं 1958 से 1988 तक पुरानी दिल्ली में रहा। 1988 से अब मेरा निवास रोहिणी में है।
प्रश्न: साहित्य के प्रीति अनुराग कब जागृत हुआ? बचपन में पढ़ी कौन सी कृतियों और लेखकों ने आपको प्रभावित किया?
उत्तर: बचपन में मेरी नानी मुझे कहानियाँ सुनाया करती थी। नानी राम और कृष्ण के जीवन से संबंधित छोटी छोटी कहानियाँ सुनाती थी। कहानियों को सुनकर मेरा रुझान कहानियों की तरफ बढ़ा। संयुक्त परिवार में मेरे से बड़े ताऊ के बच्चे उपन्यास पढ़ते थे। वो दौर गुलशन नंदा और राजहंस के उपन्यासों का था। उपन्यास प्रतिदिन के हिसाब से किराये पर मिलते थे। उन उपन्यासों को मैं भी उलट पलट लिया करता था परंतु छोटी उम्र होने के कारण मुझे अधिक समझ में नही आते थे। स्कूल की पाठ्यक्रम की पुस्तकों में मुंशी प्रेमचंद की पंच परमेश्वर और ईदगाह पढ़ी।
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के ठीक सामने दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी थी जहाँ ढेरो अनगिनित पुस्तकों का भंडार था और शाम के समय साहित्यिक समारोह भी हुआ करते थे, यह मैं अपने स्कूल के दिनों की बात बता रहा हूँ, 1968 से 1973 तक की बात है। स्कूल अध्यापकों ने हम स्कूल विद्यार्थियों को लाइब्रेरी का सदस्य बनवाया और हम नियमित रूप से लाइब्रेरी से पुस्तकें ला कर घर पर आराम से पढ़ा करते थे। हम एक साथ दो पुस्तकें 15 दिन तक रख सकते थे। यहाँ से मेरी साहित्य में रुचि जागृत हुई।
बचपन में नंदन, चंपक और चंदामामा पत्रिकाओं को खूब पढ़ा।
कॉलेज में बी.कॉम के कोर्स में मेरा हिंदी वैकल्पिक विषय था जो सिर्फ एक वर्ष पढ़ना था। कोर्स में मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास गबन पहली बार पढ़ने का अवसर मिला। सही मायनों में साहित्य की समझ, लगन और प्रेम गबन से आरंभ हुआ।
विवाह के बाद पत्नी हिंदी पत्रिका पढ़ती थी जिनमें सरिता, गृहशोभा, मुक्ता प्रमुख थीं। मैं उन पत्रिकाओं में कहानियों को पढ़ना पसंद करता था। साथ में फुरसत के पलों में मुंशी प्रेमचंद के साथ शरतचन्द्र, रविन्द्र नाथ टैगोर को पढ़ना आरंभ किया। खुशवंत सिंह, तस्लीमा नसरीन, रस्किन बांड की लेखनी से प्रभावित हुआ।
प्रश्न: आपकी पसंदीदा पुस्तको के नाम क्या हैं? क्या आप उन्हें पाठकों से साझा करना चाहेंगे।
प्रश्न: लेखन करने का विचार कब बना? वह क्या चीज थी जिसने आपको लेखन के लिए प्रेरित किया था?
उत्तर: 1998 में सामाजिक मुद्दों पर मैंने अपनी राय समाचारपत्रों में letter to editor के माध्यम से रखनी आरंभ की। हिंदुस्तान टाइम्स, नवभारत टाइम्स, इंडिया टुडे, सरिता, इकोनॉमिक्स टाइम्स और कई अन्य पत्र पत्रिकाओं में नियमित रूप से पत्र प्रकाशित होते रहे। मुख्यतः मैं अंतर्मुखी हूँ, आफिस में सहपाठियों के संग चर्चा और विचार विमर्श में मैंने महसूस किया, बेफजूल वादविवाद में समय बर्बाद करने से बेहतर पत्र, पत्रिकाओं के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करना है। अभी 4, 5 वर्ष पहले तक मैं नियमित रूप से लिखता था फिर इंटरनेट क्रांति में फेसबुक और सोशल मीडिया के बढ़ते चलन से अब इंग्लिश न्यूज़पेपर में letter to editor लगभग समाप्त ही हो गया है, हालांकि मुझे इस बात की खुशी है कि हिंदी समाचारपत्रों में पाठकों के पत्र अच्छी संख्या में प्रकाशित होते हैं।
2004 में मेरी उम्र 46 वर्ष थी। इस उम्र में बच्चों की जिम्मेदारी से मैं लगभग फ्री हो गया था। उम्र के इस पड़ाव पर कुछ ठहराव आया, कुछ अपने लिए समय मिलने लगा। अब शनिवार और रविवार अवकाश मिलने लगा। खाली समय में साहित्य पढ़ते-पढ़ते स्वयं ही लिखने की इच्छा जागृत हुई। सच में कहूँ इच्छा दिल्ली प्रेस की वार्षिक कहानी प्रतियोगिता को देख कर हुई। अब क्या लिखूँ, कैसे लिखूँ, इस समस्या से झूझने में मुझे दो वर्ष लग गए और मैं लिख नही सका। 2004 के बाद 2005 की भी वार्षिक कहानी प्रतियोगिता चली गई और मैं सोचता रह गया। इन वर्षों में मैं बस पढ़ता रहा। 2006 की वार्षिक कहानी प्रतियोगिता में दृढ़ निश्चय कर के मैंने तीन कहानियाँ लिखी। कहानी ‘लाइसेंस’ को प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार 3000 रुपये का मिला। प्रतियोगिता में भेजी गई मेरी दूसरी कहानी ‘वो बच्चे’ भी प्रकाशित हुई, तीसरी कहानी रिजेक्ट हो गई। दोनों कहानियाँ सामाजिक विषयों पर आधारित थी जो मैंने अपने इर्दगिर्द महसूस किया था।
कहानी प्रतियोगिता के निर्णय के पत्र के साथ 3000 रुपए का पहला चेक मिलते ही मैं और मेरी पत्नी अतिउत्साहित थे। खुशी का वर्णन मैं शब्दों में नही लिख सकता। पत्नी ने मुझे लिखते रहने की प्रेरणा दी और फुरसत के पलों में मैंने कलम पकड़ कर नियमित लिखना आरंभ किया। कहानी प्रतियोगिता ने मुझे लेखक बनाया। मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नही है यदि मेरी कहानियाँ चयनित नही होती तब शायद मैं कलम छोड़ देता।
इसके अलावा मैंने विख्यात मोटिवेटर दीपक चोपड़ा के पिता कृष्ण चोपड़ा की एक पुस्तक
‘आपका जीवन आपके हाथों में’ पढ़ी। इस पुस्तक में पेशे से डॉक्टर कृष्ण चोपड़ा ने कहानियों के माध्यम से बीमारियों के बारे में लिखा था। मुझे उनके लिखने का तरीका पसंद आया और मैंने सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय को कहानियों के माध्यम से लिखना आरंभ किया। मेरी कहानियाँ दिल्ली प्रेस की पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी। मेरा हौसला और आत्मविश्वास बढ़ा। सामाजिक मुद्दों के साथ मैंने प्रेम और हॉरर की भी कहानियों को लिखना आरंभ किया।
प्रश्न:पत्रिकाओं में आप लगातार प्रकाशित होते आ रहे हैं परन्तु आपकी पहली किताब का प्रकाशन बहुत देर से हुआ। इसके पीछे आप क्या कारण देखते हैं? क्या आज के समय में प्रकाशन सरल हुआ है? आप दोनों समय को किस तरह देखते हैं?
उत्तर: 2006 से 2018 तक नियमित रूप से पत्रिकाओं में मेरी कहानियाँ प्रकाशित होती रही। बहुत सी अप्रकाशित कहानियाँ मेरी डायरी में कैद थी। 2014 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर राजकुमार ने मेरी एक कहानी ‘बडी दादी’ को राजकमल प्रकाशन की रिश्तों पर आधारित श्रृंखला कहानियाँ दादा-दादी, नाना-नानी में सम्मलित किया। यह मेरे लिए गौरव की बात थी जब मेरी कहानी को मुंशी प्रेमचंद, कृष्णा सोबती जैसे दिग्गज साहित्य स्तंभ के साथ स्थान मिला। यह मेरी पहली कहानी पुस्तक में प्रकाशित हुई। इस प्रकाशन के बाद मैंने पुस्तक प्रकाशन की सोची परंतु पेड प्रकाशन के दौर ने मेरा इरादा कुचल दिया। मैं धन दे कर पुस्तक प्रकाशन के हक में दो कारणों से नही था, एक तो मैं एक मोटी रकम दे कर पुस्तकों का ढेर अपने घर में नही रखना चाहता था क्योंकि पेड प्रकाशक पुस्तक बेचने में रुचि नही रखते हैं और दूसरा कारण आर्थिक भी था, एक मोटी रकम को मेरा बजट इनकार करता रहा। मेरी कहानियाँ पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही, फिर ऑनलाइन प्लेटफार्म प्रतिलिपि आया जिससे मेरे नाम को आगे बढ़ाने में थोड़ी बहुत सहायता मिली। प्रतिलिपि से 2016 का लोकप्रिय लेखक अवार्ड भी मिला। मुझे प्रोत्साहन मिलता रहा और मैं लिखता रहा। लेखन में मैं लगातार सक्रिय रहा। मेरा उद्देश्य एक खजाना बनाने का रहा कि जब भी कभी कोई प्रकाशक मिलेगा तब कहानियों का खजाना उसके सामने रखूंगा। कहते हैं, जहाँ चाह वहाँ राह, 2018 में फ्लाई ड्रीम्स की ईमेल मिली, वे रॉयल्टी बेस पर परंपरागत तरीके से भूत प्रेत पिसाच सीरीज की पुस्तकें प्रकाशित करना चाहते हैं। मैंने अपनी लिखी भूतों पर आधारित कुछ कहानियों को फ्लाई ड्रीम्स भेजा। उन्होंने मेरी पहली पुस्तक ‘भूतिया हवेली’ प्रकाशित की। निशुल्क पुस्तक प्रकाशन में फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन्स का कार्य सराहनीय है। यह नए लेखकों के लिए एक उत्तम माध्यम है। फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन्स ने मेरे साथ अनेक नए युवा लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित की हैं। फ्लाई ड्रीम्स के माध्यम से पुस्तक प्रकाशन सरल हो गया है। ऐसे माध्यम की मैं वर्षो से तलाश कर रहा था।
प्रश्न: सर आपने हॉरर कहानियाँ भी लिखी है और सामाजिक कहानियाँ भी। आप कविता भी लिखते हैं और कुछ दिनों पहले यात्रा संस्मरण भी लिखा था। आपको व्यक्तिगत तौर पर किस तरह का लेखन पसंद है?
उत्तर: व्यक्तिगत रूप से मुझे हर शैली में लिखना पसंद है। मैंने शुरुआत सामाजिक कहानियों से की, मैं अपनी कहानियों के पात्र जीवन के इंद्रधनुषी रंगों से लेता हूँ जिसमें ज्वलंत सामाजिक मुद्दे भी हैं, हास्य भी है, प्रेम भी है, डर भी है, रहस्य भी है, कपोल कल्पना भी है, संस्मरण भी है, अपराध भी है इसलिए जब भी जीवन का कोई रंग प्रभावित करता हैं उस पर कलम चलती है। मैं हर विद्या की पुस्तकें पढ़ता हूँ इसलिए हर शैली में लिखना भी पसंद है। जीवन में हर रंग का अपना विशेष महत्व है, हमें एक रंग में नही बंधना चाहिए। हर रंग और विद्या का हमें आनंद लेना चाहिए।
प्रश्न: क्या आपकी अलग अलग शैलियों में किये गये लेखन की रचना प्रक्रिया में फर्क होता है। मसलन जब आप हॉरर लिखते हैं तो मानसिक स्थिति क्या होती है? आप लेखक के तौर पर क्या दर्शाना चाहते हैं? वहीं एक सामाजिक लेखन करते हुए आप क्या सोचते हैं? उसमें क्या दर्शाना चाहते हैं?
उत्तर: हर शैली की रचना लिखते समय लेखक की मनोदशा जुदा होती है। विषय में डूब कर ही लिखा जाता है। सामाजिक मुद्दे पर लिखते समय मन मस्तिष्क में उसका कारण और यथासंभव उपाय घूमते हैं जिन्हें कलम लिखती है। कहानियों के माध्यम से एक संदेश छोड़ने का प्रयत्न करने का प्रयास करता हूँ। प्रेम लिखते समय अपने ख्यालों को प्रेम की सोच में डुबाना पड़ता है और हॉरर लिखते समय भी मनोदशा को हॉरर के अनुरूप ढालना अति आवश्यक है। जब तक हम उस स्थिति को स्वयं महसूस नही करेंगे तब तक हम एक अच्छी रचना का सृजन नही कर सकते है। रचना लिखते समय मेरी कोशिश रहती है, पाठक उसे अपने इर्दगिर्द महसूस करें, वास्तविकता का अनुभव करें।
प्रश्न: आजकल साहित्य का रस लेने के लिए ई बुक, ऑडियो बुक , ऑनलाइन (यानी ब्लॉग, इन्टरनेट पत्रिका) आदि माध्यम उत्पन्न हो गये हैं। आपकी रचनाएँ इन माध्यमों में भी प्रकाशित हुई हैं। इन माध्यमों को आप किस तरह से देखते हैं। इन माध्यमो में क्या अच्छा है और कहाँ सुधार की आवश्यकता है?
उत्तर: समयानुसार हम सब अपने को बदलते हैं। आज लेखक और पाठक, दोनों के पास अनेक विकल्प है। पुस्तकों के साथ ई पत्रिका, ऑडियो बुक, ई बुक का भी समांतर स्थान है। सर्वप्रथम मैं ऑडियो बुक पर अपने विचार रखता हूँ। मैं हिंदी में लिखता हूँ, मेरे अनेक गैर हिंदी भाषी मित्र और सहपाठी हैं जो हिंदी बोलते और समझते हैं परंतु हिंदी पढ़ नही सकते हैं। वे मेरी पुस्तक इसी कारण से नहीं पढ़ सकते हैं। मेरी कुछ कहानियों की ऑडियो बुक हैं जो उन्होंने सुनी। अपनी कहानियों को उनके समीप पहुंचाने का यह एक उत्तम माध्यम है। ई पत्रिका के माध्यम से हमारी रचना विश्व के हर कोने में हिंदी पढ़ने वालों के पास सरलता से उपलब्ध होती हैं जिससे हमें अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी मिलती है। ब्लॉग भी अपना संदेश पाठकों के बीच रखने का उत्तम माध्यम है। ई-पत्रिका संपादक की नजर से गुजर कर प्रकाशित होती है, अतः मैंने उनका स्तर अच्छा पाया है। ऑडियो बुक के स्तर में सुधार की आवश्यकता है, मैंने कई अच्छी कहानियों के खराब ऑडियो सुने हैं जिन्होंने अच्छी बेहतरीन कहानियों का बिस्तर गोल करने में कोई कसर नही छोड़ी है।
प्रश्न:कहा जाता हिन्दी के पाठक कम हो रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि नये पाठक नहीं बन रहे हैं। नया पाठक इसलिए नहीं बन पा रहा है क्योंकि अच्छे बाल साहित्य की अनुपलब्धता भी है। यहाँ अच्छे से मेरा तात्पर्य है ऐसा साहित्य जो बाल पाठकों में पढ़ने की ललक जगाए। आप इस विषय में क्या सोचते हैं? क्या आप बाल साहित्य के क्षेत्र में कुछ कर रहे हैं?
उत्तर: मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ कि पढ़ने की नींव बचपन में पढ़ती है। अच्छा बाल साहित्य आजकल न के बराबर लिखा जा रहा है। बच्चों में पढ़ने की ललक है, उसके लिए हल्के फुल्के हास्य अंदाज में पुस्तकों की अति आवश्यकता है। मैं अपना निजी अनुभव सांझा करता हूँ, एक हास्य बाल कविता मैंने अपने पोते को सुनाई ‘आटा बाटा सैर सपाटा बिल्ली ने कुत्ते को काटा’ यह हास्य कविता सुन कर उसने हास्य शैली में कहानी, कविता की पुस्तकों की मांग की। हमें बच्चों को हल्के फुल्के अंदाज में पढ़ने की पुस्तकें प्रकाशित करनी है। इन पुस्तकों से बच्चों में पढ़ने की ललक बढ़ेगी और नए पाठक हम सब के लिए मिलेंगे। पढ़ने की रुचि एक बार जागृत करनी है फिर बच्चे स्वयं पढ़ना आरंभ करते हैं फिर पढ़ने का नशा कभी समाप्त नही होता है।
मैंने आजतक कभी बाल साहित्य नही लिखा है। मैं अब महसूस कर रहा हूँ, मुझे बाल साहित्य लिखना चाहिए। भविष्य में मैं आपको निराश नही करूँगा।
प्रश्न:आजकल आप क्या लिख रहे हैं? आपके पाठक आने वाले समय में क्या कुछ नया पढ़ने की उम्मीद लगा सकते हैं?
उत्तर: मैंने अभी फंतासी लिखा है जो एकदम नई शैली में है, शायद ऐसा प्रयोग भारत में अभी नही हुआ है। अभी मेरा हॉरर उपन्यास ‘अदृश्यम’ पाठकों के सम्मुख होगा। पॉकेट एफ एम के लिए ऑडियो बुक ‘तुम्हारी काव्या’ लिखी है। फिलहाल इस समय हॉरर लिख रहा हूँ। भविष्य में मेलोड्रामा की योजना है (जिसमें हॉरर, सामाजिक, हास्य, फंतासी, क्राइम) होगा। माइथोलॉजी में श्रीकृष्ण और श्रीराम पर लिखने की योजना भी है। बाल साहित्य भी लिखूँगा। सही मायने में कहूँ आपको मेरी लेखनी में इंद्रधनुषी रंग देखने को मिलेंगे। हर शैली में लिखने का निरंतर प्रयास रहेगा।
प्रश्न:सर चूँकि आप इतने वक्त से लिख रहे हैं तो आप नये उभरते लेखकों को क्या संदेश देना चाहेंगे? यह निरन्तरता किस प्रकार बनाई जा सकती है।
उत्तर: मैं सभी मित्रों से अनुरोध करता हूँ, वे सब्र से लिखते रहें। श्रीकृष्ण के कहे मार्ग पर चलते रहें, कर्म से कभी पीछे न हटें, कर्म ही पूजा है, लेखनी हमारा कर्म है, इसका फल आज नही तो कल अवश्य मिलेगा।
मैं अपना उदाहरण आपके सामने रखता हूँ, लिखने के 12 वर्ष बाद मेरी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई। प्रकाशक का द्वार खुला, अब नियमित रूप से पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं।
आप नियमित रूप से लिखते रहें, यदि सही प्रकाशक मिलने में देरी होती है तब अपने ब्लॉग के माध्यम से पाठकों के सम्मुख अपनी रचनाओं को प्रस्तुत कर सकते हैं। लिखना मत छोड़िए, सकारात्मक विचारों के संग लिखते रहिए। साथ-साथ पढ़ते रहिए, इससे आपकी लेखनी में सुधार होगा। अपनी डायरी को बुलंद कीजिए कि प्रकाशक स्वयं आकर आपकी रचनाओं को मांगे।
प्रश्न: कहा जाता है लेखन एक ऐसा कार्य है जो अकेले में किया जाता है। ऐसे में लिखते हुए कई बार पारिवारिक जिम्मेदारियाँ निभाना कठिन सा हो जाता है। आपके परिवार ने लेखन में आपका साथ किस तरह दिया है। लेखन और परिवार के बीच संतुलन आप किस तरह स्थापित करते हैं?
उत्तर: मैं आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ कि पारिवारिक और व्यवसायिक जिम्मेदारी लेखन में बाधा उत्पन्न करती है जिस कारण युवा लिखना बंद कर देते हैं। फिर लिखने का समय 45-50 वर्ष की उम्र में मिलता है जब पारिवारिक जिम्मेदारी का बोझ अपेक्षाकृत कम हो जाता है। मैं युवा साथियों से अनुरोध करता हूँ, जब भी उन्हें समय मिले, अपनी डायरी को विकसित करते जाएं, उचित समय आने पर आप फिर सक्रिय हो सकते हैं तब आपको अपनी डायरी बहुत काम आएगी।
मैंने लेखन 48 वर्ष की उम्र में आरंभ किया जब पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ कम था इसलिए परिवार ने कभी टोका नही।
प्रश्न:सर कोरोना के समय सभी लॉकडाउन में हैं। ऐसे में आप अपना समय कैसे व्यतीत कर रहे हैं? आप अपने पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे।
उत्तर: कोरोना समय से कुछ समय पूर्व मैं सेवानिवृत्त हुआ। सेवानिवृत्ति के बाद मैंने अपना समय साहित्य को समर्पित कर दिया इस कारण मुझे कोई विशेष कठिनाई नही हुई। मेरा अधिकांश समय पढ़ने और लिखने में बीतता है। पाठकों को मेरा संदेश है, अपने मन में सकारात्मक विचार लाएं, नकारात्मक नहीं सोचे। अच्छा और बुरा समय हर काल और युग में आता है। सकारात्मक विचारों से कठिन समय सुगमता से बीत जाता है, जब हम जीवन में पीछे मुड़ कर देखते हैं तब सकारात्मक विचार सेतु की तरह कार्य करते हैं कि किस सुगमता के साथ कठिन समय पर विजय प्राप्त की। जीवन को सकारात्मक विचारों से समृद्ध कीजिए।
प्रश्न: सर आखिर में कोई बात जो आप अपने पाठको से कहना चाहते हैं? आप उन्हें इधर कह सकते हैं।
उत्तर: मैं पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे हर शैली की पुस्तक पढ़ने के लिए अपनी रुचि विकसित करें। जैसे हम हर रोज एक सब्जी या दाल नही खाते है, सुबह अलग और रात अलग सब्जी खाते है, उसी प्रकार पढ़ने के रुचि होनी चाहिए। पुस्तकों के साथ ई बुक भी पढ़ें। अधिक पढ़ने से मानसिक और बौद्धिक विकास होता है।
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मनमोहन जी की अब तक प्रकाशित किताबें |
***** आशा है मनमोहन भाटिया जी से की गयी यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। बातचीत के विषय में अपनी राय आप टिप्पणियों के माध्यम से हमे दे सकते हैं। आपकी टिप्पणियों का इन्तजार रहेगा।
ब्लॉग पर मौजूद अन्य साक्षात्कार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
साक्षात्कार
©विकास नैनवाल ‘अंजान’
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बहुत बढ़िया विकास भाई , मनमोहन भाटिया जी को एक बेहतरीन साक्षात्कार के लिए शुभकामनाएं ।🤗
विकास जी आपका प्रयास सराहनीय है,आप हमेशा एक से बढकर एक नयें लेखकों का परिचय पाठक से करवातें है । बहुत बढ़िया ।🙏
जी आभार अटल भाई। साथ बनाये रखें। ब्लॉग पर ऐसे ही काफी कुछ आने वाला है।
रोचक साक्षात्कार, मनमोहन जी की पुस्तकें पढ़ने की इच्छाजागृत कर दी इस साक्षात्कार ने
जी आभार दिनेश जी। पुस्तकें पढ़ने के पश्चात मेरे साथ उनके प्रति राय साझा करना न भूलियेगा।
मेरे विचारों को अपने मंच पर सार्वजनिक करने के लिए विकास जी का हार्दिक धन्यवाद।
सर बातचीत करने के लिए शुक्रिया। मुझे और अन्य पाठकों को काफी कुछ सीखने को मिलेगा।
एक बढिया साक्षात्कार एक लेखक के जीवन संघर्ष और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती बातचीत।
मनमोहन जी सामाजिक प्रेम और हॉरर सभी विषयों पर समान पकड़ रखते हैं। उनकी इस बातचीत से उन नए लेखकों को प्रेरणा मिलेगी जो एक फो रचनाये प्रकाशन हेतु भेजते हैं और प्रकाशित ना होने पर कलम छोड़ देते हैं।
आभार नृपेन्द्र जी।
सुंदर प्रयास
आभार लोकेश जी।
सबसे पहले मैं विकास भाई का शुक्रिया करूँगा कि उन्होंने मनमोहन सर का साक्षात्कार लिया। मेरे पसंदीदा लेखकों में से एक हैं इनकी लिखी हुई मैंने हर किताब पढ़ी है एयर इनकी लेखनी से मेरा गहरा लगाव है। मैं विकास भाई से उम्मीद करता हूँ कि इस तरह और भी अच्छे लेखकों को मंच पर लाते रहेंगे और इंसी रुबरु होने का अवसर प्राप्त होता रहेगा। धन्यवाद।।
आभार देव बाबू।
मनमोहन भाटिया जी का साक्षात्कार पढ़ा । जो अपने आपमें एक पूरे दौर की कहानी और विशेषतायें अपने आपमें समेटे हुये है। इसी दौर 70-80 के बीच की पढाई और समय, पत्रिकायें, लिखना ,पढ़ना इत्यादि चूँकि मैंने भी जाने और देखे हैं और वही संघर्ष और कथायैं थीं इसलिये पढ़ने में बहुत आनंद आया।मनमोहन जी को बहुत बधाईयाँ।विकास जी को भी बधाईयाँ इतने अच्छे इँटरव्यू के लिये।
आभार मैम।
बढ़िया साक्षात्कार।
जी, आभार विवेक जी।
साक्षात्कार काफी अच्छा लगा। प्रतिलिपि पर मनमोहन जी कि कहानिया मेरी लाईब्रेरी मे है, जिन्हें समय मिलने पर पढ़ूँगा।
मैने उनकी भूतिया हवेली पुस्तक पढ़ी थी, जो मुझे इतनी पसंद तो नही आई पर उनका लेखन अच्छा ही लगा।
साक्शात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा अमन जी। किताब के विषय में इतना ही कहूँगा वो तो हिट और मिस होती रहती है। अगर आपने मनमोहन जी की 'कुछ नहीं' नहीं पढ़ है तो एक बार पढ़ कर देखिएगा।
आपके अन्य साक्षात्कारों की तरह यह साक्षात्कार भी प्रंशसनीय
है । हर लेखक से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है । बहुत बढ़िया प्रश्नोतरी ।
जी आभार मैम। आपने सही कहा, मुझे भी काफी कुछ सीखने को मिल जाता है। लिखते रहने की प्रेरणा भी मिलती है।