मिथिलेश गुप्ता एक ऐसे लेखक हैं जो अपने लेखन में निरंतर प्रयोग करते रहते हैं। उनकी अब तक पाँच किताबें आ चुकी हैं जिनमें से दो हॉरर विधा की हैं, दो प्रेम कहानियाँ हैं और एक युवाओं को केंद्र में रख कर लिखी गयी किताब है। इसके अलावा वह फंतासी और विज्ञान गल्प पर भी काम कर रहे हैं।
उपन्यासों के अलावा, कॉमिक, रेडियो, पटकथा और नाटक लेखन में भी वह हाथ आजमाते रहते हैं।
हाल ही में उनका नया उपन्यास ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ प्रकाशित हुआ है। यह उनका ड्रीम प्रोजेक्ट भी है।
लेखक मिथिलेश गुप्ता ने अपने नवप्रकाशित उपन्यास ‘ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ’ के ऊपर ‘एक बुक जर्नल’ से भी बातचीत की है। क्या है ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ? क्या बनाता है इसे ख़ास? इन्हीं सब बिन्दुओं पर उन्होंने हमारी जिज्ञासाओं को शांत किया।
उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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प्रश्न: मिथिलेश भाई, सबसे पहले तो नई किताब के लिए हार्दिक बधाई। जहाँ तक मुझे पता है ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ आपका ड्रीम प्रोजेक्ट है। कुछ इसके विषय में बताएं? कब हुई इस किताब की शुरुआत?
उत्तर: धन्यवाद विकास भाई। ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है, ये सच है। कुछ किताबें बड़ी आसानी से नहीं कही जाती और शायद यही कारण रहा जब कुछ घटनाओं के क्रम ने मेरे दिमाग में उथल पुथल मचाई तब ‘ऑक्सीजन’ का कांसेप्ट मेरे दिमाग में आया जिसे मैंने 2014 में पहली बार पन्नों पर लिखना शुरू किया, लेकिन दूसरी किताबो के आगे बढ़ने से ये किताब पूरी नहीं हो पाई। पर किताब की नियति और कहानी के किरदारों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा और आज ये किताब आप सबके सामने हैं! ड्रीम जैसा क्या है इस पर चर्चा किताब पाठको तक पहुँचने के बाद ही कर पाऊँगा!
प्रश्न: ‘ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ’ नाम आकर्षित करता है और पुस्तक के प्रति उत्सुकता जगाता है। एक किताब का शीर्षक आपके लिए कितना महत्वपूर्ण है? इस शीर्षक की कहानी बताएं। क्या इसका यह शीर्षक शुरुआत से ही है या बाद में विकसित हुआ है?
उत्तर: 2014 में इस किताब का नाम जब सबसे पहले सूझा वो सिर्फ ‘ऑक्सीजन’ था। सन 2016 तक इसे इसी नाम से आगे बढ़ाया और उसके बाद एक दूसरी घटना के कारण इसका नाम ‘ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ’ पड़ा। अब ये नाम क्यूँ? कारण तो कई हैं पर लॉजिकल कारण दूँ तो वो ये हैं कि मैं एक फार्मेसी ग्रेजुएट हूँ और इसलिए जानता हूँ O2 जैसे फोर्मुले का क्या महत्व है। और जब मैंने उसे रियल लाइफ से जोड़ा तो दिमाग घूम गया और इस तरह ये टाइटल बना। कहानी तो एक ऐसी घटना से बनी, जिसको सोचकर आज भी मैं हिल जाता हूँ। सच तो ये है इसके क्लाइमेक्स को 3 साल तक लिख ही नहीं पाया। बड़ा ही इमोशनली अटैच्ड रहा और कई बार प्रोजेक्ट को स्क्रैप करने का भी सोचा (पता नहीं इतनी बड़ी बेवकूफी क्यों करने वाला था ) लेकिन आसपास के दोस्तों की वजह से इस ऑक्सीजन को बचा लिया गया! जिसमे ‘सूरज पॉकेट बुक्स’ टीम का हमेशा सहयोग बना रहा। वहीँ निशांत मौर्य ने किरदारों को जिस तरह से किताब के कवर पर उतारा वो सबसे बेहतरीन रहा। बाकि उम्मीद है ये किताब उन लोगों तक पहुँचे जो इसकी मंजिल है!
प्रश्न: ‘ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ’ के विषय में जितनी जानकारी उपलब्ध है उससे यह एक प्रेम कहानी लगती है। क्या यह अंदाजा सही है?
उत्तर: सही मायने में मैंने कभी इस कहानी के बारे में किसी को नहीं बताया। सिर्फ उन चंद लोगों को जो इस प्रोजेक्ट में कुछ किरदारों के रूप में जुड़े थे। मुझे याद है जब ये प्रोजेक्ट लिखना शुरू ही किया था तो मैंने ये कहानी सिर्फ दो लोगों को सुनाई थी! जिसे सुनकर वो दोनों इतना इमोशनल हो गए और कहने लगे कि ये कहानी तुम्हे लोगों को सुनानी पड़ेगी। मैं कहानी को लिखता रहा और लोगों से इसके बारे में ज़िक्र तो करता रहा पर कांसेप्ट पर आज भी 4-5 लोगों के अलावा किसी को नहीं बताया। खुद शुभानन्द जी (प्रकाशक) को इस कहानी के विषय में पिछले साल ही मिलकर बताया। तब मित्र देवेन्द्र पांडे ने कहा – ‘अब तक का सबसे बढ़िया कांसेप्ट लग रहा है, इसे जल्दी पूरा करो!’ और बस पिछले साल से कहानी पर तेज़ी से वर्क शुरू किया! कई सीन बदले, आगे पीछे किये और इसे तैयार किया! जिसमे अनुराग कुमार सिंह जी का सम्पादक के तौर पर काफी सहयोग रहा! अब कहानी में प्रेम है या नहीं अभी कहना मुश्किल है लेकिन ये कहानी एक उम्मीद की है जो प्रेम में, दोस्ती में और आसपास के लोगों में देखी जाती है!
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प्रश्न: आपके लिए किरदारों का नाम कितने महत्वपूर्ण हैं? आप अपने उपन्यासों के किरदारों के नाम किस तरह निर्धारित करते हैं? मसलन, ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ के किरदारों के नाम के पीछे क्या कोई विशेष कहानी है?
उत्तर: सब वही नाम है जो असल किरदारों के आसपास है। आदित्य, पायल और पूर्वी, इन नामों को एक बार ही सोचा और लिख दिया। कभी उसे बदला नहीं। इन नामों के बिना ये किताब बनती भी नहीं। किरदारों के नाम हर कहानी के लिए इम्पोर्टेन्ट होते हैं। ये तीन किरदार इस किताब की जान है और मेरी डायरी के उन पन्नो के भी जिसने इस कहानी को 6 सालों तक संभाले रखा! हैदराबाद से बंगलोर और पुणे इन तीन शहरों में बसी ये कहानी इन तीन नामों के साथ घूमती है, जो एक ऐसी घटना से इंस्पायर्ड है जिसे खुद मैंने महसूस किया है! शायद इसलिए किताब के लेखक आदित्य को आप मुझसे भी कम्पेयर करने लगेंगे!
प्रश्न: ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ आदित्य, पायल और पूर्वी की कहानी है। इन तीनो में से कौन सा पात्र आपके सबसे निकट है और क्यों?
उत्तर: आदित्य इस ऑक्सीजन का लेखक है। वो हिंदी मीडियम की दुनिया से अंग्रेजी की दुनिया में घुलने की कोशिश करता है। उसके लिए करियर से बढ़कर कुछ नहीं होता, जिसके लिए वो अपने लेखक बनने के सपने तक को डायरी के भरोसे छोड़ देता है! पायल एक महत्वपूर्ण किरदार है जो ज़िन्दगी को बिंदास जीने वाली लड़की है लेकिन वो दोस्ती और प्यार के मामले में बहुत सीरियस है। बावजूद इसके ये कहानी सिर्फ ‘पूर्वी’ की है जिसकी छवि आप किताब के फ्रंट कवर पेज पर देख सकते हैं! पूर्वी ने जीवन के उन बेनाम रंगों को सिखाया और बताया कि लाइफ के तार किस तरह उम्मीद से बंधे होते हैं। वो इस कहानी की उम्मीद है और ये किताब मेरी उम्मीद से जुड़े हैं। पूर्वी की कहानी लिखना हमेशा याद रहेगा और मेरी कहानी के कोई भी किरदार कभी इस किरदार को छू नहीं पायेंगे!
प्रश्न: आपने बताया आदित्य एक हिन्दी माध्यम से पढ़ा हुआ छात्र है जिसे कॉर्पोरेट दुनिया में अंग्रेजी से दो दो हाथ करने होते हैं। आप अंग्रेजी की इस मजबूरी को किस तरह देखते हैं? नवम्बर 2019 खबर आई थी कि एक झारखंड की युवती क्योंकि कॉलेज की अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई से तालमेल नहीं बैठा पाई और उसने आत्महत्या कर ली। क्या आदित्य को हिन्दी माध्यम का छात्र बनाने की पे पीछे कोई ख़ास वजह थी? आप हिन्दी माध्यम के छात्रों को क्या कहना चाहेंगे?
उत्तर: हमारे देश में ये बड़ी बिडम्बना है कि जब हिंदी मीडियम या रीजनल वाला कोई छात्र पूरी स्कूलिंग और पढ़ाई करने के बाद नौकरी करने जाता है तो ज्यादातर अंग्रेजी से आमना-सामना करना पड़ता है। वहाँ उसे सब्जेक्ट नोलेज पर नहीं बल्कि कम्युनिकेशन पर निकाल दिया जाता है। किताब में आदित्य भी एक ऐसा ही किरदार है। जो एक ऐसी ही परिस्थिति से लड़ता है। बाकि झारखंड में जो हुआ वो बहुत दुखद है ऐसा कइयों के साथ हुआ है। और शायद ये सिलसिला रुकेगा भी नहीं। पर मैं इतना कहना चाहूँगा और यही मैं इस किरदार के माध्यम से कहना चाह रहा हूँ कि आदित्य की तरह सामना करना सीखना पड़ेगा। वरना लाइफ खत्म करना कोई हल नहीं है। ये युवाओं के लिए चुनौती हो सकती है अंत नहीं। ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ में युवाओं से जुड़े और भी कई संवेदनशील मुद्दे हैं।
प्रश्न: क्या इस उपन्यास के मुख्य किरदारों के अलावा भी कोई ऐसा किरदार है जो आपको पसंद है? अगर हाँ, तो वह कौन है और क्यों पसंद है?
उत्तर: बेशक!! वो किरदार पायल है। पायल, जो वो दोस्त है जिसका मिलना हर किसी का सपना होता है। जो दूसरों को समझने के लिए खुद को पूरी तरह तैयार रखती है। वो लाइफ में प्रैक्टिकल है लेकिन सपनों को पूरा करने का जूनून रखती है। वो साइड किरदार होकर भी लास्ट तक सभी को जोड़कर रखती है!
प्रश्न: आजकल आप किस प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे हैं? क्या आप पाठकों को उनके विषय में बताना चाहेंगे?
उत्तर: इन दिनों मैं दो प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हूँ। पहला एक फंतासी एडवेंचर श्रृंखला है जो दो से तीन पार्ट्स में बन सकती है। दूसरा ऑक्सीजन की तरह एक ऐसी कहानी है जिसकी घटना ने 2014- 2015 में भारत के ज्यादातर कॉलेज स्टूडेंट्स और उनके अभिभावकों को हिला कर रख दिया। लेकिन ऐसी घटनाएं फिर भी होती रही। ये प्रोजेक्ट दिसम्बर 2020 तक पूरा हो जाएगा! जिसे मैं लास्ट इयर से लिख रहा था!
प्रश्न: आखिर में आप पाठकों को कोई संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: हॉरर के बाद जब रोमांस लिखा और आज ऑक्सीजन जैसी संवेदनशील मुद्दे पर किताब लिखकर देखता हूँ तो पता चलता है हर विधा के पाठकों ने मुझे लेखक के तौर पर अपनाया है। अलग पढना और अलग-अलग विषयों पर लिखना मुझे अच्छा लगता है और उम्मीद करता हूँ पाठकों का साथ बना रहेगा ताकि मैं इस तरह के प्रयोग करता जाऊँ। पाठकों से अनुरोध है वो अच्छी किताबों को न सिर्फ पढ़े बल्कि औरो को भी बताएं! हिंदी में नए ज़माने के लेखकों/पाठकों कोा काफी कुछ बड़ा तैयार करना है! पढ़ते रहें और को किताबें पढ़ने का कहते रहें!
किताब परिचय: ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ
ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ निम्न लिंक्स पर जाकर खरीद सकते हैं:
ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
सार्थक बातचीत
जी आभार, सर।
सुन्दर
जी आभार….
सुंदर बातचीत।
जी आभार…..
सुन्दर व सार्थक वार्ता
जी आभार…