किताब परिचय: मंदिर का रहस्य | सुमन बाजपेयी | साहित्य विमर्श प्रकाशन

पुस्तक के विषय में

तरुण और वरुण दोनो भाई देहरादून गए तो थे अपने उमेश अंकल के साथ छुट्टियाँ बिताने, जो वहाँ फॉरेस्ट ऑफिसर थे। लेकिन उनका सामना हुआ अजीब ओ गरीब घटनाओं और लोगों से।

खंडर हो गए मंदिर के अंदर कोई रहस्यमई दुनिया होगी, उन्होंने सोचा तक नहीं था। गाँव में रहने वाले मेरू के साथ मिल कर वे किन किन रोमांचकारी मोड़ो से गुजरते हुए न सिर्फ रहस्य से पर्दा उठाते हैं वरन जंगल के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

क्या है मंदिर का रहस्य और क्या है प्रार्थना चक्र का राज़ जानने के लिए पढ़िए यह रोचक बाल उपन्यास।

पुस्तक लिंक:

गुडरीड्सअमेज़न | साहित्य विमर्श

पुस्तक अंश 

भूत होता है

‘‘मैं कोई एक वर्ष पहले शिवालिक हिल्स में आया था। शहर के शोर और प्रदूषण से त्रस्त हो गया था। इसलिए जब मेरे बचपन के दोस्त हरिदेव सिंह ने यहाँ कुछ समय उसके साथ बिताने का आग्रह किया तो मैं मान गया। हरिदेव जो रेंजर था, के यहाँ से दूसरे जंगल में स्थानांतरण होने के बावजूद मैं यहीं रहने लगा। अपना वानप्रस्थ मैं यहीं बिताना चाहता हूँ। ओम शांति, सेव ऑल।’’

‘‘वानप्रस्थ क्या?’’ वरुण ने हैरानी से पूछा। 

‘‘जीवन के चार चरण होते हैं बेटा, पहला बचपन, फिर किशोरावस्था, फिर वैवाहिक जीवन और अंततः वानप्रस्थ, यानी जंगल या वन में वास करना और प्रार्थना व ध्यान करते हुए बाकी का जीवन व्यतीत करना। मैं ईश्वर में लीन रहता हूँ, इसलिए मैंने यह गेरुआ वस्त्र धारण किया हुआ है।’’ कुछ पल वह मौन हो गया और अपनी आँखें बंद कर ली। जैसे ध्यान में डूब गया हो। थोड़ी देर इसी स्थिति में रहने के बाद उसने आँखें खोलीं और बहुत ही सौम्य स्वर में अपनी बात को आगे जारी करते हुए कहा, ‘‘मुझे जब इस मंदिर के बारे में पता चला था तो मैं भी वहाँ जाना चाहता था, ताकि पूजा पाठ कर सकूँ। पर हरिदेव ने मुझे रोका। उसने कहा वह जगह भुतहा है। बिल्कुल वैसे ही उसने मुझे रोका था, जैसे आज मैं तुम्हें रोक रहा हूँ। मैंने भी उन कहानियों पर विश्वास नहीं किया, पर मैं हरिदेव का दिल नहीं दुखाना चाहता था, इसलिए उसकी बात मान ली। फिर मैं उस नदी पर जाने लगा, जो मंदिर से कोई 100 मीटर की दूरी पर है। एक दिन मछली पकड़ने का काँटा लेकर हरिदेव मेरे साथ नदी पर आया। ओम शांति, सेव ऑल।’’

गेरुआ वस्त्रधारी ने अपने चोगे में से गेरुए रंग का रुमाल निकाला और चश्मे के शीशों को पोंछा। 

‘‘बेशक नदी से मंदिर केवल सौ मीटर की दूरी पर है, लेकिन वहाँ से मंदिर नहीं पहुँचा जा सकता है। धनपुरा गाँव के साथ जो रास्ता नदी को जोड़ता है, उसे पार करना पड़ता है।’’

‘‘क्या यही रास्ता नदी के साथ धनपुरा गाँव को जोड़ता है?’’ तरुण ने जिस मार्ग से वे आए थे, उस ओर इशारा करते हुए पूछा।

‘‘हाँ,’’ वह साधु बोला। ‘‘और इस रास्ते से निकलकर कर जो पगडंडी जा रही है, वही मार्ग मंदिर के बाहरी परिसर तक ले जाता है। अगर तुम दो मार्गों के चौराहे पर खड़े हो तो मंदिर वहाँ से साफ दिखाई देता है।’’ 

‘‘आपने भूतों को कहाँ देखा?’’ वरुण की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उसने मन ही मन उस गेरुआ वस्त्रधारी का स्केच बना लिया था। उसने उसकी फोटो खींचनी चाही तो उसने उसे जोर से फटकारा था। इस समय उस आदमी की बातें सुन उसे लग रहा था, मानो टीवी पर कोई सनसनीखेज फिल्म चल रही हो। कभी-कभी वह अपने दोस्त के घर जाकर ऐसी फिल्में देख लिया करता था। घर पर तो केवल चुनिंदा प्रोग्राम देखने की ही अनुमति थी।

‘‘उस शाम हरिदेव के हाथ कोई मछली नहीं आई, लेकिन वह लगातार कोशिश करता रहा। जब मैंने उसे वापस लौटने को बाध्य किया, तब तक सूरज पेड़ों के पीछे लगभग छिप ही चुका था। अनिच्छा से ही हरिदेव मेरे साथ मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग की ओर चलने लगा। काफी अँधेरा हो चुका था। मैं फिर भी मंदिर की ओर जाना चाहता था। अचानक हरिदेव ने अपने कदमों की गति तेज करते हुए फुसफुसाते होते हुए कहा कि मंदिर के पास उसे एक शिकारी घूमता हुआ नजर आ रहा है। ओम शांति, सेव ऑल’’

 ‘‘लेकिन उन्होंने कैसे अनुमान लगाया कि वह कोई शिकारी ही है और आप मंदिर के रास्ते से ही क्यों वापस लौटना चाहते थे? आपको पहले ही हरिदेव जी इस बात के लिए मना कर चुके थे और उन्होंने आपकी बात मानी ही क्यों?’’ तरुण असमंजस में था जब मंदिर जाना ही नहीं था, तो हरिदेव सिंह आखिर माने क्यों वहाँ से लौटने के लिए। 

 ‘‘मैं इसके बारे में खुद नहीं समझ पाया था, लेकिन शायद उसे संकेत मिले हों कि मंदिर के पास कोई शिकारी घूम रहा है। जंगल में जो लोग काम करते हैं, उनके दिमाग में वैसे भी हमेशा शिकारी ही घूमते रहते हैं। मंदिर से कुछ ही दूरी पर मुझे सफेद कपड़े पहने एक आदमी नजर आया।’’

 ‘‘लेकिन, पहली बात तो यह है कि शिकारी खास तरह की पोशाक पहनते हैं, दूसरे रात के समय कोई भी शिकारी सफेद कपड़े पहन कर नहीं आएगा। इस तरह तो वह दूर से ही पहचान लिया जाएगा।’’ तरुण ने इस बारे में पढ़ा था कि अवैध शिकार करने वाले किस-किस तरह के पैंतरे अपनाते हैं और किस तरह की तैयारियाँ करते हैं।

 ‘‘सही कहा। पर उस समय हमारे दिमाग में यह बात नहीं आई थी। जैसा कि मैंने कहा जंगल के संरक्षकों के दिमाग में यही ख्याल हमेशा रहता है कि शिकारी ही होंगे और हरिदेव भी यही सोच रहा था।’’ साधु ने उसकी ओर प्रशंसात्मक दृष्टि से देखते हुए सिर हिलाया। लेकिन मन ही मन सोचा कि इन बच्चों से बात करते हुए उसे बहुत सावधानी रखनी होगी।

‘‘हरिदेव ने कहा अभी इस बदमाश को मजा चखाकर आता हूँ और मंदिर की ओर चल दिया। मैं भी उसके पीछे-पीछे हो लिया। मुझे बहुत हैरानी हो रही थी कि हमें आता देख भी व्यक्ति वहाँ से भागा नहीं था। फिर सोचा शायद उसने हमें देखा न हो, पर मैं उसे देख पा रहा था। कोई 30- 35 वर्ष का आदमी था, जिसने सफेद कुर्ता और धोती पहनी हुई थी। लंबे कद का था।’’ 

‘‘शिकारी धोती-कुर्ता कहाँ पहनते हैं?’’ तरुण ने टोका। 

‘‘मुझे बीच में इस तरह टोको मत। और अगर तुम्हें जानना नहीं है तो फौरन यहाँ से भाग जाओ। मेरा समय खराब मत करो,’’ वह आदमी आगबबूला हो उठा और उठकर जाने लगा।

दोनों भाइयों ने एक-दूसरे की ओर देखा, मानो पूछ रहे हों कि क्या करें। वे भी चलें यहाँ से क्या!

***

लेखिका परिचय

सुमन बाजपेयी

सुमन बाजपेयी एम.ए. हिंदी आनर्स हैं व उन्होंने पत्रकारिता का अध्ययन किया है। वह हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेखन कर चुकी हैं। 

वह पिछले 32 सालों से कहानी, कविता व महिला विषयों, पर्यटन तथा बाल-लेखन में संलग्न हैं। अब तक उनके 6 कहानी संग्रह ’खाली कलश’, ‘ठोस धरती का विश्वास’, ‘अग्निदान’, ‘एक सपने का सच होना’, ‘पीले झूमर’ और ‘फोटोफ्रेम में कैद हंसी’ प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त उनकी पेरेटिंग पर पर दो किताबें – ‘अपने बच्चे को विजेता बनाएँ’ ‘सफल अभिभावक कैसे बनें’ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें ‘मलाला हूँ मैं’, ‘इंडियन बिजनेस वूमेन’, ‘नागालैंड की लोककथाएँ’ ‘ असम की लोककथाएँ’, ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी’, ‘पिंजरा’ हैं। उनके 800 से अधिक कहानियाँ व कविताएँ, 1000 से अधिक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। 

उन्होंने 160 से अधिक पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है और आकाशवाणी से निरंतर उनकी कहानियों का प्रसारण हो रहा है। 

संप्रतिः स्वतंत्र पत्रकारिता व लेखन व पर्यटन पर लेखन।  पुस्तकों का अनुवाद कैसे किया जाता है, इस पर मेंटरशिप प्रोग्राम व स्टोरी टेलिंग. पूर्व संपादक चिन्ड्रन्स बुक ट्रस्ट पूर्व एसोसिएट एडीटर सखी पूर्व एसोसिएट एडीटर मेरी संगिनी पूर्व एसोसिएट एडीटर फोर्थ डी वूमेन।

नोट: ‘किताब परिचय’ एक बुक जर्नल की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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