संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 64 | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | शृंखला: डोगा
टीम
लेखक: तरुण कुमार वाही | कथानक: संजय गुप्ता, विवेक मोहन | चित्रांकन: मनु | संपादन: मनीष गुप्ता
कहानी
खाकी और खद्दर के सहारे से ही समाज में कानून व्यवस्था कायम रहती आयी है।
मुंबई शहर जहाँ अपराधियों के साथ कई बार खाकी और खद्दर भी बेलगाम हो जाती है वहाँ उनकी लगाम कसने के लिए डोगा कभी मौजूद रहता था।
पर अब डोगा खत्म हो गया था।
और एक खद्दर वाले ने अपनी ताकत के नशे में लोगों पर जुल्म ढहाने शुरू कर दिए थे।
आखिर कौन था ये खद्दर वाला?
उसके जुल्मों से कैसे निजाद मिला मुंबई को?
मेरे विचार
‘खाकी और खद्दर’ राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित मुंबई के बाप डोगा का विशेषांक है। इस कॉमिक में शेर का बच्चा नामक विशेषांक के आगे की कहानी दर्शायी गयी है इसलिए अगर आपने ‘शेर का बच्चा’ नहीं पढ़ी है तो ‘खाकी और खद्दर’ कॉमिक को पढ़ने से पहले ‘शेर का बच्चा’ पढ़ें तो बेहतर होगा।
संक्षिप्त रूप में बताऊँ तो शेर का बच्चा में मोनिका को आखिरकार यह पता चल जाता है कि डोगा असल में कौन है। इस जानकारी को हासिल करने के बाद वह सूरज को किसी तरह डोगा और अपने प्यार से किसी एक को चुनने के लिए विवश कर देती है और सूरज अपने प्यार को चुनता है। डोगा अब नहीं रहा है और इसके बाद मुंबई में क्या घटित होता है यही प्रस्तुत कॉमिक ‘खाकी और खद्दर’ दर्शाती है।
खाकी और खद्दर का शीर्षक दो पौशाकों से आता है। जहाँ खाकी पुलिस के पोशाक का रंग होता है वहीं खद्दर नेताओं की पोशाक कही जाती है। किसी भी लोकतंत्र में इन दो पोशाकों को पहनने वाले का अपना एक अलग महत्व होता है। जहाँ खाकी पहनने वाले के ऊपर समाज को अपराधिक तत्वों से बचाने की जिम्मेदारी होती है वहीं खद्दर वाले की जिम्मेदारी होती है कि वह खाकी पर तो लगाम रखे ही साथ में ऐसी योजनाएँ भी बनाए जिससे समाज का कल्याण हो। लेकिन जब खद्दर पहनने वाले अपराधियों को संरक्षण देने लगे और खाकी को न केवल अपराधियों के खिलाफ कुछ करने से रोके लेकिन अपराध करने का दबाव भी उन पर डालें तो समाज त्राहिमाम करने को मजबूर हो जाता है। ऐसे ही खद्दर वाले को लेकर यह कॉमिक बुक लिखी है। राम सिंह नामक भ्रष्ट हवलदार जब खाकी उतार कर खद्दर पहनता है तो क्या-क्या गुल खिलाता है यह इधर दिखता है। मुंबई में सबको पता लग चुका है कि डोगा अब मर चुका है तो ऐसे में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं और फिर खद्दर से संरक्षण पाने के बाद क्या होता है यह कथानक का हिस्सा बनता है। कथानक के दौरान मोनिका, उसके भाई चीता, सूरज के अदरक चाचा को इस खाकी, खद्दर और अपराधियों के गठजोड़ के जुल्म सहने पड़ते हैं और वो मोनिका जिसे डोगा से नफरत थी उसे आखिरकार पता चलता है कि समाज को क्यों डोगा की जरूरत है।
कॉमिक बुक में भ्रष्ट पुलिस वाले तो हैं लेकिन खोपड़, खुरदुरा और असलम जैसे ईमानदार पुलिस वाले भी हैं। कई बार ईमानदार पुलिस वाले कैसे सिस्टम के आगे मजबूर हो जाते हैं यह भी कॉमिक में इन पुलिस वालों के माध्यम से दर्शाया गया है।
कहानी काफी हिंसक है और समाज के बहुत ही स्याह चेहरे को दर्शाती है। नेताओं के संरक्षण में किस तरह से न्याय की उठती हुई आवाज दबा दी जाती है यह भी दिखता है।
मोनिका खुद न्याय का रास्ता अख्तियार करना चाहती है लेकिन जब अन्याय के नुमाइंदों के सामने न्याय बोना साबित होने लगता है तो वह जो करती है वह हर कोई करना चाहेगा लेकिन मोनिका के पास जो विकल्प रहता है वो दुर्भाग्यवश असल ज़िंदगी में किसी के पास नहीं है।
कॉमिक पढ़ते हुए शहरी लोगों को कई बार लग सकता है कि इसमें चीजों का अतिरेक दर्शाया गया है लेकिन अगर आप अपने आस-पास नजर रखते हैं तो आप देख पाएंगे कि यह चीजें कैसे अभी घटित हो रही है। बस अभी आपका सीधा सामना इससे नहीं हुआ है। वरना ऐसे ढेरों उदाहरण हैं जिन्होंने खाकी, खद्दर और अपराधियों के इस नेक्सस से टकराने की कोशिश की है और इस कोशिश में अपना सब कुछ बर्बाद कर चुके हैं।
कॉमिक बुक का थीम काफी डार्क है लेकिन आखिर में यह उम्मीद की रोशनी भी लेकर आती है। पर आप यह सोचने पर भी मजबूर हो जाते हो कि बेहतर न होता कि मोनिका को उस विकल्प को चुनना ही न पड़ता। या फिर पढ़ते हुए आपके मन में यह ख्याल न आता कि काश ऐसे विकल्प को चुनने की ताकत आपके पास भी होती।
कॉमिक बुक का आर्ट मनु द्वारा किया गया है और अच्छा है।, हाँ, सभी दृश्यों को एक समान बनाया गया है जबकि कुछ दृश्य जैसे अदरक चाचा के घायल होने के बाद सूरज का जिम वाला दृश्य, मोनिका द्वारा सीटी फेंके जाने का दृश्य या ऐसे ही दो चार और भावनतात्मक दृश्यों को हाईलाइट करने के लिए इन्हें स्प्लैश पेजों में डाला जाता तो बढ़िया रहता।
अंत में यही कहूँगा कि कहानी रोचक है, रोमांचक है और भावनाओं का ज्वारभाटा लिए हुए है। भावनाओं की यह उठती गिरती लहरें आपके मन को भिगो देंगी। मुझे तो कॉमिक बुक बहुत पसंद आयी।
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