आलसी लेखन का एक नमूना है तुलसी कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित ‘मुखिया का लड़का’ | तुलसी कॉमिक्स | आशीष रानू

 संस्करण विवरण

फॉर्मैट: ई-बुक | प्रकाशक: तुलसी कॉमिक्स | प्लेटफॉर्म: प्रतिलिपि | लेखक: आशीष रानू | चित्रांकन: भालचंद्र मांडके | सम्पादन:  प्रमिला जैन

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि

समीक्षा: मुखिया का लड़का | तुलसी कॉमिक्स | आशीष रानू

कहानी

शांतीपुर कस्बे के मुखिया का लड़का बहुत ही शरारती था। उसने कस्बे के युवा लंबू मोटू की नाक में दम कर दिया था। वह हमेशा यही दुआ करते थे कि उसे कुछ हो जाये।

लेकिन जब उसे असल में अशान्तिपुर के डाकू शांतीसिंह ने उठा लिया तो उन्हें मुखिया के लड़के के लिए बुरा लगा। गाँव वालों ने अपने सारे जतन करके देख लिए थे और वह मुखिया के लड़के को छुड़ा नहीं पाये थे।

यही कारण था अब लंबू मोटू ने मुखिया के लड़के को शांतिसिंह के चंगुल से बचाने का फैसला कर लिया था। 

क्या वह मुखिया के लड़के को छुड़ा पाए?

अपने इस अभियान में उन्हें किन किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा?

विचार

प्रतिलिपि के कारण बहुत सारी कॉमिक बुक्स से आजकल दो चार हो रहा हूँ। ऐसी कॉमिक्स जिनके अस्तित्व से भी अब तक अनजान था। कॉमिक के वाचन के इस सफर में कई तरह की कॉमिक्स से गुजरता हूँ। इनसे काफी कुछ जानने को भी मिल रहा है। 

व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि एक अच्छे कॉमिक एक अच्छी कहानी पर निर्भर करता है और अच्छी कहानी लिखना एक टेढ़ी खीर है। पहले तो एक अच्छी कहानी के लिए एक तगड़े विचार की जरूरत होती है। कॉमिक बुक पढ़ने के इस सफर में कई बार ऐसी कॉमिक्स से गुजरा हूँ जिनसे यह मुख्य बात ही गायब होती है। ऐसे में वह वहीं पर धराशाही हो जाती हैं। लेकिन अगर अच्छा विचार आपके पास आ भी गया तो उस विचार पर मेहनत कर उसका ढंग से क्रियांवन कर पाना उतना ही मुश्किल होता है। काफी लोगों के पास विचार तो होता है लेकिन या तो अपने नौसीखिएपन के कारण या आलस्य के कारण उस अच्छे विचार को उस तरह से नहीं ढाल पाते हैं जिसके चलते वह एक अच्छी कहानी बन सके। एक अच्छे विचार की ऐसी दुर्गति होती है तो सचमुच दुख होता है। प्रस्तुत कॉमिक ‘मुखिया का लड़का’ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। 

‘मुखिया का लड़का’ 2000 वर्ष पूर्व के किसी गाँव में घटित होने वाली घटना है। शांतीपुर नामक गाँव के मुखिया के लड़के का जब अपहरण एक खूँखार डाकू द्वारा कर लिया जाता है तो गाँव में सभी परेशान हो जाते हैं। मुखिया के बेटे को बचाने की जिम्मेदारी लम्बू मोटू नामक दो दोस्त (जिनके ढंग के नाम रखने में भी लेखक आलस्य दिखा गए थे। यही समझ जाना चाहिए था कि लेखन में आगे जाकर भी लेखक आलस्य का उदाहरण देंगे।) अपने सिर पर लेते हैं और ऐसे डाकू, जिसने उस गाँव के सैनिकों की टुकड़ी को भी हरा दिया था, के चंगुल से उस अपहृत बच्चे को बचाने के लिए चल पड़ते हैं। 

आप जब कॉमिक का इतना हिस्सा पढ़ते हैं तो आपकी कल्पनाएँ और उम्मीदें उड़ान मारने लगती हैं। यह एक ऐसी परिस्थिति है जिसके अंदर एक उम्दा रोमांचकथा बनने का सभी गुण मौजूद हैं। यह उम्मीदें इसलिए भी जागृत हो जाती हैं क्योंकि जब मोटू लंबु से कहता है कि वह ऐसे डाकू से कैसे पार पाएंगे जिसने उनकी सेना को हरा दिया तो लंबू दिमाग इस्तेमाल करने की बात करता है। दो युवा जिन्हे युद्ध कौशल का थोड़ा भी ज्ञान नहीं है वह दिमाग लगाकर एक खूँखार डाकू के चंगुल से कैसे एक बच्चे को निकालेंगे यह देखने को आप लालायित हो जाते हो। 

2000 वर्ष पूर्व का वक्त वैसे ही एक कठिन दौर था। लोगों का जीवन वैसे ही कठिन था और ऊपर से इतना कठिन कार्य नायकों ने अपने हाथ में ले लिया था। यह ऐसी परिस्थिति है जिस पर लेखक अगर मेहनत करते तो एक रोमांचक कॉमिक ही नहीं एक रोमांचक उपन्यास भी लिख सकते थे। डाकू तक पहुँचने के दौरान उनके सामने पेश आई दिक्कतों और फिर डाकू और उसके साथियों को छकाकर उसकी नाक के नीचे से बच्चे को ले जाने का बुद्धि कौशल दर्शाकर पाठक को एक बेहतरीन रोमांचकथा दे सकते थे। लेकिन लेखक अपने आलस्य के कारण ये सब करने की नहीं सोचते हैं। वह लम्बू मोटू  से दिमाग नहीं लगवाना चाहते हैं और यही कारण हैं कि वह जहाँ लम्बू को 100 आदमियों की ताकत दे देते हैं वहीं मोटू को 1000 आदमियों की ताकत दे देते हैं। यही नहीं वह ताकत पाने वाले स्रोत तक भी उन्हें बड़ी ही सहजता के साथ पहुँचा देते हैं जहाँ हमारे नायक चटाई खींच कर एक ऐसी चुड़ैल को काबू कर लेते हैं जो लोगों की आत्माएँ खाकर ज़िंदा है। 

यह जितना हास्यास्पद है वहीं इस कॉमिक्स के लिए उतना ही दुखद भी है। यहीं पर कहानी खत्म हो जाती है क्योंकि जिस कहानी में रोमांच इसलिए होना था क्योंकि दो नौसीखिए युवक एक खूँखार डकैत और उसके लोगों से टकराने वाले थे उस कहानी के नायक अब अजय बन चुके हैं। उनसे ये डाकू क्या शायद उस राज्य के राजा की सेना भी हार जाए। इसके बाद आपको पता है वह आसानी से सब मुसीबत पार कर लेंगे और वह वैसा कर भी देते हैं। थोड़ा इधर उधर भागना जरूर नायक का होता है लेकिन वह कहानी को उठा पाने में सफल नहीं होता है। 

इस पूरी कॉमिक्स में वह लम्बू जिसने ये कहा था कि दिमाग के साथ मुसीबतों को पार पाएंगे उसका सबसे ज्यादा दिमाग वाला कार्य चटाई खींचना और पेड़ पर बैठकर खंडहर के बाहर मौजूद शांतीसिंह के भाई को पकड़ने से मोटू को रोकना है। यह पढ़ते हुए लगता है कि आप किस चीज पर अफसोस करें। लेखक पर जिसने आपको यह कहानी परोसी है, वह संपादक जिसने इसका सम्पादन किया है, वह चित्रकार जिसने जीवन के बहुमूल्य क्षण इस पर आधारित चित्र बनाने में बिताए हैं या अभी अपने आप पर जिसने न केवल इसे पढ़ा बल्कि इस पर लिखने की भी ठानी। शायद सभी पर अफसोस किया जा सकता है। वैसे लेखक की आलस्य की इंतिहा ये है कि डाकू शांतीसिंह जो कि अशांतिपुर का निवासी है वह बच्चे का अपहरण करने के लिए शांतीपुर नामक गाँव में आता है। अच्छा हुआ लेखक ने नायक का नाम लम्बू मोटू रखने की मेहनत कर दी। वरना शांतिकुमार और शांतिराम से वह काम चला सकते थे। 

वैसे तो मैं कॉमिक बुक के आर्टवर्क पर ज्यादा ध्यान नहीं देता हूँ। अगर कहानी अच्छी हो तो आर्टवर्क औसत भी चल जाता है। लेकिन इस कॉमिक का आर्टवर्क औसत से भी कम मुझे लगा है। ऐसा लगा है जैसे आर्टिस्ट ने मन मार कर इस पर काम किया है। किरदारों की शक्ल भी अलग अलग फ्रेम में अलग अलग हो जाती है। कभी कभी लगता है आर्टिस्ट ने बस यूँ ही कुछ लकीरें घसीट कर उसमें रंग भरकर उस फ्रेम की इतिश्री की है। 

समीक्षा: मुखिया का बेटा | तुलसी कॉमिक्स | आशीष रानू
कॉमिक के पैनल के कुछ नमूने

मुझे यह कॉमिक बुक प्रतलिपि पर मुफ़्त वाचन के लिए मिल गई थी लेकिन फिर भी सोचकर हैरत होती है कि एक वक्त पर प्रकाशन ने इसे प्रकाशित किया था और लोगों को पैसे देकर लेने के लिए मुहैया करवाया था। लेकिन फिर अब वह प्रकाशन बंद हो चुका है और इस कॉमिक्स को देखकर अंदाजा होता है कि ऐसा क्यों हुआ होगा। 

अंत में यही कहूँगा कि ‘मुखिया का लड़का’ की विषय वस्तु रोचक है जिस पर लेखक द्वारा ढंग से काम किया गया होता तो शायद यह एक अच्छी रोमांचकथा बन सकता था। फिलहाल तो यह आलसी लेखन का एक नमूना भर बनकर रह गयी है। 

कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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