संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ईबुक | प्लैटफॉर्म: किंडल | पृष्ठ संख्या: 130 | प्रथम प्रकाशन: 1979
पुस्तक लिंक: अमेजन
कहानी
मैगुअल अलफांसो ने जब उस लिफ्ट माँगते कमजोर से दिखते व्यक्ति, जिसने अपना नाम नागरथ बताया था, को लिफ्ट देने का फैसला किया तो उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी की मदद करने का उसे इतना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
अब किसी ने नागरथ की गोली मार कर हत्या कर दी थी और पुलिस मैगुअल को उसका हत्यारा मान रही थी।
मैगुअल जानता था कि उसके पुराने कारनामो के चलते पुलिस उससे बदला लेना चाहती थी और अब उसकी जान केवल उस लड़की की गवाही के सदके बच सकती थी जिसने नागरथ की हत्या होते हुए देखी थी।
अब अगर उसे अपनी जान बचानी थी तो उसे खुद तक पुलिस के पहुँचने से पहले उस आईविटनेस तक पहुँचना था। पर यह सब इतना आसान नहीं होने वाला था।
आखिर नागरथ की हत्या किसने और क्यों की थी?
वह आई विटनेस कौन थी?
क्या मैगुअल उस तक पहुँच पाया?
मुख्य किरदार
मैगुअल अलफांसो – पंजिम के सोल्मर नाइट क्लब का मालिक
अल्बर्टो कोटीनो डिकास्टो फ्रांसिस – मैगुअल का दोस्त और उसके क्लब का मैनेजर
एंथोनी बुलवर्क – एक स्थानीय दादा जिसके साथ पहले मैगुअल की अदावत थी लेकिन बाद में दोस्ती हो गयी थी
इंस्पेकटर सोनवलकर – गोवा का एक इंस्पेकटर
नागरथ – एक व्यक्ति जिसने मैगुअल से लिफ्ट माँगी थी
टीना रिचर्डसन – नागरथ की दोस्त
सुधाकर राव – बेंगलुरु का एक दादा
माइकल और तुकाराम – सुधाकर के मातहत
चक्रधर – सब इंस्पेक्टर
तलपड़े – इन्स्पेक्टर
कुरीजो – एक व्यक्ति जिससे अलफांसो ने मदद माँगी थी
मारियो – एल्बुकर्क का बॉडीगार्ड
थेलमा – टीना की मकानमालकिन जिसके यहाँ वो रहती थी
वासुदेव – एक व्यक्ति जिसे टीना की तलाश थी
ग्लोरी – टीना की दोस्त
जॉर्ज – एक व्यक्ति
मेरे विचार
सुरेन्द्र मोहन पाठक भले ही अपने प्रशंसकों के बीच अपने शृंखलाओं के लिए प्रसिद्ध हो लेकिन पाठक के तौर पर मुझे उनके एकल उपन्यास ज्यादा पसंद आते हैं। शृंखलाबद्ध उपन्यास कई बार एक जैसे प्रतीत होने लगते हैं लेकिन थ्रिलर में अक्सर आपको नए किरदार और नए परिवेश में गढ़े कथानक पढ़ने को मिल जाते हैं। यही कारण है कि गाहे बगाहे मैं उनके द्वारा लिखे एकल उपन्यास पढ़ने की कोशिश करता रहता हूँ। इस बार भी मैंने जो उनका उपन्यास पढ़ा वह एकल उपन्यास ही है। यह उपन्यास आईविटनेस है जो कि 1979 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था और इसकी सबसे खास बात यही थी कि प्रकाशन के इतने वर्ष बीतने के बाद भी इसे पढ़ते हुए ऐसा नहीं लगा कि आप कोई पुराना उपन्यास पढ़ रहे हैं।
कहते हैं अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही होता है लेकिन जीवन में कई बार इसका उल्टा भी देखने को मिल जाता है। कई बार लोग किसी के लिए कुछ अच्छा करते हैं और उनका यही सदकर्म उनके लिए नई मुसीबतें लेकर आ जाता है। उस वक्त वह यही सोचते हैं कि अच्छे कर्मों का फल अच्छा नहीं कई बार बुरा भी होता है। यही विचार इस उपन्यास के मुख्य किरदार मैगुअल अलफांसो के जहन में तब आता है जब उसके पास पुलिस पहुँच जाती है और उसे ऐसे व्यक्ति के कत्ल में गिरफ्तार करने की कोशिश करती है जिसको लिफ्ट देकर उसने केवल उसकी मदद करने की कोशिश की थी।
इसके बाद शुरू होता है चूहे बिल्ली का खेल जिसमें अलफांसो को अपने को बेगुनाह साबित करना है और उसके लिए उसे उस चश्मदीद गवाह को तलाशना है जिसका वो केवल नाम जानता है। वहीं दूसरी तरफ उन लोगों से भी अपनी जान बचानी है जो समझते हैं कि उसके पास ऐसी जानकारी मौजूद है जो उन लोगों को करोड़पति बना सकती है।
आईविटनेस को ढूँढने के लिए जहाँ एक तरफ तो मैगुअल को तहकीकात करनी होती है वहीं दूसरी अपने दुश्मनों के कारण जिस तरह उसकी जान साँसत में पड़ती है उससे वह खुद को किस तरह निकालता है यह देखना भी रोचक रहता है। उपन्यास तेज रफ्तार है और इसमें घटनाएँ एक के बाद एक ऐसे घटित होती चली जाती हैं कि आप उपन्यास के पृष्ठ पलटते चले जाते हो। उपन्यास में नायक सर्वशक्तिमान नहीं दिखाया गया है और खलनायक के चंगुल में कई बार वह इस तरह फँसता है जिसके चलते उसकी जान मुश्किल में पड़ती दिखती है। यह चीज उपन्यास में रोमांच बरकरार रहती है। नायक को पल पल मिलते धोखे भी कहानी में ट्विस्ट लाते हैं जो कि कथानक के साथ आपको जोड़कर रखते हैं। उपन्यास के एक प्रसंग में किरदार समुद्र के नीचे भी जाते हैं। उपन्यास का यह वाला हिस्सा मुझे व्यक्तिगत तौर पर काफी रोमांचक लगा।
उपन्यास में किस्मत की भी काफी बड़ी भूमिका है। अलफाँसो और नागरथ दो नितांत अजनबी हैं। दो अलग अलग एक दूसरे से ज़िंदगियाँ जी रहे हैं और किस्मत के चलते इस कहानी में मिलते हैं। यह किस्मत आगे आगे जाकर भी बड़ी महती भूमिका यहाँ निभाती है जो कि किसी पाठक को पसंद आ सकती है और किसी को खटक भी सकती है।
किरदारों की बात करूँ तो सभी किरदार कथानक के अनुरूप बने हैं। टीना का किरदार रोचक है और वह कब क्या कर जाए ये जाँचना मुश्किल होता है। सुधाकर राव एक प्रभावी खलनायक है और उपन्यास में उसका नायक से टकराव देखना रोमांचक रहता है। उपन्यास का नायक मैगुअल है। वह ऐसा व्यक्ति है जिसने जरायम की दुनिया से किनारा कर लिया है लेकिन वह क्यों जरायम की दुनिया में कभी छाया था यह वह इस उपन्यास में दिखाता है। अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना वह बाखूबी जानता है। उपन्यास में वासुदेव का किरदार भी रोचक है लेकिन उसे उतनी जगह नहीं मिली है। वह इंवेस्टिगेटर है और उसे कुछ चीजों का पता रहता है लेकिन चूँकि कहानी का केंद्र मैगुअल है तो वासुदेव के द्वारा की गयी तहकीकात हमें देखने को नहीं मिलती है। लेकिन कथानक को मोड़ने में वह काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हाँ, पढ़ते हुए मैं यह जरूर सोच रहा था कि अगर वासुदेव के नजरिए से इस उपन्यास के कुछ पहलुओं को लिखा जाए तो शायद उसे पढ़ना भी रोचक रहेगा।
कथानक की कमी की बात करूँ तो इस कथानक की सबसे बड़ी कमी यही है कि यह उपन्यास किसी कहानी का दूसरा भाग लगता है। आपको ऐसा लगता है जैसे चलती कहानी के बीच में आपको लेखक द्वारा लाया गया हो।
कहानी की शुरुआत ही मैगुअल के किसी तैय्यब अली से अपने पैसे लेकर लौटने से होती है। इससे पहले उसके जिंदगी में कई बदलाव आ चुके होते हैं जिनका हल्का सा जिक्र ही होता है। इस दौरान आपको पता लगता है कि न केवल मैगुअल एक कैसीनो का मालिक रहा है बल्कि लेखक द्वारा लिखी गई विमल शृंखला
के मुख्य किरदार विमल से भी उसकी दोस्ती रही है और उन्होंने काफी कुछ गोवा में साथ किया है। लेकिन यह दोस्ती कौन से उपन्यास में रही है इसका कहीं जिक्र आपको नहीं मिलता है। बाद में ढूँढने पर मुझे पता लगा कि विमल और अलफाँसो ‘आज कत्ल होकर रहेगा’ में एक साथ आए हैं और आईविटनेस की कहानी ‘बैंक वैन रोबेरी’ और ‘मौत का फरमान’ के बाद शायद घटित हो रही है क्योंकि इस उपन्यास में विमल के जयपुर होने का जिक्र है और वह जयपुर उपरोक्त उपन्यासों में ही था। यह ऐसी जानकारी है जो मुझे ढूँढने पर मिली क्योंकि मैं विमल से परिचित था। लेकिन अगर कोई ऐसा पाठक है जो विमल शृंखला से परिचित नहीं है और वह आईविटनेस पढ़ता है तो उसे इस उपन्यास में विमल का जिक्र अटपटा लगेगा। वहीं अलफाँसो की गुजरी जिंदगी का जिक्र भी उसे यह अहसास दिलाएगा कि वह किसी कहानी का दूसरा भाग पढ़ रहा है। अच्छा होता कि यहाँ पर यह नोट दे दिया जाता है कि विमल और अलफाँसो के विषय में उपरोक्त उपन्यासों को पढ़ें तब यह अधूरापन शायद इस उपन्यास में न झलकता या पाठक को जानकारी रहती कि उसे इस उपन्यास को पढ़ने से पहले कौन सा उपन्यास पढ़ना है।
इसके अलावा कहानी में पाँच करोड़ के हीरों का जिक्र है जिसे नागरथ ने बंबई के रुस्तम जी झावेरी के शोरूम से लूटा था। कहानी इस लूट के पाँच साल बाद जरूर घटित हो रही है फिर भी आप इस चोरी की कहानी को पढ़ने की इच्छा मन में आने से नहीं रोक पाते हैं। पढ़ते हुए एक ख्याल ये भी आता है कि कहीं जैसे तरह अलफाँसो किसी और उपन्यास में हाजिरी लगा चुका है वैसे ही यह चोरी की घटना किसी अन्य उपन्यास में दर्शाई तो नहीं गयी है? अगर ऐसा कुछ है तो मुझे जरूर बताइएगा।
उपन्यास का नायक मैगुअल है और वह आईविटनेस की तलाश के दौरान जितनी बार दुश्मन के हत्थे चढ़ता है उतनी बार उनसे केवल अपनी किस्मत के चलते बचता है। यह भी उपन्यास का कमजोर पहलु कई लोगों को लग सकता है। अभी ऐसा लगता है जैसे बचने का कोई रास्ता न देखकर लेखक ने एक आसान रास्ता उसके लिए मुहैया करवा दिया था। उधर उसे किस्मत के कारण नहीं बल्कि अपनी सूझ बूझ के कारण बचते हुए दर्शाते तो बेहतर होता।
अंत में यही कहूँगा कि लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का लिखा यह उपन्यास पठनीय है और पाठक को बांधकर रखता है। हाँ, उपन्यास के कुछ पहलू ऐसी जरूर हैं जिन्हें पढ़ते हुए आपको लगता है जैसे आप किसी पहले सी चलती आ रही कहानी के बीच में टपक पड़े हैं या दो अलहदा कहानियाँ एक जगह आकर जुड़ गयी हैं और उन पहले घटित हुई कहानियों का का अंदाजा आपको केवल जो उपन्यास में जिक्र है उससे ही लगाना है। यह कभी कभी असंतुष्टि पैदा कर सकता है लेकिन अगर इस एक चीज को किनारे रख दें तो उपन्यास आपका मनोरंजन करने में सफल होता है। अगर नहीं पढ़ा है तो एक बार पढ़ सकते हैं।
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मैगुअल अलफांसो का पदार्पण उपन्यास 'आज क़त्ल हो के रहेगा' विमल सीरीज़ के श्रेष्ठ उपन्यासों में सम्मिलित है। और 'आई विटनेस' भी कमाल का थ्रिलर है। मैं आपकी इस पुस्तक-समीक्षा से पूर्ण रूप से सहमत हूं विकास जी।
उपन्यास पर लिखा यह लेख आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा सर। आभार।