संस्करण विवरण
फॉर्मैट: ई बुक | पृष्ठ संख्या: 48 | प्रकाशन: राज कॉमिक्स | शृंखला: परमात्मा #3 | लेखक: तरुण कुमार वाही | परिकल्पना: विवेक मोहन | चित्रांकन: हेमंत | इफेक्टस: नागेंद्र पाल | डिजिटल कैलीग्राफी: अमित कठेरिया
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
त्रिकाली की भविष्यवाणियाँ सच होने लगीं थी। ‘परमात्मा’ के आदेश से उसने जो कुछ किसी के विषय में बताया वह सच साबित हुआ था। ऐसे में दिल्ली वासियों की उसके प्रति आस्था जाग गई थी। उन्हें उसके कहे शब्द ब्रह्मवाक्य से प्रतीत होते थे।
और अब उसने परमाणु को लेकर एक भविष्यवाणी की थी। उसके अनुसार परमाणु पर मृत्युयोग था और आने वाले एक हफ्ता उसके लिए मौत का पैगाम लेकर आ सकते थे।
क्या त्रिकाली की बाकी भविष्यवाणियों की तरह यह भी सच साबित होगी?
आखिर इस भविष्यवाणी का परमाणु पर क्या असर होगा?
हर किसी के होंठों बस यही सवाल था कि अब क्या करेगा परमाणु?
मेरे विचार
‘अब क्या करेगा परमाणु?’ परमाणु की परमात्मा शृंखला का तीसरा भाग है। इस भाग की कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ पर ‘जो होगा देखा जाएगा’ खत्म हुआ था।
‘जो होगा देखा जाएगा’ अगर आपने पढ़ी है तो आप जानते होंगे कि शीना परमाणु की पहचान जानने का दबाव उस पर बना रही थी। वहीं जब उसे पता चला कि परमाणु पर मृत्यु योग है तो वह उसने परमाणु की पहचान जानने का ऐसा तरीका निकाला जिसमें चाहकर भी परमाणु शीना को नहीं रोक सकता था। इस कॉमिक बुक की कहानी इसी सीन से शुरू होती है। कॉमिक का कथानक आगे बढ़ता है तो आप देखते हो कि कैसे परमाणु के मृत्यु योग की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई है। यही नहीं कहानी जब आगे बढ़ती है तो शिप्रा को त्रिकाली ऐसी चीज बताता है कि उसे लगने लगता है कि विनय की जान पर भी मृत्यु योग है और वह अपने विनय की जान बचाने का बीड़ा उठा लेती है।
दिल्ली के लोग और शीना परमाणु की जान बचाने के लिये क्या प्रयास करते हैं और शिप्रा विनय की जान बचाने की खातिर उसकी ज़िंदगी में क्या रायता फैलाती है यह सब आपको इस कहानी को पढ़कर पता लगता है।
जहाँ एक तरफ परमाणु शीना और शिप्रा रूपी तूफान से जूझ रहा है वहीं भारत की मौसम बताने वाले उपग्रह को तबाह करने वाले व्यक्ति की पहचान अभी भी एक रहस्य है। विनय इस दिशा में भी काम करते हुए दिखता है। वहीं एक नए किरदार की एंट्री भी इस भाग में होती है। यह एक मशीन मानव है जो कि किसी के कहने पर कुछ गुप्त कार्य करता दिखता है। यह किसी कौन है यह जानने की इच्छा आपके मन में कथानक को पढ़कर अवश्य जागेगी।
जहाँ पहले दो कॉमिक बुक में परमात्मा का केवल जिक्र था लेकिन उसकी परमाणु या विनय से मुलाकात नहीं हुई थी वहीं इस कॉमिक में आखिरकर विनय का परमात्मा से आमना सामना हो जाता है। इस मुलाकात का क्या हुआ यह बात अगले भाग के लिए लेखक ने छोड़ दी है।
अगर वस्तुनिष्ठ होकर देखूँ तो यह भाग भी आखिरी भाग के लिये भूमिका बनाता सा ही लगता है। पहले कॉमिक में जो राज थे वह अभी तक बरकार ही हैं। नायक भी उन रहस्य की परतों को उठाने के ज्यादा करीब नहीं दिखता है। लगता है लेखक आखिर के भाग में ही सभी रहस्यों से पर्दा उठायेंगे। इस भाग में परमाणु और विनय की व्यक्तिगत ज़िंदगी पर ही ज्यादा लेखक केंद्रित रहे हैं। चूँकि कोई बड़ी फाइट या बड़ा एक्शन इस कॉमिक में मौजूद नहीं है नहीं है तो एक तरह से रोमांच की कमी यहाँ खलती है। मुझे लगता है या तो यहाँ पर एक तगड़ा एक्शन सीक्वेन्स होना चाहिए था या फिर कॉमिक में जो रहस्य (जैसे देवदूतों का रहस्य, परमात्मा के आने का कारण, उपग्रह के ध्वस्त होने के पीछे का कारण, दिल्ली के आसमान में हवाई जहाजों का अजीब बर्ताव करने का कारण) अभी तक अनसुलझे रहे हैं उनमें से एक आध को उजागर कर देना चाहिए था। ऐसा न करने यह भाग भी एक भूमिका की तरह ही प्रतीत होता है। पिछले भाग में दिल्ली के आकाश में हवाई जहाजों द्वारा अजीब बर्ताव को दिखाया जा रहा था लेकिन इस भाग में उसका जिक्र तक नहीं किया गया है। ऐसा लगता है जैसे वो घटना कभी हुई ही न हो।
ऐसे में इस कॉमिक को पढ़ते हुए ऐसा भी लग सकता है जैसे चार भाग की शृंखला में लेखक ने तीन भाग केवल भूमिका के लिए ही दे दिए हैं। देखना होगा कि लेखक आखिरी भाग के साथ न्याय कर पाते हैं या नहीं।
कॉमिक के आर्टवर्क की बात करूँ तो इस भाग में आर्टवर्क हेमंत कुमार द्वारा किया गया है जो कि दिलीप चौबे (जिन्होंने पहले दो भागों में चित्रांकन किया था) के आर्ट से अलग है। यह फर्क किरदारों के चेहरे मोहरों में महसूस भी होता है। मुझे लगता है अगर आप एक सीरीज के आर्टिस्ट को देते हैं तो उसे ही पूरी सीरीज करने देनी चाहिए। ऐसा अनुबंध प्रकाशक को आर्टिस्ट के साथ करना चाहिए। ऐसा न होने पर एक तरह का फर्क काम में आ जाता है जो कि खटकता है।
अंत में यही कहूँगा कि यह भाग भी आखिरी भाग के लिए भूमिका बनाने का कार्य बाखूबी करता है। अगर इसमें एक्शन होता तो एकल कॉमिक के रूप में यह भाग और बेहतर तरीके से खिल सकता था। उसके न होने से इस बात की कमी थोड़ी खलती है।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
बढ़िया समीक्षा
जी आभार…