समीक्षा: मौत की दस्तक – संतोष पाठक

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 383 | शृंखला: आशीष गौतम #2

किताब लिंक: अमेज़न

समीक्षा: मौत की दस्तक - संतोष पाठक | Book Review: Maut Ki Dastak - Santosh Pathak

कहानी 

शनाया मेहता ऐसी लड़की थी जो दिल्ली के हाई सोसाइटी के लोगों के बीच काफी चर्चित थी। उसने कई प्रभावशाली लोगों को अपना दीवाना बना दिया था।

खबरदार अखबार का चीफ रिपोर्टर आशीष गौतम शनाया से एक खबर के सिलसिले में मिलने की जुगत लगा रहा था लेकिन वह जान चुका था कि उसकी दाल शनाया के आगे नहीं गलने वाली थी। 

ऐसे में रात के दो बजे जब उसी शनाया मेहता का फोन आशीष गौतम के लिए आया तो उसका चौंकना लाजमी था।

शनाया का कहना था कि कोई था जो उसकी जान लेने की कोशिश कर रहा था और अब वह उसके घर के बाहर टहलता दिखाई दे रहा था। उसके कुछ व्यक्तिगत कारणों के चलते वो पुलिस नहीं बुला सकती थी और इसलिए उसने आशीष को मदद पाने की उम्मीद में फोन लगाया था। 

आशीष उसकी मदद को पहुँचा तो एक दूसरा ही नजारा उसे वहाँ दिखाई दिया। शनाया का फ्लैट धू-धू कर जल रहा था और वह भीतर मरी पड़ी थी। 

पुलिस को यह दुर्घटना लग रही थी लेकिन आशीष जानता था कि यह कत्ल का मामला था। 

आखिर कौन था जो शनाया की जान के पीछे पड़ा था?
 वह शनाया को क्यों मारना चाहता था? 

जैसे जैसे आशीष इन सवालों के जवाब ढूँढने लगा वैसे वैसे और लोगों के भी कत्ल होने लगे और यह गुत्थी उलझती चली गयी। 

आखिर शनाया का कत्ल क्यों हुआ था? 
और बाकी लोगों की हत्या के पीछे क्या कारण था? 
और इन कत्लों का सिलसिला कब थमने वाला था?

मुख्य किरदार:

आशीष गौतम – खबरदार का चीज रिपोर्टर 
शनाया मेहता – एक कॉल गर्ल जो कुछ चुनिंदा ऊँचे तबके के लोगों को अपनी सेवाएँ देती थी
पंकज पाण्डे – एक प्राइवेट डिटेक्टिव 
इन्स्पेक्टर सुधीर राय – दिल्ली पुलिस में इन्स्पेक्टर 
विजय सिंह – सब इन्स्पेक्टर 
दीनदयाल शर्मा – एक बुजुर्ग जो आशीष गौतम से मिलने उसके दफ्तर आया था 
धर्मेश दत्त – एक बड़ा व्यापारी और शनाया का एक क्लाइंट 
शालिनी – धर्मेश दत्त की पत्नी 
अजंलि नारंग – होटल मून लाइट की मालकिन और आशीष गौतम की दोस्त 
दीपक – होटल मूनलाइट का सिक्युरिटी चीफ और अजंलि का मुलाजिम जो कभी पहले एक प्राइवेट डिटेक्टिव हुआ करता था 
जयराज – अंजली का मुलाजिम। ये एक एक्स आर्मी अफसर था। 
अविनाश – के के इंडस्ट्रीज लिमिटेड में कैशियर 
निर्मल कुमार चोपड़ा – के के इंडस्ट्रीज़ का मालिक और शनाया का एक क्लाइंट 
शिवानी – निर्मल की पत्नी
योगेश त्यागी – के के इंडस्ट्रीज़ का मालिक 
सदानंद आहूजा – एक क्रिमिनल लॉयर और शनाया का क्लाइंट 
दिनेश त्यागी – एक भूतपूर्व सांसद और और शनाया का क्लाइंट 
प्रशांत सिन्हा – एक प्रिंटिंग प्रेस का मालिक। एक आपराधिक प्रवृत्ति का मालिक और शनाया का क्लाइंट 
सुरेश सिंह – दिल्ली पुलिस में सब इन्स्पेक्टर 
लालकृष्ण शर्मा – वो लड़का जिसकि मोहब्बत में गिरफ्तार हो शनाया मुंबई से भाग आई थी 
रंजना – शनाया की बहन 
प्रियंका चौधरी – निर्मल वर्मा की सेक्रेटरी 
विकास – खबरदार में आशीष का मातहत 
आयशा – खबरदार की रीसेप्शनिस्ट 
तिवारी – खबरदार का संपादक 
प्यारे मोहन – एक युवक जो आशीष और अंजली का पीछा कर रहा था 
संदीप सिंह – प्रिंस होटल का दरबान 
चंदर – एक टैक्सी ड्राइवर

मेरे विचार

मौत की दस्तक आशीष गौतम शृंखला का दूसरा उपन्यास है। अगर आप आशीष गौतम से परिचित नहीं है तो संक्षिप्त में इतना जानलेना काफी है कि वह दिल्ली के एक दैनिक अखबार ‘खबरदार’ का चीफ रिपोर्टर है जो कि अपने पेशे के चलते कई आपराधिक मामलों से दो चार होता रहता है। वह कई गुत्थियों  को सुलझा चुका है और इसलिए खोजी पत्रकारिता की दुनिया में उसका काफी नाम भी है। (आशीष गौतम के विषय में विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें)

प्रस्तुत उपन्यास मौत की दस्तक की बात करें तो मौत की दस्तक की शुरुआत आशीष गौतम को शनाया के फोन कॉल आने से होती है। इसके बाद हत्या का ऐसा सिलसिला शुरु होता है जो शनाया से शुरू होकर हर उस शख्स को अपने लपेटे में ले लेता है जो भी इस केस में रोशनी डालने के करीब होता है। 

शनाया का कत्ल क्यों हुआ और इसके पीछे कौन है यह समझ पाना पाठक के लिए ही नहीं आशीष के लिए भी टेढ़ी खीर साबित हो जाती है। चूँकि शनाया एक ऐसी कॉल गर्ल थी जो केवल चुनिंदा ग्राहकों को अपनी सेवाएँ देती थी तो उसके ग्राहक तो शक के दायरे में रहते ही हैं साथ ही जिन ग्राहकों की पत्नियाँ है वह भी इस शक के दायरे में आ जाती हैं।  फिर कथानक में पंकज पांडे और रंजना जैसे किरदार मौजूद हैं जो कि कथानक को और जटिल बनाते हैं। 

कई बार उपन्यास पढ़ते हुए लगता है कि आप कातिल को पहचानते हैं और आपको समझ आ रहा है कि क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है लेकिन लेखक की सफलता इस बात में ही है कि वह आपको चौंकाने में कामयाब हो जाते हैं।  वह शब्दों का ऐसा जाल बुनता है कि आप उसमें फँस जाते हैं और जब उपन्यास खत्म होता है तो आपके चेहरे पर संतुष्टि के वही भाव होते हैं जो एक रहस्यकथा के पाठक के चेहरे पर तब होते हैं जब वह एक अच्छी रहस्यकथा पढ़कर हटा होता है।

चूँकि उपन्यास आशीष गौतम शृंखला का है तो इसमें अंजली नारंग भी मौजूद है। आशीष के साथ उसके सीन्स मनोरंजक हैं। आशीष उसके साथ फ़्लर्ट करने की बचकानी कोशिश करता रहता है और वह उसे लाइन में रखती है। वह चाहे तो बेहद खुर्राट भी हो सकती है और इसकी झलक भी उपन्यास में देखने को मिलती है। आशीष और उसके बीच का रिश्ता मुझे पसंद है। अभी यह रिश्ता दोस्ती, नोंक झोंक और तकरार है। मैं जरूर देखना चाहूँगा कि लेखक इसे बाद में किस तरह विकसित करते हैं। 

आशीष गौतम एक रंगीन  मिजाज व्यक्ति है जो लड़कियों पर लाइन मारना अपना धर्म समझता है तो उसका ये रूप यहाँ  भी देखने को मिलता है। हाँ, कई बार वह बचकाना जरूर लगता है। वहीं लेखक ने अच्छी बात ये करी है कि जिन लड़कियों को उसके साथ दर्शाया है उन्हे उन्होंने दिमाग वाली दर्शाया है। वह उसका मन्तव्य हमेशा समझ जाती है और जब आशीष कोई गुस्ताखी करता है तो उसे लाइन में लाने की भी कुव्वत रखती है। आशीष एक जिंदादिल मज़ाकिया इंसान भी है इसलिए लड़कियों से इतर दूसरे किरदारों के साथ होने वाले उसके वार्तालाप भी मनोरंजक रहते हैं और कई बार हास्य का पुट भी ये लिए रहते हैं। वहीं आशीष हरफन मौला नहीं है। कई बार उससे उपन्यास में गलतियाँ भी होती है और कई चीजें दूसरों के सुझाए सूझती है जो किरदार को यथार्थ के नजदीक लाता है। 

यह भी पढ़ें: संतोष पाठक के उपन्यास मौत की दस्तक का एक रोचक अंश

उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप बने हैं। शनाया के ज्यादातर  क्लाइंट प्रभावी व्यक्तिव के मालिक थे और इसलिए प्रभावित करते हैं। सदानंद आहूजा, दिनेश त्यागी और प्रशांत सिन्हा वाले प्रसंग अच्छे बन पड़े हैं। 

लेखक के इस उपन्यास में समाज के अलग अलग वर्ग के लोग भी हैं। उनके माध्यम से लेखक ने समाज का रूप दर्शाने की भी कोशिश की है। 

उपन्यास में मकतूल चूँकि जिस्म फरोशी के धंधे में शामिल थी तो लेखक ने कथानक के जरिए उन हालातों का जिक्र भी किया है जिसके चलते वो इस धंधे में शामिल की जाती हैं। हर साल न जाने ऐसी कितनी औरतों को इस दलदल में फेंक दिया जाता है। वही इन औरतों को लेकर समाज का दोगला रवैया भी लेखक ने दर्शाने की कोशिश की है। 

उपन्यास में सुधीर राय एक ईमानदार पुलिस अफसर है। एक पुलिस अफसर के ऊपर किस तरह का दबाव बना रहता है वह भी लेखक ने इस किरदार के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की है। आशीष और सुधीर में भले ही चुहलबाजी होती हो लेकिन आशीष सुधीर की दिल से इज्जत करता है यह बात उपन्यास पढ़ते हुए मालूम चल जाती है।  

कहानी में विशेष कमी तो नहीं है। बस मुझे लगा लालकृष्ण वर्मा वाले प्रसंग को खींचा हुआ है जबकि शक के दायरे में मौजूद लोग प्रसिद्ध व्यक्ति थे जिनकी पहचान गूगल बाबा के माध्यम से आसानी से उस व्यक्ति से करवाई जा सकती थी जिससे आशीष गौतम करवा सकता था। यह इसलिए भी खली क्योंकि गूगल फेसबुक का इस्तेमाल करने की सलाह आशीष को पहले भी मिल चुकी थी। हाँ इधर ये बताना भी जरूरी है कि आशीष उपन्यास में इस बात को खुद मानता है कि उसे यह बात बहुत पहले सूझ जानी चाहिए थी जो कुछ हद तक इस कमी को कमी नहीं रहने देता है। 

अंत में यही कहूँगा कि मौत की दस्तक एक ऐसी रहस्यकथा है जो आपको पूरी तरह से संतुष्ट करने की काबिलियत रखता है। यह एक तेज रफ्तार कहानी है जो अंत में आकर आपको चौंकाने में कामयाब होती है। अगर एक अच्छी मर्डर मिस्टरी पढ़ना चाहते हैं तो यह किताब आपको निराश नहीं करेगी। 

उपन्यास के कुछ अंश जो मुझे पसंद आए:

दिल से कोई लड़की नहीं चाहती कि उसे अपना तन हवस के भूखे भेड़ियों के आगे परोसना पड़े। कोई औरत ये नहीं चाहती कि उसका पति गैर औरत का पहलू आबाद करे! मगर ये सब सदियों से चला आ रहा है। घरवाली और बाहरवाली की कहानी हमारे समाज में कोई नई बात नहीं है। और जरा सोचो शनाया अगर कॉलगर्ल थी तो तुम धर्मेश को क्या कहोगे। वो उसे घर से तो बुलाकर ले नहीं जाती थी। तुम मर्दों की जात ऐसी ही होती है। गुनाह में बराबर के हिस्सेदार होते हो फिर भी सारा दोष औरत पर मढ़कर खुद को पाक-साफ साबित करने पर तुले रहते हो। दोगली मानसिकता होती है तुम मर्दों की। छिपकर वार करते हो। अंधेरे कमरे में जिस औरत के तलवे चाटते हो, उजाले में आते ही उसकी शक्ल पहचानने से इंकार कर देते हो।

रिश्ते तो विश्वास पर चलते हैं अगर पति-पत्नी के बीच विश्वास का पुल नहीं है तो उनका अलग हो जाना ही बेहतर है।

 

किताब लिंक: अमेज़न

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “समीक्षा: मौत की दस्तक – संतोष पाठक”

  1. जब समीक्षक आप हों और पुस्तक की इतनी प्रशंसा करें तो पढ़ना तो बनता ही है विकास जी। मैं शीघ्र ही इसे पढ़ने का प्रयास करूंगा। हार्दिक आभार आपका।

    1. जी आभार सर। पुस्तक के प्रति आपकी राय का इंतजार रहेगा।

  2. "Harfan maula" is a new metaphor for me. Got to find out!

    Such a well-written review. I enjoy murder mysteries and this book sounds intriguing, along with a dose of feminism.

    I love the fact that there's a discourse around society's double standards w.r.t. prostitution.

    1. Would love to hear your views about it. Yeah, sometimes you can find ashish a bit sexist but that's how our society is. Good people who don't know when they are being sexist.

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