संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ संख्या: 230
आईएसबीएन:9789388094207
दस जून की रात – संतोष पाठक |
पहला वाक्य:
पनौती ऑटो से नीचे उतरा ही था कि अचानक हुई बूँदाबाँदी से उसका मन वितृष्णा से भर उठा।
कहानी:
विशाल सकसेना उर्फ़ पनौती के दोस्तों के मानना था कि वह जिसकी भी ज़िन्दगी में आता था उसकी वाट लगना तय था। पनौती के कदम किसी की ज़िन्दगी में पड़े नहीं कि उस व्यक्ति के साथ बुरी घटनाओं का सिलसिला शुरू हो जाता था। लेकिन फिर भी अक्खड़ स्वभाव पनौती में कुछ बात तो थी कि उसके दोस्त उससे कन्नी नहीं काटते थे।
वहीं पनौती की माँ का मानना था कि उसे अब शादी कर देनी चाहिए थी। उनके मतानुसार शादी की जिम्मेदारियाँ जब कंधे पर आती तो पनौती खुद ब खुद जिम्मेदार हो जाता और अभी की तरह बेरोजगार और बेमकसद भटकता नहीं रहता। माँ के दबाव में आकर पनौती ने लड़की, जो कि उसकी बचपन की दोस्त संजना थी, से मिलने का मन बना ही लिया था।
लेकिन जब उधर पनौती पहुँचा तो संजना तो मिलने नहीं आई लेकिन एक पुलिस सब इंस्पेक्टर का कॉल उसे जरूर आया। पुलिस का कहना था कि उन्हें एक लाश मिली थी जिससे आखिरी बार पनौती को ही कॉल किया गया था। पुलिस चाहती थी कि पनौती आये और लड़की की शिनाख्त करे।
आखिर किसकी लाश पुलिस को मिली थी? उस लड़की ने पनौती को क्यों फोन किया था? क्या लड़की की हत्या हुई थी या यह महज एक हादसा था?
ऐसे ही कई प्रश्न पनौती के मस्तिष्क में उभर रहे थे। और उसे मालूम था कि इसका उत्तर तो उसे थाने पहुँच कर मिलेंगे।
पर उसे क्या मालूम था कि यह दस जून की रात उसकी ज़िन्दगी की ऐसी रात होने वाली है जो उसे तमाम ज़िन्दगी याद रहने वाली है। बशर्ते वह याद करने के लिए जिंदा बचा तो।
मुख्य किरदार:
विशाल सक्सेना उर्फ़ पनौती – एक तीस साला युवक जिसके विषय में कहा जाता था कि जिसकी ज़िन्दगी में वो आता था उसकी ज़िन्दगी में कुछ न कुछ बुरा होकर रहता था
संजना कुलकर्णी – एक लड़की जिसके साथ विशाल की माँ विशाल की शादी करवाना चाहती थी
आशा आहूजा – संजना की दोस्त
सतपाल सिंह – हरियाणा पुलिस का सब इंस्पेक्टर
किरपाराम – सेक्टर 24 के थाणे में मौजूद एक सिपाही
वीरपाल – एक सिपाही जिसे सतपाल ने संजना की निगरानी के लिए रखा था
विवेकचंद कौशिक – पुलिस का हवलदार
महावीर सिंह – एम एल ए
रंजीत सिंह – ए सी पी जिसका मातहत सतपाल था
बलबीर सिंह उर्फ़ बल्ली – एक जाना माना अपराधी
रहमत अली खान – एक बुजर्गवार
ओमकार सिंह – महावीर सिंह का ख़ास आदमी
राघव – पुलिस का एक सब इंस्पेक्टर
डी सी पी धनपाल सिंह – महावीर सिंह का दाम और पुलिस का डिप्टी कमिश्नर
निक्की – महावीर सिंह की बेटी
मुश्ताक अहमद, विक्रम सैनी – महावीर सिंह के गुर्गे
सुचित्रा सेन – पनौती की दोस्त
निखिल आनन्द – आशा का बॉय फ्रेंड
नेहा – निक्की की भतीजी धनपाल सिंह की बेटी
नीरज – आशा, नेहा का दोस्त
संतोष पाठक जी का उपन्यास दस जून की रात एक मर्डर मिस्ट्री है। उपन्यास की शुरुआत एक लाश के मिलने से शुरू होती है। अनजान लड़की की लाश मिलने की घटना से शुरू हुआ उपन्यास जैसे जैसे आगे बढ़ता जाता है इसमें कई रहस्य पैदा होते जाते हैं और हमारे नायक पनौती के लिए परेशानियाँ बढती चली जाती हैं। इस क़त्ल के पीछे किसका हाथ हो सकता है? इसके कई कैंडिडेट भी खड़े होते हैं और फिर कैसे उन संदिग्धों के बीच से पनौती पुलिस के खिलाफ जाकर असल कातिल तक पहुँचता है यह पढ़ना एक रोमांचकारी अनुभव होता है।
राजनितिक ताकत कैसे क़ानून को अपने घर की बांदी बनाकर उससे नाच कराती है यह उपन्यास में दृष्टि गोचर होता है। क़ानून को तोड़ने मरोड़ने का काम कैसे क़ानून के रखवालों के सामने होता है वह भी इसमें दिखता है। ऐसा नहीं है कि पुलिस में सभी भ्रष्ट हैं लेकिन ज्यादातर हैं और ऊँचे ओहदे पर जो हैं वो तो ताकतवर की जी हुजूरी करने के लिए तत्पर रहते हैं यह हमेशा से देखा गया है। उपन्यास में भी यही देखने को मिलता है।
उपन्यास में जो चीज उभर कर आती है वह है विशाल सक्सेना उर्फ़ पनौती का किरदार। वह एक अहमकाना किरदार है जो है तो काफी बुद्धिमान लेकिन कई बार अपनी हरकतों से बेवकूफ भी लगता है। उपन्यास पढ़ते पढ़ते कई बार जब पनौती की हरकतें देखता था तो बरबस ही इब्ने सफी जी का किरदार इमरान का ख्याल मन में आ जाता था। वो दोनों ही तेजतर्रार और अहमकाना है। लेकिन जहाँ इमरान का अहमकाना बर्ताव एक तरह का नाटक है वहीं पनौती का बर्ताव नाटक नहीं प्रतीत होता है। वह है ही ऐसा।
हाँ, कहानी पनौती के कारण कई बार फ़िल्मी भी लगती है। जिस तरह अधिकतर वह पुलिस वालों पर भारी पड़ा है उससे मानना थोड़ा सा मुश्किल होता है। हाँ, लेखक ने ये बताया है कि पनौती कॉलेज में बॉक्सिंग कर चुका है और क्रिमिनोलॉजी और पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया है इस कारण आप ये तर्क भी दे सकते हैं कि वो इसलिए भी पुलिस वालों पर भारी पड़ता है क्योंकि वो आम आदमी नहीं है। उसको ट्रेनिंग हासिल है लेकिन फिर ये अपना अपना देखने का नजरिया है। इससे कहानी में कोई फर्क तो नहीं पड़ता है लेकिन एक फंतासी का तत्व कहानी में आ जाता है। उस हिसाब से इसे देखें तो आपको कहानी पसंद आएगी। मैंने भी इसे फंतासी के रूप में ही देखा था।
उपन्यास में सतपाल सिंह का किरदार एक और महत्वपूर्ण किरदार है। वह सिस्टम में फँसा हुआ एक ईमानदार पुलिसिया है जो सिस्टम की कमियों को जानता है और उसमें रहते हुए जितना हो सके अपनी नौकरी इमानदारी से करना चाहता है। वह एक प्रैक्टिकल बन्दा है जिसे पता है कि कब किस मामले में पीछे हटना है, किस ताकत से टकराना है किससे नहीं टकराना है। इस कारण कई बार वो उपन्यास में कमजोर तो दिखता है लेकिन मेरा मानना है कि सिस्टम में सतपाल सिंह जैसे किरदार बहुत जरूरी हैं। वो ऐसे लोग हैं जिनके चलते सिस्टम मानवीय रहता है। उनके हाथ बंधे रहते हैं लेकिन फिर भी वो सिस्टम में रहकर वो समाज का काफी भला कर सकते हैं। वहीं इसे उलट पनौती के विषय में ऐसा कहा नहीं जा सकता। जिस तरह का उसका रुख है वो ऐसा है कि चला तो ठीक लेकिन न चलने की सम्भावाना उसमें काफी ज्यादा होती है।
उपन्यास के अन्य किरदार कहानी के अनुरूप ही हैं। मुश्ताक और सैनी का किरदार प्रभावित करता है। पनौती का उनसे टकराव का हिस्सा काफी रोमांचक है। कहानी में रहस्य अंत तक बना रहता है। कहानी में कई मोड़ आते हैं जो पाठक की रूचि उपन्यास में बरकरार रखते हैं। कहानी का अंत जिस तरह हुआ है उस पर भी आसानी से विश्वास किया जा सकता है। वह यथार्थ के निकट लगता है।
अब मुझे पनौती के अगले किस्से का इन्तजार रहेगा। उम्मीद है तब तक वो कोई न कोई नौकरी पकड़ लेगा जिसके चलते उस अपराधियों से दो दो हाथ करने का मौका मिलेगा।
उपन्यास मुझे तो पसंद आया। अगर एक अच्छी रहस्य कथा पढ़ना चाहते हैं तो यह आपको निराश नहीं करेगी।
मेरी रेटिंग: 3.5/5
क्या आपने इस उपन्यास को पढ़ा है? अगर हाँ तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
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किंडल
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जी आभार। क्या आपने इसे पढ़ा है? अगर हाँ तो अपने विचार बताइये? कैसी लगी आपको,हितेश भाई।
पनौती=रोलर कोस्टर राइड
जी सही कहा।
आपकी लिखी समीक्षा नॉवेल की तरह ही रोचक लगती है | बहुत तारीफ सुनी है इस नॉवेल की | वैसे खरीद लिया है बस पढ़ने का मौका नही मिला है | जल्द ही पढूंगा
शुक्रिया राकेश भाई। किताब पढ़कर अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।