“एक कार” -अंजली बिना उसकी ओर देखे बोली – “शुरू से ही हमारे पीछे लगी है।”
“शुरू से कब से?”
“होटल से ही, वो बाहर ही खड़ी थी।”
“कौन सी कार?” वो पीछे मुड़कर देखे बिना बोला।
“हमारे पीछे एक जेन चली आ रही है, उसके पीछे वाली कार को देखो।”
“सफेद रंग की सेलेरिओ है।”
“वही।”
“हमारा पीछा कोई क्यों करेगा?”
“हमारे जरिए रंजना तक पहुँचने के लिए।”
“हद करती है तू भी, हमें कौन सा पता है कि रंजना कहाँ है।”
“ये बात उसे नहीं मालूम होगी। वो उम्मीद कर रहा होगा कि हम देर-सबेर रंजना से मिलने की कोशिश जरूर करेंगे।”
“फिर तो वो सुधीर का आदमी हो सकता है।”
“हो सकता है।”
सहमति से सिर हिलाते हुए अंजली ने अपनी कार प्रगति मैदान और पुराना किला के बीच वाली सड़क पर मोड़ दी।तत्काल सेलेरियो ने भी उनके पीछे मोड़ काटा। तत्पश्चात् अंजली ने कई बार कार को दायें-बायें घुमाया मगर सेलेरियो बदस्तूर उनके पीछे लगी रही। उस वक्त उनकी कार सुंदर नगर से गुजर रही थी। आगे डीपीएस से थोड़ा पहले उसने फ्लाईओवर के नीचे लेजाकर उसने कार रोकदी।
“क्या हुआ?”
“मैं देखना चाहती हूँ अब वो क्या करता है?”
तभी पीछे वाली कार उनसे कुछ दूरी पर आ खड़ी हुई। एकाएक उसका इंजन धर्र-धर्र की आवाज करके बंद हो गया। तत्पश्चात उसके ड्राईवर ने बाहर निकल कर कार का बोनट ऊपर उठा दिया और इंजन पर झुक गया।वही पुराना घिसा-पिटा फिल्मी तरीका, जिससे अब हर कोई वाकिफ था।
वो तकरीबन पच्चीस वर्षीय नौजवान था जो उस वक्त जींस की पैंट और वी नेक वाली टीशर्ट पहने था।
“मैं अभी आई।” कहकर अंजली कार से नीचे उतर गई।
“कहाँ जा रही हो?” आशीष हैरान होता हुआ बोला। मगर अंजली बिना कोई जवाब दिए सेलेरियो की दिशा में आगे बढ़ गई। आशीष जानता था अब वो क्या करेगी। उसके जाने के तुरंत बाद ही वह अपनी ओर का दरवाजा खोलकर नीचे उतर गया।
अंजली इंजन पर झुके ड्राईवर के समीप पहुंची तत्तपश्चात उसके अपनी अंगुली मोड़कर उसके सिर को यूं खटखटाया मानो किसी दरवाजे पर दस्तक दे रही हो।
फौरन ड्राइवर उसकी दिशा में घूम गया। “कार खराब हो गई लगती है, नहीं।”
“हाँ….हाँ”-ड्राइवर हकलाया-“खराब हो गई है, मैं ठीक करने की कोशिश कर रहा हूँ।”
“चटाख।”
अँजली ने अपने दाहिने हाथ का एक भरपूर थप्पड़ उसके चेहरे पर रसीद कर दिया।
वह कराहता हुआ अपना गाल सहलाने लगा।
“नाम बोल अपना।”
अंजली उसका कॉलर पकड़कर झकझोरती हुई बोली।
“प्यारे मोहन।”
“हमारा पीछा क्यों कर रहा था?”
“कौन कहता है?”
इतना सुनते ही अंजली ने एक जोरदार घूसा उसकी पसलियों में जमा दिया। ड्राइवर दोहरा हुआ तो अंजली ने घुटने का वार उसकी ठुड्डी पर कर दिया। उसके मुंह से एक जोरदार चीख निकली और वो पीठ के बल इंजन पर जा गिरा। अंजली ने उसका गरेबान पकड़कर दोबारा उसे पैरों पर खड़ा कर दिया, और बड़े ही शांत भाव से बोली, “सीधा खड़ा रह इंजन गरम है पीठ जल जाएगी, समझा।”
ड्राइवर ने ऊपर-नीचे मुंडी हिलाकर हामी भरी।
“अब बोल हमारे पीछे क्यों लगा था?”
“मुझे नहीं मालूम।”
फौरन अंजली ने एक जोरदार घूसा उसकी पेट में दे मारा, ड्राइवर फिर कराहता हुआ पेट पकड़कर दोहरा हो गया। फिर अंजली उसे लगभग धकेलती हुई अपनी कार तक पहुंची और उसे जबरन पिछली सीट पर धकेल दिया। इस दौरान कुछ तमाशाई वहां इकट्ठे जरूर हो गये थे। मगर उन्होंने दखलअंदाज होने की कोशिश नहीं की।
“आशीष!”-वह कार का दरवाजा बंद करती हुई बोली – “तुम कार ड्राइव करो, मैं जरा इसका हाल-चाल पूछती हूँ।”
आशीष ड्राईविंग सीट पर जा बैठा तत्पश्चात उसने कार आगे बढ़ा दी।
“जेल जाना चाहते हो।” अंजली सख्त लहजे में बोली।
“नहीं।”
“तो फिर मेरे सवालों का ठीक-ठीक और सही-सही जवाब दो।”
“बोलो।”
“तुमहरा नाम क्या है?”
“बताया तो था।”- वह मरे स्वर में बोला।
“फिर से बताओ।”
“प्यारे मोहन।”
“क्या करते हो?”
“कुछ नहीं बेरोजगार हूँ।”
“अच्छा। कार किसकी है?”
“एक फ्रैंड की है।”
“रहते कहाँ हो?”
“गोविन्दपूरी में।”
“गुड!”- अजंली बोली-“हाँ तो प्यारे मोहन जी अब आप हमें ये बताएंगे कि आप हमारा पीछा क्यों कर रहे थे?”
“मैं आपका पीछा नहीं कर रहा था।”
“तो किसका कर रहे थे?”
“साँप!” – वो गला फाड़कर चिल्लाया – “तुम्हारे पैरों के पास साँप है, बचो!”
“गाड़ी रोको जल्दी करो।”
कहती हुई अंजली हड़बड़ाकर सीट के ऊपर चढ़ गयी। आशीष ने फौरन कार रोक दी, ठीक उसी वक्त अपनी और का दरवाजा खोलकर प्यारे मोहन ने कार के बाहर छलाँग लगा दी। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता वह दौड़ता हुआ सड़क पार कर गया।
असल बात समझते ही आशीष जोर-जोर से हँसने लगा।
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किताब: मौत की दस्तक | लेखक: संतोष पाठक | शृंखला : आशीष गौतम |
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