पुस्तक अंश: मौत का सफर

मौत का सफर प्रमोद शृंखला का पहला उपन्यास है। 1966 में प्रकाशित हुए इस उपन्यास का पूरा घटनाक्रम चीन की धरती पर घटित होता है। प्रमोद तिवारी एक सत्ताईस अट्ठाईस वर्षीय युवक है जो कि सात आठ साल से चीन में रह रहा है। जब भारत से मेजर कौल प्रमोद को फोन कर एक व्यापरी मिस्टर सिडनी क्रेमर की सुरक्षा करने को कहते हैं तो उसे नहीं मालूम होता है कि उनकी ये गुजारिश प्रमोद को मौत के एक सफर पर ले जाएगी। 

आज एक बुक जर्नल पर पढ़िए इस उपन्यास मौत का सफर का एक रोचक अंश। उम्मीद है यह अंश उपन्यास के प्रति आपकी उत्सुकता जागृत करने में कामयाब होगा। 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

 

“अभी कितनी देर और जंगल में चलना पड़ेगा?” – प्रमोद ने पूछा। 

“बस पाँच ली फिर हम चढ़ाई चढ़नी शुरू कर देंगे।”

उसी समय प्रमोद की नाक में एक विचित्र गंध प्रविष्ट हुई।

“कुछ जल रहा है।”, प्रमोद बोला। 

फिलिप ने अपना खच्चर रोक दिया। 

फिर गौर से जंग के भीतरी  भाग को देखने लगा। सौ फुट आगे इतना धुआँ था कि पेड़ दिखाई नहीं देते थे। 

“क्या बात है?” प्रमोद ने पूछा। 

उसी समय आग की लाल-लाल लपटें झलकने लगीं। 

“आग ।” फिलिप मुस्कराया। 

“मास्टर आग!” – याट टो घबराता हुआ बोला – “आगे बांस के पेड़ हैं। पाँच मिनट में ये सारा जंगल धधक जाएगा।”

प्रमोद भी बौखला गया। 

कुलियों के समूह में खलबली मच गयी। सब एकदम से पलटे और वापस भाग लिए। 

“पीछे मत भागों बेवकूफों” – याट टो चीनी में चिल्लाया- “ऊँचाई के पेड़ तुम्हारे ऊपर गिर जाएंगे।”

लेकिन किसी ने उसके शब्दों की परवाह नहीं की। जिसके जिधर सींग समाये, भाग निकला। 

“मास्टर दाईं और भागिये।” – याट टो प्रमोद से चीनी में बोला – “उस और लपटें अभी नहीं पहुँची हैं।”

प्रमोद ने एक बार मिस्टर क्रेमर एण्ड कंपनी के पीले पड़ गये चेहरों की ओर देखा और फिर याट टो की बताई हुई दिशा में अपना खच्चर हाँकता हुआ बोला – “भागो।”

मिस्टर क्रेमर, लिजा, विलियम, लिऊ, याट टो और बचे हुए पाँच छः कुली सब प्रमोद के पीछे भाग लिए। सब अपने खच्चर सरपट दौड़ाये जा रहे थे। 

लगभग दस मिनट इसी प्रकार धधकते जंगल में से भागते हुए गुजर गए। 

प्रमोद, क्रेमर, लिजा और विलियम भी आगे निकल आये थे लेकिन पेड़ों की रुकावट के कारण याट दो और तीन चार कुली पीछे ही ज्वालाओं में घिरे रह गये थे। 

“कैरी ऑन, मास्टर!” – याट टो उन्हें रुकता देखकर चिल्ला रहा था – “रुकिए मत।”

और उसने प्रमोद के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही अपना खच्चर बाईं और भगा दिया। बाकी कुली भी उसके पीछे भाग लिए।

प्रमोद वगैरह भी फिर भाग लिये।

लगभग एक घंटा वे बिना किसी विशेष दिशा ज्ञान के भागते रहे। निरंतर भागते रहने से खच्चरों की आँखें बाहर निकल आई थी और उनके मुँह से झाग बह रहे थे। 

उसी समय विलियम के विशाल शरीर के नीचे उसके खच्चर ने दम तोड़ दिया। विलियम मुँह के बल जमीन पर आकर गिरा। 

अगले ही क्षण प्रमोद का खच्चर भी लोट गया। 

यह हाल देखकर मिस्टर क्रेमर, फिलिप और लिजा अपने खच्चरों से उतर पड़े। 

फिलिप के खच्चर को छोड़कर बाकी सभी खच्चर मरणासन्न हो रहे थे। फिलिप के खच्चर की हालत बाकियों से अच्छी थी। 

वे लोग पेड़ों का सहारा लेकर बैठ गये और हाथ-पाँव ढीले छोड़कर हाँफने लगे। 

फिलिप वाले खच्चर को छोड़कर बाकी चारों खच्चरों ने उनकी आँखों के सामने दम तोड़ दिया। 

सबसे पहले प्रमोद उठकर खड़ा हुआ। उसने एक नजर अपने बेसुध पड़े साथियों पर डाली और आस-पास का निरीक्षण करने लगा। 

हम कहाँ पहुँच गए? – वह बड़बड़ाया। आस-पास पेड़ ही पेड़ दिखाई दे रहे थे। चाँद के अपर्याप्त प्रकाश के कारण उसे न दिशा का होश रहा न राह का। 

प्रमोद ने फिलिप लिऊ को हिलाकर उठाया। 

फिलिप ने एक थकी सी निगाह उसकी और डाली और फिर बोला – “वाट मिस्टर?”

“तुम्हें इस जंगल से बाहर निकलने का रास्ता मालूम है?”

फिलिप ने बिना कोई उत्तर दिये आँखें मूँद लीं। 

“ओ, फिलिप के बच्चे!” – प्रमोद ने उसे झिंझोड़ा – “साले, हमने रात भर जंगली जानवरों का शिकार नहीं बनना है। “

“फिर?” – चीनी बोला। 

“फिर यह कि उठकर रास्ता दिखाओ और हमें इस जंगल से बाहर निकालो।”

“आल राइट।” –  फिलिप यूँ बोला जैसे उसे बहुत ही मामूली काम करने के लिए कहा गया हो। 

तब तक बाकी लोग भी उठ खड़े हुए थे। सबके चेहरों से चिंता और परेशानी टपक रही थी। 

फिलिप कुछ क्षण जंगल का निरीक्षण करता रहा, मन ही मन कुछ हिसाब लगाता रहा और फिर एक संकेत करता हुआ बोला – “इस और चलना है हमें। पंद्रह ली तक।”

सब चलने के लिए तैयार हो गए। 

लिजा को खच्चर पर बैठा दिया गया। विलियम ने खच्चर की लगाम थाम ली। फिलिप सबसे आगे था और खच्चर के पीछे प्रमोद और मिस्टर क्रेमर थे। 

रास्ता कटता रहा। लेकिन मंजिल थी कि आने का नाम ही नहीं ले रही थी। भूख और प्यास से सब अधमरे हो चुके थे। 

“फिलिप, हम कहाँ जा रहे हैं?”

फिलिप चुप रहा। उसका पीला चेहरा और अधिक पीला हो उठा। 

“आखिर बात क्या है?”- विलियम का हताशापूर्ण स्वर उनके कानों में नगाड़े की तरह बज उठा। 

“तो?” मिस्टर क्रेमर कंपित स्वर में बोले। 

“हम” – फिलिप धीरे से बोला – “भटक गए हैं।”

विलियम के हाथ से खच्चर की लगाम छूट गई।

लिजा की देह खच्चर की पीठ पर एक बार काँपी और फिर शांत हो गई।

वातावरण एकदम से गतिशून्य हो उठा जैसी वे  लोग स्वयं को मौत के बहुत ही समीप अनुभव कर रहे हों।  

******

पुस्तक लिंक: अमेज़न

यह भी पढ़ें

 


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

2 Comments on “पुस्तक अंश: मौत का सफर”

  1. सुरेंद मोहन पाठक ने प्रमोद सीरीज के केवल चार उपन्यास लिखे हैं।आपने प्रमोद सीरीज पर मेरा विस्तृत लेख अवश्य पढ़ा होगा। मुझे यह सीरीज बहुत पसंद है और इसका नायक प्रमोद भी। 'मौत का सफ़र' प्रमोद सीरीज का (मेरी नज़र में) सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है जो रोलरकोस्टर जैसा आनंद प्रदान करता है। आप भी वक्त मिलने पर इसकी समीक्षा लिखिएगा।

    1. जी प्रमोद सीरीज का यह उपन्यास हाल फिलहाल में पढ़ा था। इस पर जल्द ही कुछ लिखूँगा। आपका लेख काफी पहले पढ़ा था। एक बार दोबारा से उसे पढ़ता हूँ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *