किताब 20 दिसम्बर 2020 से 22 दिसम्बर 2020 के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई-बुक | प्रकाशक: बुक कैफ़े पब्लिकेशन | एएसआईएन: B086RN46MB | पृष्ठ संख्या: 297
किताब लिंक: पेपरबैक | किंडल
पुस्तक समीक्षा: हादसे की रात |
पहला वाक्य:
तीन जुलाई!
वह बुधवार की रात थी, जिस रात इस बेहद सनसनीखेज और दिलचस्प कहानी की शुरुआत हुई।
कहानी:
कुलभूषण एक ऑटो ड्राईवर था जो कि कुछ दिनों से चल रही हड़ताल से परेशान था। उसके पास सवारी नहीं आई थी और पैसों की किल्लत से वह जूझ रहा था। फिर कुछ ऐसा हुआ की उसकी उसकी प्रेमिका मंत्रा के सामने रही सही इज्जत की फजीहत हो गयी।
कुलभूषण तीन जुलाई की उस रात को घर से निकला था तो उसने एक फैसला कर लिया था। वह कुछ भी करके पैसा लाएगा और उसे मंत्रा को देकर अपनी खोयी हुई इज्जत वापस पा लेगा।
पर उसे कहाँ मालूम था उत्तेजना में बिना सोचे समझे लिया गया उसका यह कदम उसकी जिंदगी बदल देगा। उसकी जिंदगी में ऐसा जलजला ले आएगा कि वह उस वक्त को कोसेगा जब उसने इतनी रात को घर से निकलने का फैसला किया था।
आखिर कुलभूषण के साथ ऐसा क्या हुआ?
क्या कुलभूषण इन परेशानियों से निजाद पा पाया?
कुलभूषण – एक ऑटो ड्राईवर
मंत्रा – कुलभूषण की प्रेमिका
बल्ले – किशनपुरा का एक गुण्डा
चीना पहलवान – एक अपराधी
इंस्पेक्टर योगी – पुलिस का इंस्पेक्टर
यशराज खन्ना – एक वकील
सेठ दीवानचंद – एक ज्वेलरी दुकान का मालिक
दशरथ पाटिल -दीवानचंद की दुकान का सेल्स पर्सन
दुष्यंत पाण्डे – दीवानचंद का गुर्गा
डॉन मास्त्रानी – एक अंतर्राष्ट्रीय अपराधी
दिनेश पालीवाल – नेशनल म्यूजियम का चीफ सिक्यूरिटी ऑफिसर
गुरचरन सिंह – नेशनल म्यूजियम का हेड सिक्यूरिटी गार्ड
छत्रपाल सिंह – नेशनल म्यूजियम की स्टेशन वैगन का ड्राईवर
मेरे विचार:
‘हादसे की रात’ अमित खान का एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास कुलभूषण नाम के ऑटो रिक्शा ड्राईवर की कहानी है जिसकी जिंदगी तीन जुलाई की रात को तब बदल जाती है जब उसके ऑटो रिक्शा में एक घायल सवारी बैठती है।
इसके बाद उसकी जिंदगी में ऐसे ऐसे बदलाव आते हैं कि वह न घर का रहता है और न घाट का ही रह जाता है। कहा जाता है कि लालच बुरी बला है और यही बात कुलभूषण को इस उपन्यास के दौरान पता चलती है।
उपन्यास तेज रफ्तार है। कुलभूषण एक के बाद साजिशों की गहरी दलदल में खुद को फँसा हुआ पाता है। वह बाहर आने के लिए जितना हाथ पैर मारता है उतना ही गहरा वो उस दलदल में धंसता चला जाता है।जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है इसमें काफी घुमाव आते हैं और हर घुमाव आपको उपन्यास अंत तक पढ़ते चले जाने के लिए विवश कर देता है।
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उपन्यास के अंदर आपको अलग अलग तरह के अपराध साहित्य का रस भी मिलता है। जहाँ एक तरफ कुलभूषण की कहानी शुरुआत में रहस्य और रोमांचकथा का अहसास दिलाती है वहीं यशराज खन्ना नामक वकील के चलते कोर्ट रूम ड्रामा का मजा भी आपको मिलता है। यह कहानी आगे जाकर आगे चलकर एक क्राइम केपर यानी ऐसे उपन्यास जो कि डकैती के इर्द गिर्द लिखे जाते हैं में बदल जाती है। उपन्यास के आखिर में कथानक में जो ट्विस्टस आये हैं वह भी उपन्यास पढ़ने के मजे को बढ़ा देते हैं।
उपन्यास के किरदारों की बात बात करूँ तो मंत्रा का किरदार प्रभावित करता है। अपने प्रेमी के लिए इतना सब कुछ करने का जज्बा कम ही दिखाई देता है। इंस्पेक्टर योगी एक तेज तर्रार पुलिस वाले के तौर पर उभर कर आता है लेकिन उसके कार्य करने की शैली वैसी ही दिखाई गयी है ज्सिके लिए पुलिस बदनाम है। यह बेहतर तरीके से दर्शाई जा सकती थी। खलनायकों की बात करें तो दुष्यंत पाण्डेय जहाँ सबसे खतरनाक लगता है वहीं बल्ले का किरदार भी तगड़ा बना है। उसका जुनूनी रवैया जहाँ रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा करने के लिए काफी है वहीं वह प्रसंग जिसमें वह योगी की मदद करता है उसके अन्दर की इंसानियत को भी दर्शाता है। इस कारण उसके जूनून से पाठक एक पल के लिए सहानुभूति जरूर रखने लगता है। उपन्यास का नायक कुलभूषण है और आखिर में जो भी होता है उसके चलते मैं यही कहना चाहूँगा कि कुलभूषण से जुड़ी एक आध कहानियाँ और भी लेखक लिख सकते हैं। वह पढ़ना रोचक होगा।
उपन्यास की कमी की बात करूँ तो यशराज जिस तरह की दलील देकर केस जीतता है वह थोड़ी कमजोर लगी। इधर इतना ही कहूँगा कि अगर स्त्री गर्भवती होती है तो इसकी जानकारी उसके शरीर में आये बदलावों से आसानी से पता लग जाती है। वहीं यह बदलाव बच्चा होने के कुछ दिन बाद गायब नहीं हो जाते हैं। यह सबको दिखाई पड़ते हैं। लेखक ने यह प्रसंग लिखते हुए इस छोटी सी बात पर ध्यान शायद नहीं दिया। मुझे अच्छा लगता अगर बेहतर दलील से यशराज केस जीतता।
उपन्यास की दूसरी कमी तकनीकी तो नहीं है लेकिन उसे पचाना भी थोड़ा मुश्किल है। उपन्यास में आगे जाकर यशराज खन्ना का कत्ल हो जाता है और उपन्यास के आखिर में कुछ ऐसे तथ्य उजागर होते हैं जिससे यह पता लगता है यह सब नहीं होता अगर बेहतर तरीके से परिस्थिति को सम्भाला जाता। मुझे लगता है यशराज के साथ जो होता है उसका खामियाजा उस अफसर को भुगतना ही पड़ता जिसकी योजना के चलते यह हुआ। कम से कम यशराज के परिवार वाले उस व्यक्ति पर केस जरूर करते। पर इधर ऐसा होते हुए नहीं दिखता है। अफसर इधर दुःख तो जाहिर करता है लेकिन वह केवल खानापूर्ति लगती है।
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यही दो चीजें हैं जो कि मुझे उपन्यास का कमजोर पहलू लगी थी। इन दो चीजों को छोड़ दें तो हादसे की रात एक तेज रफ्तार कथानक लिए ऐसा उपन्यास है जो कि अंत तक आते ट्विस्टस के कारण पाठकों का भरपूर मनोरंजन करता है।
अगर आपने नहीं पढ़ा है तो एक बार जरूर पढ़ें।
रेटिंग: 4/5
अगर आपने अमित खान के उपन्यास पढ़े हैं तो अपने सबसे पसंदीदा पाँच उपन्यासों के नाम मुझसे जरूर साझा कीजियेगा।
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
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अच्छी समीक्षा है। अमित खान को कभी पढ़ा नही है। कभी इनको भी ट्राय करूँगा।
जी आभार… कीजिए… अच्छे लेखक हैं…
रोचक समीक्षा
उपन्यास पढ़ा था जो तथ्य आपने बताए वही मुझे लगे ।
जी आभार। आप मेरे लेखक से सहमत हुए यह जानकर अच्छा लगा। आभार।