नितिश सिन्हा केन्द्रीय सरकार के अंतर्गत प्रभागीय लेखा अधिकारी हैं। अभी ओड़ीसा में कार्यरत हैं। उनकी प्रथम रचना सुमन सौरभ में लगभग 1997 में प्रकाशित हुई थी। वह कई नाटकों का लेखन कर चुके हैं और कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन में सहयोग भी कर चुके हैं।
हाल ही में उनका उपन्यास राक्षस नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित हुआ है। हमने राक्षस के विषय में उनसे बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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प्रश्न: नमस्कार नितिश जी एक बुक जर्नल में आपका स्वागत है। सर्वप्रथम आपको नव प्रकाशित उपन्यास ‘राक्षस’ के प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई। कृपया पाठकों को अपने विषय में बताएँ।
उत्तर: नमस्कार विकास जी। धन्यवाद आपके प्रेमपूर्ण शब्दों और शुभेक्षाओं के लिए। फिलहाल मैं ओडिशा में केंद्रीय सरकार के अंतर्गत प्रभागीय लेखा अधिकारी के पद पर कार्यरत हूँ। अपनी धर्मपत्नी शिखा सिन्हा और दो बच्चों चैतन्य एवं नाव्या के साथ रहता हूँ। माँ जमशेदपुर में रहती है।
प्रश्न: साहित्य के प्रति आपका लगाव कैसे हुआ? वह कौन से साहित्यकार थे जिनकी लेखनी ने शब्दों के संसार के प्रति आपके मन में आकर्षण पैदा किया?
उत्तर: साहित्य से जुड़ाव तो स्कूल के दिनों से ही हो गया था। प्रेमचंद और शिवपूजन सहाय की लेखनी पसंद आने लगी थी। फिर कॉमिक्स, बाल पॉकेट बुक्स से जुड़ाव हुआ। एस सी बेदी और रायजादा की सैंकड़ो किताबें पढ़ डाली। थोड़ा बड़ा हुआ तो एक तरफ शरत, प्रेमचंद, शिवानी और अमृता प्रीतम जैसे लेखक थे तो दूसरी तरफ वेद प्रकाश कम्बोज,परशुराम शर्मा, वेद प्रकाश शर्मा, सुरेन्द्र मोहन पाठक की किताबें। फिर तो जो कुछ मिला पढ़ता चला गया। उन्ही दिनों दोस्तोवस्की की ‘अपराध और दंड‘ और ‘दी इडियट‘ हाथ लगी तो झुकाव रसियन और विदेशी साहित्य की तरह झुकाव हुआ जो अब तक जारी है। फिर आध्यात्मिक साहित्य से जुड़ा जिद्दु कृष्णमूर्ती और ओशो से शुरुआत हुई। अब तक अमूमन हज़ारों किताबें पढ़ चूका हूँ और ये मेरी लाइब्रेरी की शोभा बढ़ा रही है।
प्रश्न: आपके मन में लेखन का ख्याल कब आया? क्या आपको अपने द्वारा लिखी पहली रचना याद है?
उत्तर: लिखने का शौक़ दसवीं पास करने के बाद ही हो गया था। कल्पना की उड़ान तो साथ में थी ही। माँ से सदा प्रोत्साहन मिलता रहता था। पहली कहानी ‘राष्ट्र का यश’ सुमन सौरभ में छपी। संभवतः 1997 में। दूसरी भी सुमन सौरभ में ही छपी। पर जब ज्ञात हुआ कि उनके कॉपीराइट्स मेरे पास नहीं रहेंगे तो खुद को वहाँ से दूर कर लिया।
प्रश्न: आपका पहला उपन्यास राक्षस नीलम जासूस प्रकाशन से आ रहा है? इस उपन्यास को लिखने का विचार आपके मन में कब आया?
उत्तर: लगभग तीन वर्ष पूर्व। एक उपन्यास लिखने को सोचा तो जो चरित्र मेरे मन में आये वह राक्षस और ब्रह्मदेव आचार्य के साथ-साथ अलफांसे का था।
प्रश्न: राक्षस अलफांसे शृंखला का उपन्यास है। यह किरदार वेद प्रकाश काम्बोज जी का है। वहीं वेद प्रकाश शर्मा ने भी शायद इस किरदार को लेकर लिखा है। ऐसे में आपने इस किरदार के ऊपर लिखने के लिए कोई विशेष तैयारी की थी, विशेषकर किरदार की बैक स्टोरी को लेकर और उपन्यास की भाषा शैली को लेकर? किन किन बातों का आपने विशेष रूप से ध्यान रखा?
उत्तर: कम्बोज जी और वेद प्रकाश शर्मा जी के उपन्यासों को इतना पढ़ा है की उनके किरदार मन में रच बस गए हैं। इसलिए किरदारों को लेकर को विशेष तैयारी नहीं करनी पड़ी। जहाँ तक कहानी के मुख्य विषय का प्रश्न है तो वह है तिब्बत और वहाँ के लोगों की त्रासदी। इस विषय पर मैंने मार्किट में उपलब्ध तमाम किताबें पढ़ी है। वर्षों से तिब्बत और वहाँ के धर्म आदि पर वर्षों से शोध कर रहा हूँ। जो खाका मैंने इस उपन्यास के लिए तैयार किया था वह करीब 9०० पेज का था। पर वह शायद पाठकों को टॉर्चर करने जैसा होता। शायद आगे भी कुछ लिखूँ इस विषय पर।
प्रश्न: उपन्यास में जहाँ तंत्र मंत्र का जिक्र है वहीं इसमें चीन और चीन के मंत्री का आगमन भी होता है। चीन से भारत के राजनीतिक रिश्ते भी वक्त वक्त में बदलते रहते हैं। क्या इन दोनों को विषयों पर आपने अलग से कोई रिसर्च की थी? पाठकों को इसके विषय में कुछ बताएँ?
उत्तर: अध्यात्म और तंत्र-मंत्र से जुड़ाव पुराना है। एक पाठक के तौर पर भी और एक साधक के तौर से भी। कई बार श्मशान तक गया हूँ। इसलिये इन विषयों पर लिखने के लिए अलग से तैयारी नहीं करनी पड़ी। बाकी मसाला तो अखबारों से मिल जाता है। बाकी यह ध्यान रखता हूँ कि किसी भी लेखक के कंटेंट की कॉपी न करूँ।
प्रश्न: अलफांसे के इतर उपन्यास का ऐसा कौन सा किरदार है जिसको लिखते हुए आपको काफी मज़ा आया? क्या उपन्यास का कोई किरदार है जिसको लिखने में आपको दिक्कत पेश आई हो? वह किरदार कौन सा था?
उत्तर: राधा और कन्हैय्या। इन चरित्रों ने कई जगह पर मुझे भी हँसाया। पर राक्षस के चरित्र को लेकर मैं विशेष सावधान रहा। आप देखेंगे कि वह किताब का मुख्य विलेन होते हुए भी पूरी तरह नेगेटिव चरित्र नहीं है।
प्रश्न: एक लेखक के लिए अपनी पहली पुस्तक प्रकाशित करना कई बार टेढ़ी खीर साबित हो जाता है। आपका यह सफर कैसा था? आपकी पहली पुस्तक नीलम जासूस प्रकाशन से आ रही है। नीलम जासूस प्रकाशन तक आपकी पहुँच कैसी हुई? प्रकाशन के साथ हुए अपने अनुभव को साझा करें?
उत्तर: ऐसा होता रहा। राक्षस’ के तैयार होने के बाद तो ऐसा हुआ कि एक प्रकाशक इसे इस शर्त पर छपने को तैयार थे अगर अलफांसे के जगह पर मैं कोई और किरदार गढ़ लूँ। कोशिश भी की। पर खुद को मना नहीं पाया। फिर नीलम जासूस कार्यालय से जुड़ाव हुआ। आगे इस प्रकाशन के कर्ता धर्ता सुबोध जी से बात हुई। उन्हें अपने उपन्यास के बारे में बताया। वह तुरंत राजी हो गए। उन्हें अलफांसे से भी कोई एतराज न था। अब मुझे लगता है की पहले जिन्होंने मुझे छपने से इनकार किया वह मेरे हक में ही हुआ। आप देखेंगे कि यह उपन्यास जिस कलेवर, प्रिंटिंग कवर में सामने आया है वैसा पॉकेट बुक्स के व्यवसाय में कोई भी उपन्यास कभी नहीं आया। ये बात मैं बस तारीफ़ के लिए नहीं कह रहा। आप खुद चेक कर सकते हैं। सुबोध जी इसके लिए बधाई के हकदार हैं।
प्रश्न: क्या आप आगे भी किन्ही प्रोजेक्ट्स पर कार्य कर रहे हैं? क्या वह भी अपराध कथाएँ ही होने वाली हैं? पाठकों को उनके विषय में कुछ बताएँ?
उत्तर: दूसरा उपन्यास ‘चक्रव्यूह’ तैयार है जो अगले महीने आएगा। यह विजय और अल्फांसे सीरिज का उपन्यास है जिसमें पिछले उपन्यास की तरह ब्रह्मदेव का भी मुख्य चरित्र है। इस किताब को वेद प्रकाश कम्बोज सर का भी आशीर्वाद प्राप्त है। इस किताब के लिए राम पुजारी जी ने भी विशेष प्रोत्साहित किया। मेरी तीसरी किताब एक रिसर्च वर्क है जो ऋग्वेद पर आधारित है। इसके बाद एक और लम्बी कहानी पर काम कर रहा हूँ जो इंग्लिश में होंगी।
प्रश्न: अंत में इस बातचीत का पटाक्षेप करते हुए आप पाठकों से कुछ कहना चाहें तो इस पटल के माध्यम से आप उनसे अपनी बात रख सकते हैं।
तो यह थी लेखक नितिश सिन्हा से हमारी एक छोटी सी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। बातचीत के प्रति अपनी राय से हमें जरूर अवगत करवाइएगा। लेखक का उपन्यास अमेज़न पर उपलब्ध है और आप इसे निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं:
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आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-12-2021) को चर्चा मंच "दूब-सा स्वपोषी बनना है तुझे" (चर्चा अंक-4286) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा अंक में साक्षात्कार को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार…
बहुत ही अच्छा साक्षात्कार। उपन्यास के प्रति उत्सुकता जग गई है और इसमें मेरे पसंदीदा पात्र भी हैं तो अब पढ़ना निश्चित ही है।
साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।
एक नये लेखक का आगमन और वह भी मेरे प्रिय पात्र अलफांसे पर। बहुत रोचक।
उपन्यास पढने की प्रबल इच्छा है।
धन्यवाद ।
उपन्यास के प्रति आपकी राय का इंतजार रहेगा।
सार्थक साक्षात्कार , उपन्यास और उपन्यासकार के बारे में विस्तृत जानकारी।
साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।