संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 88 | प्रकाशक: चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट | संपादक: सुमन बाजपेयी
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
किरदार
सलिल – जल प्रदेश का एक सैनिक और एक जल पुत्र..
वाटर किंग – जल प्रदेश के राजा
नीर प्रसाद – जल प्रदेश के सेनापति
एयरकिंग – वायु प्रदेश के राजा
समीर सिंह – वायु प्रदेश के सेनापति
आयरन किंग – लौह प्रदेश के राजा
लोहा सिंह – लौह प्रदेश के सेनापति
फौलाद सिंह – लौह प्रदेश का राजकुमार
प्रकृति प्रसाद – पुराने वक्त में उस प्रदेश का राजा
लोमहर्षक – प्रकृति प्रसाद का छोटा भाई
हवा हवाई – हवा प्रदेश का सैनिक
प्रवाहिनी – जल प्रदेश की राजकुमारी
मेरे विचार
‘लोहे के आँसू’ (Lohe Ke Aansu) सेवा नंदवाल (Sewa Nandwal) द्वारा लिखित बाल उपन्यास है जो कि चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट (Childrens Book Trust) द्वारा प्रकाशित किया गया है। वर्ष 2013 में प्रकाशित इस उपन्यास को चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट (Childrens Book Trust)द्वारा आयोजित हिंदी बाल साहित्य लेखन प्रतियोगिता के उपन्यास में द्वितीय पुरस्कार मिला था।
उपन्यास के केंद्र में कुश नामक किशोर है जो कि एक दुर्घटना के चलते खुद को एक ऐसी दुनिया में पाता है जो कि मनुष्यों की दुनिया से अलग है। धरती में ही मौजूद इस दुनिया में अलग प्रकार के जीव रहते हैं। कुश इस दुनिया में कैसे पहुँचता है? इस दुनिया के जीव कैसे हैं? कुश को इस दुनिया में पहुँचकर क्या अनुभव होते हैं और किस तरह कुश अपनी दुनिया में वापस लौटता है? इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर यह कथानक देता है।
उपन्यास में लेखक ने अपनी कल्पना को उड़ान देते हुए नए प्रकार के जीवों की कल्पना की है। किशोर कुश जब इनसे मिलता है तो वह अपनी दुनिया और यहाँ की दुनिया के बीच साम्य और अंतर महसूस करता है। कुश के साथ साथ पाठकों को इन जीवों की खासियत, इनके इतिहास और इनके बीच के फर्क का पता चलता है। इनके बीच जो मतभेद हैं वह क्यों हैं? कैसे यह फर्क मनुष्यों में भी यह इसका ज्ञान उसे होता है।
उपन्यास छोटे छोटे अध्यायओं में विभाजित है। भाषा सहज सरल है जो कि उपन्यास को पठनीय बनाती है।
उपन्यास की कमी की बात करूँ तो उपन्यास की शुरुआत एक पुस्तक विमोचन के दृश्य से होती है जहाँ एक ऐसे किशोर, जिसके कपड़े फटे हुए हैं और उसके एक पैर में जूता है, का परिचय कराया जाता है जो कि उस पुस्तक का नायक होता है। जैसे जैसे हम कहानी पढ़ते हैं हमें पता लगता है कि किशोर के साथ जो कुछ हुआ था उसे लेकर उपन्यास उस घटना के काफी दिनों बाद लिखा गया था। ऐसे में उस किशोर का बिना किसी मजबूत कारण के ऐसे वस्त्रों में एक ऐसे आयोजन में शामिल होना तर्कसंगत नहीं लगता है। मुझे लगता है कि अगर उसके ऐसे कपड़ों में उधर मौजूद होने के पीछे कोई मजबूत कारण दिया जाता तो बेहतर होता।
उपन्यास में नायक एक किशोर है और वह ऐसी जगह पर मौजूद है जहाँ तीन राज्य युद्ध के बीच में हैं। वह ऐसे में वहाँ के राज्यों को अपनी मदद देता है और वहाँ के राजा उसे सहज ही स्वीकार कर देते हैं। यह प्रसंग भी तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। युद्ध बहुत गंभीर मसला होता है और कोई भी राजा किसी अंजान शख्स को इतना महत्व तब तक नहीं देगा जब तक कि वह अपना सामर्थ्य साबित नहीं कर देता है। मुझे लगता है लेखक अगर इस उपन्यास में ऐसे प्रसंग रखते जिससे नायक अपने सामर्थ्य को साबित कर चुका होता और फिर उसके द्वारा बढ़ाया गया मदद का हाथ स्वीकार होता तो ज्यादा तर्कसंगत होता।
उपन्यास युद्ध के विषय में है लेकिन युद्ध के दृश्य जितने लोमहर्षक हो सकते थे उतने अभी नहीं हुए हैं। अगर ऐसा होता तो उपन्यास की पठनीयता बढ़ जाती है।
उपन्यास का शीर्षक लोहे के आँसू है। यह उत्सुकता जगाता है । पर कथानक इस तरह बुना गया है जिससे यह उतना प्रभावी नहीं रह जाता है। हाँ, लेखक द्वारा इसे सार्थक सिद्ध कर दिया जाता है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि इस शीर्षक की सार्थकता दर्शाने के लिए लेखक को कुछ और मजबूत प्रसंग डालने चाहिए थे। हमारा नायक विशेष रूप से कुछ ऐसा करता जिससे लोहे के आँसू आते तो बेहतर होता।
उपन्यास में अंकुर मित्रा के चित्र भी मौजूद हैं जो कि कथानक पढ़ने के अनुभव को और अच्छा कर देते हैं। वह लेखक के द्वारा कल्पित दुनिया को साकार कर देते हैं।
अंत में यही कहूँगा कि ‘लोहे के आँसू’ (Lohe Ke Aansu) रोचक उपन्यास है। अगर ऊपर दिए गए बिंदुओं का ध्यान रखा जाता तो यह और अच्छा हो सकता था। अभी यह औसत बन पड़ा है। एक बार पढ़कर देख सकते हैं।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
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