फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन अपनी टैग लाइन किताबें जरा हटके पर पूरी तरह खरा उतरता है। अपनी टैग लाइन के अनुरूप ही वह पुस्तकें प्रकाशित करते रही हैं और हिंदी में जिन विधाओं की रचनाओं की कमी थी उसे कमी को पूरा करते रहे हैं।
इस अगस्त को फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन को स्थापित हुए चार वर्ष पूरे होंगे। इस अवसर पर एक बुक जर्नल ने प्रकाशन के संस्थापक मिथलेश गुप्ता और जयंत कुमार बलोच से एक छोटी सी बातचीत की है। इस बातचीत में हमने उनके प्रकाशन के सफर और भविष्य की योजनाओं पर बात की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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जयंत कुमार बलोच और मिथलेश गुप्ता प्रकाशन की पुस्तकों के साथ |
नमस्कार मिथिलेश, सर्वप्रथम तो फ्लाई ड्रीम्स प्रकाशन के चार वर्ष पूर्ण होने पर आपको हार्दिक बधाई। इस पड़ाव पर पहुँचकर कैसा लग रहा है?
बहुत धन्यवाद विकास, आप सभी के प्यार और पाठकों के सहयोग से आज फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन ने चार वर्ष पूर्ण कर लिए है। इसमें सबसे ज्यादा ख़ुशी की बात यह है कि जिस योजना और विचार के साथ हमने इस प्रकाशन की शुरुआत की थी आज भी हम उसी को विस्तार दे रहे हैं। आज ये प्रकाशन, एक प्रकाशन समूह बन चुका हैं क्योंकि हमारे इम्प्रिन्ट्स फ्लाई विंग्स, सृजन फ्लाईड्रीम्स और विंग्स क्लासिक्स तीन अलग-अलग दिशाओं में आगे बढ़ते हुए तीन अलग टीम के साथ आगे बढ़ रहें हैं। लेखकों द्वारा हमारे साथ मिलकर कहानियों को पिरोने और पाठकों का भरपूर प्रेम मिलने से अब यहाँ तक पहुँच पाएँ हैं। सफ़र आगे अभी और भी लंबा है।
नमस्कार जयंत, प्रकाशन के प्रथम वर्ष से लेकर अब तक के सफर में आप क्या बदलाव खुद के अंदर और प्रकाशन के अंदर देखते हैं?
नमस्कार विकास, नवीन प्रकाशन होते हुए भी हमने अपनी पहचान हर जुबान पर बनाई है। जिन विधाओं को लेकर हमने किताबे ज़रा हटके के तहत रास्ता चुना था, वह और आसान हुआ है। अब कई नई विधाओं या खत्म हो चुकी विधाओं में में लेखक हिंदी में लिख रहे हैं और पाठक उनको हाथों-हाथ पसंद ले रहे हैं। अच्छी बात यह भी है कि दूसरे प्रकाशन भी इन विधाओं पर काम करने लगे हैं जो कि हिंदी में विविधता को बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी है।
मिथिलेश, आप खुद एक लेखक होने के साथ-साथ आप खुद ऑडियो बुक्स और वेब सीरीज़ लाइन से जुड़े हुए हैं तो ऑडियोबुक और वेब सीरीज़ में फ्लाई ड्रीम्स की किताबों का जो स्वरूप बदला है उनके बारे में आपका क्या कहना है? प्रकाशन के तौर पर आपका किताबों के इस स्वरूप से कैसा रिश्ता रहा है?
जी, अब कहानियों को ग्रहण करने का माध्यम तेज़ी से बदल रहा है तो यह जरुरी हो गया है कि बदलती तकनीक के साथ किताबों को भी विभिन्न माध्यमों तक पहुँचाया जाए। इसी के तहत हमारी 20 से ज्यादा किताबें ऑडियो बुक्स के रूप में आ चुकी है और कुछ जल्द ही आने वाली हैं। इसके साथ ही हमारी 2 किताबों ‘कब्रिस्तान वाली चुड़ैल‘ और ‘वो भयानक रात‘ पर वेब सीरीज निर्माणाधीन है!हमनें इन दो किताबों के राइट्स पिछले वर्ष ही मुंबई के एक प्रोडक्शन हाउस को बेचे हैं! और कुछ किताबों की लिस्ट साल के अंत तक फाइनल हो जायेगी!
सच्चाई यही है कि इन नए स्वरूपों के कारण लेखकों कि रॉयल्टी में बढ़ोतरी हुई है। हमारा कैलकुलेशन यह कहता है कि पेपरबैक से ज्यादा रॉयल्टी हम लेखकों को ईबुक और ऑडियो से दे पा रहे हैं। यह आज के ज़माने के लेखकों के लिए अच्छा विकल्प साबित हो रहा है जिससे उन्हें लिखने के लिए प्रोत्साहन मिलता रहेगा! समय के साथ प्रकाशक को पाठकों तक लेखक की कहानी पहुँचाने के हर मार्ग को प्रयोग में लाते रहना चाहिए। चूँकि नया दौर है तो प्रकाशन का मोड भी नया होते रहना जरूरी है!
जयंत, प्रकाशन के लिए अच्छी सामग्री को प्रकाशित करना तो जरूरी है ही साथ ही इसे पाठक तक पहुंचाना भी आवश्यक होता है। यह एक कठिन कार्य होता है। इन चार वर्षों में पाठकों तक पहुँचने की कोशिशों में कितना बदलाव आया है? क्या ये सरल हुई हैं या कठिन हुई हैं?
आसान तो कुछ नहीं हुआ है लेकिन कुछ ऑफलाइन सेलर्स और ऑनलाइन सेलर्स के बढ़ने से काम थोड़ा कम कठिन हुआ है। जिस किताब को हम अकेले जितना सेल करते हैं, अगर उस किताब का बोल बाला रहा तो वितरक उसका पाँच गुना बेच देता है। सब कुछ कंटेंट पर है, क्योंकि हम सब जानते हैं अंत में कंटेंट ही बोलता है! हम प्रकाशक के रूप में उसे बेहतर तरह से प्रस्तुत करने की भरपूर कोशिश में लगे हैं!
मिथिलेश, आज के वक्त में पुस्तकों की कीमतों पर भी इजाफा हुआ है। इस इजाफे को आप किस तरह देखते हैं और ऐसे में प्रकाशक को लागत और किताबों के मूल्य में सामंजस्य स्थापित करने के लिए क्या क्या करना होता है?
सच में बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। पिछले कुछ महीनों में लागत बढ़ी हैं, जिससे सभी प्रकाशकों की किताबों के दाम बढे हैं। हम भी कम से कम कीमत रखने के लिए काफी पापड़ बेलते हैं क्योंकि हर पाठक किताब को अपने बजट के हिस्साब से पाना चाहता है! बाकी कीमत से अधिक फ्लाइड्रीम्स हमेशा एक विविध कहानी पाठकों तक पहुँचाता आया है जिसकी वजह से पाठक हमारा हर सेट खरीदते हैं। इसका मूल्य पाठक की खुशी द्वारा ही प्राप्त हो सकता हैं।
जयंत, फ्लाई ड्रीम्स प्रकाशन ने अपनी शुरुआत 60-70 पृष्ठ की रचनाओं को प्रकाशित की थी। परंतु अब प्रकाशन से काफी वृहद रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। क्या पाठको की रुचि वृहद रचनाओं में बढ़ी हैं?
जी ये १००% सत्य है कि पाठकों की रूचि वृहद रचनाओं में बढ़ी है और उन्होंने हमें इसके लिए प्रोत्साहित किया है। शायद इसीलिए हम ज़हरीली, समशंख, अथर्व और मायालोक, नयन ग्रह और कब्रिस्तान वाली चुड़ैल जैसे 350-400 पृष्ठों तक की किताबों को प्रकाशित कर पायें! और आगे भी ये सिलसिला जारी रहेगा! ‘सृजन’ के माध्यम से हमनें पुनः 120 पन्नों तक की पोस्टकार्ड साइज़ में किताबें निकालनी शुरू की हैं, ताकि कम शब्दों में भी गहरी और लुभावनी बात पाठकों तक पहुँचा सके। वहीं फ्लाई विंग्स में भी 130 पन्नों में फंतासी सुपर हीरो किताबों को लगातार प्रकाशित किया जा रहा है!
मिथिलेश, सुपरहीरोज की कॉमिक्स पढ़ना तो आम बात थी आप इस विधा में उपन्यास ले आये.? ये आईडिया कैसे आया और आगे क्या योजना है इस पर ? और क्या फ्लाई ड्रीम्स प्रकाशन ‘कॉमिक्स प्रकाशन’ में उतरेगा?
हमने खुद बचपन में शुरूवात किताबों से पहले कॉमिक्स से की थी यही कारण रहा कि हम दोनों (मिथिलेश-जयंत) ने फ्लाइ ड्रीम्स में इस विधा को भरपूर स्पेस दिया। अक्सर लोग इन उपन्यासों को पढ़कर हमसे पूछते हैं क्या कॉमिक्स फ्लाई ड्रीम्स कभी प्रकाशित नहीं करेगा? और इसका जवाब हम हमेशा यही देते हैं कि ‘वो समय भी आएगा’! सच तो यह है कॉमिक्स न सिर्फ खूब सारा समय लेती है बल्कि उसके लिए बजट भी काफी चाहिए होता है और हम इसकी तैयारी 2 सालों से कर रहे हैं!
और अब फ्लाई ड्रीम्स के चौथे वर्ष में बताते हुए हर्ष हो रहा है किऑफिशियली कॉमिक्स प्रकाशन की सूचना इसी महीने पाठकों से साझा की जायेगी! फ्लाईवर्स का निर्माण हो चुका है! और चीजें जल्द आप तक आने वाली हैं! अमोघ, रक्षपुत्र,अवतार, शैवाल- समुद्र का महायोद्धा, मुखौटे का रहस्य, किन्चुल्का जैसे सुपर हीरोज़ पर आधारित किताबें पाठकों को खूब पसंद आई हैं!
अच्छा जयंत, अभी तक हमने पाठकों को केंद्र में रखकर बात की है। अब लेखकों से जुड़ी बात करते हैं। ऐसे वक्त में जब लेखकों को पुस्तकें प्रकाशन के लिए अधिकतर खुद पैसे देने पड़ते हैं, आप लोग पारंपरिक तरीके से पुस्तक प्रकाशित कर रहे हैं। पुस्तकों के प्रकाशन का निर्णय आप कैसे लेते हैं? कौन से मापदंड पर खरे उतरकर कोई पुस्तक फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन से प्रकाशित हो सकती है?
चयन प्रक्रिया समय के साथ और भी पारखी हुई है। हम लेखकों से सम्पूर्ण पांडुलिपि ही लेते हैं ताकि कहानी के हर पहलू को देखा जा सके। कहानी का केंद्र बिन्दु क्या है? क्या कहानी अपनी विधा अनुसार लेखन में सही है? क्या पात्रों का चरित्र-चित्रण प्रभाव छोड़ता है? क्या दृश्यों को चलचित्र समान लिखा गया हैं? क्या कहानी के उतर चढ़ाव पाठकों को आनंद दे देंगे? क्या संवाद कहानी को जरूरत अनुसार गति या ठहराव दे पा रहें हैं? और भी कई बारीक बातें। लेखक ने जो पांडुलिपि हमसे साझा की है उसमें व्याकरण संबंधी त्रुटियाँ कितनी है इसका प्रभाव भी पड़ता है क्योंकि यह चीज लेखक की गंभीरता दर्शाता है। रचना में जितनी कम गलतियाँ उतना ही लेखक अपने लेखन के प्रति गंभीर होगा। प्रकाशक के तौर पर बात करूँ तो कुछ विधाएँ हमारे लिए खास हैं जैसे फंतासी, हॉरर, विज्ञान गल्प इत्यादि। इन्हीं विधाओं के वजह से हमने फ्लाइड्रीम्स की नीव रखी थी तो इन पर हम खास तवज्जो देते हैं। हम लोग लेखकों को बढ़ावा देने के लिए निशुल्क प्रकाशन करते रहेंगे और जिन कहानियों से हम पाठक के रूप में खुद जुड़ाव महसूस करेंगे उन्हें सभी के समक्ष लाने की कोशिश करते रहेंगे।
मिथिलेश, आगे आने वाले वर्षों के लिए आपकी क्या योजनाएँ हैं? क्या उन पर आप कोई रोशनी डाल सकते हैं?
विश्व क्लासिक्स किताबों को हिंदी पाठकों तक तेज़ी से पहुँचाना और ‘किताबें ज़रा हटके’ टैग को तेज़ी से बढ़ाना हमारी योजनाओं में शामिल है। इसमें हम खासकर उन विधाओं को शामिल करना चाहते हैं जिसमें पाठकों की रूचि बढ़ी है जैसे- बाल साहित्य, हॉरर, फंतासी, सुपर हीरो जॉनर, साइंस फिक्शन, मायथोलोजी।
जयंत अब बातचीत का पटाक्षेप करते हुए उस अंतिम सवाल से करना चाहूँगा जिससे हर प्रकाशक ही नहीं लेखक भी जूझ रहा है और वह है पुस्तकों की लगातार होती पायरेसी? पुस्तक पायरेसी के विषय में प्रकाशक के तौर पर आपका क्या सोचना है और यह लेखकों को कैसे प्रभावित करता है?
ये समय है, हिंदी किताबों और साहित्य को सहयोग करने का, बल देने का। अगर नए प्रकाशक और लेखकों की किताबें पायरेसी में आ जाती हैं तो उनकी प्रेरणा वैसे भी जाने लगती है। सोचिये अगर आप पूरा साल ऑफिस जाए और आपको उसका कोई पेमेंट ही न मिले! तब आप कैसा महसूस करेंगे? ऐसा ही लेखक के साथ होता है। वह पूरी लगन के साथ किताब लिखता है लेकिन उसके हाथ पायरेसी के चलते कुछ नहीं आता है। ऐसे में वह लेखन को लेकर हतोत्साहित हो जाता है और हम कहने लगते हैं कि हिंदी में लेखन नहीं हो रहा है।
सो किसी भी तरह की किताबों की पायरेसी सही नहीं है!
आजकल तो वैसे भी सब कुछ बजट में है। खरीद कर पढ़िए! और न खरीद सकें तो लाइब्रेरी बनाकर या किसी लाइब्रेरी का हिस्सा बनकर पढ़िए। लाइब्रेरी से किताबें खरीदवाएँ ताकि ज्यादा से ज्यादा पाठक उन्हें पढ़ सकें। बस इतना समझ लीजिए, जबतक पायरेसी रहेगी, लेखक को भी अपनी कलम को बेहतर करने का प्रोत्साहन नहीं मिलेगा और पाठकों को भी अच्छी किताबों के लिए अत्यधिक इंतज़ार करना पड़ेगा। यह एक तरह से सम्पूर्ण कला को दीमक की तरह खत्म करने जैसा है।
और मुझे लगता है कि एक अच्छा पाठक शायद ही यह चाहेगा कि उसके प्रिय लेखक या उसके प्रिय विधा की ऐसी गति हो!
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तो यह थी फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन के संस्थापक मिथलेश गुप्ता और जयंत कुमार बलोच से एक छोटी सी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। बातचीत को लेकर अपनी विचारों से आप हमें कमेन्ट के माध्यम से अवगत करवा सकते हैं।
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मैं 'फ्लाई ड्रीम्स प्रकाशन' से प्रथम सेट के प्रकाशित होने से जुड़ा हुआ हूँ। तब हार्डकाॅपी के रूप में पुस्तकें मंगवाई थी। सब लघु आकार की रचनाएँ थी।
अब किंडल के माध्यम से निरंतर फ्लाईड्रीम्स की पुस्तकें पढ रहा हूँ।
प्रकाशन का सफर लघु से विस्तार की ओर बढते हुये देखा है। 'किताबें जरा हट कर' टैग लाइन को सार्थक करती रचनाएँ निरंतर प्रकाशित हो रही हैं।
प्रकाशन टीम धन्यवाद की पात्र है।
– गुरप्रीत सिंह, श्री गंगानगर, राजस्थान
http://www.svnlibrary.blogspot.com
जी आभार।
फ्लाईड्रीम्स से जुड़ने पर मुझे आत्मसंतुष्टि भी है और गर्व भी है।
जी आभार।