लेखिका शोभा शर्मा से ‘एक थी मल्लिका’ के नव प्रकाशित वृहद संस्करण के ऊपर एक छोटी सी बातचीत

परिचय:

शोभा शर्मा से एक थी मल्लिका पर बातचीत
लेखिका शोभा शर्मा मूलतः टीकमगढ़ मध्य प्रदेश की हैं। टीकमगढ़ में ही रहकर उन्होंने अपनी शिक्षा दीक्षा ग्रहण करी। उन्होंने प्राणी शास्त्र में एम एस सी करने के बाद बी एड किया। इसके बाद उन्होंने काफी समय तक शिक्षिका के रूप में भी कार्य किया। विवाह के पश्चात उन्होंने परिवार के साथ समय बिताने हेतु शिक्षण से त्यागपत्र ले लिया और स्वतंत्र लेखन करने लगीं।
लेखिका 1990 से स्वतंत्र लेखन कर रही हैं। अपने लेखकीय जीवन में उन्होंने पारिवारिक, समाजिक, हॉरर, सस्पेंस जैसी विभिन्न विधाओं में अपनी रचनाएँ लिखी हैं। 
इस दौरान उनकी साठ से अधिक कहानियाँ, अनेक लेख और कवितायें सरिता, मुक्ता, सरस सलिल, गृहशोभा, गृहलक्ष्मी, मेरी सहेली, वनिता, मनोरमा जैसी कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने आकाशवाणी छतरपुर से अस्थाई उद्घोषिका का कार्य भी किया है और अब तक उनकी पचास से अधिक कहानियाँ, वार्ताएं एवं झलकी (हाय रे! हिचिकी) का रेडियो प्रसारण हो चुका है। 
नवभारत जबलपुर में उनके अनेक लेख, परिचर्चाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी रचनाएँ प्रतिलिपि और मातृभारती जैसी वेब पोर्टल्स पर भी निरंतर प्रकाशित होती रही हैं। 
पुरस्कार:
म.प्र लेखिका संघ से सम्मानपत्र प्राप्त
म.प्र लेखिक संघ से सम्मानपत्र प्राप्त
दिल्ली प्रेस के द्वारा गृहशोभा (2001) में कहानी ‘प्रत्यागत’ पर पुरस्कार एवं सम्मान 
मेरी सहेली द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कार


रचनाएँ:
एक थी मल्लिका (पेपरबैक | किंडल)

Into the Darkness (किंडल)
इन्टरनेट पर उपलब्ध रचनाएँ – प्रतिलिपिमातृभारती  

लेखिका से आप निम्न माध्यमों से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:
ई-मेल :
1960.shobha@gmail.com | facebook

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लेखिका शोभा शर्मा द्वारा रचित ‘एक थी मल्लिका’ का पहला संस्करण जब 2019 में आया था तो यह एक 70 पृष्ठों का लघु-उपन्यास था।  अब 2020 में उनकी इस रचना का वृहद संस्करण प्रकाशित हो रहा है जिसमें पृष्ठों की संख्या 150 के करीब हो गयी है। अपनी पुस्तक एक थी मल्लिका के इस नव प्रकाशित संस्करण के ऊपर ही लेखिका शोभा शर्मा ने एक बुक जर्नल से बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।



 मैम, आपकी किताब मल्लिका का नया संस्करण रिलीज़ हुआ है। सबसे पहले तो इस नये संस्करण के प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई। 

विकास जी, आपको बहुत धन्यवाद कि अपने मुझे अपने द्वारा लिए गए साक्षात्कार के द्वारा, मुझे अपने बारे में और अपने उपन्यास के बारे में अवसर प्रदान किया ।

प्रश्न: मैम, मल्लिका के विषय में कुछ बताएं? आखिर कौन है मल्लिका? क्या है इसकी कहानी? मल्लिका लिखने का विचार आपको कैसे आया?

उत्तर: आपने पाठकों को बताना चाहूँगी कि उपन्यास ‘एक थी मल्लिका’, यूँ तो मेरे दिल की प्यारी सी कल्पना ही है, पर उसके होने का कुछ प्रमाण भी रहा है क्योंकि वह हवेली भी मैंने बचपन में देखी थी, जिसके झरोखे में बैठ कर मल्लिका, अपना गुलाब का फूल उठाने को, राहगीरों को आवाज दिया करती थी। दादी के मुँह से उसके बारे में सुना भी था, कि जो गया भीतर वह लौटा नहीं फिर, मगर कारण क्या था…….? यह पाठकों को उपन्यास पढ़ कर पता चलेगा।

बस वही कथानक बीज रूप में, मेरे बचपन से कुछ किस्सों और मेरी दादी के द्वारा बताई गयी जानकारियों के रूप में, मेरे मस्तिष्क में सोया पड़ा था। 

मल्लिका एक गरीब किसान की मासूम सी बेटी थी, जो हवेली के कुँवर की कटार से ब्याह कर, अपने भाग्य या कहिए दुर्भाग्य से आयी, फिर उसके दुख दर्दों, बेचैनियों, परेशानियों की कहानी शुरू हुई, जब व्याकुलता बढ़ती थीं तो – ‘तनिक इतै आईयो तौ…ओ! लाला….!!’ कहकर अनजाने राहगीरों को अँधेरी रातों में, झरोखे पर बैठ कर, उन्हें बुलाती थी। जिसे सुनकर जानने वाले भय से काँप उठते थे और अनजान राजू जग्गू जैसे ….उत्सुक हो उठते थे जाने को….. गुलाब उठाकर ले जाने के लिए देने को। इस उपन्यास में मैंने उस समय के स्त्री विमर्श को दिखाया है। स्त्रियों की क्या स्थिति थी, देश काल और व्यवस्थाएँ  क्या थीं!! क्या परम्पराएँ थीं!! 

मैं बुंदेलखंड की माटी से हूँ, यहीं मेरा जन्म हुआ यहीं पली बढ़ी हालांकि बाद में विवाह के बाद मैं पति की नौकरी के कारण बीस जिले और छह राज्य घूमी, साथ ही घुमक्कड़ प्रवृत्ति के होने के कारण सारे भारत भर में घूमी। सभी जगह की संस्कृति, परिवेश, खान पान को जाना, समझा और आत्मसात किया। लेखन भी 92 -93, से सभी राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में अच्छी तरह से चला। 

 मैं लेख, परिचर्चाएं, कहानियाँ लिखती थी। यह नहीं सोचा था कि उपन्यास भी लिखूँगी। मुझे प्रतिलिपि की जानकारी लगी, धीरे-धीरे कई वेब पत्रिकाओं में कहानियाँ लेकर आ गयी। उसी दौरान मेरी कहानी, जो मैंने पोस्ट की थी, के द्वारा फ्लाइ ड्रीम्स पब्लिकेशन्स से संपर्क हुआ। मुझे आग्रह मिला कि मेरे इस कथानक पर एक उपन्यास लिखा जाए। 

मैंने बस तभी से शुरुआत की, और उस एक कहानी को लघु उपन्यास में लिखा, इसने पाठकों के मन में अपनी जगह बनाई, सभी को यह बहुत पसंद आया । इसके लिए मैं अपने उपन्यास के प्रकाशक फ़्लाइड्रीम्स  पब्लिकेशन्स, जिन्होंने लेखकों के मन के पँखों को उड़ान दी, धन्यवाद करना चाहूँगी। 

 प्रश्न: इस बार मल्लिका का नया संस्करण आया है। ये संस्करण पिछले संस्करण से किस तरह भिन्न  है?

उत्तर: मुझे और उपन्यास के प्रकाशक जयंत जी को भी यह लगा कि यह जिस तरह से एक थी मल्लिका का कथानक पाठकों के दिल में रचा बसा है, पसंद किया गया है, अभी पूर्ण आकार लेकर और भी विस्तार पाएगा। यह कथानक 1920 से लेकर 2010 तक के काल को लेकर लिखा और समेटा गया है इसको तथा इसकी मूल कथा नायिका दुलारी नाम की बालिका, जो बाद में मल्लिका बनी, उसी के इर्दगिर्द उपन्यास का ताना बाना बुना गया। 

मुख्य पात्र मल्लिका के अतिरिक्त इसमें और किरदारों के बारे में भी जानने को मिलेगा वह हैं, रसवंती, दादा ठाकुर, कमला रानी, काकी मुख्य पात्र हैं। 

इसमें मैंने बुंदेलखंड की पृष्ठभूमि, उस समय के सजीव स्त्री विमर्श, मजबूरियाँ, समाज व्यवस्थाएँ, गरीबों और अमीरों के रहन सहन, राजशाही के अच्छे बुरे पहलुओं का उल्लेख, चली गईं चालें, सभी का चित्रण इसमें बारीकी से किया है। इसके साथ ही इसमें समकालीन बुन्देली देशी बोली का भी समावेश किया गया है जो पढ़ने में सुंदर प्रभाव देता है मल्लिका की दर्दनाक कहानी भी है। यदि अच्छी रूह है तो बुरी रूह भी है। अत्याचार है तो उसका अंत कैसे हुआ? जिसको आप उपन्यास ‘एक थी मल्लिका’ में पढ़ सकेंगे। राजशाही से बाद की सदी तक का विवरण, अच्छी बुरी शख्सियत , उनकी आत्माएँ, लिए गए प्रतिशोध, अंत पहले भी थे। 

इन्हीं को बाद के द्वितीय संस्करण में पूरा विस्तार देते हुए समेटे हैं। जो पहले संस्करण से अलग नहीं है।  उसी का मनोवैज्ञानिक, गहन अध्ययन, बारीकी से चित्रण किया गया है। कहानी का मूल स्वरूप ज्यों का त्यों है।

प्रश्न:  एक उपन्यास को लिखने के पीछे रचनाकार को काफी रिसर्च  करनी पड़ती है। क्या आपको भी मल्लिका लिखने के लिए कुछ रिसर्च करनी पड़ी थी? अगर हाँ तो यह क्या थी?

उत्तर: उपन्यास लिखने के लिए कोई अलग से रिसर्च नहीं की गयी। सतत अवलोकन चल रहा था बाल्यकाल से। बस लिखा अब गया। एक लेखक के दिमाग में ऐसे अनेक प्रकरण, ऐसी अनेक कहानियाँ चलती रहती हैं। जो लेखक को स्वयं ही पता नहीं होता। वे कहानियाँ खुद को बरबस ही लिखवा लेतीं है। कई बार तो सोच समझकर भी कुछ नहीं लिखा जा सकता और कभी कहानी की बुनावट, प्लाट इतना जबरदस्त होता है कि आप जब तक लिख नहीं लेते, तब तक चैन नहीं आता अर्थात अंदर से प्रेरणा आनी जरूरी है।

प्रश्न:  हर उपन्यास में कोई न कोई किरदार होता है जो कि रचनाकार के मन के करीब होता है। इस उपन्यास में मल्लिका के अलावा ऐसा कौन सा किरदार है जो आपके दिल के करीब है? किस किरदार को लिखते हुए आपको ज्यादा मजा आया?

उत्तर: मल्लिका के अलावा जो किरदार मेरे दिल के करीब रहे वह राजू-जग्गू, फिर ईशान अन्वेष भी हैं, इस किताब में जो हर फन मौला हैं, कभी हँसते-हँसाते हैं तो कभी डरते हैं। कभी मिठाइयों और पान पर अपना ध्यान देते हैं तो मल्लिका के आकर्षण में पड़ते रहते हैं। इनकी बातों को पढ़कर सभी पाठकों को बहुत मजा आयेगा।

प्रश्न: आजकल उपन्यास सीरीज में भी आते हैं। क्या मल्लिका एकल उपन्यास है या आप इसे लेकर कोई सीरीज लिखना चाहती हैं?

उत्तर: वैसे तो इसकी सीरीज लिखने का अभी कोई प्लान नहीं है। पर वक़्त के साथ हो भी सकता है कि इसका अगला पार्ट आए। क्योंकि मैंने कहा ही है कि जब जबरदस्त आइडिया दिमाग में जन्म लेता है तो फिर वह अपने आप को लिखवा कर ही चैन लेने देता है। वैसे इसकी जो बुरी आत्मा है, हो भी सकता है कि उसका इस संसार से जाने का मन न करे। 

प्रश्न: मल्लिका जहाँ तक मुझे पता है एक हॉरर उपन्यास है। आप अक्सर हॉरर कहानियाँ लिखती रहती हैं। प्रतिलिपि, मातृभूमि और कहानियाँ नामक वेबसाइट में भी आपकी काफी हॉरर कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं। हॉरर में ऐसा क्या विशेष है  जो आपको इस तरफ आकर्षित  करता है?

उत्तर:  मल्लिका एक हाँरर उपन्यास तो है ही साथ ही इसमें वे तमाम बातें है जो समकालीन समय में होनी चाहिए। जी हाँ, मैं प्रतिलिपि पर हॉरर कहानियाँ भी खूब लिखती हूँ। पर मेरी सोशल कहानियाँ भी उतनी ही हैं। हर विधा को पढ़ती हूँ और सभी विधाओं में लिखना पसंद करती हूँ।

पर मेरा पसंदीदा लेखन हॉरर कहानियाँ ही है। जब मैं ऐसी कहानियां लिख रही होती हूँ, तब मुझे पाठकों के दिल में उठता रोमांच, उनके दिमाग में छायी रहस्यमय अनुभूति, डरने का भाव, सिहरन के भाव महसूस करके, उनका शब्दांकन करना, उन्हें लिखना, पसंद है। भय पूर्ण माहौल का चित्रण करना अपने आप में बिलकुल अलग अनुभूति देता है। वही पाठकों को भी पढ़ने में भी अलग ही अनुभूति देता है। जब मैं ऐसी मिस्टीरियस कहानियाँ लिखती हूँ, अपने ऐसे डरावने, रहस्यमय किरदारों से बातें करते हुए, उन्हें अनुभव करते हुए लिखती हूँ, तो अलग ही अनुभूति होती है कोशिश रहती है कि वही अनुभूति अपने पाठकों तक पहुँचा सकूँ।

प्रश्न: आजकल आप किन प्रोजेक्ट्स पर कार्य कर रही हैं?  क्या वो भी हॉरर ही होंगे या वह अलग विधा में होंगे? क्या पाठकों को अपने आने वाले प्रोजेक्ट्स के विषय में कुछ बताना चाहेंगी?

उत्तर: आजकल मैं और एक और उपन्यास लिख रही हूँ, दूसरा लिख चुकी हूँ। बीच-बीच में कहानियाँ भी लिखती रहती हूँ। मन में है कि इतना घूमी हूँ बहुत सी बातें, जानकारियाँ इकट्ठा हैं, उनको एक तरतीब दे कर एक यात्रा वृत्तान्त भी लिखूँ। देखिये कब तक हो पाता है। पत्र,पत्रिकाओं,आकाशवाणी वेबपत्रिकाओं में लगभग सौ, सवा-सौ कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं, उनके संग्रह भी बना कर पाठकों तक लाना चाहती हूँ। वेबसीरीज़, धारावाहिक भी कई लिखे हैं, जो प्रतिलिपि पर हैं, एक दो पहले आकाशवाणी के लिए भी लिखे थे।

प्रश्न: मैम, बातचीत के आखिर में  क्या आप पाठकों को कुछ कहना चाहेंगे?

उत्तर:  बातचीत के अंत में अपने पाठकों से कहना चाहती हूँ कि कोई भी कार्य करें आप चाहे पढ़ना हो या लिखना, नियमित रूप से करिए। एक शेड्यूल बनाएँ कि आपको तय किया गया कार्य कब करना है। जो भी काम करें उसे आधे अधूरे मन से ना कीजिए, अपना 100% दीजिये सफलता आपके चरण चूमेगी। 
अंत में पाठकों से कहूँगी कि मेरा लिखा उपन्यास ‘एक थी मल्लिका’ पढ़िए और अपने विचार मुझसे शेयर अवश्य कीजिए कि कैसी लगी!! 
पुनः धन्यवाद करती हूँ विकास नैनवाल जी का जिनके साक्षात्कार के माध्यम से मुझे अपनी बात और उपन्यास के विषय में  जानकारी पहुँचने का अवसर मिला साथ ही पाठकों का बहुत बहुत धन्यवाद। जिनके साथ के बिना कोई भी लेखन पूर्ण नहीं हो सकता है। नमस्कार।


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तो यह थी लेखिका शोभा शर्मा के साथ ‘एक थी मल्लिका’ के ऊपर एक बुक जर्नल की छोटी सी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। बातचीत के विषय में आपकी राय आप हमें टिप्पणियों के माध्यम से बता सकते हैं। आभार।

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© विकास नैनवाल ‘अंजान’

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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11 Comments on “लेखिका शोभा शर्मा से ‘एक थी मल्लिका’ के नव प्रकाशित वृहद संस्करण के ऊपर एक छोटी सी बातचीत”

  1. बहुत बढ़िया जानकारी। मल्लिका वाकई में हॉरर और दंतकथा का मिश्रण है।

    1. जी बातचीत आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा सर। आभार।

  2. शोभा मैम को शुभकामनाएँ🙏🎉
    प्रतिलिपि पर तो मैम सभी जॉनर मे जीतते रहती हैं।

  3. धन्यवाद विकास जी, आपने मेरे बारे में जो इंटरव्यू प्रकाशित किया। पाठकों और लेखकों का तहे दिल से शुक्रिया कि उन्होंने मेरे लेखन और किताबों में इतनी रुचि दिखाई। एक थी मल्लिका की इतना प्यार एवं आशीर्वाद दिया। इतने अच्छे रिव्यूज मिल रहे हैं इसलिए मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा कर रही हूँ। धन्यवाद 🙏

  4. हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं शोभा जी🌹🌹

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