संस्करण विवरण
फॉर्मैट: ई-बुक | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | पृष्ठ संख्या: 49 | शृंखला: सुपर कमांडो ध्रुव | लेखक: अभिषेक सागर | सहयोग: मंदार गंगेले | चित्रांकन: हेमंत | इंकिंग: अमित | इफैक्ट्स: रशीद | कैलीग्राफी: हरीश शर्मा
कॉमिक बुक लिंक: अमेज़न
कहानी
ध्रुव इन दिनों पशोपेश में पड़ा हुआ था। कुछ समय पहली हुई घटनाओं ने उसको हिलाकर रख दिया था। उसे शंका में डाल दिया था कि क्या वो जो कर रहा है वो सही है या उसका कोई औचित्य नहीं है?
वहीं राजनगर के लोगों को लगने लगा था कि ध्रुव की मानसिक हालत ठीक नहीं है। उनका मानना था कि उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है और इसके चलते उसने कुछ अपराधियों को मौत के घाट उतार भी दिया था।
आखिर क्या था इसका सच? ध्रुव क्यों अपने मकसद को शक की निगाहों से देखने लगा था?
क्या सच में ध्रुव ने किसी की हत्या की थी?
अगर हाँ, तो वह हत्या किसकी थी और क्यों की थी?
और अगर नहीं, तो लोगों को ऐसा क्यों लग रहा था कि हत्याओं के पीछे ध्रुव का हाथ है?
मेरे विचार
जीवन में हमें कई ऐसे अनुभव होते हैं जो कि हमारी अब तक बनाई हुई धारणाओं पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर देते हैं और हम अपने पूरे जीवन और मान्यताओं को ही संशय की दृष्टि से देखने लगते हैं। ऐसे में एक तरह की दुविधा हमारे मन में उत्पन्न हो जाती है और हमारे पूरे वजूद को हिलाने का माद्दा रखती है।
राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कॉमिक बुक ‘ऑल्टर ईगो’ में हमें
सुपर कमांडो ध्रुव के साथ यही सब कुछ होते हुए दिखता है। उसे अपनी मान्यताएँ, अपनी धारणाएँ टूटती हुई सी लगने लगती हैं।
अभिषेक सागर द्वारा लिखी इस कहानी की शुरुआत अपराधियों के अड्डे से होती है जहाँ पर ध्रुव हमें अपराधियों को जान से मारते हुए दर्शाया जाता है। इसके बाद कहानी 2 हफ्ते पहले पहुँचती है और फिर ऐसे ही वर्तमान और भूतकाल में झूलती रहती है। ध्रुव में आ रहे बदलाव हमें दिखते हैं और वह बदलाव किन कारणों से आ रहे हैं इनका भी पता लगता है। ध्रुव में आ रहे इन बदलावों का उसके करीबी लोगों पर क्या असर पड़ता है यह हमें दिखाया जाता है।
वहीं कथानक में ध्रुव का टकराव ऐसे व्यक्ति से होता है जो कि पाठक को हैरत में डाल देता है। यह रहस्यमय किरदार कौन है? क्या वो है भी या नहीं? आखिर चक्कर क्या है ये पाठक को समझ नहीं आता है। पाठक के रूप में आप इस चक्कर को जानने के लिए कॉमिक्स के पृष्ठ पलटते चले जाते हो और जैसे जैसे चीजें घटित होती जाती हैं वैसे वैसे आपके मन में कहानी के रहस्य को जानने की इच्छा बलवती होती जाती है।
कहानी में ध्रुव के मन का द्वंद तो दर्शाया ही गया वहीं घटनाओं के माध्यम से यह भी दर्शाया है कि एक सुपरहीरो भी किस तरह मानसिक दबाव से जूझ सकता है। जहाँ सुपर हीरो जॉनर में किरदारों को अक्सर एक आयामी ही दर्शाया जाता है वहीं यहाँ पर उनकी ज़िंदगी के एक महत्वपूर्ण पहलू को दर्शाया गया है जहाँ हर चीज अच्छी नहीं है। ऐसा नहीं है कि ये प्रयोग अनोखे हैं। ऐसे कई प्रयोग पहले भी हुए हैं लेकिन इसका ट्रीट मेंट जिस तरह से किया है वह मुझे पसंद आया। कहानी पढ़कर यह भी महसूस होता है कि ज़िंदगी में ऋचा जैसी दोस्त का होना भी जरूरी है।
कहानी अंत तक आपको बांधे रखती है। कॉमिक पढ़ते हुए आप पहले एक धारणा बनाकर चलते हो लेकिन अंत में कुछ ऐसी चीजें घटित होती चली जाती हैं कि ये सोचने को मजबूर हो जाते हो कि आप जो सोच रहे थे वह सही है या गलत ही है। यही कारण है कि आप अगला भाग पढ़ने के लिए लालायित हो जाते हैं। कथानक कई प्रश्न आपके मन में छोड़ देता है जिनके उत्तर आप जरूर जानना चाहोगे।
कहानी में ध्रुव के द्वंद के साथ साथ आतंकवादी किस तरह आम जानता को प्रभावित करता है यह भी दर्शाया गया है। आतंकवाद से जूझती जनता का रोष, कानून के प्रति उनका अविश्वास का भाव ऐसे भाव हैं जिन्हें हमने कभी न कभी महसूस किया है और कॉमिक पढ़ते हुए एक बार फिर से आप इन भावों से दो चार होते हैं। कॉमिक इस तरह से आपको खुद के अवलोकन का भी मौका देता है।
कहानी की कमी की बात करूँ तो राजनगर में गुंडा मुंबईया हिन्दी बोलते दिखता है जो कि अटपटा लगता है। मुझे लगता था कि राजनगर उत्तर भारत में कहीं होगा। हो सकता है मैं गलत होऊँ पर कम से कम मुंबईया हिन्दी से बचा जाना चाहिए क्योंकि मुंबईया हिन्दी हिन्दी और मराठी के मिश्रण से बनी है। ऐसे में उसका राजनगर में होना खलता है। अगर उसकी जगह किसी उत्तर भारतीय भाषा जैसे हरियाणवी, राजस्थानी, पंजाबी इत्यादि का मिश्रण करके हिन्दी बुलवाई जाती तो बेहतर होता। इसके अलावा कहानी में मुझे कोई ज्यादा दिक्कत नहीं लगी।
चूँकि यह कहानी ध्रुव की मानसिक हालत के विषय में है तो ध्रुव की कहानी होते हुए भी यह हमारे आसपास के लोगों की कहानी लगती है जो कि ऐसे हालातों से गुजर रहे हैं। ऐसे मामलों में अक्सर पीड़ित व्यक्ति मदद लेने से कतराता है क्योंकि हमारे समाज में अभी भी मानसिक बीमारी को लेकर उतनी जागरूकता नहीं है। ऐसे में यह चीज दर्शाती है कि जब सुपर हीरो को भी मदद की जरूरत पड़ सकती है तो हम तो आम आदमी है और इसलिए अगर आपको लगे कि आप किसी मानसिक दबाव से गुजर रहे हैं तो खुद को लोगों से खुद को काटने की बजाए आप मदद लें।
आर्टवर्क की बात करूँ तो आर्टवर्क हेमंत का है और अच्छा बना हुआ है। चूँकि कॉमिक का थीम डार्क है और ध्रुव अवसाद से घिरा हुआ तो चित्रों में रंग भी उसी तरह के दर्शाये गए हैं। इससे कहानी के अनुसार भाव विकसित होते हैं। पर रंगों का यह अंधेरापन पूरे कॉमिक बुक में चलता है जो कि मुझे खला। मुझे लगता है कि बैकफ्लैश की कहानी को थोड़े उजले रंग देने चाहिए थे ताकि उस वक्त की ध्रुव की मानसिक हालत उन रंगों से उजागर होती।
अंत में यही कहूँगा कि ऑल्टर ईगो का कान्सेप्ट और उसका क्रियांवन मुझे पसंद आया। अब देखना ये है कि जो भूमिका लेखक ने इस कॉमिक में तैयार की है उससे उपजी अपेक्षाओं को वह अगले भाग में पूरा कर पाते हैं या नहीं।
मेरी राय तो यही होगी कि अब तक आपने इसे नहीं पढ़ा है तो आपको इसे एक बार पढ़ कर देखना चाहिए।
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