संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | प्रकाशन: तुलसी कॉमिक्स | प्लेटफॉर्म: प्रतिलिपि | लेखन: मंजुला शर्मा | आर्ट: तक्षिला | सम्पादन: प्रमिला जैन
कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि
कहानी
मेरे विचार
अप्रैल के माह में मैंने कोई कॉमिक बुक नहीं पढ़ी थी तो सोचा इस माह उस कमी को पूरा कर लिया जाए। इस कारण इस माह कॉमिक बुक्स पढ़ रहा हूँ। इसी कमी को पूरा करने के लिए कुछ कॉमिक प्रतिलिपि से भी पढ़ रहा हूँ। तुलसी कॉमिक्स (Tulsi Comics) द्वारा प्रकाशित 48 घंटा का चैलेंज (48 Ghante Ka Challenge) भी ऐसा ही एक कॉमिक है जो कि प्रतिलिपि (Pratilipi) पर पढ़ने के लिए उपलब्ध है। चूँकि तुलसी कॉमिक्स (Tulsi Comics) अब बंद हो चुका है तो प्रतिलिपि (Pratilipi) ही एक ऐसा माध्यम है जहाँ से आप इस प्रकाशन द्वारा कभी प्रकाशित कॉमिक पढ़ सकते हैं। वहीं वहाँ मौजूद तुलसी कॉमिक (Tulsi Comics) से प्रकाशित कुछ कॉमिक्स, जैसे कि प्रस्तुत कॉमिक, को पढ़कर आप यह भी समझ सकते हैं कि तुलसी कॉमिक्स (Tulsi Comics) आखिरकार क्यों बंद हुआ होगा।
48 घण्टे का चैलेंज (48 Ghante Ka Challenge) की बात करें तो कॉमिक बुक की कहानी एक जॉनी नाम के कैदी, जो कि जुर्म की दुनिया का बादशाह है, के जेल से भागने से शुरू होती है। जेल से भागकर वह सीधा एक टीवी स्टेशन जाता है और पुलिस को खुला चैलेंज देता है कि वह शहर के सबसे अमीर आदमी मिस्टर डॉन को मार डालेगा। इसके बाद वह अपने चैलेंज को जिस तरह पूरा करता है और अपने मकसद को पूरा करने में उसे जो जो परेशानी आती है वही कॉमिक का कथानक बनता है।
अगर कॉमिक के कान्सेप्ट की बात करें तो कान्सेप्ट कुछ बुरा नहीं है। एक तरफ तो आप ये देखना चाहते हो कि वह पुलिस की सुरक्षा वयस्था में किस तरह सेंध लगाएगा और दूसरी तरफ आप ये भी जानना चाहते हो कि वह जो कर रहा है वो क्यों कर रहा है। इसके अलावा लेखिका ने बड़ी ही सहूलियत से शहर के सबसे अमीर आदमी का नाम डॉन रखकर यह दर्शा ही दियाहै कि उसके चरित्र में खोट होगा। यह खोट क्या होगा यह भी ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर पाठक जानना चाहेगा।
यानी पाठक की उत्सुकता जगाने का पूरा मसाला इस कहानी में है और कुशल लेखक के हाथ में यह एक अच्छी कहानी भी बन सकती थी लेकिन अफसोस अच्छी कहानी बनाने में न लेखिका को रुचि थी, न संपादिका को रुचि थी और न प्रकाशक को ही रुचि थी। जिसे तरह लेखिका ने कुछ भी लिख दिया है और प्रकाशक और संपादिका ने उसे बिना देखे छाप भी दिया है उससे ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें (लेखिका, संपादिका और प्रकाशक को) कोई सजा दी गई थी और उन्हें जैसे तैसे वह सजा पूरी करनी थी।
मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ यह मैं तफ़सील से बताता हूँ। कॉमिक्स की शुरुआत में हमें बताया जाता है कि जॉनी महाशय बड़े अपराधी हैं और इसलिए जेल में बंद हैं। चलिए मान लिया। फिर बताया जाता है कि चालाक है तो जेल से भाग जाते हैं। चलिए यह भी मान लिया। इसके बाद यह भी बताया जाता है कि वो मेकअप में इतने माहिर हैं कि जेल से भागकर एक टीवी स्टेशन में घुसते हैं और वहाँ अपनी इस कलाकारी को दर्शाते हैं। यह पचाने में थोड़ी दिक्कत होती है लेकिन मान लेते हैं कि रास्ते में खरीदारी करी होगी। यहाँ तक कहानी पर विश्वास किया जा सकता है लेकिन इसके बाद चीजें रोचक होती है। जॉनी भाई ने चैलेंज तो दे दिया है और अब उन्हें उसे पूरा करना है। वो पूरा करने के लिए वह अपने एक साथी जानवर की मदद लेते है जो कि उनकी बात समझता है। वह उनकी मदद करता है और उस अभेद किले की चाबी उन्हें किसी तरह लाकर देता है जिसमें डॉन जी हैं। उस वक्त जॉनी साहब शहर से बाहर रहते हैं लेकिन न जाने कैसे वो डॉन जी की सुरक्षा व्यवस्था की सारी जानकारी पा लेते हैं। यही नहीं अपने जानवर साथी, जो कि डॉन जी के अभेद किले से आ रहा है, को भी समझाते हैं कि अगले हिस्से को कैसा पूरा करना है। अब इतना कुछ जानने के बाद उनका कमरे में दाखिल होना क्या बड़ी बात है। वो होते हैं और डॉन जी इतने अच्छे आदमी हैं कि जिस कमरे में सोते हैं उसके बाहर उनके नाम की प्लेट लगी होती है ताकि कोई आए तो उनके बड़े से घर में उन्हें आसानी से ढूँढ सके। खैर, जॉनी जी पहुँचते हैं और अपने चैलेंज को पूरा करते हैं। वह पूरा करने के लिए जो तरीका अपनाते हैं वह भी पचाने में थोड़ी दिक्कत होती है लेकिन फिर जो व्यक्ति शहर से बाहर रहकर घर की भीतर की व्यवस्था को जान सकता है तो उसके लिए क्या ही मुश्किल है। यहाँ इतना ही कहूँगा कि अगर कोई इतना शक्तिशाली चुंबक है जो कि आदमी तक को चिपका दे रहा है उसके नीचे बंदूक लेकर बैठना समझदारी नहीं कही जाएगी। वो भी तब जब कुछ पैनल पहले ही दर्शाया गया है कि वह चुंबक कमरे में किसी के भी हाथ से बंदूक छीनने में सक्षम है।
खैर, बदला पूरा होता है जॉनी भाई साहब को पुलिस पकड़ कर ले जाती और जज उसे फाँसी दे देते हैं। ठीक है कातिल को फाँसी भी मिलनी चाहिए। लेकिन सजा देने से पहले वो जॉनी भाई से पूछते हैं कि उन्होंने ये सब कांड क्यों किया और जो उत्तर जॉनी भाई देते हैं उसे सुनकर आप सोचते कि लेखिका ने ये लिखने से पहले क्या खाया होगा कि उनके होश ने उनका साथ छोड़ दिया। एक तो आपको जॉनी जी का उत्तर ही नहीं पचता है और ऊपर से उस उत्तर के बाद जज साहब का फैसला तो और हास्यास्पद लगता है। पढ़कर ये ही लगता है या तो जॉनी भाई साहब अपराधी नहीं है जैसे कि वो शुरुआत में बोलते आए हैं लेकिन अगर हैं तो जेल से भागने के बाद उनका दिमाग फिर गया था।
डॉन का कमरा |
कॉमिक बुक खत्म करने के बाद आप यह सोचने लगते हो कि आखिर प्रकाशक की वह कौन सी मजबूरी थी जिसके चलते उन्होंने इस कहानी को हरी झंडी दी। यह तो अपने पाँव में कुल्हाड़ी मारना सरीखा काम था। क्या कोई कर्जा था जो केवल इसी तरह से उतारा जा सकता था? क्या किसी ने धमकाया था कि यह कहानी न छपी तो प्रकाशक को जान की हानी हो सकती थी। कॉमिक पढ़ने के बाद मेरे मन में बस एक ही इच्छा उत्पन्न हुई। मैं उस वक्त यही चाह रहा था कि काश मेरे पास एक टाइम मशीन होती तो मैं उस वक्त में जाता जब इस कॉमिक को हरी झंडी दी जा रही थी। आखिर उस मीटिंग में क्या बातचीत हुई होगी? मैं सच में ये जानना चाहता हूँ।
वैसे तो इसकी कहानी ऐसी है कि आर्टवर्क गौण हो जाता है लेकिन चूँकि आर्ट भी कॉमिक का पहलू होता है तो इतना ही कहूँगा कि आर्टवर्क मुझे ठीक लगा। मुझे राज के बॉडीबिल्डर वाले आर्ट इतने पसंद नहीं आए लेकिन इस तरह का आर्ट पसंद आता है। तो मुझे तो आर्ट अच्छा लगा।
हाँ, कॉमिक के अंत में प्रकाशक ने अपने उपन्यासों के विज्ञापन भी दिए हैं। यह विज्ञापन मुझे रोचक लगे। मज़ाकिया भी हैं। और इससे प्रकाशक की हिम्मत का भी पता लगता है। मतलब जिस प्रकाशन से ऐसा कॉमिक निकला है उससे आने वाला उपन्यास व्यक्ति लेने से पहले एक दो बार सोचेगा ही। फिर भी प्रकाशक ने विज्ञापन छापा तो लगता है काफी जिगर था उसके पास।
अंत में यही कहूँगा कि 48 घण्टे का चैलेंज (48 Ghante Ka Challenge) एक ऐसा कॉमिक है जो कि अपने प्रस्तुत रूप में छपना नहीं चाहिए था। इसे किसी बेहतर लेखक से लिखवाते या किसी बेहतर संपादक से इसका सम्पादन करवाते तो शायद यह एक अच्छा कॉमिक बुक बन सकता था। पर चूँकि ऐसा न हुआ तो यह एक औसत से भी बुरा कॉमिक बनकर रह गया है। पढ़ना चाहें तो पढ़ सकते हैं। कम से कम ये सीख लेंगे कि कहानी किस तरह नहीं लिखनी है।
कॉमिक बुक लिंक: प्रतिलिपि
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (11-05-2022) को चर्चा मंच "जिंदगी कुछ सिखाती रही उम्र भर" (चर्चा अंक 4427) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चर्चाअंक में पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।
विकास भाई, समीक्षा करने की आपकी यह खूबी है कि आप समीक्षा में सिर्फ तक़रीफ नहीं करते तो वास्तविकता बतलाते है। बहुत सुंदर।
लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा मैम। आभार।