‘पराई आग’ लेखक राजभारती की इन्द्रजीत शृंखला का उपन्यास है। यह एक रोमांचकथा है जिसे लेखक स्टंट थ्रिलर कहा करते थे। आज ‘एक बुक जर्नल’ में हम आपके लिए लेकर आए हैं राजभारती के इसी उपन्यास पराई आग का छोटा सा अंश। उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आएगा और पुस्तक के प्रति आपकी रुचि जगाएगा।
बाहर- लंबूतरे उदास चेहरे वाला अफसर जयपाल प्लेन के लंबे कॉरीडोर में तेजी से कदम उठाता हुआ दूसरे सिरे पर पहुँचा जहाँ तीन अफसर बैठे ऊँघ रहे थे।
“काम के वक्त सो रहे हो?” जयपाल ने एक अफसर से कहा और दरवाजे खोलकर ऑफिस में आ गया, वहाँ उसने मेज पर से कुछ रिपोर्ट उठाई और फिर बाहर आ गया।
“फ्रेंड्स, यह एडवांस टीम रिपोर्टें हैं जो मुंबई से आई हैं। जरा इन्हें पढ़ लें।” उसने रिपोर्टों की एक-एक कॉपी उन तीनों में बाँटी और आगे बढ़ गया।
वे तीनों रिपोर्ट पढ़ने लगे।
अचानक जयपाल मुड़ा, उसके हाथ में काले रंग का लंबी नाल वाला रिवॉल्वर चमक रहा था।
उसका रिवॉल्वर गरजने लगा, इससे पहले कि वे अफसर कुछ समझ पाते, गोलियों ने उसके शरीरों में सुराख कर दिए थे। वे तीनों एक के बाद एक जमीन पर गिरकर तड़पने लगे।
उधर से फारिग होकर जयपाल आगे बढ़ा। इसी केबिन में सामने लकड़ी की दीवार पर एक नेम प्लेट लगी हुई थी, इस पर कुछ पुश बटन लगे थे जिन पर एक से दस तक नंबर छपे थे।
जयपाल ने नंबर दबाए। 5613 दबाते ही उसकी बाईं तरफ एक दरवाजा लिफ्ट के दरवाजे की तरह सरक गया।
यह एक अलमारी थी जिसमें अत्याधुनिक खतरनाक हथियार बड़े करीने से अपनी-अपनी शेल्फों में सजे हुए थे।
उसने बड़ी पेशेवर महारत से मगर निहायत तेजी से एक स्मोक बम उठाया, उसकी पिन खींची और झुककर आहिस्ता से उसे सोफ़े के नीचे लुढ़का दिया। बम से धुआँ निकलने लगा, जयपाल आगे बढ़ गया। हथियारों वाला रैक खुला ही रह गया था।
स्टीवन मैकेन्जी की नजर उधर पड़ी तो उसने अपने एक साथी का कंधा हिलाकर उसे उधर आकर्षित किया और फिर अपने बाकी साथियों से सरगोशी करने लगा।
जल्दी ही वे सब उठे और एकदम हथियारों के रैक वाले केबिन के खुले दरवाजे की तरफ भागे।
उन्होंने आनन-फानन एक-एक हथियार उठाया लिया।
मुसाफिरों में सनसनी फैल गई और कई लोग अपनी सीटों से उठकर इधर-उधर भागने लगे। हर तरफ दहशत भरी चीखें गूँजने लगी।
मैकेन्जी और उसके साथियों ने एक पल भी गँवाये बगैर अपने हथियारों के मुँह खोल दिये। चीखों के साथ-साथ गोलियों के धमाके भी प्लेन में गूँजने लगी। प्रलय का दृश्य बन गया था।
देखते ही देखते बहुत-सी लाशें खून में डूबी दिखाई देने लगीं। सुरक्षा कर्मियों में भगदड़ मच गई।
उन्होंने भी अपने-अपने हथियार निकाल लिए और दोनों तरफ से जबरदस्त फायरिंग होने लगी।
प्लेन में मोटा काला धुआँ फैल गया था, उससे घबराकर भागने वाले मुसाफिर आग उगलती गनों का शिकार होकर काल के गाल में समय रहे थे।
गोलियों की कान फोड़ू आवाजें और चीखों का शोर कोन्फ़्रेंस रूम में पहुँचा तो सब भौचक्के रह गये। फिर सब लोग चौंकन्ने होकर दरवाजे की तरफ भागे।
इन्द्रजीत हक्का-बक्का रह गया। वह अपनी आदतानुसार झपटकर दरवाजे की तरफ बढ़ा ही था कि एक अफसर ने चीखकर कहा – “जनाब, कृपया आप दरवाजे से दूर ही रहें।”
बाहर – रमेश खुराना ने कॉकपिट में संपर्क कर लिया था, “हम विपदा में हैं। प्लेन में मौत नाच रही है।” वह चीख रहा था।
“एमरजेन्सी की रिपोर्ट मिल गई।” पायलेट ने कहा और अपने सहयोगी की तरफ देखा, “दरवाजे लॉक कर दो, जहाज में कुछ गड़बड़ हो गई है।”
को-पायलेट अशोक खन्ना ने फौरन एक बटन दबाया, दरवाजे ऑटोमैटिक सिस्टम से लॉक हो गये।
“गरूड़वन, इंडियन एयरफोर्स पर एमरजेन्सी घोषित की जाती है।” पायलट संजय प्रधान चीख-चीखकर ट्रांसमीटर पर आगे खबर दे रहा था। कॉकपिट के बाहर अब भी गोलियों की तड़तड़ाहट गूँज रही थी।
लाशें गिर रही थीं, लोग चीख रहे थे, “उठो, भागों, पीछे रहो।”
अचानक कॉन्फ्रेंस रूम का दरवाजा धमाके से खुला! कमल कपूर की सिक्योरिटी के दो गार्ड अंदर आये- “यह क्या हो रहा है?” इन्द्रजीत ने चीखकर पूछा।
“गोलियाँ चल रही हैं सर।” उनमें से एक ने कहा! उन्होंने इन्द्रजीत को दबोचा और घसीटते हुए बाहर ले चले।
“मेरा परिवार कहाँ है?” इन्द्रजीत मौके के अनुसार चीखा।
“हम हालात पर कंट्रोल कर रहे हैं सर।”
वे तीनों भागते हुए कॉरीडोर पार करने लगे, अचानक बेडरूम का दरवाजा खुला और निम्मी गिल की बेटी टीना दिखाई दी –
“पापा…।”
“टीना वहाँ बैठ जाओ।” इन्द्रजीत अपने रक्षकों के साथ भागते हुए चीखा।
टीना की मम्मी भागते हुए अपनी बेटी की जान बचाने बाहर निकली। एक अफसर उन्हें बचाने को दौड़ा।
धाँय! धाँय!
तभी पीछे से एक दहशतगर्द ने उसे गोली से उड़ा दिया, वह उन माँ-बेटी के कदमों में ही धड़ाम से गिरा- टीना के मुँह से डरावनी चीख निकल गई।
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गत्यात्मक में लिखी कहानी अच्छी है। साधुवाद!–ब्रजेंद्रनाथ
जी सही कहा। राजभारती जी का कथानक तीव्र गति का होता है। आभार।
रोमांचक कथानक, तेज प्रवाह लिए।
जी कथानक वाकई रोमांचक है इसलिए अंश साझा करने का मन बना।
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (१३-०२ -२०२२ ) को
'देखो! प्रेम मरा नहीं है'(चर्चा अंक-४३४०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।
आमंत्रण भूलने हेतु माफ़ी अनुज।
सादर
माफी की कोई बात नहीं दीदी।