लाश कहाँ छुपाऊँ – वेद प्रकाश शर्मा

रेटिंग:2.5/5
उपन्यास सितम्बर 2018 से सितम्बर 2018 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक(लुगदी)
पृष्ठ संख्या: 175
प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स
आईएसबीएन: 9789380871011



पहला वाक्य:
मैं पवित्र गीता पर हाथ रखकर कसम खाता हूँ…कि जो भी लिखूँगा,सच लिखूँगा और सच के अलावा कुछ नहीं लिखूँगा।
आज क़ानून की नज़रों में  चंपक एक  अपराधी है। उसके ऊपर हत्या,लूटमार और चोरी जैसी गंभीर आरोप लगे हैं। इन्ही आरोपों के चलते उस पर कई अभियोग चलाए जा रहे हैं। परन्तु कभी यह खूँखार अपराधी क्या असल में अपराधी था? आखिर क्यों वो गुनाह की दलदल में पहुँचा और फिर अंदर धँसता ही चला गया।


यह चंपक की कहानी है। वह कहानी जो बताएगी कि ऐसा क्या हुआ जो वो गुनाहगार बना और गुनाह पर गुनाह करता चला गया।


आखिर कौन है ये चंपक? किधर से आया है? आखिर इसने क्या अपराध किये हैं?  क्यों वह अपराध की डगर पर चलने लगा?


ऐसे ही कई सवालों के जवाब आपको चंपक देने को तैयार है। यह चंपक की कहानी है जो वह अपनी जुबानी आपको सुनाना चाहता है।


मुख्य किरदार:
चंपक  – नायक
कुंती – चम्पक की पत्नी
रामकिशोर – चम्पक का लड़का
बेबी – चम्पक की लड़की
छैला – एक आपराधिक छवि वाला दबंग व्यक्ति
झुमरू -एक आपराधिक छवि वाला इनसान
रामस्वरुप – चंपक का बचपन का दोस्त जो उससे बिछड़ गया था
निक्की और जिक्की – दो  नामी  चोर

वेद जी का उपन्यास जब मैंने लिया था तो मुझे लगा था कि यह एकल उपन्यास होगा,पर यह गलतफहमी तब दूर हुई जब एक व्हट्सएप्प समूह में बताया कि यह उपन्यास पढ़ रहा हूँ। उन्होंने ही बताया कि उपन्यास का अगला भाग कानून मेरे पीछे है। अगर आप भी उपन्यास पढ़ना चाहते हैं तो यह सुनिश्चित कर लें कि इस उपन्यास का दूसरा भाग भी आपके पास हो।  ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि लाश कहाँ छुपाऊँ की कहानी एक ऐसे मोड़ पर खत्म होती है जिसको पढ़ने के बाद आप आगे की कहानी जरूर जानना चाहेंगे।

अब इस उपन्यास की बात करते हैं। लाश कहाँ छुपाऊं एक (स्वीकारोक्ति) कॉन्फेशन  के तौर पर लिखा गया है। हमे कहानी चंपक सुना रहा है और उसी के हिसाब से हम कहानी  को देखते हैं।

चंपक एक गाँव का सीधा साधा, भोला भाला युवक  था। पर परिस्थिति उसे शहर लायी और यहाँ आकर उसकी ज़िन्दगी में ऐसा कुछ हुआ कि अब उसके नाम कई अपराध दर्ज हो चुके हैं। यह सब कैसे हुआ इसी को चंपक पाठक को बताना चाहता है।

उपन्यास पठनीय है। उपन्यास की शुरुआत में लेखक ने बताया है कि चंपक ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है और उसी के हिसाब से वो आचरण करता है। चंपक की शादी भी बचपन में ही हो जाती है और इस घटना के माध्यम से लेखक ने यह बताने की कोशिश की है कि कैसे बाल विवाह एक कुरीति है और कैसे वो भविष्य के साथ खिलवाड़ कर सकती है। चूँकि चंपक की समझ भी कम है तो इसके लिए वो अपने दिमाग के अनुरूप ही तर्क देता है।

फिर चंपक कुछ कारणवश शहर आ जाता है। यहीं हम देखते है कि चंपक आसानी से घबरा भी जाता है तो इस चक्कर में वो उपन्यास के दौरान कई बेवकूफाना हरकत करता है। यह सब किरदार से मेल खाता है और इस वजह से कथानक की कमजोरी भी ढक जाती हैं।

उपन्यास के बाकी किरदार भी कहानी के हिसाब से ठीक हैं। लेकिन इनके नाम मुझे अजीब ही लगे। छैला, झुमरू, निक्की, झिक्की इत्यादि अजीब ही लगे। हो सकता है यह नाम उनके किसी कारणवश पड़े हों। अगर इनके नाम के पीछे की कहानी भी लेखक देते तो बेहतर रहते। उदाहरण के लिए छैला का नाम छैला कैसे पड़ा? झुमरू झुमरू का का असली नाम नहीं रहता है तो उसका यह नाम क्या उसने खुद रखा या किसी ने रखा और क्यों? इन किरदारों के विषय में ये जानकारी होती तो शायद नाम इतने अटपटे नहीं लगते।

उपन्यास का कथानक तेज रफ़्तार है। कहानी में ट्विस्ट्स, जिसके लिए वेद जी जाने जाते हैं, वो भी बरकरार रहते हैं।

हाँ, उपन्यास में एक किरदार झुमरू है जो कि एक दिलेर अपराधी दर्शाया गया है। उपन्यास में एक प्रसंग है जिसमें एक लाश छुपानी होती है। उसने जो तरीका सुझाया वो मेरे हिसाब से बेवकूफाना था। इससे उपन्यास का कथानक तो बढ़ता है लेकिन एक अनुभवी दिलेर अपराधी ऐसा तरीका क्यों सुझाएगा यह मुझे समझ नहीं आया। लाश को बांधकर अगर नाले में, जो कि मौजूद था ही, में डाल देते तो लाश कभी नहीं मिलती और अगर मिल भी जाती तो उससे फिंगर प्रिंट या ऐसे कोई सबूत नहीं मिलते जिससे किसी के फंसने की संभावना होती। पूरा उपन्यास पढ़ते हुए मैं खाली यही सोच रहा था। एक बार को यह बात एक भोले भाले आदमी के दिमाग में न आये यह मान सकता हूँ लेकिन एक अनुभवी अपराधी के दिमाग में यह न आये यह कोई मानने वाली बात नहीं है। और इस साधारण सी बात को छोड़कर जो योजना वो बनाता है वो इतनी जटिल रहती है कि मुझे तो वो जमी नहीं। इससे हुआ यह कि इसके बाद की कहानी पढ़ते हुए मेरी रूचि कहानी में नहीं रही। मुझे ऐसा ही लग रहा था कि क्यों झुमरू ऐसी हरकत कर रहा है। बाद बाद में कहानी में थ्रिल जरूर आता है लेकिन मुझे यही लग रहा था जैसे जानबूझकर कथानक बढाने की बात की गई। हाँ, अगर इस बात का कोई अच्छा कारण अगले भाग में मिलता है कि एक शातिर अपराधी ने ऐसा कार्य क्यों किया तो मेरे विचार उपन्यास के प्रति कुछ और होंगे।

कहानी चूँकि अधूरी है तो पूरी कहानी के प्रति अपने विचार तो दूसरा भाग पढ़कर ही दूंगा।

अभी के लिए तो यही कहूँगा कि उपन्यास मुझे औसत से थोड़ा ठीक लगा। एक बार पढ़ा जा सकता है क्योंकि कथानक में घुमाव अच्छे आते हैं।कई जगह सस्पेंस बना रहता है तो रोमांच रहता है।  ऊपर जो बिंदु दिया है उसको ध्यान में रखा जाता और अंतिम योजना की कोई बेहतर वजह होती तो शायद मेरे विचार कुछ और होते।

 अगला पार्ट मैं जरूर पढ़ना चाहूंगा।

अगर आपने इस किताब को पढ़ा है तो आपको यह कैसी लगी? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाइयेगा।
अगर आप यह किताब पढ़ना चाहते हैं तो आप इसे निम्न लिंक के माध्यम से मँगवा सकते हैं:
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वेद जी के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं:
वेद प्रकाश शर्मा

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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20 Comments on “लाश कहाँ छुपाऊँ – वेद प्रकाश शर्मा”

  1. बहुत ही सटीक और तथ्यात्मक समीक्षा लिखी है विकास जी आपने।कहानी को कुछ जगह बेवजह लंबा किया गया है। वेद जी के ज्यादातर उपन्यासों में किरदारों के नाम अजीब ही होते हैं।क्यों होते हैं कभी समझ नही आया।
    झुमरू ने ऐसा क्यों किया इसका जवाब तो आपको अगला भाग पढने पर मिल जाएगा।
    आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है।जब भी आपके ब्लॉग पर आता हूँ। किताबों के जादूई संसार में खो जाता हूँ। अगर कोई व्यक्ति जो पढने का शौक नहीं रखता हो वह भी एक बार आपके ब्लॉग पर आ गया तो उसे भी किताबों से प्रेम हो जाएगा और वह पढने का शौकीन हो जाएगा इतना बढ़िया लिखा है आपने हर किताब के बारे में।

    1. जी आगे के जवाब तो कानून मेरे पीछे को पढकर ही मिलेंगे। हाँ, कथानक को रोमांचक मोड़ देने में वेद जी का कोई सानी नहीं था। कथानक में इतने घुमाव होते है कि रोमांच बना रहता है।

      जी, मेरा ब्लॉग बनाने का उद्देश्य ही यही है कि पढ़ने के प्रति रूचि लोगों के मन में जागृत हो। मेरे दोस्त कहते हैं उनके पास वक्त नहीं है और मैं उनसे कहता हूँ कि आप रोज के दस पृष्ठ पढ़ो तो आप आसानी से महीने में 300 पृष्ठ पढ़ लोगे। दस पृष्ठ पढ़ने में मुश्किल से 10 मिनट भी नहीं लगेंगे और अगर आप महीने में 300 पृष्ठ पढ़ते हैं तो आराम से दो पुस्तकें एक महीने में पढ़ सकते। और साल में बारह हो जाएँगी जो कि अच्छा आँकड़ा है।

  2. बिल्कुल सही कहा है आपने विकास जी । बुक्स सभी को पढना चाहिए । किताबें सबसे अच्छी दोस्त और मार्गदर्शक होती है।

  3. विकास जी
    एक बार बाबू देवकीनंदन खत्री जी व बाबू दुर्गा दास जी खत्री की चन्द्रकांता, चन्द्रकांता संतति, भूतनाथ, रोहतास मठ को भी पढिएगा । आप रहस्य ,रोमांच ,एक्शन टेक्नोलॉजी , तिलिस्म की एक अलग ही दुनिया में पहुँच जाऐंगे। इसी तर्ज पर वेद जी ने देवकांता संतति भी लिखी है । उसको भी एक बार पढिएगा ।
    इन किताबों पर आपकी समीक्षा का इंतजार रहेगा ।

    1. जी, मैंने चंद्रकांता पढ़ी हुई है। चंद्रकान्ता संतति पढ़ने का का भी विचार है। वेदकान्ता का नाम भी काफी सुना है। और अनिल जी की बाबूसा का नाम भी सुना है। इन सभी को पढ़ना है। जल्द ही पढ़ूँगा।

    2. ये सभी मैंने पढ़ रखी हैज और सभी किताब का कलेक्शन भी है बस रोहतास मठ पीडीएफ में इसकी किताब कही मिल ही नहीं रही है

  4. मेरे पास 'लाश कहाँ छुपाऊँ' और 'कानून मेरे पीछे' का संयुक्त संस्करण है| तो एक साथ ही पढ़ा था | स्टार्ट तो बढ़िया लगा पर फिर कहानी मुझे खींचती हुई लगी और अंत तक आते आते बोर करने लगी |1st पार्ट तो जैसे तैसे ख़त्म किया पर पार्ट 2 के ३०-४० पेजेज के बाद हिम्मत नही हुई और उकता कर लास्ट के 5-6 पेजेज पढ़कर ख़त्म किया | यह नॉवेल पढ़ने का सुझाव किसी को नही दूंगा मैं तो |

    1. जी सही कहा। मुझे भी पहला भाग पढ़ने के बाद दूसरा पढ़ने की रूचि नहीं रही। मुझे लगता है कथानक को जबरदस्ती खींचा गया ताकि दो भागों में आ सके। 

  5. आपने वेद प्रकाश शर्मा जी के विजय विकास सीरीज़ के नावेल पढ़े ही नही हैं आपको विजय विकाश सीरीज के नावेल पढ़ने चाहिये मैने आपसे m ekram faridi जी का A tririst पढ़ने का आग्रह किया था मैं जानना चाहता थ की इन्होंने विजय विकास को किसे लिखा है लेकि आप विजय विकाश के करेक्टर से वाकिफ ही नही है तो फ़र्क़ कैसे पता करेंगे वेद प्रकाश शर्मा जी के विजय विकास में और m ekram faridi जी के विजय विकास में भाई आपको वेद प्रकाश शर्मा विजय विकास सीरीज़ नावेल पैड लेने चाहिए

    1. जी मैंने विजय विकास श्रृंखला के इक्का दुक्का उपन्यास पढ़े होंगे। मैकाबर श्रृंखला का एक उपन्यास मैंने पढ़ा था काफी पहले। विजय विकास मैकाबर के देश मे था शायद उसका नाम। दूसरे उपन्यास पढ़ने की कोशिश रहेगी।

  6. अगले पार्ट में पता चलेगा की जुमरू ने ऐसा कियू किया था, जूमरू खिलाड़ी आदमी था, उसने ऐसा एक प्लान के तहत किया था

  7. पूर्व धारणा ना बनाए
    हा, ये बात से मैं भी सहमत हूं की दुनिया का कोई भी लेखक हो उनका 20 परसेंट उपन्यास औसत होता ही है,
    वेद जी के शुरूआती कुछ नॉवेल और लास्ट के सात आठ नॉवेल औसत दर्जे के ही है
    बाकी के नॉवेल सब अच्छे है
    खलीफा, राम बाण , असली खिलाड़ी, दूर की कौड़ी,कारीगर,सबसे बड़ी साजिश,
    विधवा का पति,कानून का बेटा,
    पढ़िए ये सब मास्टर पीस नॉवेल है

    1. जी इन्हें पढ़ने की कोशिश रहेगी…

  8. व्यक्तिगत तौर पर मेरी पसंद केशव पण्डित रहते हैं, लेकिन धनुष टंकार जैसे किरदार लगता है पेज बढ़ाने के लिए हैं, विकास के किरदार के मुकाबले विजय मजेदार लगता है

    1. सही। केशव संजीदा किरदार है शायद इसलिए। मुझे भी वो पसंद है।

  9. मेरा नाम श्रीमती सविता लक्ष्मण कश्यप है मैं भी उपन्यास पढ़ने में रुचि रखती हूं…लाश कहाँ छुपाऊं रहस्य और रोमांच से भरपूर उपन्यास है

    1. नमस्कार मैम। आभार। आपने सही कहा। वेद जी के कथानक पाठक को अंत तक बाँध कर रखते हैं। आप वेबसाईट पर आये अच्छा लगा। आभार।

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