डार्क हॉर्स – नीलोत्पल मृणाल

रेटिंग : 4.5/5
उपन्यास 5 नवम्बर,2016 से 7 नवम्बर,2016 के बीच पढ़ा गया 

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक 
पृष्ठ संख्या: 158
प्रकाशक : शब्दारंभ प्रकाशन
आई एस बी एन : 9788193123614
संतोष
का स्नातक खत्म हुआ तो उसने उसने आई ए एस की तैयारी करने की ठानी।
वो उस परिवेश से आता था जहाँ
कहा जाता था कि
:
हाँ
डॉक्टर बनकर आप अपना करियर
बना सकते थे
, इंजिनियर
बनकर आप अपना करियर बना सकते
थे
, पर
अगर अपने साथ
साथ
कई पीढ़ियों का करियर बनाना
है तो आईएएस बनना होगा।

इसी
सोच के चलते संतोष भी निकल पड़ा
आई ए एस की तैयारी करने के लिए
और उसने इसके लिए आईएएस की
तैयारी के मक्का कहे जाने वाले
मुख़र्जी नगर को चुना।
दिल्ली
का मुखर्जी नगर जहाँ हर साल
कई बच्चे आईएएस बनने का सपना
लेकर आते हैं और हर साल कई बच्चे
इस सपने को अगले साल पूरा करने
के लिए रुक जाते हैं।
ऐसे
में संतोष जब गाँव डुमरी से
दिल्ली के लिए चला तो उसकी
आँखों में आईएएस बनने का सपना
तो था
लेकिन
वो दिल्ली के माहोल से इतना
परिचित भी नहीं था।
दिल्ली
पहुंचकर कर उसे कैसा लगा
?
मुख़र्जी नगर
में उसे किस किस तरह के लोग
मिले
? मुखेर्जी
नगर
, जहाँ
हर साल कुछ बच्चों के सपने
पूरे होते थे तो कई बच्चे असफल
भी होते थे
, ऐसे
में क्या वो अपना सपना पूरा
करने में कामयाब हुआ
?

नीलोत्पल
मृणाल जी का उपन्यास एक ऐसे
व्यक्ति की कहानी है जो एक
छोटे से गाँव से अपने सपने
पूरे करने की खातिर एक बड़े शहर
में आता है। वो दूसरे लोगों
से अलग इसलिए है क्योंकि वो
न नौकरी की तलाश में आया है और
न ही ग्रेजुएशन करने आया है।
वो एक कोर्स की तैयारी करने
के लिए आया है तो इसके लिए उसे
एक विशेष स्थान के आसपास रहना
पढता है और एक विशेष तरीके की
जीवनशैली  का अनुसरण करना पड़ता है।
इस उपन्यास में चूँकि वो कोर्स
आईएएस है तो इसके लिए मुख़र्जी
नगर में उपन्यास रचा बसा गया
है। संतोष जब दिल्ली आता है
तो यहाँ की व्यवस्था
,
लोग और रहने
की जगह को देखकर हतप्रभ हो
जाता है। इसके इलावा यहाँ उसे एक और झटका लगता है जब उसे ये बताया जाता है कि गाँव से जुड़ी हर चीज एक पिछड़ेपन की निशानी है फिर चाहे वो गाँव की बोली हो या उधर का संगीत। ऐसी धारणा अक्सर हर शहर में होती है। मैं जब दिल्ली आया तो मेरे शहर पौड़ी को यहाँ के लोग गाँव कहते थे। उन्हें बताना पड़ता था कि वो कस्बा है गाँव नहीं। फिर इधर के लड़कों के रहने का तरीका भी छोटे शहरों से अलग होता था। अब तो खैर छोटे छोटे कसबे भी शहरों की तरह हो गये हैं। उधर भी नए फैशन के कपड़े, नये स्टाइल के बालों वाले लड़के मिल जाते हैं लेकिन उस वक्त ऐसा नहीं होता था। ये कल्चर शॉक हर उस
व्यक्ति को लगेगा जो एक छोटे
शहर से बड़े शहर की तरफ आएगा।
मैं जब मुंबई गया था तो वहाँ
की भीड़ और छोटे छोटे फ्लैट्स
मेरे लिए एक नया अनुभव थे।
यहाँ तक कि जब दसवीं के बाद
दिल्ली आया था तो वो भी ऐसा ही
अनुभव था। 
इसलिए मैं संतोष
के साथ अपने आप को जोड़ने में
मुझे ज्यादा परेशानी नहीं
हुई।  
उपन्यास
के बाकी किरदार जैसे रायसाहब
(ज्ञानी),
रुस्तम सिंह
(नेता),
गुरुराज
सिंह
(रेबेल),
मनोहर इत्यादि
वही हैं जो आपको किसी भी कॉलेज
या किसी भी कोर्स की तैयारी
करते हुए मिल जायेंगे। अगर
आप आई आई टी की कोचिंग के लिए
जायेंगे तो ऐसे लोग उधर भी
मिलेंगे। मैंने कोचिंग घर से
रहते हुए ली थी तो उधर के छात्रों
के संपर्क में कम ही आता था।
लेकिन कॉलेज में ऐसे लड़के काफी
मिले थे और ये उम्मीद भी है कि
कोटा जैसी जगहों में जहाँ
छात्र कोचिंग के लिए रहने जाते
हैं ऐसे लोग मिल जायेंगे। ये
किरदार बहुत जीवंत हैं और इनको
पढ़ते हुए आपके मन मस्तिष्क
में उन लोगों के अक्स उभरने
लगता है जिन्हें आप जानते हैं
और जो इनकी तरह हैं।
उपन्यास
बहुत मनोराजंक बना है। मैंने
हर पात्र के साथ एक जुड़ाव महसूस
किया। मैं उनके साथ हँसा
,
उनकी असफलताओं
में दुखी भी हुआ और सफलताओं
में अपने को खुश होता हुआ भी
पाया। जहाँ पे लेखक एक सस्पेंस
क्रिएट करने की कोशिश की उधर
मेरी दिल के धड़कन भी रुक गयी
थी और जब वो लम्हा बीता तो मैंने
चैन की सांस भी ली। जावेद का
किरदार वैसे तो कुछ लाइन्स
और कुछ देर के लिए उपन्यास में
जगह बना पाया लेकिन उसकी कहानी
ने बहुत प्रभावित किया। मुझे
उसके विषय में पढ़ते हुए मन में
एक टीस का अनुभव भी हुआ। अगर
मैं कहूँ कि मैं पात्रो के साथ
मुखर्जी नगर में जिया तो ये
कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

जब
आप पात्रों के साथ उनकी भावनाओं
को महसूस करते हैं तो मैं समझता
हूँ कि वो लेखक की सफलता होती
है और इसलिए ये उपन्यास मेरी
नज़रों में एक बेहतरीन उपन्यास
है। अगर आप कुछ अच्छा पढना
चाहते हैं तो इस उपन्यास को
एक बार जरूर पढियेगा मुझे यकीन
है आप निराश नहीं होंगे। 

उपन्यास के कुछ अंश 


ये चेला पालने में फिरोज शाह तुगलक के साढू भाई थे। चेला बनाना और चेले से खाना बनाना कोई इनसे सीखे। ये या तो आदमी को अपना चेला बनाते थे या जिससे इनकी फटती थी उसको गुरु बना लेते थे, पर अपने समकक्ष किसी को नहीं रखते थे।

मनोहर का इस तरह खैनी खाने से रोकना चाचा को थोड़ा खटक गया था। उनसे रहा नहीं गया सो उन्होंने खैनी की डिब्बी जेब में डालते हुये कहा,”बेटा, खैनी रटाने, बनाने और खिलाने के बहाने तो ही रिश्ते बनते हैं। भले तुम्हारे शहर के आइसक्रीम में ये क्षमता कहाँ है।

संतोष अजब सा भाव लिए खड़ा उन बालों को देख रहा था। इन्हीं छाती के बालो का हवाला दे के गाँव में साहस और हिम्मत की बात की जाती थी। एक बार खुद उसने अपने पिताजी को कहते हुए सुना था कि “हमारी छाती में बाल हैं अभी, किसकी हिम्मत है जो हमारे खेत में बकरी घुसा के चरा देगा।” अभी वो सारी हिम्मत अखबार पर मुरझाई पड़ी थी। संतोष ने सोचा, ये तो सामंती सोच है। छाती पर बाल से भला कौन सा हिम्मत आता है?

सिविल सेवा की तैयारी करने वालों से ज्यादा भयंकर आशावादी मानव संसार में और कहीं मिलना मुश्किल था। उसमे भी मुखर्जी नगर नंबर एक पर था। बार-बार फेल होने पर भी लोग एक दूसरे को लगातार सांत्वना देकर यहाँ रहने लायक बना ही देते थे।

समय का पहिया रुकता नहीं, ये सच यहाँ रहने वाले विद्यार्थियों से बेहतर भला कौन जानता। ये पहिया न केवल रुकता नहीं, बल्कि कितने नसीबों को अपने नीचे कुचलता जाता और कई की तकदीर इसी पहिये पे सवार हो के बहुत आगे निकल जाती। मुखार्जी नगर का सम्पूर्ण कालचक्र पीटी, मेंस और इंटरव्यू के बीच ही घूमता रहता था।


अगर
आपने उपन्यास को पढ़ा है तो
इसके विषय में अपनी राय जरूर
दीजियेगा। अगर आपने उपन्यास
नहीं पढ़ा है तो आप उपन्यास को
निम्न लिंक से मंगवाकर पढ़ सकते
हैं
:

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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20 Comments on “डार्क हॉर्स – नीलोत्पल मृणाल”

    1. गणेश जी मैंने खुद खरीद कर ही पढ़ी थी। पीडीएफ के विषय में कोई आईडिया नहीं है।

    2. नहीं, मैंने तो खरीद कर ही पढ़ी तो मैं यही गुजारिश करूँगा कि आप भी इसे खरीदकर पढ़ें।

    1. i bought the book and read it. I hope you'd do the same.

  1. 'डार्क हाॅर्स' को पढना एक अलग संसार में पहुंच जाना है, वह संसार जो विद्यार्थी जीवन में, कोचिंग के दौरान लङकों को देखने को मिलता है।
    उपन्यास के कई किस्से तो पाठक को लंबे समय तक याद रहेंगे, बहुत ही हास्यपूर्ण हैं।
    उपन्यास के‌ सभी पात्र जीवंत लगे, उपन्यास रोचक और पठनीय है।
    अच्छी समीक्षा, धन्यवाद।
    उपन्यास पर मेरे विचार विस्तार से-
    http://svnlibrary.blogspot.com/2018/02/99.html?m=1

    1. अमेज़न में डेढ़ सौं रूपये से थोड़ा ही ज्यादा है। पठनीय उपन्यास है इसमें कोई दो राय नहीं है।

  2. मेरा प्रकाशन संस्थान नहीं है। आप अपनी किताब के विषय में किसी प्रकाशन संस्थान से बात करे। उम्मीद है आपको सफ़लता मिलेगी।

  3. Dark horse is truth of our society.who hidden various things from us. But i want to know who is santosh, i think u r. Really a nice book.

    1. I think each kid who comes from a small town to a big city to fulfil his dreams is Santosh. He has to go through various struggles. He has to adapt to the city life and then keep focused on the goal with which he came here. But often that is not very easy. Most of the times they get too awed by the city life and forget what they came here for.

    1. I bought the book and read it.I don't promote pircay on my blog. I'll urge you to buy thep book. You've got internet connection. You are able to converse on the internet so i'll assuming you are not strapped on resources. You can easily buy the book and help this dwindling profession.

  4. महोदय ये नोवेल बहुत ही अच्छा है। मैने इसको कई बार पढा है

    1. जी सही कहा आपने। छात्र जीवन विशेषकर जो तैयारी कर रहे हैं उसको बड़े अच्छे तरीके से इधर दर्शाया गया है।

    1. बढ़िया है। आपको पता है कितने सारे लेखकों ने उपन्यास लिखना इसलिए ही बंद कर दिया है क्योंकि वो इसमें अपने जीवन का सारा समय लगाते हैं और उन्हें इससे कुछ हासिल नहीं होता है। लोग पायरेटेड पढ़ते हैं। हिन्दी के लेखकों की तो हालत और दयनीय है। धीरे धीरे ऐसा समय भी आएगा कि केवल वही लिखेगा जिसके पास पैसे होंगे वरना दूसरे लोग तो अपनी रिजक कमाने के चक्कर में ही रहेंगे।

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